सादर अभिवादन।
"सीने में जलन और आँख में तूफ़ान-सा क्यों है।
इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यों है।।"
फ़िल्म 'गमन' (1978) की एक ग़ज़ल का शेर जिसे मशहूर शायर शहरयार साहब ने क़लमबद्ध किया जो आज दिल्ली की जनता के हालात बयां करता हुआ जी उठा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक़ दिल्ली के अनियंत्रित एवं असहनीय प्रदूषण के चलते यहाँ के रहवासियों की औसत आयु 10 वर्ष कम हो जाएगी। पर्यावरण के प्रति हमारी फ़ैशनेबल चेतना धरातल पर कोई परिणाम नहीं ला सकती। इसी हाहाकार के कोलाहल में वक़्त गुज़रता रहेगा और प्रदूषण लोगों का जीवन लीलता रहेगा।
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लीजिए पेश-ए-नज़र हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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जीवन के अंदर, जीवन के बाहर जो घट रहा है
उसका सुन्दर विश्लेषण इस रचना में किया गया है-
जिंदगी इन दिनों,
जीवन के अंदर, जीवन के बाहर
जिनके हाथ में झंडे हैं,
किसी भी रंग के
उनके पास कान नहीं हैं साबूत
जिनके पास कान हैं बचे हुए थोड़े भी
उनकी जुबान नहीं
भाषा की चौहद्दी में
भाषा जय जय में सिमटकर रह गई है
जीवन जय के वेष में
क्षय की शंकाओं से ग्रस्त
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ऐसे कवि हैं जिनकी पकड़
हिन्दी की सभी विधाओं में हैं।
आज देखिए उनकी बाल रचना--
बालगीत
"नाम गिलहरी-बहुत छरहरी,"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
बैठ मजे से मेरी छत पर,
दाना-दुनका खाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
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इन्सानी प्रवृत्ति पर एक शानदार रचना निम्न लिंक पर भी है-
मौन होता मनुष्य..!!
उसका सुन्दर विश्लेषण इस रचना में किया गया है-
जिंदगी इन दिनों,
जीवन के अंदर, जीवन के बाहर
जिनके हाथ में झंडे हैं,
किसी भी रंग के
उनके पास कान नहीं हैं साबूत
जिनके पास कान हैं बचे हुए थोड़े भी
उनकी जुबान नहीं
भाषा की चौहद्दी में
भाषा जय जय में सिमटकर रह गई है
जीवन जय के वेष में
क्षय की शंकाओं से ग्रस्त
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ऐसे कवि हैं जिनकी पकड़
हिन्दी की सभी विधाओं में हैं।
आज देखिए उनकी बाल रचना--
बालगीत
"नाम गिलहरी-बहुत छरहरी,"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
बैठ मजे से मेरी छत पर,
दाना-दुनका खाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
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इन्सानी प्रवृत्ति पर एक शानदार रचना निम्न लिंक पर भी है-
मौन होता मनुष्य..!!
मैंने प्रतिक्षण इंसानी
प्रवृत्ति को मौन होते देखा है
मगर उनका मौन
उतना ही रौद्र औ
शापित होता है जितना कि
एक मुलायम मासूम खरगोश को
मार डालने के बाद
ज़ेहन में आती
-------
इस क्रम में ख्वाहिशों पर लिखी निम्न रचना भी देख लीजिए-
क्या मैं कयामत हूं
तुम ही कहो न
क्या मैं ख्वाहिश को
देर तक याद में तेरी ….
जागने की …
इजाज़त दूं ?
--------
जिसकी कोई मंजिल नहीं होती है वो कहलाता है -
अनजान सफर
पुराने रास्तो पर वो चलते है
जिनकी कोई मंज़िल नहीं होती
वो जो सपने देखते है
अपने रास्ते बनाते मिटाते
निकल जाते है, अनजान सफर
-------
कवि- लक्ष्मीकांत मुकुल ने अपने अनोखे अन्दाज में
निम्न अभिव्यक्ति को पोस्ट किया है-
हरेक रंग में दिखती हो तुम /
कवि- लक्ष्मीकांत मुकुल
चूल्हे की राख- सा नीला पड़ गया है
मेरे मन का आकाश
तभी तुम झम से आती हो
जलकुंभी के नीले फूलों जैसी खिली-खिली
तुम्हें देखकर पिघलने लगती हैं
दुनिया की कठोरता से सिकुड़े
मेरे सपनों के हिमखंड
--------
अगर बख़्श दे मौत
कहा मैंने गोरे से गोरे को काला ,
सताइश मैं अब सबकी खुलकर करूँगा ।।
महासूम बनकर रहा अब क़सम से ,
फ़ैय्याज़ मैं कर्ण जैसा बनूँगा ।।
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प्रवृत्ति को मौन होते देखा है
मगर उनका मौन
उतना ही रौद्र औ
शापित होता है जितना कि
एक मुलायम मासूम खरगोश को
मार डालने के बाद
ज़ेहन में आती
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इस क्रम में ख्वाहिशों पर लिखी निम्न रचना भी देख लीजिए-
क्या मैं कयामत हूं
तुम ही कहो न
क्या मैं ख्वाहिश को
देर तक याद में तेरी ….
जागने की …
इजाज़त दूं ?
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जिसकी कोई मंजिल नहीं होती है वो कहलाता है -
अनजान सफर
पुराने रास्तो पर वो चलते है
जिनकी कोई मंज़िल नहीं होती
वो जो सपने देखते है
अपने रास्ते बनाते मिटाते
निकल जाते है, अनजान सफर
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कवि- लक्ष्मीकांत मुकुल ने अपने अनोखे अन्दाज में
निम्न अभिव्यक्ति को पोस्ट किया है-
हरेक रंग में दिखती हो तुम /
कवि- लक्ष्मीकांत मुकुल
चूल्हे की राख- सा नीला पड़ गया है
मेरे मन का आकाश
तभी तुम झम से आती हो
जलकुंभी के नीले फूलों जैसी खिली-खिली
तुम्हें देखकर पिघलने लगती हैं
दुनिया की कठोरता से सिकुड़े
मेरे सपनों के हिमखंड
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अगर बख़्श दे मौत
कहा मैंने गोरे से गोरे को काला ,
सताइश मैं अब सबकी खुलकर करूँगा ।।
महासूम बनकर रहा अब क़सम से ,
फ़ैय्याज़ मैं कर्ण जैसा बनूँगा ।।
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मेरी इस प्यास की कही तो ताब होगीं....
जीवन की यह श्रेष्ठ है कुँजी,
प्यार,एकता जिसकी पूँजी ।
सद्गुण का मन वास है रहता,
ज्ञान रूपी भंडार है बहता।।
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भारत के मध्य भाग मध्यप्रदेश में क्या है?
देखिए निम्न रचना में-
विन्ध्य, सतपुडा ,शिखर यहाँ
हरियाली है मुखर यहाँ ।
सिन्ध, बेतवा, क्षिप्रा चम्बल
ताप्ती और नर्मदा यहाँ ।
कण-कण जिसके बसे महेश
अपना मध्य-प्रदेश ।
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अतीत का वर्णन निम्न रचना में साकार हुआ है
निम्न रचना में-
अतीत के झरोखें से
मेरी नजर जैसे ही घड़ी पर गई
ये सारे दृश्य चलचित्र की भाँति मेरी आँखों के आगे से
ये सारे दृश्य चलचित्र की भाँति मेरी आँखों के आगे से
गुजरने लगे,चार बजते ही घाट पर जाने के लिए
बिलकुल यही शोर होता था। चार दिन तक
बिलकुल यही शोर होता था। चार दिन तक
घर का माहौल कितना खुशनुमा होता था ,
सब अपने अपने जिम्मेदारियों को निभाने में रत
सब अपने अपने जिम्मेदारियों को निभाने में रत
रहते साथ साथ एक दूसरे से हँसी ठिठोली भी करते रहते,
शाम घाट के दिन भी सुबह ढाई
शाम घाट के दिन भी सुबह ढाई
तीन बजे तक उठकर पकवान बनाने में लग जाना ,
बनाते तो दो तीन ही लोग थे पर सारा परिवार जग जाता
--------
श्रीमती अनीता सैनी जालजगत की ऐसी कवयित्री हैं जो
अनवरत रूप से एक नये विषय-को
अपने ब्लॉग गूँगी गुड़िया में उकेरती हैं।
आज देखिए उनकी निम्न रचना-
बनाते तो दो तीन ही लोग थे पर सारा परिवार जग जाता
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श्रीमती अनीता सैनी जालजगत की ऐसी कवयित्री हैं जो
अनवरत रूप से एक नये विषय-को
अपने ब्लॉग गूँगी गुड़िया में उकेरती हैं।
आज देखिए उनकी निम्न रचना-
शिकवा करूँ न करूँ शिकायत तुमसे
परवान चढ़ी न मोहब्बत खेतिहर की ,
जल गयी पराली और बिखर गयी आस्था खलिहान में,
खिलौना समझ खेलता रहा ज़ालिम,
डोर अब किसी और के हाथों में थमाता गया |
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परवान चढ़ी न मोहब्बत खेतिहर की ,
जल गयी पराली और बिखर गयी आस्था खलिहान में,
खिलौना समझ खेलता रहा ज़ालिम,
डोर अब किसी और के हाथों में थमाता गया |
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
जवाब देंहटाएंवसुंधरा का"मानव"करता कुटिल मंथन
वासुकी सा फुफकार प्रदूषण
है कोई नीलकंठ ?
हलाहल का करे पान ...
कुछ माह पूर्व मैंने भी एक रचना लिखी थी -
" प्रदूषण कर रहा है अट्टहास "
उसी की ये पँक्तियाँ हैं।
कल ही पढ़ रहा था कि यह रिपोर्ट -
" दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर सामान्य से 20 गुना ज्यादा, नोएडा में भी स्कूल 5 नवम्बर तक बंद रहेंगें। दिल्ली एयरपोर्ट पर विजिबिलिटी कम, 32 उड़ानें डायवर्ट। "
लेकिन, प्रश्न यह है कि जब मांझी नाव डुबोये उसे कौन बचाए..
आपकी प्रस्तुति की भूमिका जितनी सशक्त है, उतनी ही मंच पर रचनाओं को निखारने के लिये उसे सजाने का ढंग भी..
आपसभी को प्रणाम।
विकास की परिभाषा को बड़ाने के लिए जब पर्यावरण से छेड़छाड़ की जाती है ..पेड़ों को काटा जाता है तब ऐसी ही दमघोटू वातावरण से इंसानों को दो चार होना पड़ता है,
जवाब देंहटाएंअभी दो चार दिन पहले ही अपनी एक कविता में ,ऐसी ही परिस्थितियों का जिक्र किया था.."साँसो को जब तरसोगे "रुदन हमारी याद आएगी... ऐसा विकास किस काम का जब उन्हें देखने को हम जीवित ही न हो.....सार्थक भूमिका...👍
हमेशा की तरह ही शानदार लिंक्स का चयन..खुशी होती है जब खुद के मन माफ़िक पठन सामग्री सामने मौजूद हो.....!#कवि लक्ष्मीकांत मुकुल जी को पढ़ना यक़ीनन बेहतरीन अनुभूति दे गया.."चूल्हे की राख सा नीला पड़ गया मन का आकाश वाह..!!👌
अद्यतन लिंकों के साथ सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
वाह।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेह्तरीन प्रतुति।खासकर अपने जिस अंदाज से रचनाओ को रूबरू करवाया हैं वो सीखने लायक हैं।
बहुत बहुत आभार।
सुन्दर प्रस्तुति रवींद्र जी ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ,सभी रचनाकरों को ढेरों शुभकामनाएं ,मेरे मन के भावों को चर्चामंच पर स्थान देने के लिए भी तहे दिल से शुक्रिया सर ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंउत्तम और सार्थक चर्चा समकालीन मुद्दों पर। बिहारी धमाका ब्लॉग का लिंक साझा करने हेतु साधुवाद।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति सर
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई.मुझे स्थान देने हेतु सहृदय आभार आदरणीय
सादर
सभी रचनाएँ अपनी सार्थकता बखूबी पेश कर रही है। अप्रतिम।
जवाब देंहटाएंआभार अनीता जी , मैं लिंक्स आज देख पाई हूं . पढ़ती हूं . मेरी कविता को चुना है धन्यवाद
जवाब देंहटाएं