शीर्षक पंक्ति : आदरणीय अशर्फी लाल मिश्र जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं कुछ चुनिंदा रचनाएँ-
गीत "खुशियों से महके चौबारा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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एक शेरमेरी ख़ामोशियों से दिल के ग़र अल्फ़ाज़ समझ लेतेकाश मेरे सब्र पे भी दिल के ग़र जज़्बात समझ लेतेतो हैरां न होते तुमपे ऐसे उमड़ते अब्र मेरी आँखों के
हैं ध्रुव से अटल क्यूँ नहीं बरसते ग़र बात समझ लेते ।
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ठगी का शिकार
खेल रहे हैं बहुरूपिए भी, ठगी का खेल निराला।
बचकर रहना इनसे ऐ लोगों,पड़े जो इनसे पाला।
घोड़े को रंग काले रंग से,पहनाकर लोहे की नाल।
दस कदम चला दस हजार में बेचते तुरंत निकाल।
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लैंडमार्क (व्यंग्य-कथा)मेरे लिए भी यह शहर नया ही था। मैं भी उससे तीन माह पहले ही यहाँ आया था। मैं उसके बताये पते पर बिना कठिनाई के पहुँच गया था क्योंकि उसके द्वारा बताया गया लैंडमार्क (गड्ढे) आसानी से मिल गया था। खूब गपशप मारी हम दोनों ने, बहुत मज़ा आया था। उसने जो कुछ बताया उसके हिसाब से वाक़ई उसे बिलकुल समय नहीं मिलता था। अपनी कम्पनी के किसी बहुत बड़े और उलझे हुए प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था वह।*****चन्द माहिए
पना ही भला देखा,
कब देखी मैने,
अपनी लक्षमन रेखा?
माया की नगरी में,
बाँधोंगे कब तक
इस धूप को गठरी में ?
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केश
श्वेत केश तजुर्बे के, काले केश उमंग।
काजल रेख नयन संग , मन में भरता रंग।।
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
सभी रचनायें उम्दा।कोई रचना किसी से कम नहीं। प्रिय रवींद्र_सिंह_यादव जी की प्रशंसा निमित्त कोई शब्द नहीं।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत साधुवाद,आभार।
बेहद खूबसूरत अंक। सुंदर रचनाएं से सुसज्जित बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर व सराहनीय प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसुंदर व सराहनीय चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
सुंदर सार्थक प्रस्तुति ।बहुत शुभाकामनाएं आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी।
जवाब देंहटाएंसराहनीय चर्चा प्रस्तुति।
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