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Sunday, November 18, 2012

झूठी तालियाँ और सच्ची गालियाँ खाते चर्चाकार : चर्चा मंच 1067



राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है... सादर ललित

रविकर 


दीवाली के दिन पर यह पोस्ट भी चर्चा मंच पर लगाई श्री गाफिल जी ने-
दिन विशेष को लेकर मैं भी गाफिल जी से सहमत नहीं हूँ-
पर जिस अंदाज में ललित की गालियाँ आई हम चर्चाकारों के हिस्से में वह सर्वथा अनुचित है ।।
-----रविकर 
सभी चर्चाकारों को गाली दी गई ललित द्वारा -
इन पंक्तियों के लिए-
1. इस्लाम यह अनुमति नहीं देता है कि एक मुसलमान किसी भी परिस्थिति में किसी गैर-मुस्लिम (जो इस्लाम के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार नहीं करता) के साथ बुरा व्यवहार करे. इसलिए मुसलमानों को किसी ग़ैर-मुस्लिम के खिलाफ आक्रमण की, या डराने की, या आतंकित करने, या उसकी संपत्ति गबन करने की, या उसे उसके सामान के अधिकार से वंचित करने की, या उसके ऊपर अविश्वास करने की, या उसे उसकी मजदूरी देने से इनकार करने की, या उनके माल की कीमत अपने पास रोकने की जबकि उनका माल खरीदा जाए. या अगर साझेदारी में व्यापार है तो उसके मुनाफे को रोकने की अनुमति नहीं है.

2.इस्लाम के अनुसार यह मुसलमानों पर अनिवार्य है गैर मुस्लिम पार्टी के साथ किया करार या संधियों का सम्मान करें. एक मुसलमान अगर किसी देश में जाने की अनुमति चाहने के लिए नियमों का पालन करने पर सहमत है (जैसा कि वीसा इत्यादि के समय) और उसने पालन करने का वादा कर लिया है, तब उसके लिए यह अनुमति नहीं है कि उक्त देश में शरारत करे, किसी को धोखा दे, चोरी करे, किसी को जान से मार दे अथवा किसी भी तरह की विनाशकारी कार्रवाई करे. इस तरह के किसी भी कृत्य की अनुमति इस्लाम में बिलकुल नहीं है.


 3
 "जो ईश्वर और आखिरी दिन (क़यामत के दिन) पर विश्वास रखता है, उसे हर हाल में अपने मेहमानों का सम्मान करना चाहिए, अपने पड़ोसियों को परेशानी नहीं पहुंचानी चाहिए और हमेशा अच्छी बातें बोलनी चाहिए अथवा चुप रहना चाहिए." (Bukhari, Muslim)


"जिसने मुस्लिम राष्ट्र में किसी ग़ैर-मुस्लिम नागरिक के दिल को ठेस पहुंचाई, उसने मुझे ठेस पहुंचाई." (Bukhari)

"जिसने एक मुस्लिम राज्य के गैर-मुस्लिम नागरिक के दिल को ठेस पहुंचाई, मैं उसका विरोधी हूँ और मैं न्याय के दिन उसका विरोधी होउंगा." (Bukhari)

"न्याय के दिन से डरो; मैं स्वयं उसके खिलाफ शिकायतकर्ता रहूँगा जो एक मुस्लिम राज्य के गैर-मुस्लिम नागरिक के साथ गलत करेगा या उसपर उसकी जिम्मेदारी उठाने की ताकत से अधिक जिम्मेदारी डालेगा अथवा उसकी किसी भी चीज़ से उसे वंचित करेगा." (Al-Mawardi)

"अगर कोई किसी गैर-मुस्लिम की हत्या करता है, जो कि मुसलमानों का सहयोगी था, तो उसे स्वर्ग तो क्या स्वर्ग की खुशबू को सूंघना तक नसीब नहीं होगा." (Bukhari).

इस लेख के प्रस्तुत-कर्ता 
 My Photo
Shah Nawaz
ग़ालिब की नगरी दिल्ली से हूँ, एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में कार्यरत हूँ और विज्ञापन से जुड़े कार्य संभालता हूँ.

मेरा यह मानना है कि विचारों में चाहे विरोधाभास हो, आस्था में चाहे विभिन्नताएं हो परन्तु मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि बात के महत्त्व का पता चल सके. अहम् को छोड़ कर मधुरता से सुवचन बोलें जाएँ तो जीवन का सच्चा सुख मिलता है.

मैं एक साधारण सा मनुष्य हूँ, और मनुष्य का स्वाभाव ही ईश्वर ने ऐसा बनाया है कि गलतियाँ हो जाती हैं. इसलिए गलती मुझसे हो सकती है और अपनी गलती पर मैं हमेशा माफ़ी मांगता हूँ. अगर कहीं कुछ गलती हो गई हो तो क्षमा का प्रार्थी हूँ

(0)

राहुल गांधी बोले तो पोंsपोंs पोंपोंs..पोंsss

महेन्द्र श्रीवास्तव 


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 अगजल

दिलबाग विर्क -

आज के लिंक  

1

आज आम भारतीय भगवान राम है।’

PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.) at 5TH Pillar Corruption Killer  


  2

भारतीयों को निष्कासित किया गया

मनोज कुमार  


3

रात की गोद मे चाँद आकर गिरा

DR. PAWAN K. MISHRA 


4

शूर्पणखा काव्य उपन्यास....सर्ग -२..अरण्य पथ..... डा श्याम गुप्त.....

डा. श्याम गुप्त 


5

कविता : जो कुछ कर सकते हैं

धर्मेन्द्र कुमार सिंह 







9

शिक्षा - क्या और क्यों ?

  (प्रवीण पाण्डेय) 


11

वो और मैं

DINESH PAREEK 

12 

link hata diya gaya 










22

सूर्योदय

देवेन्द्र पाण्डेय  

  23

आ ज मुंह खोलूंगी

डॉ शिखा कौशिक ''नूतन '' 


25

भाग दरिद्दर!

  (Arvind Mishra) 

51 comments:

  1. अच्छे लिंक्स मिले...मेरी रचना शामिल करने केलिए आभार!!

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  2. @राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है... सादर ललित
    रविकर
    बेसुरम्‌
    चर्चामंच भी यदि जातिवाद धर्मवाद से ग्रसित हो जाएगा तो उसका क्या औचित्य रह जाएगा हम लेखक हैं लिखते हैं अपने अपने विचारों पढ़ाने और पढने के लिए, एक दूसरे का गला काटने के लिए बैठे हैं क्या?? साहित्य को तो कम से कम बख्श दो यहाँ सभी की खुली किताबों का लिंक दिया जाता है जिसको जो पढना है वो पढ़े कोई बाध्यता तो नहीं जिस पोस्ट पर आपत्ति है तो उस पोस्ट पर ही टिपण्णी करें तो ज्यादा बेहतर होगा जिसका आपने लिंक दिया वो पोस्ट भी मैंने पढ़ी मुझे वहां कोई अभद्रता दिखाई नहीं दी हिन्दू धर्म के लिए कोई गाली दिखाई नहीं दी फिर क्यूँ आपत्ति है यहाँ कोई नेतागिरी भी नहीं हो रही है की वोट की खातिर ये सब किया जा रहा है हैरानी हुई जानकर अब चर्चा मंच लगाने वालों को पोस्ट का लिंक देते हुए धर्म जाती का भी ध्यान रखना पड़ेगा !!!!!

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  3. रवि कर भाई बहुत अच्छे पठनीय सूत्र बेहतरीन चर्चा हार्दिक आभार

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  4. सुन्दर लिंक्स संयोजन अच्छी चर्चा

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  5. मेरी इस पोस्ट का लिंक देने के लिए बहुत-बहुत आभार, अगर कोई विपरीत विचार रखता है तो उसका भी स्वागत है. हर एक को हक़ है अपना मत रखने का, और अगर किसी को लगता है कि मैंने कहीं कुछ गलत लिखा है, तो मेरे संज्ञान में लाएं. हालाँकि मैंने हर एक बात को पूरे सन्दर्भ के साथ लिखा है.

    मैंने यह पोस्ट खासतौर पर मुस्लिमों को मुखातिब हो कर लिखी थी और कुछ दिन पहले फेसबुक पर इस कमेन्ट के साथ इस पोस्ट को शेयर किया था कि

    "मुसलमान गैर-मुसलमानों की शिकायत करने से पहले ज़रा अपने भी गिरेबान में झांक लें कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या कर रहे हैं."

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  6. बहुत ख़ूब रविकर भाई! कोई भी चर्चाकार जाति विशेष की पोस्टों का ही लिंक कैसे दे सकता है राजेश कुमारी ने सही कहा कि क्या चर्चा भी जातिगत होगी...किसी को जो आए कह दो यह बहुत आसान है लेकिन देखता हूं यह बात पच कितने दिन पाती है...एक बात आप बताइए कि दिन विशेष को लेकर आप क्यों सहमत नहीं है?...एक बात मैं आपको बता दूं कि जिस दिन मेरी चर्चा थी जिस पर तथाकथित हिन्दू विद्वानों ने विवाद खड़ा किया था वह दिन दीवाली का नहीं था और फिर भारत में कोई भी त्योहार वह चाहे जिस भी क़ौम का हो अकेली एक क़ौम नहीं मनाती...आज दरगाह पर मुसलमान भाइयों की अपेक्षा हिन्दुओं की संख्या सम्भवतः अधिक ही पाएंगे यही तो वास्तविक भाईचारा और आपसी सौहार्द का प्रतीक है...इन कूपमंडूकों को इन्ही के हाल पर छोड़ देना ही उचित होगा

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    1. @ कूप मंडूक:
      उचित निर्णय है ’गाफ़िल’ जी। कूप जाने और हम मंडूक जानें। आप काहे अपना दिल दरिया और समंदर नापाक करें? :)

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  7. सूत्रों का सुन्दर संकलन..

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  8. एक हजार से ज्यादा पोस्ट्स इस मंच पर आई हैं, पहली बार किसी धर्मविशेष के ब्लॉगर की पोस्ट नहीं लगी थी कि उस पर हल्ला हो। कुछ वजह रही होगी जो बात उठी है लेकिन ये सब क्यों सोचा जाये या पाठकों को सोचने दिया जाये? बढ़िया भी है, फ़ैशन भी और पाठकों के लिये सुविधाजनक भी कि दो तीन लोगों को धर्म निरपेक्षता के लिये खतरा सिद्ध करके परोस दिया जाये। यही काम राजनीतिक दल करते आये हैं और सरकारें बनाते हैं।

    दीपावली के अवसर पर दीपावली मनाने के आह्वान करते शीर्षक के साथ एक पोस्ट लगाई जाती है, जिसमें एक दो साल पुरानी पोस्ट का लिंक दिया जाता है जिसका दीपावली मनाने के साथ कोई साम्य नहीं। अपनी सीमित(आप लोगों की भाषा में संकीर्ण) सोच और बुद्धि से पर्व मनाने संबंधी साम्य न खोज पाने पर ही मैंने अपने कमेंट में उस पोस्ट का औचित्य पूछा था।

    गिरिजेश ने सुझाव दिया था कि या उनकी पोस्ट का लिंक हटाया जाये या उस पोस्ट का लिंक जिस पर उन्हें ऐतराज है। अगर अनुरोध अनुचित था तो गिरिजेश वाली पोस्ट का लिंक हटा लेना चाहिये था, यकीन मानिये कहीं से कोई विरोध नहीं होना था। लेकिन वो हटा लेने से यह सिद्ध नहीं होता कि यहाँ कुटिल, आलसी और छद्मरूपधारी छुद्रमना जैसे धर्मांध, सिरफ़िरे, संकीर्ण मानसिकता वाले तथाकथित हिन्दू हैं जिनसे आप लोगों की गंगा-जमुनी तहज़ीब को खतरा है इसलिये इस्लामी दिशानिर्देश वाली पोस्ट हटाकर और फ़िर इस ब्लॉग उस ब्लॉग पर लिंक-लिंक खेलकर हम लोगों की असली सूरत सबके सामने लाकर आप चर्चाकारों ने बहुत सबाब का काम किया है, बधाई।

    चलिये इसी बहाने आपके एक और ब्लॉग ’बेसुरम’ पर भी जाना हुआ। ’गाफ़िल’ साहब की मांग का पूरा समर्थन कि ब्लॉगजगत में ऐसे भड़काऊ तथा कट्टरपंथियों की खुलकर भर्त्सना होनी ही चाहिए जो संकीर्ण बुद्धि के बूते ब्लॉग बनाकर चले आये हैं लिखने:)


    और अंत में ईमानदार प्रतिक्रिया भी, फ़िर जाने इधर आना हो कि नहीं -
    बात अजीब सी लग सकती है आपको लेकिन जैसा गाफ़िलजी और आपके चर्चामंच ने सिद्ध करने का प्रयास किया है, उसके उलट मैं शाहनवाज, डाक्टर जमाल जैसे ब्लॉगर्स का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ हालाँकि इन लोगों को ज्यादा पढ़ता नहीं हूँ। ये लोग कम से कम अपने दीन, मिशन, एजेंडे के प्रति वफ़ादार तो हैं। ’गाफ़िल’ साहब ने घृणा के लायक माना, अपन तो इतने में ही खुश हैं। बहुत बहुत आभार। शुभकामनायें आपको, चर्चामंच को और आपकी टीम को’

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    1. ललित (पता नहीं कौन हैं यह सज्जन) की इस टिप्पणी के बगैर विषयवस्तु / क्रिया प्रतिक्रिया दरिया/ समंदर /कूप समझना मुश्किल है-

      सादर उल्लेखित है ललित की यह टिप्पणी भी-

      भाषा दरिया और समंदर जैसी ही है-

      Lalitसोमवार, 12 नवम्बर 2012 10:56:00 pm IST


      सोंच-विचार?!?!?! अरे भैया जी, इन मूढ़मतियों के पास दिमाग़ है भी सोंच-विचार के लिए??? जितना प्रयत्न ये अपना स्वतंत्र विचार विकसित करने में लगायेंगे, उसके दशांश में ये शर्मनिरपेक्ष लोग बुद्धिजीवी घोषित हो, हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक सदभावना के सितारे बन जाते हैं. वैसे भी 'धिम्मी' बन के जीने की हमारी आदत बहुत पुरानी है.
      गाफिल बाबू अपने मरकस बाबा के अफ़ीम की पिनक में मस्त है... रहने ही दिया जाए... ये आँख खोल के सोने का बहाना करने वाले लोग हैं... जाग नही सकते...
      अभी तो बस यही चार लाइन याद आ रहा है:
      यह एकलिंग का आसन है,
      इसपर न किसी का शासन है,
      .............
      ............
      राणा तू इसकी रक्षा कर
      यह सिंहासन अभिमानी है...

      सादर
      ललित

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    2. यह भैयाजी किसके हैं संबोधन से पता चलता है-

      समस्त चर्चाकार निशाने पर -धिम्मी - जैसे शब्द-

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    3. हाँ, तो बेसुरम पर आने वाले ‘असुर’ लोगों, (यहाँ पर ‘असुर’ शब्द का प्रयोग मैने बिना सुर में गाने पढ़ने और बोलने वालों के लिए किया है और उनके लिए भी किया है जो "हंसुआ के बियाह में खुरपी का गीत गाते हैं". यह साफ करना मुझे इसलिए भी अत्यावश्यक लगा क्योंकि मैं इन सभ्य, सुसंस्कृत, सेक्युलर लोगों की सुरुचिपूर्ण गालियाँ और नही सुनना चाहता हूँ)
      धृष्टता के लिए क्या कहूँ? लेकिन असूरों, मुझे एक बात समझ में नही आई, इतना हंगामा क्यों बरपा है? “धिम्मी” शब्द के प्रयोग पर? या “हल्दी घाटी” का उद्धरण देने पर? और लोगों की तरह 'शर्मनिरपेक्ष' नही होने पर? याकि शक्ति सिंहों और मानसिंहों के बीच 'महाराणा' का नाम लेने पर???
      अब आते हैं मुद्दे की बात पर. शुरू करूँगा 'शाह नवाज़' से और अंत करूँगा 'रविकर' से. बीच में जितने भी कुमार, कुमारी, मिश्रा आदित्यादि है, सबसे निपटते चलेंगे.
      शाह नवाज़ ---- मेरी समझ में नहीं आया कि आखिर मेरी इस पोस्ट पर किसी को आपत्ति कैसे हो सकती है? मैंने तो आज तक कभी भी किसी भी धर्म के खिलाफ कोई पोस्ट नहीं लिखी, यहाँ तक कि कोई टिप्पणी भी नहीं की... क्योंकि यह मेरे स्वाभाव और मेरे माता-पिता के द्वारा दिए गए संस्कार यहाँ तक कि मेरे धर्म के भी खिलाफ है...
      --- जैसे ही मैं अपने धर्म की अच्छाइयों से परदा उठाना शुरू करता हूँ, यह साबित करने की ज़रूरत हीं नही बचती हैकि दूसरे धर्म बुरे हैं.... आपके स्वभाव और संस्कार से मैं अपरिचित हूँ लेकिन यह बात डंके की चोट पे कही जा सकती हैकि यह कम से कम आप के धर्म के खिलाफ नही ही है.
      मुझे आपत्ति इस बात को लेकर भी है कि हम दुनिया को मुस्लिम और गैर मुस्लिम के चश्मे से क्यों देखते हैं? मुझे तो किसी ने भी दुनिया को 'हिंदू' और 'गैर हिंदू' में बाँट कर नही दिखाया... शाह नवाज़, मुद्दा यह नही हैकि आप ने किसी धर्म को बुरा कहा या नही, मुद्दा यह हैकि हम दुनिया को बाँटे क्यों धर्म के आधार पर?
      राजेश कुमारी --- समस्या यही हैकि आप जैसे लोग लेखक है जो सतह के नीचे उतर के नही देख सकते हैं. इससे ज़्यादा अगर मैं कुछ और कहने की कोशिश करूँ शायद व्यक्तिगत आक्षेप की श्रेणी में आ जाएगा अतः ....
      ईश मिश्रा -- और कुछ हो या ना हो, आप जैसे लोगों से हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है. अस्मिता और वो भी दुर्घटना की!!! वाह!!! आज एक नया शब्द प्रयोग सीखा मैने. और मैने ये भी जाना की 'या तो अतीत अमूर्त होता है या हमारा, विशेषतः हिंदुओं का अतीत अमूर्त है, गौरवशाली तो कत्तई नही!!! आप 'धिम्मी' मानसिकता के मूर्त रूप हैं मिश्रा जी
      गाफिल --- आपके बारे में कुछ भी कहना छोटा मुँह बड़ी बात होगी. आपलोग ब्लॉग जगत के चमकते सितारे हैं. बस यही पूछना है आपसे कि यह कहाँ और ब्लॉग्गिंग के किस 'रूल बुक' में लिखा हुआ हैकि टिप्पणी करने वाले को भी अपना प्रोफाइल बनाना हीं होगा, अथवा वही टिप्पणी कर सकता है, जो अपना ब्लॉग लिखता है?
      दिक्कत यह नही हैकि आप बड़े हीं आदर से बूजुर्गवार जुम्मन को जुम्मन चाचा कहते हैं. दिक्कत यह हैकि जब वही जुम्मन अपनी खाला पे अन्याय करते है तो आप जैसे लोग "बिगाड़ के डर से ईमान की बात नही कहते हैं"
      व्यक्तिगत रूप से मुझे इस नाम, 'छद्मरूपधारी छुद्रमना' पर सख़्त आपत्ति है क्योंकि आज तक मैने जो भी किया डंके की चोट पे किया... आरा जिला घर बा ना कहु से डर बा. वो भी स्वीकार्य हो गया मुझे लेकिन ये 'छुद्र' क्या होता है?आप जैसे लोगों से, जिनसे कि पूरा का पूरा हिन्दी ब्लॉग जगत चमचमायमान है, उनसे हिन्दी में ऐसी ग़लती!!!??? आगे से आप मेरे लिए 'क्षुद्र' शब्द का प्रयोग कीजिएगा कृपा कर के. थोड़ा सा शुचितावादी हूँ मैं शब्दों की वर्तनी और उनके प्रयोगों को लेकर... बर्दाश्त कर लीजिए.

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    4. This comment has been removed by a blog administrator.

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    5. यह टिप्पणी आगे भी है |
      इसीलिए मिटाई गई-
      आगे देखिये -

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    6. संजय भाई! केवल आपके एक बात पर कहूंगा कि कुटिल, आलसी और क्षद्मवेशधारी यह नाम मेरा दिया नहीं है आप लोगों का आपलोग स्वयं अपना यही नामकरण किए हैं आपका ब्लॉग है ‘मो सम कौन कुटिल? भाई गिरिजेश का ब्लॉग है ‘एक आलसी का चिट्ठा’ तथा ललित का तो नाम ही नहीं लेना चाहता क्योंकि वह केवल गाली देने के लिए अवतरित हुए हैं ब्लॉग जगत में उनके प्रोफाइल पर कुछ नहीं है एकदम सादी है वह तो हम उसे क्यों न क्षद्मवेशधारी कहें...आप अनायास नाराज होते हैं मुझ पर आप स्वयं को कुटिल लिखें कोई अपने को आलसी लिखे तो बुरा नहीं और उसे उसके ही रखे नाम से पुकार लिया जाय तो वह अपराधी हो जाता है...अब मैं ग़ाफ़िल लिखता हूं अपने को आप जितना भी जहां भी पुकारो मुझे कोई आपत्ति हो ही नहीं सकती...आप लोग महान हैं, विद्वान हैं और पूरा हिन्दुत्व आपके ही बूते चल रहा है...आभार आपका

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  9. BAHUT ACHCHHI CHARCHA V BADHIYA LINKS .MERI RACHNA KO YAHAN STHAN PRADAN KARNE HETU AABHAR .

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  10. @राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है... सादर ललित
    रविकर
    बेसुरम्‌

    इस से संबधित जितने भी लिंक्स थे और टिप्पणियाँ थी सब मैंने पढ़ा | किसी भी चर्चाकार /चर्चाकारा के पोस्ट चयन के इरादे या नियत या उनकी बुद्धिमता पर सवाल उठाने वाले स्वयं मानसिक रूप से विकृत जान पड़ते हैं | हम पोस्ट चयन कर उसका लिंक यहाँ देते हैं | अगर किसी को भी किसी रचनाकार की बातों से असहमति है तो सीधे उनके पोस्ट पर जाकर उनसे बात करें | लिंक देने वाले के प्रति अपशब्द कहने का किसी को अधिकार नहीं है | चर्चा मंच में जातिवाद या धर्मवाद का कोई स्थान नहीं है |
    हम तो चर्चा मंच का जो उद्देश्य है उसके हित में कार्य करते रहेंगे | बाकी अगर कुछ इस तरह के लोगों को परेशानी होती है तो ये उनका निजी दिक्कत है |

    आभार |

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    Replies
    1. @ चर्चा मंच में जातिवाद या धर्मवाद का कोई स्थान नहीं है |

      -- बिलकुल यही माना जा रहा था कि 'चर्चा-मंच' में 'धर्मवाद' को कोई स्थान नही है इसीलिए किसी धर्म विशेष के दिशानिर्देशोँ की प्रेरणा पर आपत्ति और हटाने का अनुरोध मात्र किया गया था. प्रथम आपत्तिकर्ता ने चर्चाकारो की दुविधा समझ, सौजन्यवश अपना लिंक हटा देने का सुविधाजनक विकल्प भी रखा था.फिर भी 'धर्मवाद' का कोई स्थान न रखने वाले, जडतापूर्वक यही प्रश्न करते रहे कि इस पोस्ट मेँ बुरा क्या है? क्या यह पर्याप्त नही था कि उसमे 'धर्मवाद' और उससे बढ्कर दूसरे धर्मो के प्रति दिशानिर्देश (फतवे) थे. यदि चर्चा-मंच का सिद्धांत 'धर्मवाद' को प्रशय न देने का होता तो इस 'दिशानिर्देश' वाली पोस्ट पर विवेक सम्मत निर्णय लिया जाता. किंतु विवेक प्रयोग न कर पाना क्या कहलाएगा? इसलिए सवाल उठाने वाले किसी भी तरह मानसिक रूप से विकृत नही है, उन्होने तो आपके नियम पर ही विवेक जागृत करने का प्रयास किया है.

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  11. हमें तो सारे लिंक अच्छे लगे...आभार !

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  12. इस पर हमने कहा है :
    @ चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी ! सब एक परमेश्वर की रचना और एक मनु/आदम की संतान हैं. सब एक गृह के वासी हैं और मरकर सबको यहाँ से जाना है. इसलिए अच्छा यह है सब एक दुसरे को प्रेम और सहयोग दें. इस से सबको शान्ति मिलेगी और सबके बच्चे एक सुरक्षित वातावरण में पल सकेंगे.
    हिन्दुओं को उनका धर्म और गुरु यही बताता है और मुसलामानों को उनका इस्लाम यही सिखाता है.
    ऐतराज़ करने वाले भी यह बात जानते हैं लेकिन उनके अपने राजनीतिक स्वार्थ हैं. वे भी हमारे अपने भाई हैं. जल्दी ही वह दिन आएगा जब वे भी ठीक बात कहेंगे. नफरतों की उम्र ज़्यादा नहीं होती.
    इसीलिए हमने Bloggers से पूछा है कि

    आदरणीय चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी की पोस्ट पर हिंदूवादी भाइयों का ऐतराज़ कितना जायज़ है ? (Blog Ki Khabren)
    See:
    http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/11/blog-post_18.html

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  13. इस सुन्दर चर्चा में मुझे शामिल करने के लिए थैंक्यू !!!

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  14. राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है... सादर ललित
    रविकर
    बेसुरम्‌



    ढोटा ढलमल ढीठ ढक, ढर्रा ढचर ढलैत ।

    धिम्मी कहकर जा छुपा, अजगर ललित करैत ।

    अजगर ललित करैत, करे बेनामी टिप्पण ।

    लेजा अपनी आय, गालियाँ बेजा ढक्कन ।

    क्या दरिया में बाढ़, समंदर या फट जाता ।

    अभिमन्यु को मार, कहाँ मुंह रहा छुपाता ।

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  15. हाँ, तो बेसुरम पर आने वाले ‘असुर’ लोगों, (यहाँ पर ‘असुर’ शब्द का प्रयोग मैने बिना सुर में गाने पढ़ने और बोलने वालों के लिए किया है और उनके लिए भी किया है जो "हंसुआ के बियाह में खुरपी का गीत गाते हैं". यह साफ करना मुझे इसलिए भी अत्यावश्यक लगा क्योंकि मैं इन सभ्य, सुसंस्कृत, सेक्युलर लोगों की सुरुचिपूर्ण गालियाँ और नही सुनना चाहता हूँ)
    धृष्टता के लिए क्या कहूँ? लेकिन असूरों, मुझे एक बात समझ में नही आई, इतना हंगामा क्यों बरपा है? “धिम्मी” शब्द के प्रयोग पर? या “हल्दी घाटी” का उद्धरण देने पर? और लोगों की तरह 'शर्मनिरपेक्ष' नही होने पर? याकि शक्ति सिंहों और मानसिंहों के बीच 'महाराणा' का नाम लेने पर???
    अब आते हैं मुद्दे की बात पर. शुरू करूँगा 'शाह नवाज़' से और अंत करूँगा 'रविकर' से. बीच में जितने भी कुमार, कुमारी, मिश्रा आदित्यादि है, सबसे निपटते चलेंगे.
    शाह नवाज़ ---- मेरी समझ में नहीं आया कि आखिर मेरी इस पोस्ट पर किसी को आपत्ति कैसे हो सकती है? मैंने तो आज तक कभी भी किसी भी धर्म के खिलाफ कोई पोस्ट नहीं लिखी, यहाँ तक कि कोई टिप्पणी भी नहीं की... क्योंकि यह मेरे स्वाभाव और मेरे माता-पिता के द्वारा दिए गए संस्कार यहाँ तक कि मेरे धर्म के भी खिलाफ है...
    --- जैसे ही मैं अपने धर्म की अच्छाइयों से परदा उठाना शुरू करता हूँ, यह साबित करने की ज़रूरत हीं नही बचती हैकि दूसरे धर्म बुरे हैं.... आपके स्वभाव और संस्कार से मैं अपरिचित हूँ लेकिन यह बात डंके की चोट पे कही जा सकती हैकि यह कम से कम आप के धर्म के खिलाफ नही ही है.
    मुझे आपत्ति इस बात को लेकर भी है कि हम दुनिया को मुस्लिम और गैर मुस्लिम के चश्मे से क्यों देखते हैं? मुझे तो किसी ने भी दुनिया को 'हिंदू' और 'गैर हिंदू' में बाँट कर नही दिखाया... शाह नवाज़, मुद्दा यह नही हैकि आप ने किसी धर्म को बुरा कहा या नही, मुद्दा यह हैकि हम दुनिया को बाँटे क्यों धर्म के आधार पर?
    राजेश कुमारी --- समस्या यही हैकि आप जैसे लोग लेखक है जो सतह के नीचे उतर के नही देख सकते हैं. इससे ज़्यादा अगर मैं कुछ और कहने की कोशिश करूँ शायद व्यक्तिगत आक्षेप की श्रेणी में आ जाएगा अतः ....
    ईश मिश्रा -- और कुछ हो या ना हो, आप जैसे लोगों से हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है. अस्मिता और वो भी दुर्घटना की!!! वाह!!! आज एक नया शब्द प्रयोग सीखा मैने. और मैने ये भी जाना की 'या तो अतीत अमूर्त होता है या हमारा, विशेषतः हिंदुओं का अतीत अमूर्त है, गौरवशाली तो कत्तई नही!!! आप 'धिम्मी' मानसिकता के मूर्त रूप हैं मिश्रा जी
    गाफिल --- आपके बारे में कुछ भी कहना छोटा मुँह बड़ी बात होगी. आपलोग ब्लॉग जगत के चमकते सितारे हैं. बस यही पूछना है आपसे कि यह कहाँ और ब्लॉग्गिंग के किस 'रूल बुक' में लिखा हुआ हैकि टिप्पणी करने वाले को भी अपना प्रोफाइल बनाना हीं होगा, अथवा वही टिप्पणी कर सकता है, जो अपना ब्लॉग लिखता है?
    दिक्कत यह नही हैकि आप बड़े हीं आदर से बूजुर्गवार जुम्मन को जुम्मन चाचा कहते हैं. दिक्कत यह हैकि जब वही जुम्मन अपनी खाला पे अन्याय करते है तो आप जैसे लोग "बिगाड़ के डर से ईमान की बात नही कहते हैं"
    व्यक्तिगत रूप से मुझे इस नाम, 'छद्मरूपधारी छुद्रमना' पर सख़्त आपत्ति है क्योंकि आज तक मैने जो भी किया डंके की चोट पे किया... आरा जिला घर बा ना कहु से डर बा. वो भी स्वीकार्य हो गया मुझे लेकिन ये 'छुद्र' क्या होता है?आप जैसे लोगों से, जिनसे कि पूरा का पूरा हिन्दी ब्लॉग जगत चमचमायमान है, उनसे हिन्दी में ऐसी ग़लती!!!??? आगे से आप मेरे लिए 'क्षुद्र' शब्द का प्रयोग कीजिएगा कृपा कर के. थोड़ा सा शुचितावादी हूँ मैं शब्दों की वर्तनी और उनके प्रयोगों को लेकर... बर्दाश्त कर लीजिए.

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    Replies
    1. परिचय है नहीं और आपको पहले ही पता चल गया कि सभी चर्चाकार मूढ़ मति हैं-
      आप तो कमाल के कलाकार हैं |
      कमसे कम मैंने जो लिखा है वह आपके एक एक शब्द का प्रत्युत्तर ही है-
      आप मूढ़ मति कहें धिम्मी कहें और भी कुछ शब्द प्रयोग-

      तथाकथित विवादित लेख के हटने के बाद, एक भी शब्द आकर न कहें -आभार के-
      धन्य है आपकी विद्वता -

      आप से क्या मैं तो सभी से सीख रहा हूँ -
      जरुर बताता कि यह पंक्ति अशुद्ध है आप टिप्पणीकर्ता हैं न कि टिप्पणी ||

      वैसे अभी भी आपने यह नहीं बताया कि चर्चा मंच पर वह पोस्ट क्यूँ नहीं लगानी चाहिए थी -

      Delete
    2. संजय जी और गिरिजेश जी पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं खड़ा किया है हमने | आपके शब्दों का प्रत्युत्तर ही दिया है-
      अपनी सुविधा से शब्दों के अर्थ बदलने वाले हे विद्वान किसी मंच पर किस पोस्ट का लिंक लगाया जायेगा यह चर्चाकर ही तय करेंगे-
      यदि आपत्तिजनक है तो हटा भी लेंगे-
      लेकिन जिस तरह से आपकी विद्वता-पूर्ण टिप्पणी आई उसका क्या औचित्य है-
      आपकी यह टिप्पणी जहाँ से ली गई है वहां भी आप दुबारा अवतरित नहीं हुए -
      बड़क्क्म राव

      आज वाली सारी गाली मुझे क़ुबूल हैं-
      आभार भाई ||

      Delete
    3. @ ब्लॉग्गिंग के किस 'रूल बुक' में लिखा हुआ हैकि टिप्पणी करने वाले को भी अपना प्रोफाइल बनाना हीं होगा, अथवा वही टिप्पणी कर सकता है, जो अपना ब्लॉग लिखता है?
      सहमत: टिप्पणीकर्ता को अपना ब्लॉग बनाने की जरुरत नहीं |
      मूढ़-मति / शर्म निरपेक्ष / तिरस्कृत करने वाले शब्दों का प्रयोग करने वाले का परिचय ना मिले तो उसकी गालियाँ भी स्वीकार करने में कठिनाई होती है-
      अब आप सामने आये
      खुल कर गालियाँ दी
      साधुवाद -

      Delete
    4. @लेकिन असूरों, मुझे एक बात समझ में नही आई, इतना हंगामा क्यों बरपा है? “धिम्मी” शब्द के प्रयोग पर? या “हल्दी घाटी” का उद्धरण देने पर? और लोगों की तरह 'शर्मनिरपेक्ष' नही होने पर? याकि शक्ति सिंहों और मानसिंहों के बीच 'महाराणा' का नाम लेने पर???

      एक लिंक जो आप की पसंद का नहीं था-
      उसपर आपने इतना उधम मचाया-

      बिना सभी चर्चाकारों को जाने आपने सब पर लांछन लगाया |
      या यूँ कहे पत्थर मारकर भाग लिए-

      धिम्मी का शाब्दिक अर्थ आप क्या समझते हैं और उसका भाव क्या है-

      असंदर्भित चार पंक्तियाँ किस सन्दर्भ में प्रस्तुत की गई-


      Delete
    5. @आज तक मैने जो भी किया डंके की चोट पे किया... आरा जिला घर बा ना कहु से डर बा.

      अच्छी बात है-

      पर यहाँ तो ऐसा नहीं था -
      अपनी उस एक टिपण्णी के बाद / तथाकथित विवादित लिंक हटाने के बाद भी आप नहीं दिखाई पड़े-

      Delete
    6. @जितना प्रयत्न ये अपना स्वतंत्र विचार विकसित करने में लगायेंगे, उसके दशांश में ये शर्मनिरपेक्ष लोग बुद्धिजीवी घोषित हो, हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक सदभावना के सितारे बन जाते हैं. वैसे भी 'धिम्मी' बन के जीने की हमारी आदत बहुत पुरानी है.

      आपकी इस टिपण्णी के अंश पर मैंने (Ravikar) यह कहा-

      बड़े नपुंसक जीव हैं- 'धिम्मी' कह कर जाँय ।
      भांजे को अपने कभी, किन्तु खिला नहीं पाँय ।
      किन्तु खिला नहीं पाँय, बाप का नाम बता दो ।
      कोयल को ले पाल, बाप इक नया अता दो ।
      छुपकर करता वार, शिखंडी जैसा हिंसक ।
      लगा लांछना भाग, वाह रे वाह नपुंसक ।।

      यही भावार्थ था इस का -
      आपने धिम्मी कहा-आप अपने भांजे से उसके बाप का नाम पूछ कर बताओ |
      यदि उसे नहीं पता है तो उसे नया नाम दो -
      छुपकर वार करने वाले हे शिखंडी धिम्मी की लांछना मत लगा ||

      Delete


    7. एक सामान्य सा भाव नहीं साझ पाते और अनर्गल लिख मारते हो-

      ललित का लालित्य-
      “हम जीवन के महाकाव्य हैं, कोई छन्द प्रसंग नही हैं”

      रविकर.... शब्द तो यही बताता है-- रवि का 'किया' हुआ. खैर बाप का नाम अपने साथ जोड़ने की परंपरा बहुत पुरानी है लेकिन इससे यह नही पता चलता हैकि 'रवि' ने 'कितनी' बार 'किया' तो तुम 'निकले'... नाम में यह भी जोड़ लो और एक नयी प्रथा शुरू करो... बाबा का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है.

      तुम्हारी माँ भी 'एक लिंग' पे बैठी थी, तभी तुम आए. आज वो अफ़सोस करती होंगी कि क्यों बैठी उस लिंग पर, हाँ, अगर सही में 'एकलिंग' पे बैठी होती तो उनका, तुम्हारा, सबका जीवन धन्य हो जाता...
      रविकर, बहुत कम लोग ही होंगे जो मेरे 'माँ-बाप' तक पहुँचे होंगे, और जो जानते हैं वो तो कदापि नही करते हैं. तुमने किया... मैने माफ़ नही किया, और इसीलिए मैने कहाकि 'क्रोधाग्नि' जलाए रखना. बाबा का आसन अभी बंगलोर में है और बाबा का नंबर है – 9739008569. बाबा का मेल आइडी है – lalit74@gmail.com.

      Delete
    8. आप एक महामूर्ख और सिरफिरे इंसान हैं-
      जब आपको आप की ही भाषा में जवाब मिले तो व्याकरण और विद्वता याद आ गई -
      तुम्हारे जैसे पाखंडी बाबाओं ने ही भारत जैसे देश की दुर्दशा की-
      तुम्हें अपने हिंदुत्व पर गर्व है-
      हमें भी-
      अगर समझ में आये तो यह भी देखना-
      १९८३ में संघ शिक्षा वर्ग प्रथमवर्ष -पठानकोट
      दो वर्ष विस्तारक रहा चंडीगढ़ के पास मनीमाजरा में-
      १९८६- संघ शिक्षा वर्ग द्वितीय वर्ष
      धनबाद नगर का नगर शारीरिक प्रमुख और फिर नगर कार्यवाह रहा-
      १९९६ संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष नागपुर -
      कई शिक्षा वर्गों में शिक्षक की हैसियत से शामिल हुआ-
      मैंने हिंदुत्व का यह घटिया स्वरूप न कहीं देखा , न कहीं सिखा और न सिखाया -
      रे धूर्त काव्य का अर्थ पकड़ |
      छुपे अर्थ नहीं हैं-
      मुझे संघ का स्वयंसेवक और उसका सक्रिय कार्यकर्ता होने पर गर्व है-

      Delete

    9. (मैंने हिंदुत्व का यह घटिया स्वरूप न कहीं देखा , न कहीं सीखा न सिखाया)

      थोथा मुस्लिम विरोध नहीं सिखाता है संघ-
      न ही डरता है और न उनके साहित्य को नजरअंदाज करता है-
      जो भी लिखा जा रहा है उस पर हम नजर रखते है और सटीक जवाब देते हैं-

      Delete
    10. @रविकर, बहुत कम लोग ही होंगे जो मेरे 'माँ-बाप' तक पहुँचे होंगे, और जो जानते हैं वो तो कदापि नही करते हैं. तुमने किया... मैने माफ़ नही किया, और इसीलिए मैने कहाकि 'क्रोधाग्नि' जलाए रखना. बाबा का आसन अभी बंगलोर में है और बाबा का नंबर है – 9739008569. बाबा का मेल आइडी है – lalit74@gmail.com.

      यह गीदड़ भभकियां क्या दे रहे हो मियां-
      भिंडरावाले के आतंक के बीच चंडीगढ़ में मैंने संघ कार्य किया है-
      वैसे यह तो बताना कि किन पंक्तियों से आप के बाप तक पहुंचा हूँ मई-
      रे अधम अपना दिमाग दुरुस्त करा- कहाँ हैं वो पंक्तियाँ-
      ढूँढ़ -
      और तब धमकियाँ दे-
      बाबा -
      यहाँ बच्चे को भी बोलते हैं-
      रे नादाँ -

      Delete
    11. ऱविकर, जैसी कि अपेक्षा थी, मेल आदान-प्रदान को यहाँ नही डाले... दिखाने के लिए BBC का मेरा भेजा हुआ लिंक कहीं कहीं डाल दिया... एक बार आभार प्रकट नही किया???!!! संघ यह सब तो नही ही सिखाता है...

      Lalit Kumar lalit74@gmail.com
      11:27 PM (18 hours ago)
      to dinesh
      1. परिचय सिर्फ व्यक्तिगत तौर पर ही नहीं होता है रविकर, मैंने ब्लॉग नहीं बनाया इसकी कई वजहें हैं लेकिन लिखने वाले की शैली से भी उसका परिचय मिलता है। उन सभी विद्वतजनों की लिखाई को पढ़ने के बाद मैंने उन्हें मूढमति कहा था और आज भी उस पर कायम हूँ .
      आभार के शब्द तुम मुझसे क्यों सुनना चाहते थे/हो? अपनी गलती सुधारी है, मुझ पर कोई अहसान नहीं किया।।। आभार किसका?
      चर्चा मंच पर वह लेख क्यों न लगे--- बस इसलिए कि 'हंसुआ के बियाह में खुरपी का गीत नहीं गाया जाता है नहीं तो ईद पर तुम उसके साथ साथ होली का भी कोई लेख लगा सकते हो पर नहीं लगाओगे
      2. बाबा कहाँ कहाँ अवतरित होते हैं अगर तुम्हे इसका लेखा-जोखा रखना है तो रखो, लेकिन बाबा से बिना पूछे।।।। तुम अपने व्यक्तिगत जीवन में क्या करते हो, मुझे उससे कोई मतलब नहीं है।
      3. मैं छुपा हुआ कभी नहीं था और हाँ मैं 24 घंटे ब्लॉग पर ही नहीं बैठा रहता हूँ। तुमने इस मामले को व्यक्तिगत बनाया है, मैंने नहीं। नाम ले कर चवन्नी छाप दोहे लिख कर तुमने सोंचा कि मैंने बहुत बड़ा तीर मार लिया!!! हाँ तीर तो मारा तुमने पर वह गलत निशाने पर लगा।
      4. धिम्मी शब्द का अर्थ भी तुम्हे मै बताता हूँ-- इसका अर्थ है दोयम दर्जे का नागरिक बन के रहना। अपने जीने और अपने पंथ, अपने विश्वास, जोकि इस्लाम से अलग है, को मानने के लिए कर चुकाना। अपने अधिकार खो कर बैठ रहना। मेरी भाषा में कहो तो 'स्त्रैण' हो जाना।
      5. इसका जवाब मैं तुम्हे दे चुका हूँ।
      6. मैंने धिम्मी शब्द प्रयोग किया और तुम मेरे परिवार तक पहुँच गए? अपनी माँ से अपने बाप का नाम पूछ लो जा के।
      7. अनर्गल अपनी समझ पर निर्भर करता है। मैं तो फिर यही कहूंगा कि 'हम जीवन के महाकाव्य है, कोई छंद - प्रसंग नहीं हैं।
      हम भाड़े के सैनिक ले कर लड़ते कोई जंग नहीं है। भीतर-भीतर जो हों पोले, हम वो ढोल-मृदंग नहीं है।'
      8. रविकर, अपना ये बायो-डाटा किसी और के सामने खोलना। शायद कही कोई काम मिल जाए। जिस संघ की तुम बात कर रहे हो वह मेरी समझ में नहीं नहीं आता।।।
      9. इस सारी समस्या की जड़ तुम्हारी मूर्खता है। तुमने यह कैसे मान लिया कि हमने जो कहा वह मुस्लिम विरोध है??? पूर्वाग्रहों से मुक्त होओ वत्स!!! तुम्हारी समस्या का निदान हो जाएगा।
      10. तो तुम्हे क्या लगा? मैं बूढा हो गया हूँ। याद रखना शुकदेव जी भी बच्चे थे और अभिमन्यु भी बच्चा था। तुम भले ही व्यास या पितामह की श्रेणी में गिने जाने योग्य हो गए होओ, मैं कल बच्चा था, आज बच्चा हूँ और कल भी बच्चा ही रहूँगा।
      कहता है इतिहास जगत में, हुआ एक ही नर ऐसा।
      रण में कुटिल काल सम क्रोधित, तप में महासूर्य जैसा।
      मैं स्वयं को न सिर्फ उन जैसों की श्रेणी में रखता हूँ वरन उन सा बनने का प्रयास भी करता हूँ।
      2012/11/18 dinesh gupta
      रविकरNovember 18, 2012 7:32 PM
      परिचय है नहीं और आपको पहले ही पता चल गया कि सभी चर्चाकार मूढ़ मति हैं-
      आप तो कमाल के कलाकार हैं |
      कमसे कम मैंने जो लिखा है वह आपके एक एक शब्द का प्रत्युत्तर ही है-
      आप मूढ़ मति कहें धिम्मी कहें और भी कुछ शब्द प्रयोग-
      तथाकथित विवादित लेख के हटने के बाद, एक भी शब्द आकर न कहें -आभार के-धन्य है आपकी विद्वता -
      आप से क्या मैं तो सभी से सीख रहा हूँ -
      जरुर बताता कि यह पंक्ति अशुद्ध है आप टिप्पणीकर्ता हैं न कि टिप्पणी ||
      वैसे अभी भी आपने यह नहीं बताया कि चर्चा मंच पर वह पोस्ट क्यूँ नहीं लगानी चाहिए थी -
      Delete
      रविकरNovember 18, 2012 7:33 PM
      संजय जी और गिरिजेश जी पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं खड़ा किया है हमने | आपके शब्दों का प्रत्युत्तर ही दिया है-
      अपनी सुविधा से शब्दों के अर्थ बदलने वाले हे विद्वान किसी मंच पर किस पोस्ट का लिंक लगाया जायेगा यह चर्चाकर ही तय करेंगे-
      यदि आपत्तिजनक है तो हटा भी लेंगे-
      लेकिन जिस तरह से आपकी विद्वता-पूर्ण टिप्पणी आई उसका क्या औचित्य है-
      आपकी यह टिप्पणी जहाँ से ली गई है वहां भी आप दुबारा अवतरित नहीं हुए -
      बड़क्क्म राव
      आज वाली सारी गाली मुझे क़ुबूल हैं-
      आभार भाई ||
      Delete
      रविकरNovember 18, 2012 9:51 PM
      @ ब्लॉग्गिंग के किस 'रूल बुक' में लिखा हुआ हैकि टिप्पणी करने वाले को भी अपना प्रोफाइल बनाना हीं होगा, अथवा वही टिप्पणी कर सकता है, जो अपना ब्लॉग लिखता है?
      सहमत: टिप्पणीकर्ता को अपना ब्लॉग बनाने की जरुरत नहीं |
      मूढ़-मति / शर्म निरपेक्ष / तिरस्कृत करने वाले शब्दों का प्रयोग करने वाले का परिचय ना मिले तो उसकी गालियाँ भी स्वीकार करने में कठिनाई होती है-
      अब आप सामने आये
      खुल कर गालियाँ दी
      साधुवाद -

      Delete
  16. बहुत ही बढ़ियाँ लिंक्स...
    बहुत ही बढ़िया चर्चा...
    :-)

    ReplyDelete
  17. ललित ललित जैसे प्राणियों को समझना होगा जब आपने कुछ लिखके पोस्ट कर दिया तब वह ब्लॉग की संपत्ति बन जाता है .आपको लिख के अपने पास रख लेना चाहिए था .पोस्ट को /सेतु को

    हटवाने का फतवा आप कैसे ज़ारी कर सकतें हैं आप ?क्या आप ब्लॉग जगत के स्वयम घोषित खलीफा हैं ?फतवा खोरी यहाँ नहीं चलेगी .चर्चा मंच पे तो बिलकुल भी नहीं शुक्र मनाइए आपको इतनी

    मिल गई जितनी की आपकी ब्योंत नहीं है .


    राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है... सादर ललित
    रविकर
    बेसुरम्‌

    ReplyDelete
  18. राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है... सादर ललित
    रविकर
    बेसुरम्‌

    ललित ललित जैसे प्राणियों को समझना होगा जब आपने कुछ लिखके पोस्ट कर दिया तब वह ब्लॉग की संपत्ति बन जाता है .आपको लिख के अपने पास रख लेना चाहिए था .पोस्ट को /सेतु को

    हटवाने का फतवा आप कैसे ज़ारी कर सकतें हैं आप ?क्या आप ब्लॉग जगत के स्वयम घोषित खलीफा हैं ?फतवा खोरी यहाँ नहीं चलेगी .चर्चा मंच पे तो बिलकुल भी नहीं शुक्र मनाइए आपको इतनी

    तवज्जो

    मिल गई जितनी की आपकी ब्योंत नहीं है .

    ReplyDelete
  19. जब भी प्रेम
    लम्‍हा बन आंखों में ठहरता है,
    मुझे इसमें ईश्‍वर दिखाई देता है
    किसी ने कहा है प्रेम और ईश्‍वर दोनो
    एक ही तत्‍व हैं
    तुमने भी तो कहा था
    कुछ भी अमर नहीं है सिवाय प्रेम के
    कहो मैं कैसे भूलती फिर इस 'प्रेम' को
    इसका अहसास, इसके अमरत्‍व की
    एक बूँद कभी बारिश बनकर बरसती है,
    कभी टपकती है आंखो से आंसुओं के रूप में
    कभी चंदा की चांदनी बन
    पूरे आंसमा को नहीं धरा को भी रौशन करती है
    पर आज इसका पूरा भार
    कविता पर है, इसकी रचना
    इसका होना ही प्रेम है !!!

    बहुत खूब !बहुत खूब !बहुत खूब !

    ReplyDelete
  20. बहुत खूब लिखा है .अभिव्यक्ति को जैसे पंख ही लग गए हैं .


    23
    आ ज मुंह खोलूंगी
    डॉ शिखा कौशिक ''नूतन ''
    ! नूतन !

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  21. तेज़ी बढ़ रहें हैं आपके कदम ललित कला की माहिरी की ओर .बधाई .
    14
    दीपों का पर्व दीपावली
    रुनझुन

    ReplyDelete

  22. जब जब जो जो होना है तब तब सो सो होता है .इश्क कोई एक बार नहीं होता जब भी कोई हमख्याल मिला यूं ही चलते चलते सरे राह ,पीछे पीछे इश्क भी चल दिया .

    10
    नमक इश्क़ का
    Madhuresh
    Madhushaalaa

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  23. सांस्कृतिक झलक देखी वार्षिक आयोजन की .एक अच्छी पहल की अच्छी रिपोर्टिंग के लिए आपका आभार .ब्रिज (ब्रज )मंडल के गिर्द भी दिलद्दर भगाने का रिवाज़ है .

    25
    भाग दरिद्दर!
    (Arvind Mishra)
    क्वचिदन्यतोSपि...

    ReplyDelete

  24. अगली पोस्ट का तो इंतज़ार रहेगा ही फिलवक्त एक द्रुत टिपण्णी वर्तमान पोस्ट पर -बाला साहब (बाल केशव )ठाकरे साहब हमारे बीच नहीं रहे आज हर आदमी उनको कंधा देना चाहता है वह

    सिर्फ

    विधिवत नौंवी पास थे लेकिन गुनी थे एक संवर्धित परम्परा के वारिश थे .आज पूरा मुंबई नगर रुक गया है .

    औपचारिक और मौखिक शिक्षा कैसी भी भली है .पोषक हैं परस्पर विरोधी नहीं .

    संत कवि कौन से मदरसे में कब गए ,एक ज्ञान मार्गी परम्परा भी हमें विरासत में मिली ,आज निश्चय ही मिश्र का युग है संजोने का युग है औपचारिक तौर पर ताकि सनद रहे .
    9
    शिक्षा - क्या और क्यों ?
    (प्रवीण पाण्डेय)
    न दैन्यं न पलायनम्

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  25. बेहतरीन संयोजन चर्चा मंच का सेतु चयन अव्वल रहा .हाँ अलबता रविकर की कुंडलियों में उतने संसिक्त नहीं दिखे सेतु .

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  26. महेंद्र भाई इन चर्च के एजेंटो से कैसी उम्मीद रखतें हैं आप .देख लेना एक दिन ये दुम दबा के भागेंगे इटली की ओर और वह वक्त बहुत दूर नहीं है .एक बाला साहब गए पूरा मुंबई शहर रुक गया ये लोग किराए पे

    लाये हुए लोग नहीं थे


    और तो और हमारे नेवी नगर के भी सब क्रायक्रम रद्द हो गए .आज संगीत संध्या का आयोजन था जो निलंबित कर दिया गया .दिल्ली में आज ऐसे ऐसे नेता बैठे हैं जिन्हें कंधा देने वाले चार लोग भी

    नहीं मिलेंगे .इस मंद मती की तो औकात ही क्या है .कोंग्रेस की लुटिया डुबोने के लिए तो एक दिग्विजय काफी थे -राम मिलाई जोड़ी एक दिग्विजय एक मंद मती .आपके विश्लेषण से सहमत .मोहन

    हमारे मनमोहना पहले प्रधान मंत्री हैं -जो काग भगौड़ा /क्रो स्केयर बार /पूडल /अंडर अचीवर आदि संबोधनों से नवाजे गए .दादा को राष्ट्र पति भवन में घुसा दिया अच्छा ही हुआ बाहर होते तो

    काजल की कोठरी में होते .ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है .कोंग्रेस को नेस्तनाबूद करने के लिए मंदमती का होना ज़रूरी है .
    वैसे भी राहुल गांधी अगर मुंह न खोले तो बहुत बड़े विचारक लगते हैं .इनके बारे में कहा जाता है बहुत अच्छे नेक इंसान है पूछो इनकी विचारधारा क्या है ज़वाब वाही मिलेगा बहुत अच्छे इंसान है .

    (0)
    राहुल गांधी बोले तो पोंsपोंs पोंपोंs..पोंsss
    महेन्द्र श्रीवास्तव
    आधा सच...


    ReplyDelete
  27. @ Lalit
    शाह नवाज़ ---- मेरी समझ में नहीं आया कि आखिर मेरी इस पोस्ट पर किसी को आपत्ति कैसे हो सकती है? मैंने तो आज तक कभी भी किसी भी धर्म के खिलाफ कोई पोस्ट नहीं लिखी, यहाँ तक कि कोई टिप्पणी भी नहीं की... क्योंकि यह मेरे स्वाभाव और मेरे माता-पिता के द्वारा दिए गए संस्कार यहाँ तक कि मेरे धर्म के भी खिलाफ है...
    --- जैसे ही मैं अपने धर्म की अच्छाइयों से परदा उठाना शुरू करता हूँ, यह साबित करने की ज़रूरत हीं नही बचती हैकि दूसरे धर्म बुरे हैं....


    मैं जब यह बताता हूँ कि मेरे धर्म में क्या अच्छाईयाँ हैं तो यह कैसे हो सकता है कि इसका मतलब दुसरे धर्म में बुराइयाँ हैं??? फिर तो हर एक को धार्मिक बात कहना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि हर कोई अच्छी बातों को सामने लाना चाहता है। मैं ऐसा नहीं मानता, दुनिया में अगर कुछ लोग बुराइयों का प्रचार करने में लगे हैं तो सही बात सामने आना आवश्यक है।



    आपके स्वभाव और संस्कार से मैं अपरिचित हूँ लेकिन यह बात डंके की चोट पे कही जा सकती हैकि यह कम से कम आप के धर्म के खिलाफ नही ही है.

    धन्यवाद आपका!



    मुझे आपत्ति इस बात को लेकर भी है कि हम दुनिया को मुस्लिम और गैर मुस्लिम के चश्मे से क्यों देखते हैं? मुझे तो किसी ने भी दुनिया को 'हिंदू' और 'गैर हिंदू' में बाँट कर नही दिखाया... शाह नवाज़, मुद्दा यह नही हैकि आप ने किसी धर्म को बुरा कहा या नही, मुद्दा यह हैकि हम दुनिया को बाँटे क्यों धर्म के आधार पर?

    भाई मैं मुस्लिम हूँ और तुम हिन्दू हो, कोई अन्य किसी और धर्म को मानने वाला होगा, यह तो हमारी आस्था भर है। इसमें बांटना क्या हुआ है? बांटना तो तब होता जबकि बीच में दीवारें खड़ी की जाती और मेरी कोशिशें तो दीवारें मिटाने की है। यह दीवारे एक-दूसरे के बारे सही जानकारी नहीं होने के कारण ही खड़ी हुई हैं।

    मेरा मानना है कि विभिन्न आस्थाओं के लोग अपनी-अपनी आस्थाओं का अनुसरण करते हुए भी एक-दूसरे के साथ पूरे प्रेमभाव के साथ रह सकते हैं, क्योंकि सभी इंसान हैं और सबको एक ही प्रभु ने बनाया है। इसके बीच में किसी का भी धर्म नहीं आता है, जो लोग ऐसा सोचते हैं कि धर्म तोड़ता है तो उन तक सही बात पहुंचाने की आवश्यकता है और यही कोशिश मैंने की, करता आया हूँ और करता रहूँगा। चाहे किसी को पसंद आए या ना आए!

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  28. जी हाँ, ब्लौग जगत जिंदा है अभी ...

    इस विषय पर हमने अपने ब्लॉग पर भी राय मांगी है.

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  29. OMG................really a good movie.......जिसने देखी न हो देखिएगा जरूर !

    ReplyDelete

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