मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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दोहे "शरदपूर्णिमा पर्व" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सावधान! महामारी का सबसे नाज़ुक दौर है अब
जिज्ञासा--
भाई !ठीक है आप ही हो अध्यक्ष मानलिया पर इसका सुबूत तो दो। मान लिया आप ही प्रजातंत्र हो ,प्रजातंत्र को बचाने वाला कुनबा हो पर इसका सुबूत तो दो। आज देश को हर चीज़ का सुबूत मांगने की आदत पड़ गई है
कबीरा खडा़ बाज़ार में--
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विषकन्या का जहर | तुलसी कॉमिक्स | विजय कुमार वत्स
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कह मुकरी ...... सहेलियों की पहेलियां ..... कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।--
समय की कीमत समय एक नदी के समान है ,आप बहते हुए उस पानी को दोबारा नहीं छू सकते क्योंकि धारा जो बह गई वो वापस नहीं आएगी ।
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मेरे संग्रह देहरी गाने लगी से...
*पिता*
भाग्य की हँसती लकीरें
जब पिता उनको सजाता
पाँव नन्हें याद में अब
स्कन्ध का ढूँढ़े सहारा
उँगलियाँ फिर काँध चढ़ कर
चाहतीं नभ का किनारा
प्राण फूकें पाँव में वो
सीढ़ियाँ नभ तक बनाता।।
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कुनकुनी धूप खिली है वादियों में
रश्मियों ने पैर पसारे घर के आँगन में
प्रातः का मंजर सुहाना हो गया
गीत गाए दिल खोल परिंदों ने
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' जिन्दगी '-- एक बात छोटी सी-----
' जिन्दगी '--
एक बात छोटी सी
प्याली में उडेलना
फूँक, फूँक,घूँट,घूँट
पी लेना,भर है.
' जिन्दगी ' एक बात छोटी सी
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बिना तले बनाये ब्रेड के इंस्टंट शक्करपारे
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आज के लिए बस इतना ही...!
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआज की लिंक्स पठनीय |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
वाह!खूबसूरत प्रस्तुति ।मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंसुंदर, सार्थक और सामयिक रचनाओं का संकलन सजाया है आपने आदरणीय शास्त्री जी । इस संकलन में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार । सादर शुभाकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा !
जवाब देंहटाएंसभी लिंक बेहतरीन।
सभी रचनाएं पठनीय उपयोगी।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर।
उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
रोचक लिंकस से सुसज्जित चर्चा... मेरी पोस्ट को इन लिंक्स के बीच स्थान देने के लिए हार्दिक आभार..
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