आज की मंगलवारीय चर्चा में आप सब का स्वागत है राजेश कुमारी की आप सब को नमस्ते आप सब का दिन मंगल मय हो
अहोई अष्टमी की आप सभी को शुभ कामनाएँ
अब चलते हैं आपके प्यारे ब्लोग्स पर
Anita atडायरी के पन्नों से
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जय अहोई माता (बोलते चित्र )
Rajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN
,AAPKE VICHAAR
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तर्क-संगत टिप्पणी की पाठशाला--
रविकर at रविकर-पुंज -
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प्यासी है नदिया
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कौन सा केला बेहतरःकच्चा या पका?
Kumar
Radharaman at स्वास्थ्य -
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तू नदी है प्यार की ...
udaya
veer singh at उन्नयन (UNNAYANA)
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राजस्थान भ्रमण- जोधपुर शहर Rajasthan
trip-Jodhpur City
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उम्मीदों के चिराग़....!!!
यादें....ashok
saluja . at यादें.
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फिर भी तुम्हारा हूँ
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' करवा चौथ जैसे त्यौहार क्यों मनाये जाते हैं ?'
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फ़र्क़
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ at ग़ाफ़िल की अमानत -
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उम्र जो बढ़ी
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हास्य रस के दोहे
धर्मेन्द्र कुमार सिंह at ग्रेविटॉन
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जब मौत मेरी हमसफ़र हो तो डरूं किस से यहाँ ?
RAJIV
CHATURVEDI at Shabd Setu
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"इन्तज़ार-चित्रग़ज़ल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
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तो क्या कीजे......???
Punam*** at तुम्हारे लिए.
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अबकी दिवाली ऐसी मनाना !
मुकेश पाण्डेय चन्दन at मुकेश पाण्डेय "चन्दन"
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क्षणिका………एक दृष्टिकोण
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रविकर की धज्जियाँ उडाती आ. अरुण निगम की पोस्ट
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उदासी के धुएं में
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मैंने क्यूँ गाये हैं नारे
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SP/2/1/11
धिया जँवाई ले
गये, वह उन
की सौगात - ऋता शेखर मधु
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बस आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ अगले मंगल वार फिर
मिलूंगी कुछ नए सूत्रों के साथ तब तक के लिए शुभ विदा बाय बाय
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बहुत सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक मिले पढ़ने के लिए!
आभार!
कई लिंक्स लिए चर्चा |कुछ तो पढ़ ली हैं बाकी बाद में |
जवाब देंहटाएंआशा
सुन्दर परिचर्चा..
जवाब देंहटाएंकई लिंक्स अच्छे मिले जिन्हें पढ़कर बहुत अच्छा लगा ..
जवाब देंहटाएंआभार !!
my recent post:
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html
बौड़म गड़करी का बड़बोलापन
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र श्रीवास्तव at रोजनामचा... -
भाजी पी-नट की सड़ी, गंध-करी में आय ।
है नरेंद्र उपवास पर, दाउद खाये जाय ।
दाउद खाये जाय, गधे के माफिक आई-क्यू ।
करे बरोबर बात, वाह रे कुक्कुर का व्यू ।
वह भी तो ना खाय, कहो क्या कहते काजी ।
हाँ जी हाँ जी सत्य, सड़ी निकली यह भाजी ।।
बहुत सुंदर, क्या बात
हटाएंमैंने क्यूँ गाये हैं नारे
जवाब देंहटाएंnoreply@blogger.com (पूरण खंडेलवाल) at शंखनाद
गाँधी के बंदरों पर, नारे ये उत्कृष्ट ।
असर डाल पाते नहीं, दुष्ट कलेजे कृष्ण ।
दुष्ट कलेजे कृष्ण , कर्म रत रहिये हरदम ।
भूलो निज अधिकार, चलो चित्कारो भरदम ।
जूँ नहिं रेंगे कान, चले नारों की आँधी ।
आँख कान मुँह बंद, जमे अलबेले गाँधी ।।
"इन्तज़ार-चित्रग़ज़ल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जवाब देंहटाएंडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
उच्चारण
शब्द उकेरे चित्र पर, रविकर के मन भाय ।
झूठी शय्या स्वप्न की, वह नीचे गिर जाय ।।
हास्य रस के दोहे
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र कुमार सिंह
ग्रेविटॉन
हमें सोरठे मोहते, बढ़िया भाव बहाव ।
सकारात्मक डालते, रविकर हृदय प्रभाव ।।
उम्मीदों के चिराग़....!!!
जवाब देंहटाएंयादें....ashok saluja .
यादें...
उम्मीदों का जल रहा, देखो सतत चिराग |
घृत डालो नित प्रेम का, बनी रहे लौ-आग |
बनी रहे लौ-आग, दिवाली चलो मना ले |
अपना अपना दीप, स्वयं अंतस में बालें |
भाई चारा बढे, भरोसा प्रेम सभी दो |
सुख शान्ति-सौहार्द, बढ़ो हरदम उम्मीदों ||
बहुत सुन्दर लिंक्स की चर्चा....
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा | बहुत सुंदर-सुंदर लिंक्स सजाये आपने | आभार |
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा ! अच्छे लिंक्स सजाए आपने..अच्छा लगा पढ़कर !:)
जवाब देंहटाएं~सादर !
बहुत सुन्दर चर्चा! सुन्दर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स के साथ अनुपम प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स एक से बढकर एक
मुझे शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार
सभी लिंक्स बेहतरीन .बेहतरीन चर्चा.आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स बेह्तरीन चर्चा,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST:..........सागर
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंआभार !!
आम आदमी पिस रहा, मजे कर रहे खास।
जवाब देंहटाएंमँगाई की मार से, मेला हुआ उदास।।
तुम्हारे लिए-
जवाब देंहटाएंवो भूले हैं आपको, आप कर रहे याद।
पत्थर से करना नहीं, कोई भी फरियाद।।
मौत से क्या डरना-
जवाब देंहटाएंमौत तो अवश्यम्भावी है!
धन्यवाद राजेश जी मुझे 'चर्चा' के मंच पर लाने के लिए...!
जवाब देंहटाएंनई रचनाएं...और कुछ नए-पुराने दोस्तों से मुलाकात....!!
आपका प्रयास सराहनीय है...!!
आभार...!!!
बहुत-बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बेहतरीन। अच्छी चर्चा। मुझे शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंआप सभी का हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक संयोजन राजेश जी... बधाई!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंरविवार, 4 नवम्बर 2012
हास्य रस के दोहे
जहाँ न सोचा था कभी, वहीं दिया दिल खोय
ज्यों मंदिर के द्वार से, जूता चोरी होय
सिक्के यूँ मत फेंकिए, प्रभु पर हे जजमान
सौ का नोट चढ़ाइए, तब होगा कल्यान
फल, गुड़, मेवा, दूध, घी, गए गटक भगवान
फौरन पत्थर हो गए, माँगा जब वरदान
ताजी रोटी सी लगी, हलवाहे को नार
मक्खन जैसी छोकरी, बोला राजकुमार
संविधान शिव सा हुआ, दे देकर वरदान
राह मोहिनी की तकें, हम किस्से सच मान
जो समाज को श्राप है, गोरी को वरदान
ज्यादा अंग गरीब हैं, थोड़े से धनवान
बेटा बोला बाप से, फर्ज करो निज पूर्ण
सब धन मेरे नाम कर, खाओ कायम चूर्ण
ठंढा बिल्कुल व्यर्थ है, जैसे ठंढा सूप
जुबाँ जले उबला पिए, ऐसा तेरा रूप
dohon me parihaas hai ,padh dekhen srimaan .
ek dam se asangat byaan aur saamya kahin koi mel nahin .ganimat hai byaan vaapas to liyaa .
जवाब देंहटाएंसुन्दर,व्यवस्थित चर्चा।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंMONDAY, NOVEMBER 5, 2012
एक नाम ही आधारा..
अक्तूबर २००३
एक ओंकार सतनाम ! जब चित्त शांत हो उसमें संकल्प-विकल्प की लहरें न उठ रही हों, तब एक-एक मोती को, जो श्वास के मोती हैं, प्रभु के नाम के धागे में पिरोते-पिरोते ध्यान में डूबना है. जाग्रत, सुषुप्ति और स्वप्न हम तीन अवस्थाओं को ही जानते हैं, चौथी का हमें पता नहीं, जो ध्यान में घटती है, और ध्यान तभी घटता है जब मन सुमिरन में डूब जाये. जीवन की घटनाएँ उसे छूकर निकल जाएँ, हिला न सकें. माया के आवरण से ढका जो यह जगत है वह नाम उच्चारण के आगे टिकता नहीं. सहजता, सरलता और संतोष के आधार पर जब जीवन टिका हो तो ज्ञान, प्रेम और शांति की दीवारों को खड़ा किया जा सकता है. नाम के जल से जो भीतरी शुद्धि होती है वह विकारों को टिकने नहीं देती, नाम की आंधी जब भीतर के चिदाकाश में उठती है तो बादल छंट जाते हैं, तब हम जीवन की उस उच्चता को प्राप्त करते हैं जो समता से आती है. कोई भी भौतिक या मानसिक कृपणता तब हमें छू भी नहीं पाती, हम पूर्णकाम हो जाते हैं. सत्य ही नाम का साध्य है और सत्य ही साधन है, हमें पूर्ण सत्यता के साथ ही उसको जपना है. आत्मा का सूरज तब भीतर-बाहर एक सा चमकता है.
बौड़म गड़करी का बड़बोलापन
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र श्रीवास्तव at रोजनामचा... -
गडकरी जी ने जो कहा वह टेक्स्ट अभी अभी पढ़ने को मिला .आपने कहा बुद्धि कौशल (आई क्यू के मामले विवेकानंद जी और गडकरी यकसां हैं विवेकानंद जी ने अपने बुद्धि कौशल का इस्तेमाल सकारात्मक करके एक शिखर को छूआ ,दाऊद ने नकारात्मक इस्तेमाल से दूसरे को .इस सन्दर्भ में एक उद्धरण गांधी जी का उन्हें उस दौर में प्यारे लाल आवारा का एक उपन्यास पढने को दिया गया इस टिपण्णी के साथ ,आप इन्हें रोकें ,ये बहुत अश्लील लिख रहें हैं ,गांधी जी ने उपन्यास पढ़ने के बाद कहा -मैंने उपन्यास पढ़ा ,मैं इसमें कोई अश्लीलता नहीं देखता ,लेखक ने यही दर्शाया है ,बुरे काम का बुरा नतीजा निकलता है .
गडकरी जी के बयान पे इतना किसी भी पक्ष को बिदकने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए थी .
चर्चा मंच के माध्यम से बढ़िया चुनी हुई रचनाएँ पढ़ने मिल जाती है
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया चुनाव सभी चुनी रचना संग्रह पर प्रतिक्रिया दे पाना
समयाभाव में नहीं हो पाता सभी रचनाएं अच्छी है
एक से बढ़ कर एक रत्न भरे हैं
यहाँ साहित्य सरिता का संगम देखने मिल जाता है
हार्दिक आभार