मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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अनु की दुनिया : भावों का सफ़र पर Anita Laguri "Anu" ने
सरदी के मौसम में आकाश पर उगते हुए कुहरे की तुलना
धुएँ के बादल से अनोखे अनदाज में करते हुए लिखा है -
धुएँ के बादल
अधखुली खिड़की से,
धुएँ के बादल निकल आए,
संग साथ मे सोंधी रोटी की खुशबु भी ले आए,
सुलगती अंगीठी और अम्मा का
धुंआँ -धुंआँ होता मन..
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व्याकुल पथिक पर शशि गुप्ता शशि जी के ब्लॉग पर जीवन की पाठशाला से एक रचना देखिए-
ज़िदगी तूने क्या किया
जीने की बात न कर लोग यहाँ दग़ा देते हैं।
जब सपने टूटते हैं तब वो हँसा करते हैं।
कोई शिकवा नहीं,मालिक ! क्या दिया क्या नहीं तूने।
कली फूल बन के अब यूँ ही झड़ने को है।
तेरी बगिया में हम ऐसे क्यों तड़पा करते हैं...
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यह ग़ज़ल पढ़िए-
गहराई
एक टूटे हुए पत्ते ने जमीं पायी है ,
जड़ तक पहुंचा दे ,ये सदा लगायी है !
सादा कागज है मुंतज़िर कि आये गजल
क्या कलम में हमने भरी रोशनाई है...
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मन पाए विश्राम जहाँ पर Anita जी लिखती हैं-
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अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल जी
सभी प्रकार का साहित्य रचते हैं
सभी प्रकार का साहित्य रचते हैं
आज देखिए उनकी ये पैरोडी-
महा चुनावों पर एक पैरोड़ी ---
नगरी नगरी , होटल होटल , छुपता जाये बेचारा ,ये सियासत का मारा ....
चुनाव तक का साथ इनका , जीतने तक की यारी,आज यहाँ तो कल उस दल में , घुसने की तैयारी।नगरी नगरी , होटल होटल ...
चुनाव तक का साथ इनका , जीतने तक की यारी,आज यहाँ तो कल उस दल में , घुसने की तैयारी।नगरी नगरी , होटल होटल ...
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रोज़ की रोटी - Daily Bread पर देखिए-
हृदय
मार्क ट्वेन ने कहा, “आप यह नहीं जानते हैं कि आपको क्या चाहिए; परन्तु आप उसकी इतनी तीव्र लालसा रखते हैं कि उसके लिए आप मृत्यु का जोखिम भी उठा लेते हैं।” हमारा हृदय ही परमेश्वर का सच्चा घर है। जैसे कि चर्च के फादर अगस्टिन ने, उनके प्रसिद्ध कथन में, कहा है: “हे प्रभु आपने हमें अपने लिए बनाया है, और हमारे हृदय तब तक बेचैन रहते हैं जब तक कि वे आप में चैन न पा लें।”
और हृदय क्या है? वह हमारे अन्दर का एक गहरा रिक्त स्थान है जिसे केवल परमेश्वर ही भर सकता है। - डेविड रोपर
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लघुकथा दुनिया (Laghukatha Duniya) पर देखिए
पुस्तक समीक्षा:
'दृष्टि:
अशोक जैन द्वारा सम्पादित
लघुकथाओं की अर्द्धवार्षिक पत्रिका |
सुधेन्दु ओझा
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"लोकतंत्र" संवाद मंच पर 'एकलव्य' जी ने पत्रिका की नई टीम गठित की है।
चर्चा मंच की ओर से हार्दिक शुभकानाएँ।
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अन्त में स्वप्न मेरे ...पर दिगंबर नासवा जी की
एक उम्दा ग़ज़ल का आनन्द लिजिए-
एक उम्दा ग़ज़ल का आनन्द लिजिए-
हमारी नाव को धक्का लगाने हाथ ना आए
लिखे थे दो तभी तो चार दाने हाथ ना आए
बहुत डूबे समुन्दर में खज़ाने हाथ ना आए...
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जवाब देंहटाएंजो समाज की नजर में, कभी रहे बेकार।
वो अब अपने देश में, चला रहे अखबार।।
पत्रकारिता में हुआ, गोल आज किरदार।
विज्ञापन के नाम पर, चमड़ी रहे उतार।।
नाजायज जायज बना, करते रकम वसूल।
आय-आय के नाम पर, बिकते आज उसूल..
" बिकते उसूल "पर आपका कटाक्ष सामाजिक हालात को रेखांकित कर रहा है।
ईमानदारी की तलाश हम कहाँ करें, चौथा स्तंभ जिसकी हालात सुदामा की तरह था , वह छद्म कृष्ण बनने को आतुर है..।
वह राजनेताओं, अधिकारियों और धनपशुओं जैसा वैभवशाली होना के लिये अपनी कलम को गिरवी रख दे रहा है।
हमारे एक मित्र ने पत्रकारिता की हालात पर व्यंग्य करते हुये कहा था कि इस देश में पचास प्रतिशत नेता हैं, तीस प्रतिशत ठेकेदार और जो बचे हैं उन्हें पत्रकार समझें ..।
समाजसेवा से जुड़ा कोई भी मिशन जब प्रोफ़ेशनल हो जाएगा , तो उसके उसूल कैसे न बकते..?
पत्रकारिता में पिछले 26 वर्षों से मैं यही तो देख रहा हूँ.. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इसे और अधिक भ्रष्ट कर दिया है.. उसके कर्मचारियों के पैकेज सरकारी ए क्लास अफसरों से भी अधिक हैं..
और उस अर्थ नगरी में बेचारा सुदामा अपने ईमान -धर्म पर कब तक अटल रहे..।
परंतु सावधान , जब हम हर कार्य को स्वार्थ के तराजू पर तौलते हैं, तब हमारा सिद्धांत खंडित हो जाता है। मानवीय मूल्यों से उसका कोई सरोकार नहीं रहता है । वर्तमान राजनीति में यही तो हो रहा है । सत्ता प्राप्ति के लिए नैतिक- अनैतिक हर प्रकार के गठबंधन जायज़ हैं और समाज भी इसी मिलावट के दलदल में फंसता जा
रहा है।
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अनु जी की भावनाओं भरी रचनाएँ मन को छूने वाली रहती है.. अन्य रचनाएँ भी सुंदर है।
इस श्रेष्ठ मंच पर मेरी रचना को भी प्रमुखता दी गयी है। मैं आपका हृदय से आभारी हूँ, इसके साथ ही सभी को मेरा प्रणाम..।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम शास्त्री जी आपको मेरा सादर प्रणाम। कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण है। परन्तु जब इस दर्पण पर कुरीतियों, स्वार्थपरक और राजनीतिक मंशा की मैली चादर चढ़ने लगे तब यही साहित्य समाज के लिये उपयोगी नहीं घातक सिद्ध होने लगता है और तब यह समाज के छदम प्रतिबिम्ब को ही आपके समक्ष साहित्य की तश्तरी में परोसता नज़र आता है। यह हिंदी भाषा का दुर्भाग्य ही है कि आज इस भाषा की पत्रिका के संरक्षक और संपादक विदेशों में रहने वाले बने बैठे हैं जो कि भारतीय व्यवस्था और आम जनजीवन के कष्टों से कोसों दूर हैं। अब आप सभी हमें बताएं कि आपके घर की हालत आप से बेहतर कौन जान सकता है ! और दूसरी बात, क्या भारत में हिंदी भाषा विद्वान अपना सब कुछ बेचकर हिमालय चले गये या भारत में रहने वाले हिंदी लेखक ज्ञानी नहीं ? हम अपने आस-पास रहने वाले लेखकों को एक मुक़ाम दें न कि विदेश में रहने वाले लेखक, जो केवल हमारे देश को मीडिया के माध्यम से "नासा वाला टक-टकिया सैटलाइट" लगाकर, हमारे कष्टों एवं भावनाओं को मिथ्या ही महिमा मंडित करते रहते हैं। हम अपने साथ रहने और लिखनेवालों को आगे लाएं न कि विदेशों में रहने वाले लेखकों के पिच्छलग्गु बनकर रह जाएं। हम अपना मुक़ाम स्वयं तैयार करें ! हम स्वावलम्बी बन सकें ! मूलतः इन उद्देश्यों के साथ अक्षय गौरव पत्रिका की स्थापना की गई जिसमें हमारे सभी सदस्यों का जो कि संपादक मंडल: अक्षय गौरव पत्रिका डॉ. फखरे आलम खान,
जवाब देंहटाएंप्रोफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल, न्यायविद डॉ.चन्द्रभाल सुकुमार,विश्वमोहन,रवीन्द्र सिंह यादव,ध्रुव सिंह 'एकलव्य', साधना वैद,पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा, अनीता लागुरी 'अनु',विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता',सुधा सिंह 'व्याघ्र',शीरीं तस्कीन, रेणुबाला,पम्मी सिंह 'तृप्ति',आँचल पाण्डेय, मीना भारद्वाज,राजेंद्र सिंह विष्ट
भरपूर सहयोग दे रहे हैं। इस पत्रिका को आगे बढ़ाने में आप सभी ब्लॉगरों एवं स्वतन्त्र लेखकों का सहयोग अपेक्षित है। सादर 'एकलव्य'
सुन्दर सूत्र ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी गजल को स्थान देने के लिए ...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय। मेरे ब्लॉग को स्थान देने हेतु हृदय से आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंसादर,
डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंआपका आभार मयंक दा
जवाब देंहटाएंसरस चर्चा के लिए और शामिल करने के लिए हार्दिक आभार शास्त्रीजी ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई !
आभार शास्त्री जी। आप ब्लॉग चर्चा को जीवित रखे हुए हैं , यह बहुत सराहनीय कार्य है।
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