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बुधवार, नवंबर 13, 2019

"गठबन्धन की नाव" (चर्चा अंक- 3518)

मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक। 
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 
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उच्चारण पर सबसे पहले देखिए  
गंगा स्नान से जुड़ा मेरा एक संस्मरण-
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आज के बनावटी युग में गूँगी गुड़िया पर 
अनीता सैनी जी  की अभिव्यक्ति देखिए- 
मुख पर वो मुस्कान कैसे लाऊं ? 
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Anita Laguri "Anu" जी ने 
अपने आलेख में सम्वाद में प्यार को 
निम्न प्रकार से परिभाषित किया है- 

संवाद में प्यार क़ायम रहता है 

मेरी फ़ोटो
"वाह...!  क्या जादू है तुम्हारे हाथों में,
तुम्हारे हाथों से बनी चाय पीकर तो लगता है कि जन्नत के दर्शन हो गये। 
 सच कहता हूँ सुधा, शादी की पहली सुबह और आज 50 साल बीत जाने के बाद भी तुम्हारे हाथों की बनी चाय में कोई फ़र्क़ नहीं आया।" 
श्याम जी कहते-कहते मुस्कुरा दिये।
 "चलो जी, आपको भी क्या शैतानी सूझ  रही है... बिना चीनी की चाय में क्या स्वाद! क्या आप भी मुझे सुबह- सुबह यों ही बना रहे हैं...?"
ऐसा कहकर सुधा बालकनी के बाहर देखने लगी... 
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न्याय के मन्दिर में न्याय नहीं होगा तो और कहाँ होगा?
क्षितिज ब्लॉग पर रेणु जी ने लिखा है- 
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ठहराव ब्लॉग परलोकेश नदीश जी की अभिव्यक्ति 
निम्नवत् है-  
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उन्नयन (UNNAYANA) पर udaya veer singh  जी ने 
गुरु नानक देव जी की 550वीं जयन्ती पर 
रब का आभार व्यक्त किया है- 
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जनकवि धूमिल जी की जन्म जयन्ती पर  
ख़ुदा के वास्‍ते ! पर Alaknanda Singh  जी ने  
उनकी किछ रचनाओं को प्रस्तुत किया है- 

ड्रॉइंग रूम में बैठकर नहीं गढ़ी जातीं  

धूम‍िल जैसी कव‍ितायें 

बड़ी बड़ी ड‍िग्र‍ियां हास‍िल कर लेना अच्छी कव‍िता गढ़ने से ब‍िल्कुल ही अलग है तभी तो सुदामा पाण्डेय धूम‍िल जैसे कव‍ि हमें ये रहस्य बताने को पैदा होते हैं क‍ि कव‍िता उच्चश‍िक्ष‍ितों की बपौती नहीं है। क‍िसी कव‍िता को क‍ितनी गहराई से गढ़ते रहे धूम‍िल यह तो उनकी कुछ रचनायें पढ़कर ही मालूम हो जाएगा। आज यान‍ि 9 नवंबर उनकी जन्म त‍िथ‍ि है , धूमिल का जन्म 9 नवंबर 1936 को वाराणसी में हुआ था। वे अपनी क्रांतिकारी और प्रतिरोधी कविताओं के लिए जाने जाते हैं। आप उन्हें हिंदी कविता के ‘यंग एंग्री मैन’ कह सकते हैं... 
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हिन्दी-आभा*भारत पर Ravindra Singh Yadav जी की 
इस कालजयीरचना का भी मजा लीजिए- 

विकास की सीढ़ियाँ  


यह सड़ाँध मारती
आब-ओ-हवा 
भले ही
दम घोंटने पर
उतारू है,
पर अब करें भी
तो क्या करें...
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स्वास्थ्य-सुख पर Sushil Bakliwal जी ने  
तन्दुरुस्ती हजार नेमत के महत्व को  
परिभाषित करते हुए कहा है-   
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वर्मतमान परिपेक्ष्य में 
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मुकेश कुमार सिन्हा जी लिखते हैं- 
ब्यूटी लाइज इन द आइज ऑफ द बीहोल्डर 
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मेरी भावनायें...पर रश्मि प्रभा जी की  
रचना का भी आनन्द लीजिए- 
मेरे सहयात्री 
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डॉ. हीरालाल प्रजापति ने एक ग़ज़ल को पोस्ट किया है- 

ग़ज़ल : 281 -  

दिला 

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श्री मनोज कुमार ने पक्षी दिवस पर अपनी पोस्ट में बताया है-

12 नवम्बर राष्ट्रीय पक्षी दिवस

प्रत्येक वर्ष 12 नवम्बर को भारत के मशहूर पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी डॉ. सालिम अली के जन्मदिवस के अवसर पर राष्ट्रीय पक्षी दिवस’ मनाया जाता है।
डॉ. सालीम अली का पूरा नाम डॉ. सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली है। वे एक भारतीय पक्षी विज्ञानीवन्यजीव संरक्षणवादी और प्रकृतिवादी थे, जिन्हें बर्ड मैन ऑफ़ इंडिया” के रूप में भी जाना जाता है। वह भारत और विदेशों में व्यवस्थित पक्षी सर्वेक्षण करने वाले पहले वैज्ञानिकों में से एक थे। डॉ.सलिम अली का जन्म 12 नवम्बर 1896 में बॉम्बे के एक सुलेमानी बोहरा मुस्लिम परिवार में हुआ था... 
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झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव जी ने 
एक प्रेरक लघु कथा को पोस्ट किया है-

लघुकथा : एहसास संस्कारों का

मेरी फ़ोटो
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Sudhinama पर Sadhana Vaid जी की लघु कथा विडम्बना 
आपको ऐतिहासिक गतिविधियों के लिए 
जानकारीपरक सिद्ध होगी- 

विडम्बना - एक लघुकथा

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अनकहे किस्से पर Amit Mishra 'मौन' ने 
दूरियों को परिभाषित करते हुए 
अपनी अभिव्यक्ति दी है- 

दूरियाँ

तुम्हारी गहरी आँखों से टकराना अभी भी मेरी शर्मीली आँखें झेल नही पाती और प्रत्युत्तर में मेरी पलकें झुक कर तुम्हारे विजयी होने का संदेशा देती हैं।
तुम्हारी आवाज़ आज भी मेरे कानों में गुदगुदी करते हुए मेरे मस्तिष्क में प्रवेश करती है और मेरी सोच को तुम्हारे अधीन कर देती है... 
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मंथन पर Meena Bhardwaj ने  
पति पत्नी के मध्य फैसले पर 
अपनी कलम चलाते हुए लिखा है- 

"फैसला" 

उसकी दिनचर्या तारों भरी भोर से आरम्भ हो अर्द्धरात्रि में नीलाकाश की झिलमिल रोशनी के साथ ही समाप्त
होती थी । अक्सर काम करते करते वह प्रश्न सुनती - "तुम ही कहो ? कमाने वाला एक और खाने वाले दस..मेरे बच्चों का भविष्य मुझे अंधकारमय ही दिखता है ।" और वह सोचती रह जाती..,तीन माह पूर्व की नवविवाहिता के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था...
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अन्त में कुछ दोहे वर्तमान पर 
--

12 टिप्‍पणियां:

  1. रचनाएँ तो आज मंच पर सभी एक से बढ़ कर एक हैं, परंतु इस संस्मरण लेख में पाँच दशक पूर्व की बात है..
    . अब जमाना बहुत बदल गया है। स्वागत- सत्कार मात्र चाय और नमस्ते तक ही सिमट कर रह गया है। आज तो वह निश्छल प्यार और नाते-रिश्तों के मतलब ही बदल गये हैं...
    बस कहना चाहूँगा कि अभी तो यह प्रारम्भ ही, जिसे देख संवेदनशील मनुष्य का हृदय चित्कार कर रहा है। घर आते ही बच्चे स्कूल-कोचिंग और होमवर्क से मुक्त होने के बाद मोबाइल हाथ में लिए अपनी दुनिया में खो जा रहे हैं। उनके अभिभावकों की दुनिया में पड़ोसियों एवं नाते -रिश्तेदारों की तो छोड़ें ,अपने सास-ससुर के लिए भी स्थान नहीं है।
    एक कठोर सत्य तो यह भी है कि कतिपय रचनाकार बातें तो खूब मानवीय संवेदनाओं की अपनी लेखनी से करते हैं , परंतु उनका हृदय भी उसी तरह से मिलावटी ,बनावटी और दिखावटी है। वे आदरणीय शास्त्री जी की तरह निश्छल नहीं हैं, न ही उनके मंच भी चर्चामंच की तरह निष्पक्ष हैंं। कुछ मंच ऐसे भी हैं, जहाँ कतिपय चर्चाकार द्वेषभाव में बढ़िया से बढ़िया समसामयिक रचनाओं से भी नजर फेर लेते हैंं।
    फिर कैसे आएगा यह निश्छल प्यार ..?
    असत्य का आवरण ओढ़ कर न तो हम परिवार में प्यार जगह सकते हैं न ही समाज में ...

    प्रणाम...

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  2. सुप्रभात!
    विविधताओं से भरपूर बेहतरीन व लाजवाब प्रस्तुति । मेरी लघुकथा को इस अनुपम प्रस्तुति में सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार शास्त्री जी । सादर..,

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  3. बहुत सुंदर विविध रसों से परिपूर्ण से प्रस्तुति। 55 साल पुरानी यादें लिए आपका संस्मरण हमारे लिये तत्कालीन समाज को समझने की कुंजी है।
    सभी चयनित रचनाओं को बधाई एवं शुभकामनाएं। मेरी रचना को चर्चामंच जैसे प्रतिष्ठित पटल पर प्रदर्शित करने के लिये सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी।

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  4. कृपया रचनाओं को रचनाकारों को पढ़ें। सधन्यवाद।

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  5. बेहतरीन प्रस्तुति, मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. गठबंधन की नाव में सवार यात्री हमेशा समुद्र के बीच में जब भी तेज लहरें आती हैं .. नाव के उलट जाने के डर से भयभीत बैठी रहती है.. कुछ ऐसा ही दृश्य अभी चल रहा होगा बहुत अच्छी भूमिका, आपके संस्मरण की पोटली से निकल कर आया यह संस्मरण बहुत ही अच्छा लगा.. यथार्थ में सामाजिक उठापटक के दौर में हमें इन सब बातों से सीख लेनी चाहिए "अलकनंदा जी के द्वारा धूमिल जी की कविताएं प्रस्तुत करना बहुत ही अच्छा रहा मेरे लिए ... अन्य चयनित लिंक्स भी बहुत उम्दा है.. मेरी लघु कथा को भी शामिल करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद..!!

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  8. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सर.
    मुझे चर्चामंच पर स्थान देने के लिये सहृदय आभार.
    सादर

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  9. सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी लघुकथा को आज की चर्चा में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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