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गुरुवार, नवंबर 07, 2019

"राह बहुत विकराल" (चर्चा अंक- 3512)

मित्रों!
गुरुवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक। 
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 
--
चर्चा के क्रम में सबसे पहले देखिए
मेरे कुछ दोहे- 
--
हिन्दी-आभा*भारत पर चर्चा मंच के चर्चाकार  
आदरणीय Ravindra Singh Yadav ने 
अमर बेल पर 7 दिसम्बर, 2018 को 
अपनी प्रविष्टि (वर्ण पिरामिड ) के रूप में इस प्रकार पोस्ट की थी- अमरबेल मैं
रहूँ
सदैव
हरी-भरी
पैरासूट-सी
आच्छादित होती
मेज़बान पेड़ पे…
--
चर्चा मंच की चर्चाकार अनीता सैनी ने 
गूँगी गुड़िया पर देश के दो अनुशासि्त संगठनों को लेकर 
अपने विचार प्रकट करते हुए अपनी अभिव्यक्ति इस प्रकार दी है- 
जनाब कह रहे हैं ख़ाकी और काला-कोट पगला गये हैं

--
अनु की दुनिया : भावों का सफ़र पर चर्चा मंच की चर्चाकार  
कु. Anita Laguri "Anu" अपने विचारों को  
साझा करते हुए अपनी अभिव्यक्ति इस प्रकार दी है- 
तुम्हारी मृदुला..,!!
अपनी कलम चलाते हुए लिखा है- 
अपनी 'पोनी-टेल' में …
--
आपकी सहेली - ज्योति देहलीवाल ने वर्तमान परिवेश पर 
अपना दृष्टिकोण कुछ इस प्रकार से व्यक्त किया है- 
खोखला हैं लिव इन रिलेशनशिप का रिश्ता
--
मेरी दुनिया पर विमल कुमार शुक्ल 'विमल'  ने  
एक ग़ज़ल प्रस्तुत की है- 
सारी उमर जाती
शमा जलने से डर जाती, पतिंगे की सँवर जाती।  
पता है इश्क का खतरा, मगर वो इश्क कर जाती... 
--
डॉ. हीरालाल प्रजापति एक मजेदार ग़ज़ल का आनन्द लीजिए- 
ग़ज़ल : 280 -  लफ़ड़ा है
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Sudhinama पर श्रीमती Sadhana Vaid  ने 
अपने यात्रा प्रसंग के तीसरे भाग को 
पाठकों के साथ निम्नवत साझा किया है- 
ताशकंद यात्रा - ३
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श्रीमती KAVITA RAWAT  ने लिखा है- 
वीरानियाँ नहीं होती
--
कविता "जीवन कलश" पर पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ने 
एक नज् को चित्र पर इस प्रकार प्रस्तुत किया है- 
दूर हैं वो
--
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय ने दिल्ली में हुए 
वकीलों और पुलिस के बीच के संघर्ष पर 
प्रकाश डालते हुए कहा है- 
ना काहू से दोस्ती ....
पुलिस और वकील एक ही परिवार के दो सदस्य से होते हैं, दोनों के लक्ष समाज को क़ानून सम्मत नियंत्रित करने के होते हैं, पर दिल्ली में जो हुआ या हो रहा है उसकी जितनी निंदा की जाए कम होगी. मैं अपने नजदीकी लोगों के उन परिवारों को जानता हूँ जिसमें एक भाई पुलिस में तथा दूसरा एडवोकेट के बतौर कार्यरत हैं. पुलिस में प्राय: छोटे पदों पर कम पढ़े लिखे लोग नियुक्त रहते हैं जबकि सभी वकील कानूनदां ग्रेज्युएट होते हैं .सच तो ये है कि आज भी पुलिस की मानसिकता व कार्यप्रणाली ब्रिटिस कालीन चल रही है... 
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लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम ने 
आँखों को रेगिस्तान जैसी बंजर बताॉते हुए लिखा है
रेगिस्तान
आँखें अब रेगिस्तान बन गई हैं   
यहाँ अब न सपने उगते हैं न बारिश होती है   
धूलभरी आँधियाँ चल रही हैं   
रेत पे गढ़े वे सारे हर्फ मिट गए हैं ... 

--
शब्दों का दंगल पर मेरे द्वारा  की गयी 
--

10 टिप्‍पणियां:

  1. चर्चामंच का आज का संकलन देख कर मन खुश हो गया दोहों के माध्यम से जिस तरह से आपने अपने आप का आंकलन किया है... वह काबिले तारीफ रविंद्र जी हर विद्या में माहिर है ....उनकी रचना धर्मिता साफ झलकती है समसामयिक विषयों पर अनीता जी की कलम बहुत पैनी चलती है... live in relationship के ऊपर लिखना वाकई में बहुत ही हिम्मत की बात है ज्वलंत विषय पर चर्चा छेड़ी है ज्योति जी ने..... साधना वैद जी के साथ ताशकंद की यात्रा वाकई में स्मरणीय रहे पुलिस और वकील कभी किसी के दोस्त नहीं होते इनकी इनकी आपस की लड़ाई ने दोनों की कलई खोल कर रख दी आप दोनों आम आदमियों की मदद के लिए चुने गए हो आप लोग उनके मदद करने की वजह खुद ही उलझ कर पूरी दुनिया में अपनी थू थू तो करवा रहे हैं ....अच्छा लेख लिखा पुरुषोत्तम पांडे जी ने कुल मिलाकर बहुत ही बेहतरीन संकलन तैयार हुई है मेरी रचना को भी शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद...!

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  2. जी ,सदैव की तरह सुंदर रचनाओं से सजा मंच । मृदुला की चिट्ठी .. पढ़ बचपन की याद आ गयी.. अब कहाँ कोई करता है ,इसतरह से प्रियतम का इंतजार, मोबाइल पर वीडियो कॉलिंग है न, परंतु वह मधुरता अब नहीं है, जो चिट्ठी की प्रतीक्षा में होती थी। अनु जी ने बहुत भावपूर्ण लिखा है, तो वहींं अनिता सैनी जी ने खाकी और काले कोर्ट की जंग को शब्दद दिया है। खाकी हो, काला कोर्ट हो अथवा खादी हो, हाल सभी का एक है। स्वार्थ सभी को प्रिय है। समाजसेवा सिर्फ इनका मुखौटा होता है।
    साधना वैद जी की य यात्रा का संक्षिप्त वर्णन भी पढ़ा । सभी को मेरा प्रणाम।

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  3. अच्छे संकलन करने हेतु धन्यवाद मयंक दा

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  4. बहुत ही बढिया संकलन। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

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  5. आज दिल्ली में हालात ऐसे हैं कि वकील न्याय माँग रहे हैं, पुलिस सुरक्षा माँग रही है और जनता साँस लेने के लिए ऑक्सीजन !!!
    सुंदर एवं समसामयिक रचनाओं का बेहतरीन संकलन। आभार।

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  6. सुप्रभातम् शास्त्री जी !!!
    चर्चा-मंच के इस अंक में मेरी रचना साझा करने के लिए आपका हार्दिक आभार
    आपकी दो पंक्तियाँ मन की बात (प्रधानमंत्री वाली नहीं) का समर्थन कर रही है मानो ...
    "शब्द और व्याकरण का, मुझे नहीं कुछ ज्ञान
    इसीलिए करता नहीं , मैं झूठा अभिमान"
    वैसे तो आपकी पूरी रचना ही मन की बात कह रही ..
    सादर नमन ...

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  7. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

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  8. आज के मंच पर सभी रचनाएं एक से बढ़ कर एक ! मेरे यात्रा वृत्तांत को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  9. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सर.
    सभी रचनाएँ बेहतरीन है मुझे स्थान देने हेतु तहे दिल से आभार
    सादर

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  10. बहुत सुंदर चर्चा को लेकर आयी आदरणीय शास्त्री जी की प्रस्तुति. बेहतरीन लिंक संयोजन. सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं.
    मेरी रचना को चर्चामंच जैसे प्रतिष्ठित पटल पर प्रदर्शित करने के लिये सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी.

    जवाब देंहटाएं

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