सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर की रचना से )
बिना किसी भूमिका के
चलते हैं,आज की कुछ खास रचनाओं की ओर.....
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गीत "तुम पंखुरिया फैलाओ तो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कुदरत अपने गहन मौन में
निशदिन उसकी खबर दे रही,
सूक्ष्म इशारे करे विपिन भी
गुपचुप वन की डगर कह रही !
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उनके मोह में बंध कर रह जाते
उन पुष्पों में ऐसे बंधते
कभी बंधन मुक्त न हो पाते |
तुमसे तितलियाँ हैं बुद्धिमान बहुत
पुष्पों से मधु रस का आनंद लेतीं
और दूसरे के पास उड़ जातीं
होती स्वतंत्र किसी बंधन में न बंधती |
इतनी मोहक रंगबिरंगी तितलियाँ जब उड़तीं
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सात फेरे बोझ लगते
नीतियों के वस्त्र उतरें
जो नयी पीढ़ी करे अब
रीतियाँ सम्बन्ध कुतरें
इस क्षणिक अनुबंध को अब
देखती नित ही कचहरी।।
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आभार सहित धन्यवाद कामिनी जी आज के अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए |उम्दा लिंक्स |
जवाब देंहटाएंसुप्रभात☺🌹
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद🙏
अच्छे लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
शुभकामनाएँ, साहित्य की अविरल धारा को बहाता हुआ सुंदर अंक, आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर पठनीय रचनाओं से सज्जित अंक,बहुत शुभकामनाएं कामिनी जी 💐💐
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक.....आभार सहित धन्यवाद आपका, मुझे यहां स्थान देने के लिये
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार
आ कामिनी जी, पठनीय रचनाओं के चयन से चर्चा काल सार्थक हुआ। आपका हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंआप सभी को तहेदिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंपठनीय रचनाओं से सज्जित अंक
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