सादर अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आ.भारती दास जी की रचना 'जन नायक श्री राम' से -आतंक कहे या कथा आसुरी,
अनगिनत थी व्यथा ही पसरी.
मिथिला के मारीच-सुबाहु,
ताड़का से त्रस्त थे ऋषि व राऊ.
खर-दूषण-त्रिशरा असुर थे,
सूपर्णखा से भयभीत प्रचुर थे,
दानवों का नायक था रावण
डर से उसके थर्राता जन-गन .
जनता तो घायल पड़ी थी,
विचारशीलता की कमी बड़ी थी.
राम को आना मजबूरी थी,
जन मानस तो सुप्त पड़ी थी.
सही नीति साहस का साथ,
राम ने की थी राह आवाद.
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ---
अनगिनत थी व्यथा ही पसरी.
मिथिला के मारीच-सुबाहु,
ताड़का से त्रस्त थे ऋषि व राऊ.
खर-दूषण-त्रिशरा असुर थे,
सूपर्णखा से भयभीत प्रचुर थे,
दानवों का नायक था रावण
डर से उसके थर्राता जन-गन .
जनता तो घायल पड़ी थी,
विचारशीलता की कमी बड़ी थी.
राम को आना मजबूरी थी,
जन मानस तो सुप्त पड़ी थी.
सही नीति साहस का साथ,
राम ने की थी राह आवाद.
फिर से
दशानन, मेघनाद
और कुम्भकर्ण के
गगनचुम्बी पुतले
मैदान में सजे हैं
आतंक कहे या कथा आसुरी,
अनगिनत थी व्यथा ही पसरी.
मिथिला के मारीच-सुबाहु,
ताड़का से त्रस्त थे ऋषि व राऊ.
खर-दूषण-त्रिशरा असुर थे,
अनगिनत थी व्यथा ही पसरी.
मिथिला के मारीच-सुबाहु,
ताड़का से त्रस्त थे ऋषि व राऊ.
खर-दूषण-त्रिशरा असुर थे,
अगर चाहते हैं जीवन में कुछ करना ,सबके प्रिय बनना तो अपनाओ इन सभी बातों को ......
खुलकर जियो
वर्तमान में जियो
खुशियाँ फैलाओ और
स्वयं से प्यार करो ।
स्वयं से बडा हमसफर कोई नहीं होता ।
खुद को भी कभी महसूस कर लिया करो.....
कूछ रौनकें खुद से भी हुआ करती हैं ।
क्या माँगें माँ माँगना, क्या साधें जो पास
मिथ्या भ्रम टूटें सभी, यही हृदय की आस।।
हवा भरी है गंध से, चित्त भरा है राग
है सामग्री हवन की, नहीं पास में आग।।
सूरज जब स्याही उगले और, चन्दा उगने काजल
हर तारा हो आवारा, हर दीप-शिखा हो पागल
ऊषा जब संयम खो दे और, किरनें सँवला जायें
जब सारी सूरजमुखियाँ, अकुला कर कुम्हला जायें
जब शर्त बदे अँधियारा, साँसों में समा जाने की
तो साँसों को सुलगा कर, उजियारा लाना होगा।
शायद है जवानों, तुमको.....।
हर तारा हो आवारा, हर दीप-शिखा हो पागल
ऊषा जब संयम खो दे और, किरनें सँवला जायें
जब सारी सूरजमुखियाँ, अकुला कर कुम्हला जायें
जब शर्त बदे अँधियारा, साँसों में समा जाने की
तो साँसों को सुलगा कर, उजियारा लाना होगा।
शायद है जवानों, तुमको.....।
श्वेत कबूतर तो कुष्ठी से,
हैं अछूत इसके आगे ।
देख दूर से इसके तेवर,
बेचारे डरकर भागे ।
यदि वह लाल रंग अशुद्ध होता है,
तो उसी अशुद्धता से
इस सृष्टि का निर्माण हुआ,
फिर कैसे कोई पवित्र
और कोई अपवित्र हुआ?
--
एक बूँद आँसू एक व्यथा समंदर भर
एक क्षण की कोई बात जो न भूले मन जीवन भर
ऐसे कैसे-कैसे घाव समेटे हम जीते हैं जीते हुए घूँट ज़हर के कितने हम पीते हैं माता रानी दे गईं, मुझको ये वरदान सदा रहेगा तू सुखी, ऐ बालक नादान ।।ऐ बालक नादान, पड़े जब विपदा भारी ।श्रद्धा और विश्वास से, सारी मुश्किल हारी ।।कह जिज्ञासा कर्म करो, कुछ ऐसे भ्राता ।सदा मिले आशीष, शरण लग जाओ माता ।।३।।कब तक सोचें कितना सोचें कोई तो सीमा होगी इसकीपर मस्तिष्क हो रिक्त जबजीवन अधूरा लगता है |मरुभूमि के निकट स्थित घने वन में वह अत्यधिक तीव्र गति से आगे बढ़ रहा था। अंधकारमय रात्रि होने के उपरांत भी वह सूखी टहनियों से इस प्रकार बचते हुए चल रहा था कि उनके टूटने से किसी भी प्रकार की ध्वनि न उत्पन्न हो। वह नहीं चाहता था वे सावधान हो जाएँ जिनको ढूँढ़ते हुए वह वन में विचरण कर रहा था।रात्रि के समय वन में भयावह ध्वनि उत्पन्न करती वायु और कीट पतंगो का असामान्य स्वर हिंसक पशुओं को भी उनके आश्रयों में रहने को विवश कर रहा था। परंतु वह जानता था कि जिसे वह ढूँढ रहा है, वे उनसे भी अधिक हिंसक हैं। आकाश में अर्धचंद्र उदित हो चुका था, परंतु उसकी मद्धम किरणें घने वृक्षों के कारण वन की भूमि तक नहीं पहुँच पा रहीं थीं।आज का सफ़र यहीं तक फिर मिलेंगे आगामी अंक में
माता रानी दे गईं, मुझको ये वरदान
सदा रहेगा तू सुखी, ऐ बालक नादान ।।
ऐ बालक नादान, पड़े जब विपदा भारी ।
श्रद्धा और विश्वास से, सारी मुश्किल हारी ।।
कह जिज्ञासा कर्म करो, कुछ ऐसे भ्राता ।
सदा मिले आशीष, शरण लग जाओ माता ।।३।।
कब तक सोचें कितना सोचें
कोई तो सीमा होगी इसकी
पर मस्तिष्क हो रिक्त जब
जीवन अधूरा लगता है |
मरुभूमि के निकट स्थित घने वन में वह अत्यधिक तीव्र गति से आगे बढ़ रहा था। अंधकारमय रात्रि होने के उपरांत भी वह सूखी टहनियों से इस प्रकार बचते हुए चल रहा था कि उनके टूटने से किसी भी प्रकार की ध्वनि न उत्पन्न हो। वह नहीं चाहता था वे सावधान हो जाएँ जिनको ढूँढ़ते हुए वह वन में विचरण कर रहा था।
रात्रि के समय वन में भयावह ध्वनि उत्पन्न करती वायु और कीट पतंगो का असामान्य स्वर हिंसक पशुओं को भी उनके आश्रयों में रहने को विवश कर रहा था। परंतु वह जानता था कि जिसे वह ढूँढ रहा है, वे उनसे भी अधिक हिंसक हैं। आकाश में अर्धचंद्र उदित हो चुका था, परंतु उसकी मद्धम किरणें घने वृक्षों के कारण वन की भूमि तक नहीं पहुँच पा रहीं थीं।
आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में
सुंदर समन्वय!
जवाब देंहटाएंसबों को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सुप्रभात🌹
जवाब देंहटाएंसभी को विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🔥🔥💐
बेहतरीन प्रस्तुति
मेरी रचना को चर्चामंच में शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मैम🙏🙏
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए आज के चर्चामंच में | उम्दा संकलन लिंक्स का |
प्रभु श्रीराम पर केन्द्रित ढेर सारी रचनाऍं एक साथ उपलब्ध करवा कर आपने मुझ जैसों की बहुत सहायता की। बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरी ब्लॉग पोस्ट को शामिल करने के लिए आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंसभी को विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँँ ।खूबसूरत प्रस्तुति प्रिय अनीता ।मूरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात !
जवाब देंहटाएंसभी को विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
वैविध्यपूर्ण संकलन का सुंदर संयोजन, आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा सादर नमन एवम वंदन । मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी 🙏💐
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद जवं आभार प्रिय अनीता जी!
विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत मनोयोग से की गयी सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
बेहतरीन प्रस्तुति, बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
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