निर्दोष दीक्षित
अय्यासी में हैं रमे, रोम रोम में काम ।
बनी सियासी सोच अब, बने बिगड़ते नाम ।
बने बिगड़ते नाम, मातृ-भू देती मेवा ।
मँझा माफिया रोज, भूमि का करे कलेवा ।
बेंच कोयला खनिक, बनिक बालू की राशी ।
काशी में क्यूँ मरे, स्वार्गिक जब अय्यासी ।।
|
Bamulahija dot Com
चिरकुट चच्चा चाहते, चमकाना व्यवसाय ।
क्लीन-चिटों की फैक्टरी, देते घरे लगाय ।
देते घरे लगाय, बेंचते सबको सस्ती ।
चित, पट देते लाभ, मार्केट बड़की बस्ती ।
ख़तम चोर माफिया, हुआ व्यापारी सच्चा ।
लीडर बनता क्लीन, चिटों का चिरकुट चच्चा ।। |
दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की )
कातिल क्या तिल तिल मरे, तमतमाय तुल जाय ।
हँस हठात हत्या करे, रहे ऐंठ बल खाय ।
रहे ऐंठ बल खाय, नहीं अफ़सोस तनिक है ।
कहीं अगर पकड़ाय, डाक्टर लिखता सिक है ।
मिले जमानत ठीक, नहीं तो अन्दर हिल मिल ।
खा विरयानी मटन, मौज में पूरा कातिल ।।
|
Amrita Tanmay
ताज़ी भाजी सी चमक, चढ़ा चटक सा रंग |
पटल पोपले क्यूँ हुवे, करे पीलिमा दंग |
करे पीलिमा दंग, सफेदी माँ-मूली की |
नाले रही नहाय, ठण्ड से पा-लक छीकी |
केमिकल लोचा देख, होय ना दादी राजी |
कविता-लेख कुँवार, करे क्या हाय पिताजी ??
|
|
आज तो पर्याप्त लिंक्स दी हैं पढने के लिए |अच्छी चर्चा |
जवाब देंहटाएंआशा
हमेशा की तरह कुछ अलग ह्ट के
जवाब देंहटाएंरविकर के मनमोहक सूत्र
मनमोहक अंदाज के साथ प्रस्तुति !
सुंदर चर्चामंच...सुंदर लिंक संयोजन...आभार!!
जवाब देंहटाएंवंदना जी को बधाई और शुभकामनाएँ चर्चामंच से जुड़ने के लिए!
sundar charcha . kafi achchhe link mile... meri prastuti ko sthaan dene ke liye dil se abhari hun ...
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छे लिंक्स आज आप लाये आदरणीय रविकर जी, बहुत बहुत आभार | एक जगह इतने सारे पठनीय लिंक्स उपलब्ध करने के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया लिनक्स...... सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंबुढ़ापा की उम्र क्या है?
जवाब देंहटाएंऋता शेखर मधु
मधुर गुंजन
-तन के बुढ़ापे मे भी मन से अगर ऊर्जावान हैं और दिल से जवान है तो बुढ़ापे का असर नहीं |
उम्र असर करे देह को, मन ऊर्जामय हो |
दिल से जो जवान रहे, उसकी ही जय हो ||
तन बूढा होता सदा, मन तो रहे जवान।
हटाएंजरा अगर मन हो गया, निकल जायेंगे प्राण।।
दीपावली
जवाब देंहटाएंMadan Mohan Saxena
काब्य सरोबर
-दीपों का त्योहार यह, दिल से मनाओ भाई ;
जगमग हो संसार यूं, ये "दीप" दे बधाई |
तम को हरने आ गया, दीपों का त्यौहार।
हटाएंहँसते दीपक बाल दो, सदन-सदन के द्वार।।
शुभ दीपावली !
जवाब देंहटाएंपी.सी.गोदियाल "परचेत"
अंधड़ !
-दीपों का त्योहार यह, दीप से ही मनाओ;
"ना" कहो पटाखों को, रोशन जहां कर जाओ |
अब धरती से मेट दो, अन्धकार का नाम।
हटाएंमन का दीपक बाल लो, करलो ये शुभकाम।।
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति रविकर जी ! आपको और समस्त पारिवारिक जनो को भी मेरी और से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये !अन्य ब्लोगर मित्रों को भी मेरी हार्दिक शुभकामनाये इस पावन पर्व की ! गोपालदास नीरज जी की इन ख़ूबसूरत पंक्तियों संग कि ;
जवाब देंहटाएंजलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ।
नई ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन-स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण-द्वार जगमग,
उषा जा न पाए, निशा आ ना पाए।
जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
सुन्दर लिंक संयोजन्………बढिया चर्चा
जवाब देंहटाएंरविकर सर सुन्दर ब्लोगों से सजा अनोखा चर्चामंच, मेरी रचना को अपने उम्दा दोहों के साथ स्थान व सम्मान दिया, आपका ह्रदय के अन्तः स्थल से आभार.
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स, बढिया चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और बहुत बढिया, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदीपों की यह है कथा,जीवन में उजियार
जवाब देंहटाएंसंघर्षो के पथ रहो, कभी न मानो हार,,,,,
सुंदर लिंक्स..बहुत रोचक चर्चा..वन्दना जी का फ़िर से चर्चा मंच से जुडने पर स्वागत है...आभार
जवाब देंहटाएंप्रियवर रविकर जी को समर्पित-
जवाब देंहटाएंछोटी सी है जिन्दगी, काहे का अभिमान।
सुख-दुख दोनों में रहो, प्रतिपल एक समान।।
--
अमृत भी है सिन्धु में, क्यों करते विषपान।
मानव हो मानव रहों, बनो न देव महान।।
नाखून कुतरने की आदत-
जवाब देंहटाएंकुण्ठाओं में आदमी, कुतर रहा नाखून।
मन ही मन में रच रहा, नया एक मजमून।।
बहुत ही बढ़िया लिनक्स...... सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सूत्र सजाये हैं।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चर्चा..आभार..
जवाब देंहटाएंछायांकन के साथ दोस्त भाषा शैली में भी निखार आया है वर्तनियाँ भी परिशुद्ध होतीं गईं हैं कालान्तर में हालाकि मूलतया आप छायाकार हैं फिर भी बस खड़ा .चढ़ा ,आदि के नीचे बिंदी और जड़ दिया
जवाब देंहटाएंकरें .आपकी टिप्पणियाँ हमारे लेखन को भी अनुप्राणित करती हैं बिंदास लिखते हो दोस्त जाट की तरह सब कुछ पारदर्शी .शुक्रिया .
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी .
आप सुनिश्चित हैं आपकी कार वाकई खराब हुई थी .कई बार यह घटनाएं मानसी सृष्टि भी होती हैं .और फिर विश्वास भी अफवाह की तरह संक्रामक चीज़ है फैलता है कही सुनी के आधार पर .
"वह फरिश्ता कौन था?" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
जवाब देंहटाएंजाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी .
आप सुनिश्चित हैं आपकी कार वाकई खराब हुई थी .कई बार यह घटनाएं मानसी सृष्टि भी होती हैं .और फिर विश्वास भी अफवाह की तरह संक्रामक चीज़ है फैलता है कही सुनी के आधार पर .
"वह फरिश्ता कौन था?" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
छायांकन के साथ दोस्त भाषा शैली में भी निखार आया है वर्तनियाँ भी परिशुद्ध होतीं गईं हैं कालान्तर में हालाकि मूलतया आप छायाकार हैं फिर भी बस खड़ा .चढ़ा ,आदि के नीचे बिंदी और जड़ दिया
जवाब देंहटाएंकरें .आपकी टिप्पणियाँ हमारे लेखन को भी अनुप्राणित करती हैं बिंदास लिखते हो दोस्त जाट की तरह सब कुछ पारदर्शी .शुक्रिया .
जोधपुर किला (मेहरानगढ दुर्ग) Jodhpur Fort, (Mehrangarh )
संदीप पवाँर (Jatdevta)
जाट देवता का सफर
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी .
आप सुनिश्चित हैं आपकी कार वाकई खराब हुई थी .कई बार यह घटनाएं मानसी सृष्टि भी होती हैं .और फिर विश्वास भी अफवाह की तरह संक्रामक चीज़ है फैलता है कही सुनी के आधार पर
दुश्मनी दिल से, कर गया दिल का जाबित,
जवाब देंहटाएंरोग दिल का अक्सर, दर्द बो जाता है,
काबिले दाद है यारा तेरी गजल ,
काबिले दाद लिखे हैं सबके सब अशआर तूने .
बहुत बढ़िया गजल है भाई .
कश्तियों का कातिल
"अनंत" अरुन शर्मा
दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की )
कातिल क्या तिल तिल मरे, तमतमाय तुल जाय ।
दोस्त लगता है टिप्पणियाँ मंत्री मंडल के साथ कोंग्रेस पार्टी संवाद में पहुँच रहीं हैं सरकार की तरह टिप्पणियाँ भी फरीदाबाद कोंग्रेस विमर्श में पहुँच रही हैं .चेक करो यह घाल मेल ठीक नहीं है पार्टी और
जवाब देंहटाएंसरकार की तरह टिप्पणियों का .चर्चा मंच पे ही रहें टिप्पणियाँ .
बहुत अच्छी चर्चा पठनीय सूत्र बधाई आपको
जवाब देंहटाएंबेहतरीन तंज बहु - रूपा भोगावती पर .
जवाब देंहटाएंइनक्रेडिबल और शाइनिंग इंडिया की कविता
बेहतरीन तंज बहु - रूपा भोगावती पर .
अब दिनकर की वह कामिनी कहाँ -
सत्य ही रहता नहीं यह ध्यान ,
तुम कविता कुसुम या कामिनी हो .
अब तो शरीर का हर आयाम देता है ,
खबर ,
चुनिन्दा कृत्रिम अंगों को घूरता है कैमरा बे -धड़क .
एक किरण रौशनी की
जवाब देंहटाएंमेरी पलकों में समाई और
चमकते हुए कह उठी मेरे रहते
अंधकार कैसे संभव भला
मैने झट से अपनी
बंद पलको को खोला और
उस चमकती हुई रौशनी का
स्वागत किया
जहां हर दृश्य मन के संशय का
निराकरण करता नजर आया
......
एक अनंत शक्ति हमारे मन में
विश्वास के बीजों की
पोटली रख छोड़ती है
जिसे हम वक्त-बेवक़्त
बो दते हैं संयम की धरा पर
(पलकों को खोला , बो देते हैं )
बहुत खूब रचना लिखी है सकारात्मक ऊर्जा संजोती हर पल .....हमें उन राहों पर चलना है जहां गिरना और संभलना है ,हम हैं वो दीये औरों के लिए जिन्हें तूफानों में पल ना है .
एक कदम हौसले का ...!!!
सदा
SADA
जवाब देंहटाएंबढ़िया है आज के हालात पर दोहे दोहे .
सियासी दोहे
निर्दोष दीक्षित
मीठा भी गप्प,कड़वा भी गप्प
परहित सरस धर्म नहीं भाय ,बार बार कहे रविकर कवि राय
जवाब देंहटाएंकरलो प्यारे पान, पिए रविकर विष खारा
सकारात्मक पक्ष से, कभी नहीं हो पीर |
नकारात्मक छोड़िये, रखिये मन में धीर |
रखिये मन में धीर, जलधि-मन मंथन करके |
देह नहीं जल जाय, मिले घट अमृत भरके |
करलो प्यारे पान, पिए रविकर विष खारा |
हो जग का कल्याण, सही सिद्धांत सकारा ||
नाम किरत करि नाम न होई । नाम धरन धरि नाम न सोई ।।
जवाब देंहटाएंभू भुवन भूरि भूति भलाई । करित करम करि जस तस पाई ।।
" मनुष्य की ईश्वर से तुलना नाम से नहीं अपितु कर्म से की जाती हैं....."
बहुत सुन्दर मनोहर अर्थ पूर्ण प्रस्तुति .
बहुत अच्छी चर्चा...मेरी कविता शामिल करने के लिए आपका आभार व धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंविद्यमान परिस्थिति में राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री से लेकर भृत, दैनिक वेतन भोगी तक
जवाब देंहटाएंसभी स्वयं के सदाचारी होने का दंभ भरते है, इसका आशय तो ये हुवा की भारत में
भ्रष्टाचार है ही नहीं । अब इसे राष्ट्र प्रमुख या तो सार्वजनिक रूप से स्वीकार करे
( कि भारत भ्रष्टाचार मुक्त है ) अथवा आत्म समर्पण करें.....