सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक आदरणीय जयकृष्ण तुषार जी की रचना से )
हमारे पापों को धोते-धोते तो गंगा माँ खुद मैली हो गई
आखिर हम कब समझेंगे कि -
अपने मन के पापों को हमें खुद से धोना है..
कोई गंगाजल या अमृत हमारे मन की मलिनता को नहीं धो सकती..
मातारानी की वंदना करते हुए चलते हैं,आज की कुछ खास रचनाओं की ओर..
आज की रचनाओं में विशेष है...माता रानी की वंदना
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गूँथ-गूँथ कर हार सजाया।
नवयुग का व्यामोह छोड़कर
हमने छन्दों को अपनाया।।
कल्पनाओं में डूबे जब भी
सुख से नहीं सोए रातों को।
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एक सामयिक गीत-पाप कहाँ तक गंगा धोयेभारत माँ के चंदन वन में जातिवाद के विषधर सोये । राजनीति के कलुषित मन के पाप कहाँ तक गंगा धोये ।
नव दुर्गा नव रूप है रूप अभिन्नविश्व वन्दिता सर्व पूजिता तेरी जय जय कार हो ब्रम्ह रूपणी सर्व मंगला भवानी जय जय कार हो तेरे नव रूप को मईया जन जन वन्दन करता .... हाथ खड्ग शेर सवारी दुर्गा तेरीजय जय कार हो। विश्व वन्दिता तेरी जय जय कार हो..... *********स्कन्द मातास्कन्द माता के चरणों में पुष्प पंचम तिथि माँ स्कंद का,पूजन नियम विधान है। भक्तों का उद्धार कर , करतीं कष्ट निदान हैं।। तारकसुर ब्रह्मा जपे, माँग लिए वरदान में। अजर अमर जीवित रहूँ,मृत्यु न रहे विधान में।। संभव ये होता नहीं,जन्म मरण तय जानिए। शिव सुत हाथों मोक्ष हो,मिले मूढ़ को दान ये।।**************हे #जगदम्बे मां , अपरंपार #महिमा ।जगदम्बे मां , अपरंपार #महिमा , भर दे सबकी मन्नतों की झोलियां । तू शक्ति रूपेण, तू ममतामयी , तू दुर्गति नाशिनी, तू रक्षा दायिनी, तेरी शरण सबकी छत्र छाया । सच्ची भक्ति , सच्ची श्रद्धा , सच्चे मन से करके पूजा , तेरे दर पर सब कोई आया ।*********************व्रती रह पूजन करते
दर्शन को मचले धरा, गगन समेटे अंक ।
गगन समेटे अंक , बहुत ही लाड-लड़ाये।
भादो बरसे मेघ, कौन अब तुम्हें छुपाये।
कहे धरा मुस्काय, शरद में मत छुप जाना।
व्रती निहारे चाँद, प्रेमरस तुम बरसाना ।।
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उसको अपना माना जिसने
कहते हैं, जिसे अपने पता नहीं है उसे ही अभिमान, ममता, लोभ सताते हैं. मन का यह नाटक तब तक चलता रहता है जब तक हम अपने शुद्ध स्वरूप को नहीं जानते. खुद को जानना ही जीवन जीने की कला है. हम स्वयं के कण-कण से परिचित हों, मन और तन में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों के प्रति सजग रहें. ******आत्म-स्वीकृतिकितना अच्छा लगता है इन पर्वों का आना त्यौहारों, जयन्तियों और स्मृति-दिवसों को विशेषांकों के माध्यम से घर बैठे पा जाना । *******************पश्चाताप का ताप (कहानी) लघुकथायह कहानी अमेरिका की पृष्ठभूमि पर है, लेकिन सार्वदेशिक और सर्वकालिक कही जा सकती है। इस शहर में मॉल संस्कृति है, परंतु बहु मंजिला मॉल नहीं के बराबर हैं। हाँ, मॉल जितने क्षेत्र में फैला होता है, उससे दुगने अधिक क्षेत्र में वाहनों को पार्क करने की व्यवस्था है। यहाँ जो भी ग्राहक आते हैं, उनके पास एक वाहन अवश्य होता है, *************
इस अंक की लघु-कथा 'पश्चाताप का ताप' ने ठेठ अन्दर तक हिला दिया। राष्ट्रीय चरित्र इसी तरह उजागर होता है। इस लघु-कथा के लिए अलग से धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात,सतश्रीअकाल,प्रणाम 🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत ही उम्दा और पढ़ने योग्य प्रस्तुति और शीर्षक तो बहुत ही बेहतरीन है
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंमातारानी की भक्ति और आस्था से सज्जित, तथा कई अन्य सुंदर रचनाओं के सूत्र लगाए हैं आपने कामिनी जी,आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा नमन, मेरे गीत को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार , नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ।
बहुत सुन्दर और पठनीय लिंकों के साथ व्यवस्थित चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
बेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंमेरी रचना का चयन करने के लिए हार्दिक आभार
आदरणीया कामिनी सिंह जी, इस सार्थक चर्चा में अच्छी रचनाओं का चयन किया गया है। ऐसी ही एक और चर्चा का इंतज़ार रहेगा!--सादार5!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा में शामिल करने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी!
आप सभी को नवरात्रि पर्व की अनंत शुभकामनाएं।
चर्चा मंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी स्नेहीजनों को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार। आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंआदरणीय सिन्हा मेम,
जवाब देंहटाएंप्रविष्टि की चर्चा इस अंक पर शामिल करने के लिए सादर धन्यवाद एवं आभार ।
सभी संकलित रचनाएं बहुत सुंदर और भक्तिभाव से ओतप्रोत है । बहुत बधाइयां एवं शुभकामनाएं ।