सादर अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आ. दिगंबर नासवा जी की रचना 'एक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँ' से -
सच खबर ... अफवाह झूठी ... या मसाला, थोक में हरबार ख़बरें बेचता हूँ. चाँदनी पे वर्क चाँदी का चढ़ा कर,एक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँ.
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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सारे जग से भिन्न है, अपना भारत देश।
रहता बारह मास ही, पर्वों का परिवेश।।
पर्व अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास।
जिसमें बेटों के लिए, होते हैं उपवास।।
टोपियें, हथियार, झण्डे बेचता हूँ.चौंक पे हर बार झगड़े बेचता हूँ. इस तरफ हो उस तरफ ... की फर्क यारा,हर किसी को मैं तमंचे बेचता हूँ.सुबह सरका गया, देह से लिपटेसारे लिहाफ़, बिखरे हुए हैंफ़र्श पर कुछ सुरमईबूंदें, ज़िन्दगीढूंढती हैफिरवही क़ीमती सुरमेदानी,--
सकारात्मकता बेचने खरीदने के खेल से कमाने वालों के बटुवे में
कूड़ा कभी नहीं पाया जाता हैकूड़ा बेचने खरीदने वालों की हमेशा विजय होती है
नीरमा की सफेदी एक विज्ञापन होता है रह जाता है
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पीड़ा कैसे लिखूँदृग से बह जाती है,समझे कोई न मगरकुछ तो ये कह जाती है,तो फिर हास लिखूँ,परिहास लिखूँ,नहीं कैसे जलतेउपवन पर रोटी सेकूँ।
सुबह सरका गया, देह से लिपटे
सारे लिहाफ़, बिखरे हुए हैं
फ़र्श पर कुछ सुरमई
बूंदें, ज़िन्दगी
ढूंढती है
फिर
वही क़ीमती सुरमेदानी,
सकारात्मकता बेचने खरीदने के खेल से कमाने वालों के बटुवे में
कूड़ा कभी नहीं पाया जाता है
कूड़ा कभी नहीं पाया जाता है
कूड़ा बेचने खरीदने वालों की हमेशा विजय होती है
नीरमा की सफेदी एक विज्ञापन होता है रह जाता है
नीरमा की सफेदी एक विज्ञापन होता है रह जाता है
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जहाँ गीत हैं वहीं छिपा वहशब्द, नि:शब्द युग्म के भीतर,भीतर रस सरिता न बहतीयदि छंद बद्ध न होता अंतर !--
जहाँ गीत हैं वहीं छिपा वह
शब्द, नि:शब्द युग्म के भीतर,
भीतर रस सरिता न बहती
यदि छंद बद्ध न होता अंतर !
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दादाजी--- (सख्त लहजे में) अंडे नॉनवेज में नहीं आते डब्बू ! मैंने तुम्हें पहले भी समझाया था।डब्बू -- ये सब कहने की बाते हैं दादू ! अंडे से ही तो चूजा बनता है न...अंडा भ्रूण है दादू ! ... और छोड़िये ये सब । हमने खाया न, तो क्या बिगड़ा हमारा ? हम नहीं खाते तो कोई और खाता, ऐसे ही तो है नॉनवेज भी।दादाजी---- ऐसे ही नहीं है नॉनवेज ! जानते हो न माँसाहार करना पाप है। तुम्हारी मति भ्रष्ट हो रही है डब्बू ! पेट भरने के लिए हमारे पास अन्न है फिर हम सिर्फ़ जीभ के चटोरेपन के कारण माँसाहार करके पाप के भागी क्यों बने ?...डब्बू--- इसमें पाप कैसा दादू ? एक हमारे ना खाने से उस चिकन या मटन में वापस जान नहीं आ जानी । अरे हम नहीं खायेंगे कोई और खायेगा। दादू वो तो पाले ही खाने के लिए हैं । और ना भी खायें कोई तो भी क्या? कौन सा हमेशा जीवित रहने अपना तो शुरू से ही नागा-बेनागा शरीर को उसके कर्मों की याद दिलाए रखने के लिए उसे ''हिलाते-डुलाते'' रखने का प्रयत्न रहा है ! और कुछ नहीं तो शाम को पार्क, नहीं तो छत और नहीं तो आंगन में ही कदम-ताल कर उसके आंकड़ों से संतुष्टि का भाव बनाए रखने की कोशिश रही है। पर जग जाहिर है कि ऐसे कामों में मन भटकाता बहुत है, तो उसको बहलाए रखने के लिए घूमने की जगहों में कुछ-कुछ अंतराल के बाद बदलाव करते रहना पड़ता है ! पर किसी भी जगह में सुस्ताने हेतु पहली ही बार में एक ही जगह को पसंदीदा बना डालता हूँ, पता नहीं क्यों ! आदत सी है !
अपना तो शुरू से ही नागा-बेनागा शरीर को उसके कर्मों की याद दिलाए रखने के लिए उसे ''हिलाते-डुलाते'' रखने का प्रयत्न रहा है ! और कुछ नहीं तो शाम को पार्क, नहीं तो छत और नहीं तो आंगन में ही कदम-ताल कर उसके आंकड़ों से संतुष्टि का भाव बनाए रखने की कोशिश रही है। पर जग जाहिर है कि ऐसे कामों में मन भटकाता बहुत है, तो उसको बहलाए रखने के लिए घूमने की जगहों में कुछ-कुछ अंतराल के बाद बदलाव करते रहना पड़ता है ! पर किसी भी जगह में सुस्ताने हेतु पहली ही बार में एक ही जगह को पसंदीदा बना डालता हूँ, पता नहीं क्यों ! आदत सी है !
नासवा जी की सार्थक पंक्तियों से शुरूआत श्रेष्ठ प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक लिंकों का संकलन सभी सामग्री
रोचक सार्थक।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरे सृजन को चर्चा का हिस्सा बनाने के लिए हृदय से आभार।
धन्यवाद आदरणीय बढ़िया संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता सैनी जी।
आभार अनीता जी
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट एवं पठनीय लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति।मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद अनीता जी!
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
विविधता पूर्ण विषयों पर लिखी रचनाओं के सूत्र देता है चर्च मंच का आज का अंक, आभार मुझे भी इसमें शामिल करने के लिए।
जवाब देंहटाएंहर रचना लाजवाब,सराहनीय अंक ।
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा...
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