सादर अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आ.कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' जी की रचना 'अविरल अनुराग' से -
नेह स्नेह की गागरिया में
सुधा लहर सा बहता जाऊँ
खिले प्रीत फुलवारी सुंदर
गीत मधुर से आज सुनाऊँ।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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वृक्ष आज अपने फल खाते, सरिताएँ जल पीती हैं।
भोली मीन फँसी कीचड़ में, मरती हैं ना जीती हैं।
आपाधापी के युग में, जीवन का संकट गहराया।
उथल-पुथल है वन-उपवन में, अन्धड़ है कैसा आया।।
हरित धरा तुम सरसी-सरसी
मैं अविरल सा अनुराग बनूँ
कल-कल बहती धारा है तू
मैं निर्झर उद्गम शैल बनूँ
कभी घटा में कभी जटा में
मनहर तेरी छवि को पाऊँ।।
काली माँ, कपालिनी अम्बा
स्वाहा तुम्हीं स्वधा कहलाती,
विश्वेश्वर, आनन्ददायिनी
क्षेमंकरी, पर्वत वासिनी I
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सबको है नमन मेरा, सबको है वंदन मेरा ।
ले पुष्पगुच्छ हाथों से, सबको है अर्पण मेरा ।।
मैं ब्लॉग जगत में आई, आशा की किरणें लेकर ।
कुछ शब्दों से ही मुझको, जो स्नेह मिला झोली भर ।
मन झूमा बना चितेरा, सबको है वंदन मेरा ।।
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कवि कोई नहीं मानता मुझे
किसी का कवि नहीं हूँ मैं।
मेरे पूरक शरीर तक को
मेरी एक भी पंक्ति याद नहीं,
फिर भी खुद को कवि कहना
क्या कोरा प्रमाद नहीं?
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ब्रह्मचर्य की साधना, धीरज सयंम जानिए।
सदाचार एकाग्रता, पूजन विधि ये मानिए।।
स्वाधिष्ठानी चक्र को,साधक मन जागृत करे।
विचलित चंचल मन सधे,शांत भाव झंकृत करे।।
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तुम्हारे ही पैरों के निशान
मेरे आसपास
स्निफर डॉग पाएगा
तुम्हारी ही गंध
मेरे घर से
स्पर्श की बूंदें, जाते जाते हलकी सी
कोई मुस्कान मेरे ओठों के पास
रख जाए, तपते हुए बरामदे
पर, नाज़ुक सा इक
मरहमी एहसास
रख जाए।
कोई मुस्कान मेरे ओठों के पास
रख जाए, तपते हुए बरामदे
पर, नाज़ुक सा इक
मरहमी एहसास
रख जाए।
मानवता,प्रेम,करुणा, परोपकार, क्षमा और सहनशीलता जैसे संसार के सबसे कोमल भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती माँ खड्ग,चक्र,त्रिशूल, कृपाण,तलवार ढाल से सुशोभित
है,जो सिंह को वश में करती है, जो आवश्यकता होने पर फूलों की कोमलता त्यागकर ज्वालामुखी का रूप धारण कर शत्रुओं को भस्म करती है।
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सबको पता है कि भगवान राम के 3 भाई थे; लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। लेकिन भगवान श्रीराम को एक बहन भी थी इस बारे में बहुत कम लोगों को पता है। श्रीराम जी को एक बहन होने के बावजूद वो रामायण में क्यों रही गुमनाम? क्यों रामचरितमानस में श्रीराम की बहन का उल्लेख तक नहीं है? जानिए भगवान श्रीराम की बहन शांता के बारे में अनजाने और अनकहे रहस्य...
भगवान राम की बहन का नाम शांता था। वो राजा दशरथ और माता कौशल्या की बेटी थी, जो चारों भाइयों से बड़ी थी। रामायण के कई पात्रों की कहानियों की तरह शांता के बारे में भी विभिन्न मत है। इस बारे में खासकर तीन कहानियां प्रचलित है।
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में
सुप्रभात आप सभी का दिन मंगलमय हो🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति !
उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता।
जवाब देंहटाएंकुशल हाथों से सधी हुई सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
सुंदर, सार्थक रचना !........
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सुन्दर चयन। रामजी की बहन देवी शान्ता के बारे में बहुत रोचक जानकारियॉं मिलीं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक रचनाओं के बीच मेरे सृजन को स्थान देनें के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन,आपके श्रमसाध्य कार्य को नमन और वंदन । बहुत शुभकामनाएं प्रिय अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंनवरात्र की शुभकामनायें, साहित्य की अजस्र धारा को बहाने के लिए चर्चा मंच की सुंदर प्रस्तुति, आभार !
जवाब देंहटाएंकुसुम दी की अत्यंत सुंदर रचना के अंश की सार्थक पंक्तियों की भूमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं का सुरूचिपूर्ण संकलन है आज का अंक।
जवाब देंहटाएंमेरे विचार इस अंक में शामिल करने के लिए अत्यंत आभार अनु।
सस्नेह शुक्रिया।
आत्मीय आभार, मेरे नवगीत की पंक्तियों को शीर्ष पर रखकर जो मान दिया है उसके लिए मैं अभिभूत हूँ।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा बहुत सुंदर रही, सभी लिंक असाधारण पठनीय, सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार।
सादर सस्नेह।