सादर अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आ. गगन शर्मा जी की रचना 'गिलहरी का पुल' से -
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
--गीत "सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में" जो सदियों से नही सी पाये, अपने चाकदामन को,
छुरा ले चल पड़े हैं हाथ वो, अब काटने तन को,
वो रहते भव्य भवनों में, कभी थे जो विराने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
हजारों साल पहले, त्रेतायुग में जब राम जी की सेना लंका पर चढ़ाई के लिए सागर पर सेतु बना रही थी, कहते हैं तब एक छोटी सी गिलहरी ने भी अपनी तरफ से जितना बन पडा था योगदान कर प्रभू का स्नेह प्राप्त किया था। शायद उस गिलहरी की वंश-परंपरा अभी तक चली आ रही है ! क्योंकि फिर उसी देश में, एक गिलहरी ने फिर एक पुल के निर्माण में सहयोग किया था ! लोगों का प्यार भी उसे भरपूर मिला पर अफ़सोस जिंदगी नहीं मिल पाई !
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पता
कहाँ चल पाता है
कब
एक आदमी
एक गिरोह हो जाता है
लोग
पूछते फिरते हैं
पता उस एक आदमी का
६१२.सपनेनींद नहीं आती मुझे,
इधर से उधर करवटें बदलते
पूरी रात गुज़र जाती है,
सपने देखे तो जैसे
मुझे एक अरसा हो गया.
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मंथन: कुछ दिनों से....
कुछ दिनों से
खुद ही हारने लगी हूँ
अपने आप से
दर्द है कि घर बना बैठा
तन में…,
घिरते बादलों और डूबते सूरज
को देखते-देखते
ठंड बाँध देती है
मेरे इर्दगिर्द
दर्द और थकन की चादर
ज्यों ज्यों गोधूलि की चादर
लिपटती है धरा की देह पर
मन छूने लगता है
झील की अतल गहराई
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हायकु
व्रत हुआ कोजागिरी का
और देवों के प्रणय का हार
महारास की बेला अप्रतिम
मैं अपने मन के शशि द्वार
तुम शरद हो ऋतुओं में
तुम हो मन के मेघ मल्हार
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पदचाप
बारिश में उसके पदचापों की सुर ताल l
खनक रही जैसे अशर्फियों की तान ll
उतावले बादल आतुर घटाओं के साथ l
रुनझुन रुनझुन बरसा रहे मेघों अंदाज़ ll
या फिर
मेरी उदास आंखें
छलछला उठी
उसे देखते ही
और
दिखने लगा
चांद भी उदास
हुआ वक्ष उसका खाली
जीव जगत तब व्याकुल रोया
कहाँ गया उसका माली
तपी दुपहरी कूप खोदते
आज कागजों में चारन
लिए भार मटकी का चलती
कोस अढ़ाई पनिहारन
मुझ सा बनकर सम्मुख आए
मैं मुसकाऊँ वो मुसकाए
सब कुछ मेरा उसपर अर्पण
क्या सखि साजन, ना सखि दर्पण!4
कौन कहता बारिशों में चाँद गुम है
वो मेरी आँखों में ठहरा थोड़ा नम है
देखती हूँ आते जाते रूप उसका है बदलता
थाम ली हैं उँगलियाँ और रोक ली हैं साँस मैंने
आज बरसों बाद देखी रात में बरसात मैंने
ये मैं अच्छी तरह से
जानता हूँ माँ
तुम कभी नही आओगी
फिर भी
मैं तुम्हारी प्रतिक्षा करता
रहूँगा
कि तुम मेरी दुनिया मे कब
वापस लौट कर आओगी
और मुझे सोते देख
अपना हाथों से
प्यार भरा स्पर्श कर जाओगी
--आज का सफ़र यहीं तक
कल फिर मिलेंगे
बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया अनिता सैनी जी!
सुंदर प्रस्तुति.आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंसुंदर,सरस तथा रोचक संकलन । आकर्षण भरा अंक सजाने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन, मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत धन्यवाद ।
आभार अनीता जी |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन । मुझे संकलन में सम्मिलित करने के लिए आभार अनीता जी!
जवाब देंहटाएंमान देने हेतु हार्दिक आभार सहित बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएँ, सभी को बहुत बधाई! मेरी भी रचना को स्थान देने के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचनाओं से सजा लाजवाब चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा में शामिल करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!
लाजवाब चर्चा
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा में शामिल करने हेतु धन्यवाद एवं आभार अनीता जी🙏