सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं कुछ चुनिंदा रचनाएँ-
नवगीत "डोलियाँ सजने लगीं, बजने लगीं हैं तालियाँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उच्च-वर्ग की सजी रसोई, मिडिल क्लास का चौका सूना
कार्पोरेटी रेट बढ़ा कर, कमा रहे हैं हर दिन दूना।।
मध्यम-वर्ग अकेला भोगे, महँगाई की निठुर यातना
कौन यहाँ उसका अपना है, जिसके सम्मुख करे याचना।।
सत्ता-सुख की मदिरा पीकर, मस्त झूमता है सिंहासन
उसे समस्या से क्या लेना, उसको प्यारा केवल शासन।।
*****
*****कोई नमक छोड़ता है
कोई निम्बू-पानी पर ही रह कर
नवरात्रि का पारायण करता है
एक शर्ट न पहनकर
आनन्द-उल्लास से भरा रहता हूँ
*****
जिन्दगी कि रेस में धड़कनों कि
रफ्तार को भी पीछे छोड़ देती है ये मौत ।
दोस्तों से दुश्मनों तक उलझनों से उलफतों तक
साँसों से धड़कनों तक एक पल में
सवको अज़नवी कर जाती है ये मौत
न जानें कैसी ये मौत
*****
*****आज बस इतना ही फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुंदर एवं सार्थक चर्चा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी!
बहुत सुंदर प्रस्तुति।आभार सहित।
जवाब देंहटाएंआभार सर
जवाब देंहटाएंधान्य से भरपूर,खेतों में झुकी हैं डालियाँ'
जवाब देंहटाएंबारिश के चलते अब तहसनहस हो गयी डालियाँ!
कृषक के आंखे नम कर गयीं डालियाँ!