स्नेहिल अभिवादन।
देश में आजकल शिक्षा को लेकर चर्चा गर्म है। छात्र-छात्राएँ मुफ़्त नहीं सस्ती शिक्षा के लिये आँदोलन कर रहे हैं। सड़कों पर बुरी तरह मारे-पीटे जा रहे हैं। ये अपनी माँग गाँधीवादी अहिंसक तरीक़ों से आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन पुलिस का दमन चक्र उन्हें हिंसक तौर-तरीक़ों से तितर-बितर करता है। आनेवाली समाज की साधारण और ग़रीब वर्ग की पीढ़ियाँ उच्च शिक्षा से वंचित रहें क्या इसीलिए फ़ीस में इतनी बढ़ोत्तरी की गयी कि अब केवल पूँजीवाले ही आगे पढ़ेंगे और नौकरियाँ हासिल करेंगे ?
-अनीता लागुरी'अनु'
पढ़िए मेरी पसंद की कुछ चुनिंदा रचनाएँ-
गीत
"अनुभावों की छिपी धरोहर"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शब्द हिलोरें लेते जब भी इस रीती गागर में,
देता हैं उडेल सब उनको, धारा बन सागर में,
उच्चारण में ठहर गया जीवन्त कलेवर है।
मन के अनुभावों की इसमें छिपी धरोहर है।।
*****
बिटिया मेरी बुलबुल-सी
उन पथरायी-सी आँखों पर,
तुम प्रभात-सी मुस्कुरायी,
मायूसी में डूबा था जीवन मेरा
तुम बसंत बहार-सी बन
आँगन में उतर आयी,
तलाश रही थी ख़ुशियाँ जहां में,
मेहर बन हमारे दामन में तुम खिलखिलायी |
*****
मैं ख़ुद को सोचना चाहता हूँ तन्हा रहकर
ज़मीर को मारकर,
क्या करोगे ज़िंदा रहकर
न कभी ख़ामोश रहना,
ज़ुल्मो-सितम सहकर।
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कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा,
भानुमती ने...! कौन थी ये भानुमती ?
भानुमती !
जिसने दुर्योधन को पति नहीं चुनना चाहा था !
स्वयंबर के समय वह किसी और को वरमाला पहनाना चाहती थी !
पर उसे मजबूरन दुर्योधन से ब्याह रचाना पड़ा !
भले ही बाद में वह राजी हो गयी हो !
स्वयंबर के वक्त हुए युद्ध में वह कर्ण से भी प्रभावित थी !
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सुधर जाओ
हवा को बदलने की कोशिश करेंगे
पीने के पानी को शोषित करेंगे,
कैशबैक मिल जाए थोड़ा अगर तो
प्रदूषण हटाने को बोधित करेंगे।
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दर्पण दर्शन
आकांक्षाओं के शोणित
बीजों का नाश
संतोष रूपी भवानी के
हाथों सम्भव है
वही तृप्त जीवन का सार है
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बेटी के माँ बाप
पुरे हफ्ता कॉलेज और यूनिवर्सिटी की भागमभाग और फिर
पुरे दिन के सफर के कारण पूरा शरीर बदहाल हो रहा था।
गर्दन तो यूँ के शायद टूटने वाली हो।
गर्दन को हल्का हल्का हिलाया ताकि कुछ आराम आये।
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सृष्टि की संचालिकाएं
उतरी धरा पर सोचती मैं हूँ कौन
देख इन्हें सबकी खुशियाँ मुरझाई
देखकर रहते सबके चेहरे मौन
बेटी हूँ घर की नहीं कोई पराई
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मेरी बिटिया
दिन भर तेरी धमाचौकड़ी, दीदी से झगड़ा करना,
बात-बात पर रोना धोना, बिना बात रूठे रहना,
मेरा माथा बहुत घुमाते, गुस्सा मुझको आता है,
लेकिन तेरा रोना सुन कर मन मेरा अकुलाता है !
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सर्दी नहीं पड़ रही है इस बार,
जानती हो क्यों?
क्यूँकि हमारे रिश्तों में गर्माहट नहीं है।
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अपमान झाला म्हणून तो थांबला नाही
वर्गात नाही तर दारात बसला
जिद होती मनात शिक्षेची
कंदील खाली बसून अभ्यास केला…
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पहाड़ों और घाटियों में चढ़ते-उतरते
मेरी आत्मीय सिसकारियों ने
उस गीत में धुन रची
उस गीत में प्राण डाले
मिलाया लय और मुझे समझाया-
तुम्हारा राष्ट्रीय गान
आप ऐसा क्यों नहीं करते
नेता-अभिनेता क्यों नहीं बनते
छोड़ो सस्ती शिक्षा की माँग
रचो पाखंडी का अभिनव स्वाँग
बाँटो दिलों को/ बदलो मिज़ाज को
छिन्नभिन्न कर डालो समाज को
बो डालो बीज नफ़रत के
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चलते-चलते जाने-माने कवि आदरणीय ध्रुव गुप्त जी की एक रचना उनकी फ़ेसबुक वाल से-
बुला ले मुझको: ध्रुव गुप्त
घने कुहासे में
ये शीत की मीठी ठिठुरन
धुआं-धुआं सा अलाव
नर्म पुआलों की महक
दूर तक धुंध में डूबे हुए
जोगी से दरख्त
भूखे बच्चों की तरह
सुस्त, अनमनी राहें
पीले सरसों के घने खेत में
हंसता बचपन
पिता के गमछे से आकाश
मां की जैसी ज़मीं
छोड़कर तुझको तो मैं
चैन से दो दिन न रहा
और तुझको भी मेरी याद तो
आती होगी
थका हूं शहर का
फिर से तू बुला ले न मुझे
ऐसे सीने से लगा
तुझसे लिपटूं
तेरी मिट्टी में फ़ना हो जाऊं !
(मेरे नए कविता संग्रह 'मौसम जो कभी नहीं आता', बोधि प्रकाशन, जयपुर से।
ऑनलाइन विक्रय के लिए amazon पर उपलब्ध है।)
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आज का सफ़र बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले शुक्रवार।
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अनीता लागुरी 'अनु'
अपनी यादों को तुम बुला लेना अपने पास
जवाब देंहटाएंमैं ख़ुद को सोचना चाहता हूँ तन्हा रहकर..
सच कहा आपने स्मृतियाँ ही हमारे चिंतन में बाधक होती हैं ,परंतु ये अवलंबन भी है एक विकल मनुष्य के लिये..
हाँ,जो इनपर नियंत्रण कर लेता है, वह इस एकांत को आत्मोत्थान में लगाता है।
एकांत जीवन के उस कलाकार का वह मंदिर है जहाँ वह अपनी आकांक्षाओं की मूरत बनाता है, चिंतन पर रंग चढ़ाता है और इस मूक वैभव को कलम पर उतार विश्व में जब भेजता है, तो दुनिया आश्चर्यचकित रह जाती है।
सुंदर रचनाओं का समावेश है आज के चर्चा मंच पर..
अनु जी ,जिनके चयन के लिये आपका आभार, धन्यवाद और सभी को प्रणाम।
बहुत-बहुत धन्यवाद शशि जी आपकी रचनाएं जितनी गहरी होती है उतनी ही आपकी प्रतिक्रियाएं भी बहुत गहराई से उतर कर आपके द्वारा पटल पर अंकित होती है बहुत ही अच्छी बातें कही आपने यूं ही अपने विचारों के सागर में हम सबको डूबने का अवसर देते रहिएगा एकबारगी और आपका ..बहुत-बहुत धन्यवाद ।
हटाएंआपका आभार
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता लागुरी जी।
जी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका आदरणीय
हटाएंआदरणीया अनु जी आपकी प्रस्तुति क़ाबिलेतारीफ़ है। इसी तरह महफ़िल सजाते रहिए और लेखकों को प्रोत्साहित करते रहिए। और हाँ ! मरे हुए लेखकों में प्राण फूँकते रहिए जो राजनीतिक पार्टियों के प्रचारक बन बैठे हैं और इस साहित्य की मूल गरिमा विस्मृत कर चुके हैं। इन्हें बताइए कि साहित्य एक क्रान्ति का नाम है न कि उन भ्रष्ट नेताओं की चाटुकारिता का साधनमात्र ! प्रणाम आपको और इस मंच को ! सादर
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद ध्रुव जी, इतनी अच्छी प्रतिक्रिया हेतु इस बात की तारीफ तो हमारी पूरी टीम के लिए होनी चाहिए .. मुझे भी बहुत खुशी है कि हमारी चर्चा मंच की टीम हर बार नई प्रतिभाओ को ढूंढ कर उनकी कविताओं का प्रदर्शन इस मंच के द्वारा करती है उन्हें भी एक स्थापित आयाम मिलता है और हमें एक नई कवि के कविताओं से परिचय धर्म राजनीति से ऊपर है साहित्य का पायदान बस इसी तरह आप सभी का सहयोग हमारी चर्चा मंच की टीम के साथ बना रहे ...धन्यवाद..,!!
हटाएंप्रिय अनु जी बहुत शानदार प्रस्तुति दी है आपने, सामायिक भुमिका और सुंदर लिंक चयन ने आपकी चर्चा को चार चांद लगा दिए,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार आपका एंव चर्चा मंच का ।
पिछले कई दिनों से व्यस्तता के चलते चर्चा पर बराबर नहीं आ पाती ,यथा संभव पढ़ने की कोशिश करती हूं बस टिप्पणियां नहीं दे पाती,
सभी रचनाकारों को बधाई।
सभी रचनाएं उच्चस्तरिय।
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका कुसुम दी आपके प्रोत्साहन भरे शब्द हमेशा और बेहतर करने के लिए उत्साहित करते हैं सदैव साथ बनाए रखें
हटाएंशानदार भूमिका के साथ बेहतरीन रचनाएँ प्रिय अनु. बहुत ही सुन्दर सजी है चर्चामंच की प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार आप का
सादर
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका अनीता जी
हटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आपका कविता जी
हटाएंबहुत सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आपका सुशील जी
हटाएंबहुत सुंदर लिंक्स, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंजी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद अनुराधा जी
हटाएंबहुत सुंदर संकलन...
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद ऋषभ जी
हटाएंमार्मिक प्रश्न लिए लाजावाब प्रस्तुति आदरणीया दीदी जी। सभी रचनाएँ भी बेहद उम्दा 👌सभी को खूब बधाई। सादर नमन शुभ संध्या 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आंचल तुम्हारी प्रतिक्रिया मनोबल में बहुत वृद्धि करती है
हटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर सूत्र आज के संकलन में ! व्यस्तता के कारण देर से देख पाई क्षमाप्रार्थी हूँ ! आज के इस बेहतरीन अंक में मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंकोई बात नहीं दी सभी के जीवन में व्यस्तता बहुत बढ़ गई है पर फिर भी आप समय निकालकर आती है मुझे बहुत अच्छा लगता है आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
हटाएंअनीता जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स जोड़े हैं आपने बधाई ....बहुत सुंदर संकलन..
कुसुम जी की भाषा शैली की तो मैं वैसे ही बहुत कायल हूँ। .. पर ये रचना तो बहुत अच्छी लगी। .शेयर करने के लिए धनयवाद
आकांक्षाओं के शोणित
बीजों का नाश
संतोष रूपी भवानी के
हाथों सम्भव है
वही तृप्त जीवन का सार है।
"आकांक्षाओं का अंत "।
Nitish Tiwary जी की ये इक लाइन अपने आप में इक पूरा लेख है। ..आज के रिश्तों की सच्चाई
सर्दी नहीं पड़ रही है इस बार, जानती हो क्यों? क्यूँकि हमारे रिश्तों में गर्माहट नहीं है।
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने,,...ये लेख पढ़ कर बहुत हैरानी हुई,..सच में, ये जानकरी नहीं थी मुझे। .. धन्यवाद
मेरी रचना को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार आप का
आप बहुत मेहनत से इतने शानदार लिंक्स धुंध के जोड़ती हैं इक सूत्र में और हमे अच्छा लेखन पढ़ने को मिलता है
बधाई स्वीकारें