मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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दोहे "पितृपक्ष में कीजिए, वन्दन-पूजा-जाप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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फेसबुक - ह्वाटसप और इंस्टाग्राम के अचानक बंद होने पर...
विशाल चर्चित (Vishaal Charchchit)--
एक बुक जर्नल--
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।--
Watch: हवेली भगत सिंह- जंग-एआज़ादी का सबसे पवित्र तीर्थ
देशनामा--
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हमेशा कहता था
कि मैं उसके लिए
बस एक मरीज़ हूँ,
न इससे ज़्यादा,
न इससे कम.
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मैं उस वक़्त सबसे असहाय होती हूंँ!
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वे पत्रोत्तर देने के लिए लापता का पता तलाश करते थे
दादा जबसे नीमच निवासी हुए तब से ही उनसे सम्पर्क हो गया था। अब तो यह भी याद नहीं कि नीमच में उनसे पहली मुलाकात कब, कैसे, किसके साथ हुई थी। लेकिन जब तक वे नीमच में रहे तब तक सप्ताह में दो-तीन बार तो उनसे मिलना होता ही था। उनसे हुई प्रत्येक मुलाकात एक यादगार संस्मरण होती थी।
मेरी चिट्ठियाँ पोस्ट कर दीं?
पत्राचार दादा की पहचान था। मिलनेवाले प्रत्येक पत्र का जवाब देना उनका स्वभाव था। यदि कोई अपना पता नहीं लिखता तो दादा परेशान हो जाते। पत्र लिखनेवाला यदि आसपास के गाँव-कस्बे का होता तो अपने मिलनेवालों से उसका अता-पता जानने की कोशिश करते। वे कहते थे कि पत्र का जवाब देना जिम्मेदारी ही नहीं, धर्म है। पत्र भेजनेवाला, डाक के डब्बे में पत्र डालते ही जवाब की प्रतीक्षा करने लगता है। दादा ने कभी साफ-साफ तो नहीं कहा लेकिन अब मैं अन्दाज लगाता हूँ कि मिलनेवाले पत्र दादा को सक्रिय बने रहने में मदद करते थे।
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चित्र साभार गूगल |
तन्हाइयों में क़ैद था आँसू भी जल में था
ग़म भी तमाम रंग में खिलते कमल में था
महफ़िल में सबके दिल को कोई शेर छू गया
शायर का इश्क,ग़म का फ़साना ग़ज़ल में था
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Shabdankan शब्दांकन--
हाल में चीन की सबसे बड़ी रियलिटी फर्म एवरग्रैंड के दफ़्तरों के बाहर नाराज़ निवेशकों की भीड़ जमा हो गई। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें भी हुईं। चीनी-व्यवस्था को देखते हुए यह एक नई किस्म की घटना है। जनता का विरोध? अर्थव्यवस्था के रूपांतरण के साथ चीनी समाज और राजनीति में बदलाव आ रहा है। वैश्विक-अर्थव्यवस्था से जुड़ जाने के कारण उसपर वैश्विक गतिविधियों का और चीनी गतिविधियों का वैश्विक-अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ने लगा है। और इसके साथ कुछ सैद्धांतिक प्रश्न खड़े होने लगे हैं, जो भविष्य में चीन की साम्यवादी-व्यवस्था के लिए चुनौती पेश करेंगे।जिज्ञासा
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भारतीय मीडिया फ़ासीवादी प्रचारतंत्र ही है
हमारी आवाज़--
मनुष्य प्रजाति: प्रश्न करने की प्रच्छन्न परंपरा
कबीरा खडा़ बाज़ार में--
मुझे याद है
आज भी
तुम्हारी आंखों में
उम्र के सूखेपन के बीच
कोई स्वप्न पल रहा है
कोई
श्वेत स्वप्न।
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ग़ज़ल - हमने सिक्के उछाल रख्खे हैं
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आज के लिए बस इतना ही...!
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आज के अंक में 'भारतीय मीडिया फ़ासीवादी प्रचारतंत्र ही है' शीर्षक आलेख सामयिक और पठनीय है।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात🙏🙏
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुति
मेरी रचना को चर्चामंच में जगह देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद🙏🙏
पठनीय चर्चा.आभार आपका
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय शास्त्री जी....।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को यथोचित स्थान देने के लिये मयंक सर एवं मंच प्रबंधन का हृदय से आभार और मंच के सुचारु, सुव्यवस्थित तथा सफल संचालन हेतु हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ🙏🙏🙏💕💕💕⚘🌷🌼🌻🌺🥀🌱🌹
जवाब देंहटाएंपठनीय चर्चा,हार्दिक आभार आपका सर।आप अपना आशीष बनाए रखे
जवाब देंहटाएंसुन्दर संयोजन, हार्दिक बधाई आभार 🙏
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा... मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार...
जवाब देंहटाएंसभी टिप्पणी दाताओं का ह्रदय से आभारी हूं
जवाब देंहटाएंसार्थक पठनीय चर्चा , परिश्रम से संकलित सुंदर लिंक सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर।
बहुत ही अच्छे और पठनीय लिनक्स |सादर प्रणाम सर |
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