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(२)
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(३)
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(४)
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(५)
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(७)
@ अज़दक
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(८)
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(९)
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(१०)
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(१४)
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(१५)
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(१६)
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(१७)
- Archana
(१८)
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(१९)
@ Akanksha
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(२०)
- रविकर
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(२१)
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(२२)
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(२३)
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(२४)
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(२५)
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बस आज की चर्चा यहीं पर इति करता हूँ | अब मुझे आज्ञा दीजिये | मिलते हैं अगले बुधवार को कुछ अन्य उम्दा लिंक्स के साथ |
क्या आपका ब्लॉग यहा शामिल हो चुका है ? यहाँ आयें और किसी भी श्रेणी में किसी भी ब्लॉग की जानकारी हो तो अवश्य बताएं |
क्या आपका ब्लॉग यहा शामिल हो चुका है ? यहाँ आयें और किसी भी श्रेणी में किसी भी ब्लॉग की जानकारी हो तो अवश्य बताएं |
शुभप्रभात ...प्रदीप जी ...
जवाब देंहटाएंउत्तम चर्चा ....
बहुत आभार मेरे काव्य को स्थान दिया ....!!
विस्तृत चर्चा में अच्छे लिंक्स मिले !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर चर्चा..
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा उम्दा लिंक्स,,,
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स बढिया चर्चा
जवाब देंहटाएंनूतन
जवाब देंहटाएंपानी जैसा धन बहा, मरते डूब कपूत ।
हुई कहावत बेतुकी, और आग मत मूत ।
और आग मत मूत, हिदायत गाँठ बाँध इक ।
बदल कहावत आज, खर्च पानी धन माफिक ।
कह रविकर कविराय, सिखाई दादी नानी ।
बन जा पानीदार, सुरक्षित रखना पानी ।।
जवाब देंहटाएं"विविध दोहावली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भक्त पापधी पानि-शत, करें प्रदूषित पानि ।
पानिप घटती पानि की, बनता बड़ा सयानि ।
शानदार चर्चा...
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक्स....
सुन्दर चर्चा बेहतरीन लिंक्स बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंमेरे संग्रह की रचना ने यहाँ स्थान पाया
और मेरी पसंद को आपने सराहा
विविध प्रकार के लिंक्स हैं.. अच्छे लगे !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
सादर !!!
बहुत ख़ूब चर्चा आभार साहनी जी!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद की आप मेरे लेखो को यहा स्थान प्रदान करते है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सूत्र सजाये हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा चर्चा!
जवाब देंहटाएंआपने अभियन्त्रण कला का सुन्दर प्रयोग किया है चर्चा मंच के लिंक लगाने में!
आज का चर्चामंच कुछ नया लगा |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
उम्दा लिंक्स मिले . आभार .
जवाब देंहटाएंBAHUT PRANSHNEEY LINKS.. MERI PRAVISHTI KO STHAN DENE KE LIYE DHNYWAAD PRADEEP JI...
जवाब देंहटाएंसंक्षिप्त लेकिन सुन्दर संयोजन और बढ़िया सेतु चयन और प्रस्तुति के लिए बधाई ,मान दिया हमने भी शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंब्रम्ह से नाद की ओर ...
जवाब देंहटाएंनाद से अनहद की ओर ....
रचनात्मकता को पंख लग गए हैं इस रचना में .
ब्रह्म कर लें .
परिवर्तन मौसम का
जवाब देंहटाएंसर्दी का अहसास लिए सोए थे
पौ फटे जब नींद खुली
आलस था खुमारी थी
जैसे ही कदम नीचे रखे
दी दस्तक ठिठुरन ने
घर के कौने कौने में
सोचा न था होगा परिवर्तन
इतने से अंतराल में
हाथों में पानी लेते ही
कपकपी होने लगी
गर्म प्याली चाय की
दवा रामबाण नजर आई
जल्दी से स्वेटर पहना
कुछ तो गर्मी आई
खिडकी से बाहर झांका
समय रुका नहीं था
थी वही गहमागहमी
बस जलता अलाव चौरस्ते पर
कुछ लोगों में बच्चे भी थे
जो अलाव ताप रहे थे
थे पूर्ण अलमस्त
हसते थे हंसा रहे थे
खुशियों से महरूम नहीं
किसी मौसम का प्रभाव नहीं
जीने का नया अंदाज
वहीं नजर आया
सारी उलझनें सारी कठिनाई
अलाव में भस्म हो गईं
थी केवल मस्ती और शरारतें
कर लिया था सामंजस्य
प्रकृति में होते परिवर्तन से |
काश हम भी उनसे हो पाते
तब नए अंदाज में नजर आते |
|
आशा
बढ़िया रचना है आशा जी (कंपकंपी ,खिड़की ,वही नजर आया ,हँसते ,)शुक्रिया इस प्रस्तुति के लिए .
हिस्से की फसल बह गई ! मन की बतिया मन में रह गई !!
जवाब देंहटाएं21 NOVEMBER, 2012
गुरु-घंटालों मौज हो चुकी, जल्दी ही तेरा भी तीजा-रविकर
बुरे काम का बुरा नतीजा |
चच्चा बाकी, चला भतीजा ||
गुरु-घंटालों मौज हो चुकी-
जल्दी ही तेरा भी तीजा ||
गाल बजाया चार साल तक -
आज खून से तख्ता भीजा ||
लगा एक का भोग अकेला-
महाकाल हाथों को मींजा ||
चौसठ लोगों का शठ खूनी -
रविकर ठंडा आज कलेजा ||
घड़ा. भर चुका कांग्रेस का अब फूटा और तब फूटा .बहुत बढ़िया रविकर भाई .
कौम सारी बन चुकीं हैं कत्लगाह ,
जवाब देंहटाएंरब बता गाफिल किधर को जाएगा .
बहुत खूब .
बिल्ले रखवाली करें, गूँगे राग सुनाय।
जवाब देंहटाएंअब तो अपने देश में, अन्धे राह बताय।८।
अन्धे की जगह पूडल भी आ सकता है .
बहुत सुन्दर एहसासों से भरा रिपोर्ताज़ .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर एहसासों से भरा रिपोर्ताज़ .
जवाब देंहटाएं(२१)
कुछ बदलियाँ हथेलियों पर
- PRATIBHA KATIYAR
खोजती हूँ ..
जवाब देंहटाएंइन तहों में
ख़ामोशी क्यूँ इतनी
मैं तो सिर्फ
मेरे होने को खोजती हूँ ..
दो दरवाजों के पीछे
हंसा क्यूँ मन इतना
भीड़ में गूंज है कहाँ ...?
खोजती हूँ ...
तेरे होने से
ठहराव है मुझमे
पर इश्क है कहाँ ...?
खोजती हूँ ...
बहुत सुन्दर रचना है .
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