सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आ.संदीप जी की रचना 'प्रेम ऐसा ही होता है' से -
प्रेम
ऐसा ही होता है
अंदर से
बेहद शांत।
जैसे कोई
रंगों के महोत्सव
के
बीच
किसी अधखिले फूल की
प्रार्थना।
आज से शारदीय नवरात्र आरम्भ हो रहे हैं।आगामी 15 अक्टूबर को विजय दशमी (दशहरा ) और इसके बीस दिन बाद कार्तिक अमावस्या को धूमधाम से दीवाली मनाई जाएगी। अर्थात उत्तर भारत में अब त्त्योहारों का मौसम आरम्भ हो रहा है।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
--
दोहे "सबको देते प्रेरणा, माता के नवरूप"
श्राद्ध गये तो आ गये, माता के नवरात्र।
लीला का मंचन करें, रामायण के पात्र।।
--
सबको देते प्रेरणा, माता के नवरूप।
निष्ठा से पूजन करो, लेकर दीपक-धूप।।
--
गूंजे घंटनाद व निनाद
सजे मार्ग, मंदिर कंगूरे,
शक्ति बिन शिव हों नहीं पूरे
सृष्टि कार्य सब रहें अधूरे !
प्रेम
ऐसा ही होता है
अंदर से
बेहद शांत।
--
अपमान की थाली में
आसमान की तरफ इशारा करके
मेरे पंखों को कसके पकड़ा गया
मेरी हथेलियों पर नमक रोपकर
मुझे मुस्कुराने की हिदायत दी गई
तरसती रही प्रेमी की एक आवाज के लिए
तूफ़ानों की संगत में आकर ,
लहरों को छाया कैसा सरूर ,
चीर कर साहिल की सीमा ,
हो जाती साहिल से दूर ।
पूजा की मैं रीत ना जानूँ
जप-तप का नहीं कोई ज्ञान।
अर्पण तुझको तन-मन माता
मैं ना जानूँ विधि-विधान।।
--
अपने ही पिंजरों में रहना है
एक बेचारगी एक बदहवासी में
बिलबिला रहे हैं सब
जिसे देखो वो
नोच रहा है अपने ही बाल
फाड़ रहा है अपने ही कपड़े
काट रहा है अपनी ही कलाइयाँ
उधेड़ रहा है अपनी ही सिलाइयाँ।
पूछे कोई कारण
या हो कोई गहराई
तो, किसी को कुछ पता नहीं।
बिलबिला रहे हैं सब
जिसे देखो वो
नोच रहा है अपने ही बाल
फाड़ रहा है अपने ही कपड़े
काट रहा है अपनी ही कलाइयाँ
उधेड़ रहा है अपनी ही सिलाइयाँ।
पूछे कोई कारण
या हो कोई गहराई
तो, किसी को कुछ पता नहीं।
ज़िंदगी से
प्रेम का पलायन
यूं ही
नहीं होता...
टूटता है रफ़्ता-रफ़्ता
हममें बहुत कुछ
और बदलता है
कलेवर हर इक जज़्बात का।
"तू कहाँ से समझदार हुई ? तुझसे बड़ा तो तेरा भाई है....?"
"हाँ, है तो? परंतु कीमती चीज़ नहीं, बाबा ने उसे अपनी सारी दौलत सौंपी है।"
"तुम दोनों यहाँ बैठी हो? चलो अब डांट खाओ केतकी मैडम की।"
स्कूल की आया ने दोनों को क्लास की ओर खदेड़ दिया।
आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में
सदैव की तरह पठनीय और सराहनीय चयन। लघु-कथा 'इज्जत' बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार अनिता सैनी जी!
बहुत आभार आपका अनीता जी...। साधुवाद...। नवरात्र की शुभकामनाएं...।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मेम ,
जवाब देंहटाएंमेरी प्रविष्टि् को
'प्रेम ऐसा ही होता है'(चर्चा अंक-४२१०) में शामिल करने के लिये बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
सादर
नवरात्र के उत्सव की सभी रचनाकारों व पाठकों को बधाई, विविध विषयों पर आधारित सुंदर चर्चा, आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा प्रस्तुति, माँ का वरद हस्त सब पर बना रहे
जवाब देंहटाएंआभार अनिता जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय प्रस्तुति प्रिय अनीता, मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसार्थक, सराहनीय अंक ।आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
जवाब देंहटाएं