शीर्षक पंक्ति: आदरणीय रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
नशे के आग़ोश में
समाती नई पीढ़ी,
भारत का भविष्य नहीं है
ख़याली सपनों की सीढ़ी।
-रवीन्द्र
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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जहाँ एक पथ बन्द हो, मिले दूसरी राह।
लेकिन होनी चाहिए, मन में थोड़ी चाह।।
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बिना साधना के नहीं, होता कोई काम।
लक्ष्य साधने के लिए, है आराम हराम।।
भाव थे उज्ज्वल सदा ही
देश का सम्मान भी
सादगी की मूर्त थे जो
और ऊंची आन भी
आज गौरव गान गूँजे
भारती के लाल के।
बारिश की बूँदों का
फूल-पत्तों की अंजुरी में
सिमटकर बैठना
बाट जोहती टहनियों का
हवा के हल्के झोंके के
स्पर्श मात्र से ही
निश्छल भाव से बिखरना
बुद्धि और तर्क से रिक्त
समानता के अधिकारों से विरक्त
अंधविश्वास और अंधपरंपराओं के
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तटस्थ
पति और बच्चों में
एकाकार होकर
खुशियाँ मनाती हैं
नाचती,गाती पकवान बनाती हैं
सजती हैं, सजाती है
समानता के अधिकारों से विरक्त
अंधविश्वास और अंधपरंपराओं के
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तटस्थ
पति और बच्चों में
एकाकार होकर
खुशियाँ मनाती हैं
नाचती,गाती पकवान बनाती हैं
सजती हैं, सजाती है
पहिले भी वे गुर्राते ही थे।
उन्होंने गाया ही कब?
गीत उनको घुट्टी में आया ही कब?
फिर वे उतारू हुए चरित्र-हनन पर।
तब भी मेरा सुर नहीं छूटा
समय ने थूका उन्हीं पर।
फिर फूटी हिंसा
तो भी मैं अक्षत और अनवरत गुनगुनाता चलता रहा
उन्होंने गाया ही कब?
गीत उनको घुट्टी में आया ही कब?
फिर वे उतारू हुए चरित्र-हनन पर।
तब भी मेरा सुर नहीं छूटा
समय ने थूका उन्हीं पर।
फिर फूटी हिंसा
तो भी मैं अक्षत और अनवरत गुनगुनाता चलता रहा
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मौसम कई आये गये पर संबंधों में
हरियाली नहीं है दिखती ,
घर बदला दहलीज बदली पर शक कि
स्याही क्यों नहीं है मिटती ।
कुर्सी, मेजें,
घर, दीवारें
सब कुछ तो मृतप्राय लगें
बोझ उठाते
अपनेपन का
पोर-पोर की तनी रगें
अब आँखों से तेरी ओझल हो गया
चाह कर भी कहीं ढूंढ ना पाओगे
पर तुझमे मुझको ढूंढेगी दुनिया
चांद के संग चौकोर
जैसे इन्द्रधनुष और मोर
किस्से अपने या कुछ और
साथकभी कभी हमारी आदतें हमारा भविष्य तय करती हैं या यूँ कहें कि हमारी आदतें हमें भविष्य के लिए तैयार करती हैं। हम जब तक सिर्फ़ कुछ ही रंगों के बारे में जानते हैं तब तक हमें अपना पसंदीदा रंग तय करने में मुश्किल नही होती पर जैसे जैसे हम कुछ और रंगों को जानना शुरू करते हैं वैसे वैसे हमें अपनी पसंद का रंग बताना मुश्किल लगने लगता है।--
आज बस यहीं तक
शुक्रिया मेरी रचना को इतने गुणी जनों की रचना में शामिल कर के अपने ब्लॉग में पोस्ट करने की लिये. आपका बहुत-बहुत आभार 🙏
जवाब देंहटाएंआदरणीय ,
जवाब देंहटाएंसह सम्मान धन्यवाद ! मेरे कृति को अपने मंच पर साझा करने हेतु। यूं ही अपना सुझाव एवं सहयोग बनायें रखें ।
आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिये ऊर्जा तुल्य है।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंविभिन्न प्रकार की रचनाओं से सजी बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए विशेष आभार।
जवाब देंहटाएं'मयंकजी' के दोहे अच्छे, प्रेरक हैं। एक बार पढ कर मन नहीं भरता। अभी-अभी, फेस बुक पर साझा किए हैं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सराहनीय अंक, बहुत बहुत शुभकामनाएं रवीन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका के साथ सराहनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंमेरे सृजन को स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया सर।
सादर
सराहनीय श्रमसाध्य अंक।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।