सादर अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश छायावादी युग के सशक्त हस्ताक्षर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की रचना मौन से -
बैठ लें कुछ देरआओ,एक पथ के पथिक-सेप्रिय, अंत और अनन्त केतम-गहन-जीवन घेरमौन मधु हो जाएभाषा मूकता की आड़ मेंमन सरलता की बाढ़ मेंजल-बिन्दु सा बह जाएसरल अति स्वच्छ्न्दजीवन, प्रात के लघुपात सेउत्थान-पतनाघात सेरह जाए चुप,निर्द्वन्द
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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दोहे "उसका होता राम सा, जग में ऊँचा नाम"
आज विजयादशमी है !
आज भी तो रावण के पुतले जलेंगे,
क्या वर्ष भर हम रावण से मुक्त रहेंगे ?
नहीं,...तब तक नहीं
जब तक, दस इन्द्रियों वाले मानव का
विवेक निर्वासित किया जाता रहेगा,
और अहंकार
बुद्धि हर ले जाता रहेगा,
समाज में नैतिक क्षरण से होने वाले अपराधों और शासन-प्रशासन के विभिन्न तंत्रों में होने वाले क्षरण को दूर करने के स्थान पर उन्हें संरक्षण दिये जाने की परम्परा ने राजनीति का अर्थ, उद्देश्य और सीमायें बदल कर रख दीं हैं । राजनीति में अब राजा की सु-नीति नहीं होती, गुण्डों और अपराधियों के कुचक्र और षड्यंत्र होते हैं जिनके सहारे देश की विशाल जनसंख्या को अपने नियंत्रण में रखने की प्रतिस्पर्धा कुछ लोगों के बीच होती रहती है । राजनीति के नाम से किये जाने वाले सुनियोजित अपराधों और षड्यंत्रों का धरातलीय सत्य एक बहुत बड़ा छल बन कर उभरता जा रहा है । भारत की हिन्दू जनता ने इस सत्य से अपनी आँखें फेर ली हैं, भ्रष्टाचार को मधुमेह जैसी व्याधि मानकर आम लोगों ने उसके साथ जीना सीख लिया है ।
बढ़िया संकलन
जवाब देंहटाएंसमसामयिक तथा सुंदर रचनाओं से सज्जित संकलन, बहुत शुभकामनाएँ अनिता जी।
जवाब देंहटाएंवाह अनीता जी, सभी लिंक बहुत अच्छे हैं, एक से बढ़ कर एक। इन दिनों छुट्टियों के कारण लिखना कुछ कम हुआ परंतु चर्चामंच पर आकर सारी कसर पूरी हो गई। बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसदैव की भाँति सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
विजयादशमी के पर्व पर शुभकामनाएं, सार्थक भूमिका के साथ पठनीय सूत्रों का चयन, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
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