सादर अभिवादन।
आज की चर्चा में प्रस्तुत हैं कुछ नई-पुरानी रचनाएँ -
9 नवम्बर 2019 को अयोध्या के 134 साल पुराने राम जन्मभूमि-मस्जिद विवाद पर आये माननीय सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फ़ैसले पर पढ़िए आदरणीय शास्त्री जी की दोहावली-
न्याय मिला श्री राम को, न्यायालय
से आज।
अब मन्दिर निर्माण का, पूरा
होगा काज।।
दोनों पक्षों को मिला, उनका
अब अधिकार।
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अल्फ़ाज़ जुबां तक आते आते रुक जाते हैं
कलम उठाकर उनको लिखना भी चाहूँ,
तो चिड़िया बनकर उड़ जाते हैं
इधर उधर को मुड़ जाते हैं, छुप जाते हैं
अल्फ़ाज़ जुबां तक आते-आते रुक जाते हैं.....
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कुछ-कुछ खट्टे
कुछ
-कुछ मीठे
लम्हा-लम्हा चुन लिया
चिड़िया के
चुग्गे सा
भर
लिया दामन
में
मंथन ब्लॉग पर मीना भारद्वाज जी
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सूनी पथराई आँखें तब
भावशून्य हो जाती हैं
फिर वह अपनी ही दुश्मन बन
इतिहास वही दुहराती है......
फितूर है ये मगर मैं खम्भे के पास जाकर
नज़र बचाकर मोहल्ले वालों की
पूछ लेता हूँ आज भी ये
वो मेरे जाने के बाद भी आई तो नहीं थी
.. वो आई थी क्या !
भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट-व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट, रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं।
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कीर्ति!! क्या हुआ?कहाँ ध्यान रहता है तेरा.. कौनसी दुनिया में खोई रहती है यह लड़की।
कुछ नहीं माँ कुछ नहीं हुआ.....बस थोड़ी देर बाद बुलाया होता तो मैं झील की सैर भी कर आती।
कीर्ति उदास चेहरा लेकर उठकर कमरे में चली गई।
अब इसे क्या हुआ? कीर्ति की उदासी समझने की जगह सुमित्रा बड़बड़ाते हुए फैला हुआ दूध साफ करने लगी।
हौसले हाथ के कुछ
और थोडा बढ चले
दबा के फिर हाथ को
गुस्ताखी करी
हाथ ने
परम आदरणीय Ashutosh Rana जीआपसे मिलना,....!एक सपने के पूरे होने की खुशी दे गया आपसे मिलना,सकारात्मकता लिए सतत चलने की प्रेरणा दे गयाआपसे मिलना,जिंदगी के अनमोल पल दिये हैं आपने अपनत्व से भरपूर,पुण्य का प्रतिफल या मंदिर के प्रसाद सा लगाआपसे मिलना।शब्दों
में अभिव्यक्त कर न सकूँ वो अनुभूति, सखा भाव से श्याम के दर्शन सरीखा, गुरु की कृपा के बरसने जैसा,
चका-चौंध,
है ये
पल-भर,
ये तो
है, धुंधले
से सायों
का घर,
पर तेरा
साया, संग
रहता है
दिन-भर,
समेटकर, सायों
को रख
लेना,
सन्मुख, सत्य
के होना,
स्वयं को
ना खोना,
धुंधलाते सायों
सा, तुम
ना होना!
बिटिया, तुम
खूब बड़ी
हो जाना!
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ऐहो जेहिया खुशियां लेआवें बाबा नानका ऐहो जेहिया...
सारी दुनिया दे विच कोई ना गरीब होवे
ऐसा ना होवे जिनू रोटी ना नसीब होवे
रूकी मिसी सब नूं खवाईं बाबा नानका
ऐहो जेहिया खुशियां लेआवें बाबा नानका ऐहो जेहिया...
साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है | वो इसलिए समय के निरंतर प्रवाह के दौरान साहित्य के माध्यम से हम तत्कालीन परिस्थितियों और उनके प्रभाव से आसानी से रूबरू हो पाते हैं | सब लोग हर दिन असंख्य लोगों की समस्याओं और उनके जीवन के सभी रंगों को देखते रहते हैं शायद वे उनके बारे में सोचते भी हों पर उनकी पीड़ा उनकी खुशियों को शब्दों में व्यक्त करने का हुनर हर इंसान में नहीं होता , ये कार्य एक कलम का धनी इंसान ही बखूबी कर सकता है | आज रचनाधर्म
से जुड़े अनेक लोगों की रचनाएँ हमारी नजर से गुजरती हैं |
तो हाथ पकड़कर
खींच ले गये
सजाने ओर संवारने
अपनी जमात में
एक ओर किरदार शामिल करने
वो तुम नहीं
हम थे..!!
मूक-बधिर किये गये
भेडों के झुंड!!!
सब कुछ पढ़कर हंसी निकल गयी अचानक
तब किसी ने धीरे से कान में कहा
"तु उदास क्यूँ हो रहा है अगर तूने कुछ नहीं लिखा
ये जो सबने लिखा ये तो एक मशीन ने लिखा "
blog some new
पर अश्विनी ढुंढाड़ा
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बरगद
की छाँव बन
भविष्य की अँगुली
थाम
जीवन की
राह में मील के
पत्थर बन
पूनम की साँझ में
मृदुल मौन बनकर वे
पराजय का
दुखड़ा भी न रो पाये
तीक्ष्ण असह वेदना
से लबालब
अनुभूति का जीवन
जीकर
पल प्रणय में भी नहीं खो पाये
तभी उन्हें
मौन में फिर धँसाया था
मैंने |
गूँगी गुड़िया पर अनीता सैनी जी
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
बुझ जाए
जवाब देंहटाएंये आग
सदा के लिए
ताकिआगे कोई मंजिल
निर्माण की
दरकार ना बचे
कभी |
अंत में यही कहना चाहूंगी कि भौतिकता की दौड़ में अंतहीन मंजिलों की ओर भागते युवाओं के बीच एक अत्यंत प्रतिभाशाली युवा कवि का समाज के विषय में ये संवेदनाओं से भरा चिंतन शीतलता भरी बयार की तरह है , जो ये सोचने पर विवश करता है कि हम क्यों समाज का वो सच देखने की इच्छा नहीं रखते -जो हमारे आँखें फेर लेने के बावजूद भी समाज का सबसे मर्मान्तक सच है | कवि ने उस नंगे सच को देखने का सार्थक प्रयास किया है | अपने आत्म कथ्य को कवि ने '' मैं फिर उगाऊँगा '' सपने नये '' नाम दिया है || सचमुच प्रखर कवि ध्रुव सिंह 'एकलव्य ' साहित्य समाज में सामाजिक चिंतन का एक नया अध्याय लेकर आये हैं ,
रेणु दी के माध्यम से एक युवा रचनाकार की प्रतिभा को जानने का अवसर मिला। साहित्य मेरी दृष्टि में सिर्फ लौकिक प्रेम की चासनी मे डुबोयी गयी रचनाएँ ही नहीं है, वरन् सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयों को प्राथमिकता देना है...
सुंदर मंच के लिये आपने श्रेष्ठ रचनाओं का चयन किया है।
प्रणाम।
व्याकुल पथिक: मन, मौन और मनन https://gandivmzp.blogspot.com/2019/02/blog-post_3.html?spref=tw
जवाब देंहटाएंमेरे इस लिख को भी पढ़े की कृपा करें, मौन पर कभी लिखा था..।
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सूत्रों से सजा विविध विचारों और भावों का संगम लिए मनमोहक पुष्पगुच्छ सा प्रस्तुतिकरण । मुझे इस प्रस्तुति में स्थान देने के लिए सादर आभार रविन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंकों के साथ परिश्रम के साथ की गयी चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
दोनों पक्षों को मिल गया उनका अधिकार पर अब देखना यह है कि यह अपने अधिकारों के साथ कितना न्याय कर पाती हैं.... पर हां यह जरूर राहत की बात रही कि 134 साल पुराने इस विवादास्पद प्रकरण की एक तरह से शांतिपूर्ण ढंग से सुनवाई आम जनों को सुकून की सांस दे गई पर वो अलग बात है कि किसको क्या मिला यह सिर्फ खुदा जानते हैं
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह ही आपके द्वारा चयनित लिंको को पढ़ने का अलग ही आनंद मिलता...
वीनस जोया जी की "वो आई थी क्या," पढ़कर मन रोमानी हो गया और #रेनू बाला जी के द्वारा #ध्रुव जी की किताब चीख़ती पुकारे पर की गई टिप्पणी ने ध्रुव जी की किताब पढ़ने के लिए व्याकुलता बढ़ा दी...!!
मेरी रचना को भी शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
कृपया चीखती पुकारें को 'चीख़ती आवाज़ें' पढ़ें।
हटाएंधन्यवाद।
गुलज़ार जी की लिखी नज़्म बहुत समय पहले पोस्ट की थी। ... ज़िंदगी ने कुछ इस तरह घेर लिया के खुद ही भूल चुकी थी।
हटाएंसमय देने और स्नेहिल शब्दों के लिए आभार अनीता जी
आप उत्साह बढ़ा देती हैं मेरा। .
बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय.
जवाब देंहटाएंमुझे स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार.
सादर
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका आभार सर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसुरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र भाई , आपकी विशेष प्रस्तुती में अपनी समीक्षा को पाकर बहुत अच्छा लग रहा है |आजकल इस समीक्षा को साहित्य के गुनीजनों द्वारा सराहा और सम्मानित किया जा रहा है तो इस समीक्षा पर मुझे और भी गर्व की अनुभूति हो रही है |प्रिय ध्रुव को एक बार फिर से बधाई और शुभकामनायें | सभी लिंक देख लिए हैं पर आजकल प्रतिक्रिया बहुत कम लिख पाती हूँ | सभी रचनाकारों ने अच्छा लिखा है | सभी को बधाई और शुभकामनायें | चर्चा मंच के नए बदलाव बहुत अच्छे लग रहे हैं सादर आभार |
कृपया--------- आजकल इस समीक्षा को -- के स्थान पर आजकल इस पुस्तक को पढ़ें | गलती के लिए खेद है |
हटाएंचर्चामंच की एक और प्रभावपूर्ण प्रस्तुति। आज के अंक को देखते ही, सभी रचनाओं ने मन को लुभाया। अपनी रचना को यहाँ पाकर अत्यंत हर्ष हो रहा है जिसके लिए आदरणीय रवींद्रजी की बहुत बहुत आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार चर्चामंच लाजवाब प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंंको का संकलन... मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद, रविन्द्र जी !
बेहतरीन सूत्रों से सजा मनमोहक प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंGULZAR SAHAB KE BAAR ME KUCH Kahun ..itnaa dam nhi mujhme
गुलज़ार जी की लिखी नज़्म बहुत समय पहले पोस्ट की थी। ... ज़िंदगी ने कुछ इस तरह घेर लिया के खुद ही भूल चुकी थी। .आपका आभार फिर से मिलवाने के लिए
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय