दोस्तों! चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ का नमस्कार! सोमवारीय चर्चामंच पर पेशे-ख़िदमत है आज की चर्चा का-
लिंक 1-
इंतज़ार में -मृदुला हर्षवर्द्धन
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लिंक 2-
आम को आम लिखेंगे -डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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लिंक 3-
भारत और इण्डिया का भेद कम कीजिए! -दिव्या श्रीवास्तव ZEAL
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लिंक 4-
भावों के मोती -डॉ. निशा महाराणा
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लिंक 5-
सत्ता ब्यूटी पार्लर है -कमल कुमार सिंह
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लिंक 6-
ज़रा एक बार सोचकर देखिए -पल्लवी सक्सेना
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लिंक 7-
खुशी तो खुशी होती -निरन्तर
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लिंक 8-
स्वीकारना होगा तुम्हे भी -डॉ. आशुतोष मिश्र ‘आशू’
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लिंक 9-
‘लिव इन रिलेशन’ यानी प्रेम और अधिकार का द्वन्द्व -डॉ. शरद सिंह
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लिंक 10-
थोड़ी बात करें ज़िन्दगी की! -मनोज कुमार
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लिंक 11-
शब्द रे शब्द, तेरा अर्थ कैसा -महेन्द्र वर्मा
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लिंक 12-
अरे ये वही करेंगे जो बाबर औरंगजेब ने किया? -राजीव कुलश्रेष्ठ
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लिंक 13-
मंदिरों से शुरू सफ़र, मायानगरी में मंज़िल -उदित नारायण, प्रस्तोत्री माधवी गुलेरी
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लिंक 14-
खुला खेल फर्रुखाबादी (लम्बी कविता :डॉ .वागीश मेहता ) -वीरेन्द्र कुमार शर्मा वीरू भाई
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लिंक 15-
बिग बॉस बोले तो ख़ुराफातियों का बाप! -महेन्द्र श्रीवास्तव
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लिंक 16-
सोने का हिरन -प्रतिभा सक्सेना
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लिंक 17-
संजय मिश्रा 'हबीब' के शानदार दोहे -नवीन सी चतुर्वेदी
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आज के लिए इतना ही, फिर मिलने तक नमस्कार!
शानदार जानदार आकर्षक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआभार गाफ़िल जी ।
सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रही आज की चर्चा!
जवाब देंहटाएंरात में 11 बजे लगाई मेरी पोस्ट चित्रग़ज़ल को भी आपने शामिल कर लिया।
आभार!
शानदार चर्चा , जानदार लिंक्स, मेरा लेख "सत्ता ब्यूटी पार्लर है" शामिल करने के लिए आभार ..
जवाब देंहटाएंसादर
कमल
बहुत सुंदर चर्चा,
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स एक से बढ़कर एक
बहुत सुन्दर चर्चा बड़े करीने से लगाया बहुत बहुत बधाई चन्द्र भूषण गाफिल जी
जवाब देंहटाएंशायद वीरू भाई (वीरेन्द्र कुमार शर्मा) अमेरिका से भारत के लिए प्रस्थान कर चुके हैं।
जवाब देंहटाएंइसीलिए आज टिप्पणियों की बहार नजर नहीं आ रही है!
ज़रा एक बार सोच कर देखिये
जवाब देंहटाएंPallavi saxena
मेरे अनुभव (Mere Anubhav)
निर्भर है सब सोच पर, पढ़ी कथा इक आज ।
जुड़वाँ बच्चे एक से, शिक्षा दीक्षा काज ।
शिक्षा दीक्षा काज, एक है किन्तु पियक्कड़ ।
दूजा सात्विक सोच, नहीं बन पाता फक्कड़ ।
कारण लेता पूछ, बता देते यूँ रविकर ।
फादर दारुबाज, हमेशा पीते भर भर ।।
जवाब देंहटाएंथोड़ी बात करें ज़िन्दगी की!
मनोज कुमार
विचार
स्वर्ण अशरफ़ी सा रखो, रिश्ते हृदय संजोय ।
हृदय-तंतु संवेदना, कहीं जाय ना खोय ।
कहीं जाय ना खोय, गगन में पंख पसारो ।
उड़ उड़ ऊपर जाय, धरा को किन्तु निहारो ।
रिश्ते सभी निभाय, रहें नहिं केवल हरफ़ी
कहीं जाय ना खोय, हमारी स्वर्ण अशरफ़ी ।।
शब्द रे शब्द, तेरा अर्थ कैसा
जवाब देंहटाएंmahendra verma
शाश्वत शिल्प
शब्द अलग से दीखते, रहते अगर स्वतंत्र ।
यही होंय लयबद्ध जब, बन जाते हैं मन्त्र ।
बन जाते हैं मन्त्र , काल सन्दर्भ मनस्थिति ।
विश्लेषक की बुद्धि, अगर विपरीत परिस्थिति ।
होवे अर्थ अनर्थ, शान्ति मिट जाए जग से ।
कोलाहल ही होय, सुने नहिं शब्द अलग से ।।
शत्रु-शस्त्र से सौ गुना, संहारक परिमाण ।
शब्द-वाण विष से बुझे, मित्र हरे झट प्राण ।
मित्र हरे झट प्राण, शब्द जब स्नेहसिक्त हों ।
जी उठता इंसान, भाव से रहा रिक्त हो ।
आदरणीय आभार, चित्र यह बढ़िया खींचा ।
शब्दों का जल-कोष, मरुस्थल को भी सींचा ।।
जवाब देंहटाएंखुला खेल फर्रुखाबादी (लम्बी कविता :डॉ .वागीश मेहता )
Virendra Kumar Sharma
ram ram bhai
खुला खेल खेला किये, वाह फरुक्खाबाद |
देश अपाहिज झेलता, नाजायज औलाद |
नाजायज औलाद, निकाला काला मुँह कर |
पर कानून विदेश, वजारत करता रविकर |
मान रहा सलमान, काम अपना कर प्यारे |
मनमोहनी सलाह, लुटेरे चौकस सारे ||
जवाब देंहटाएंलिंक 16-
सोने का हिरन -प्रतिभा सक्सेना
इक छोटी सी चाह जो, रेगिस्तानी भ्रम |
भरे जिंदगी आह से, करवाए दुह-श्रम ||
लिंक 18-
जवाब देंहटाएंइन्तज़ार-चित्रग़ज़ल -डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शब्द उकेरे चित्र पर, रविकर के मन भाय ।
झूठी शय्या स्वप्न की, वह नीचे गिर जाय ।।
bahut acche links ......sundar prastuti ...dhanyvad nd aabhar...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स के साथ उत्तम चर्चा आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार
जवाब देंहटाएंपठनीय लिंक्स संजोने के लिए आभार, गाफिल जी।
जवाब देंहटाएंलिंक-17
जवाब देंहटाएंसंजय मिश्रा ने लिखे, दोहे कितने खास।
सरस्वती जी का रहे, सबके उर में वास।।
लिंक-16
जवाब देंहटाएंठगती सबको लालसा, मानव हों या देव।
लालच बुरी बलाय है, इससे बचो सदैव।।
लिंक-15
जवाब देंहटाएंएक-एक कर सभी की, खोल रहे हैं पोल।
सही राह बतला रहे, स्टेशन के बोल!।
लिंक-14
जवाब देंहटाएंदेश खोखला कर दिया, लूट लिया आराम।
फर्रूखाबादी हुए, फोकट में बदनाम।।
लिंक-13
जवाब देंहटाएंउदित नारायण जी से साक्षात्कार करवाने के लिए आभार!
लिंक-12
जवाब देंहटाएंफिर से पैदा हो गये, बाबर-औरंगजेब।
इनमें उनकी ही तरह, भरे हुए हैं ऐब।।
लिंक-11
जवाब देंहटाएंवाणी ही निहित हैं, सभी तरह के शब्द।
कुच देते हैं सुख यहाँ, कुछ कर देते दग्ध।।
लिंक-9
जवाब देंहटाएंसम्बन्धों की आड़ में, वासनाओं का खेल।
स्वारथ के वास्ते, होता तन का मेल।।
लिंक-8
जवाब देंहटाएंआम आदमी पिस रहा, खास हो रहे मस्त।
नेताओं ने ही करी, यहाँ व्यवस्था ध्वस्त।।
लिंक-6
जवाब देंहटाएंसामाजिक परिवेश में, आयी है अब मोच।
लोगों की होने लगी, अलग किस्म की सोच।।
लिंक-1
जवाब देंहटाएंपलकों पर ठहरी हुई. इन्तज़ार की ओस।
बिना पिये ही हृदय को, कर देती मदहोश।
सार्थक सन्देश देते सच्चे मोतियों की माला पहना दी आपने ब्लॉग जगत को शुक्रिया ..
जवाब देंहटाएंसचेत कर दिया आपने आगे उनकी मर्जी सुधरें न सुधरें .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .पशुओं का प्रेम अनन्य होता है .
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लिंक 4-
भावों के मोती -डॉ. निशा महाराणा
अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...
जवाब देंहटाएंसुंदर संदेश.....
उनकी कुटिया में जलें ,दीवाली पर दीप
हमको मोती बाँटते,जो खुद बनकर सीप ||
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लिंक 3-
भारत और इण्डिया का भेद कम कीजिए! -दिव्या श्रीवास्तव
गरीबों से क्या मोल भाव करते हो ,कच्चे दीये का मोल पूछते हो ,जिसमें कुम्हार के सांस की धौंकनी है ,
जवाब देंहटाएंनिभाना भी उसी को आयेगा जो भावनाओं का सम्मान करना जानता है वजनी अनुभव हैं जिसके पास ज़िन्दगी के वही झुकेगा बाकी ठूंठ से खड़े रहेंगे ,काट
दिए जाएंगे शाम के चूल्हे के ईंधन के लिए झुकेंगे नहीं .बढ़िया चिंतन परक पोस्ट .
लिंक 10-
थोड़ी बात करें ज़िन्दगी की! -मनोज कुमार
वनवास लिया तो भी मन उदासी ना भया ,
जवाब देंहटाएंकुछ माँगे बिना जीने का अभ्यासी ना हुआ,
मृगछाला सोने की तो मृगतिषणा रही,
तू भी जान दुखी हरिनी के मन की विथा !
कहीं सोने की तू ही न बन जाये री सिया !
बहुत सशक्त विश्लेषण प्रधान रचना है .बधाई .
(मृग तृष्णा ,हिरणी ,व्यथा )
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लिंक 16-
सोने का हिरन -प्रतिभा सक्सेना
ए खुदा तू ही बता तेरा फ़साना क्या है ,
जवाब देंहटाएंएक गाफिल से भला यूं भी बहाना क्या है .
बहुत खूब भाई साहब .
सहजीवन पर सहज टिपण्णी की है आपने ,इससे आगे है डबल इनकम नो किड्स बोले तो "डिंक ",ये नया दौर है .
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