स्नेहिल अभिवादन।
पृथ्वी का अस्तित्त्व ख़तरे में है
यह बात हम लंबे समय से सूचनाओं के ज़रिये देखते-सुनते आ रहे हैं
लेकिन अब 153 देशों के वैज्ञानिकों ने घोषित किया है
कि पृथ्वी पर आबोहवा अब आपातकालीन स्थिति में है।
अब सवाल यह है कि पर्यावरण संबंधी सरोकारों पर
हमारी उदासीनता और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर
हम कब तक चुप्पी साधे रहेंगे?
भावी पीढ़ी को कैसी दुनिया विरासत में देकर जायेंगे हम....???
आइये अब मेरी पसंद की कुछ रचनाओं पर नज़र डालिये-
-अनीता लागुरी 'अनु'
पृथ्वी का अस्तित्त्व ख़तरे में है
यह बात हम लंबे समय से सूचनाओं के ज़रिये देखते-सुनते आ रहे हैं
लेकिन अब 153 देशों के वैज्ञानिकों ने घोषित किया है
कि पृथ्वी पर आबोहवा अब आपातकालीन स्थिति में है।
अब सवाल यह है कि पर्यावरण संबंधी सरोकारों पर
हमारी उदासीनता और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर
हम कब तक चुप्पी साधे रहेंगे?
भावी पीढ़ी को कैसी दुनिया विरासत में देकर जायेंगे हम....???
आइये अब मेरी पसंद की कुछ रचनाओं पर नज़र डालिये-
-अनीता लागुरी 'अनु'
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गीत
"खाली पन्नों को भरता हूँ"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
घर-आँगन-कानन में जाकर मैं,
अपनी तुकबन्दी करता हूँ।
अनुभावों का अनुगायक हूँ,
मैं कवि लिखने से डरता हूँ।।
-------
इक दिन ऐसा आएगा
खाए फिर न धोखा
मासूम इस ज़मीं पर
नीलाम अस्मतों का
फिर हो न इस ज़मीं पर
फिर बाज का ही जलवा
होगा न आसमां में
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स्पंदन (1101 वीं रचना)
गीत
"खाली पन्नों को भरता हूँ"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
घर-आँगन-कानन में जाकर मैं,
अपनी तुकबन्दी करता हूँ।
अनुभावों का अनुगायक हूँ,
मैं कवि लिखने से डरता हूँ।।
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इक दिन ऐसा आएगा
खाए फिर न धोखा
मासूम इस ज़मीं पर
नीलाम अस्मतों का
फिर हो न इस ज़मीं पर
फिर बाज का ही जलवा
होगा न आसमां में
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स्पंदन (1101 वीं रचना)
अन्तर्मन हुई थी, हलकी सी चुभन!
कटते भी कैसे, विछोह के हजार क्षण?
हर क्षण, मन की पर्वतों का स्खलन!
सोच-कर ही, कंपित सा था मन!
कटते भी कैसे, विछोह के हजार क्षण?
हर क्षण, मन की पर्वतों का स्खलन!
सोच-कर ही, कंपित सा था मन!
क्या ही इलाज़ करें खुद का
खुदी से हो नहीं सकता बुलन्द इतना
सहारा मिले तो मिले सकूं
झर रहा है इंसां
गिर गए नाखून
पिंघल रही उंगलियां
रीत गए हैं हाथ
फिर भी ये बेमुद्दा खालिद कितना?
--------
"क्षणिकाएं"
खुदी से हो नहीं सकता बुलन्द इतना
सहारा मिले तो मिले सकूं
झर रहा है इंसां
गिर गए नाखून
पिंघल रही उंगलियां
रीत गए हैं हाथ
फिर भी ये बेमुद्दा खालिद कितना?
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"क्षणिकाएं"
बेसबब नंगे पाँव ...
भागती सी जिन्दगी कट रही है बस यूं … जैसे एक पखेरु
लक्ष्यहीन उड़ान में...
समय के बटुए से
रेजगारी खर्च रहा हो … ------- चले आना ना रुकना तुम
मौन अर्ध्य
मन अभिमंत्रित
बँधता रहा तुम्हारे
चारों ओर
मैं घुलती रही बूँद-बूँद
तुम्हारी भावों को
आत्मसात करती रही
तुम्हारे चटख रंगों ने
फीका कर दिया
जीवन के अन्य रंगों को,
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भागती सी जिन्दगी कट रही है बस यूं … जैसे एक पखेरु
लक्ष्यहीन उड़ान में...
समय के बटुए से
रेजगारी खर्च रहा हो … ------- चले आना ना रुकना तुम
चले आना ना रुकना तुम,
न कहना कि बंदिशें हैं।
यह बंदिशें हट जाएंगी,
प्रदुषण का ईलाज
तुम्हें जीना अगर है तो,
लगाओ पेड़ तुम प्यारे,
मिटाना है प्रदूषण तो,
बचाओ पेड़ तुम सारे।
हवा-पानी और भोजन,
धरा-अम्बर और जीवन- बचाना है
अगर इनको,
लगाओ पेड़ खूब सारे।
तुम्हें जीना अगर है तो,
लगाओ पेड़ तुम प्यारे,
मिटाना है प्रदूषण तो,
बचाओ पेड़ तुम सारे।
हवा-पानी और भोजन,
धरा-अम्बर और जीवन- बचाना है
अगर इनको,
लगाओ पेड़ खूब सारे।
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हां यूं ही कविता बनती है।
गुलाब की पंखुड़ियों सा
कोई कोमल भाव
मेधा पुर में प्रवेश कर
अभिव्यक्ति रूपी मार्तंड की
पहली मुखरित किर के स्पृश से -------- अब बस ख़त्म करो ये तजस्सुम "ज़ोया "
कोई कोमल भाव
मेधा पुर में प्रवेश कर
अभिव्यक्ति रूपी मार्तंड की
पहली मुखरित किर के स्पृश से -------- अब बस ख़त्म करो ये तजस्सुम "ज़ोया "
कतरा - कतरा ये रात पिघल जाने लगी,
क उम्मीद थी आपके आने की, जाने लगी।
काटी हैं सब रातें जगरतों में हमने,
थक से गये हैं अब, नींद आने लगी।
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Posts of 4,5 and 6 Nov 2019
जब धरती करवट बदलेगी
जब कैदी कैद से छूटेंगे जब पाप घरौंदे फ़ूटेंगे
जब जुल्म के बंधन टूटेंगे
संसार के सारे मेहनतकश खेतों से,
मिलो से निकलेंगे बेघर,
बेदर, बेबस इंसा तारीख बिलों से निकलेंगे
-----
अम्बर में अबाबील (उदय प्रकाश) : संतोष अर्श
जब कैदी कैद से छूटेंगे जब पाप घरौंदे फ़ूटेंगे
जब जुल्म के बंधन टूटेंगे
संसार के सारे मेहनतकश खेतों से,
मिलो से निकलेंगे बेघर,
बेदर, बेबस इंसा तारीख बिलों से निकलेंगे
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अम्बर में अबाबील (उदय प्रकाश) : संतोष अर्श
कब कविता लिख जाय
कब उसे कोई पढ़ जाय
-----मौन अर्ध्य
मन अभिमंत्रित
बँधता रहा तुम्हारे
चारों ओर
मैं घुलती रही बूँद-बूँद
तुम्हारी भावों को
आत्मसात करती रही
तुम्हारे चटख रंगों ने
फीका कर दिया
जीवन के अन्य रंगों को,
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आज का पढ़ने का सफ़र बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले शुक्रवार।
जवाब देंहटाएंअनु जी ,प्रदूषण पर आपकी भूमिका और रचनाएँ दोनों ही सशक्त है। समसामयिक विषयों को उठाया है।
पौधे की बात करूँ, तो कार्तिक माह में तुलसी के वृक्ष का विशेष महत्व है।
आज कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसे देवोत्थान या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है । इन दोनों शब्दों से स्पष्ट है कि किसी भी व्यक्ति के खुद के हाथ में है कि वह अपने भीतर के 'देवत्व' को जागृत कर सकता है ,क्योंकि प्रबोधन शब्द का आशय ही जागना, यथार्थ ज्ञान और पूर्ण बोध होने से है।
इसी दिन तुलसी से भगवान विष्णु का विवाह होता है । इस ब्रह्मांड में भगवान सूर्य को विष्णु का रूप माना जाता है । श्रीमद्भगवत गीता में नारायण अवतार कृष्ण ने कहा भी है कि मैं ही सूर्य हूँ । सभी जानते हैं कि सूर्य की किरणों से ऊर्जा मिलती है । आयुर्वेद के अनुसार तुलसी के पौधे से भी ऊर्जा-तरंगे निकलती हैं । तुलसी के पेड़ की परिधि के दो सौ मीटर तक जीवनदायिनी ऊर्जा तरंगें निकलती है । आध्यात्मिक ग्रन्थों में कहा गया है कि जहां तुलसी के पेड़ होते हैं, वहां आकाशीय बिजली नहीं गिरती है । वह परावर्तित हो जाती हैं । इस तरह सूर्य की किरणों तथा धरती पर स्थित किरणों में आपसी सामंजस्य विवाह-बंधन जैसा है ।
अतः क्यों न हम इस तुलसी वृक्ष को को अपने घरों में लगाए ?
इस सुंदर चर्चाअंक के लिये आपसभी को प्रणाम।
जी बहुत-बहुत धन्यवाद शशि जी शुरू से ही तुलसी के पौधे का महत्त्व हमारे घर आंगन में रहा है ....जीवनदायिनी पौधे होने के साथ-साथ इसके संरक्षण में रहने से एक असीम शांति की अनुभूति भी होती है बहुत अच्छा लगा आपने बहुत विस्तार से पौधे के बारे में बहुत सारी ज्ञान उपयोगी जानकारियां दी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका..,!
हटाएंइस निष्पक्ष मंच पर टिप्पणी कर मुझे सदैव हर्ष की अनुभूति होती है। यहाँ अनावश्यक टोक- टाक नहीं है।
हटाएंछठपर्व पर मैंने एक लेख लिखा था। धर्म , परम्परा , आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक पहलुओं को दृष्टिगत कर, मेरी मंशा यह थी कि विभिन्न मंचों के माध्यम से इसे आपसभी के समक्ष रख सकूँ, सिर्फ चर्चामंच पर ही मेरे इस महत्वपूर्ण लेख को स्थान मिला। अतः मैं आप चर्चाकारों का ऋणी हूँ।
प्रभावशाली भूमिका सुसज्जित अत्यन्त सुन्दर प्रस्तुति । सभी सूत्र अति सुन्दर । मुझे इस प्रस्तुति में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद मीना जी
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद अनुराधा जी
हटाएंवाह!बहुत सुंदर प्रस्तुति अनु जी!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन विचारोत्तेजक समसामयिक भूमिका के साथ विविध रसों और विषयों की सुंदर रचनाओं से सजायी गयी प्रस्तुति.
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं.
चर्चामंच पर विचारोत्तेजक एवं समसामयिक रचनाओं के साथ साहित्य की अन्य विधाओं को भी समुचित स्थान मिलता है.
सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई अनु जी.
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका रविंद्र जी ,आपका सहयोग हमेशा से मिलता रहा है मुझे इसी वजह से इस क्षेत्र में भी कुछ कर पा रही हूं बस अभी और भी नई नई चीजें सीखना है... हमेशा साथ बनाए रखें धन्यवाद आपका
हटाएंबहुत आभारी हूँ अनु सारगर्भित भूमिका और विविधापूर्ण रचनाओं से सुसज्जित मंच पर मुझे भी शामिल करने के लिए।
जवाब देंहटाएंसस्नेह शुक्रिया।
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका आपके प्रोत्साहन से भरे शब्द हमेशा मुझे नए उर्जा से लबालब कर देती हैं धन्यवाद
हटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद कविता जी
हटाएंकहते हैं, हीरे की सच्ची परख़, किसी माहिर जौहरी को ही हो सकती है। रचनाओं का चयन आदरणीया अनु जी की श्रेष्ठ साहित्यिक दृष्टि की ओर इशारा करती है। दिन पर दिन अनु जी की यह विशेषता लोगों के समक्ष प्रदर्शित हो रही है। अंत में, मैं यही कहूँगा कि, अनु जी की रचनाओं का चयन करने की शैली बेजोड़ है। सादर 'एकलव्य'
बहुत-बहुत धन्यवाद ध्रुव जी परंतु इस क्षेत्र में मैं बिल्कुल ही नई हूं मुझे रविंद्र जी ने एवं अनीता जी ने बहुत मदद की और साथ ही साथ आप सभी ने सराहा यह सब चीजें मिलकर मुझे क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए बहुत मदद कर रही है
हटाएंबेहतरीन चर्चा प्रस्तुति प्रिय अनु.
जवाब देंहटाएंलाज़बाब रचनाएँ.सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ.
सादर
.बहुत-बहुत धन्यवाद आपका आपके बिना यह तो बिल्कुल भी संभव नहीं है
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक लिंकोंं की चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार
अनीता लागुरी जी।
जी शास्त्री जी धन्यवाद.... आपकी प्रतिक्रिया हौसलो में वृद्धि करती है
हटाएंकमाल की रचनाओं का संकलन था इस चर्चा में।
जवाब देंहटाएंआपकी चुनींदा लिंक्स सब के लिए एक उदाहरण सेट करती है।
यूं हीं बिंदास काम करती रहें।
बदलाव की जरूरत हो तो उसे भी अपनाने से मत कतराना।
🙏