मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
दस वर्षों से चर्चा मंच को निरन्तर चला रहा हूँ।
इस सफर में बहुत से सहयोगी जुड़े
और उन्होंने अपनी सेवायें दीं
मैं उन सब का आभार व्यक्त करता हूँ।
इस समय जो लोग चर्चा मंच को
सजाने में अपना योगदान कर रहे हैं
वो सब मंच के एडमिन हैं।
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गूँगी गुड़िया पर Anita saini जी ने
अपने अनोखे अंदाज में
एक गद्यगीत निम्नवत् वोस्ट किया है-
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अब देखिए हिन्दी-आभा*भारत पर
Ravindra Singh Yadav जी की यह पोस्ट-
दिल में आजकल
एहसासात का
बे-क़ाबू तूफ़ान
आ पसरा है,
शायद उसे ख़बर है
कि आजकल
वहाँ आपका बसेरा है...
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अपने ब्लॉग अनु की दुनिया : भावों का सफ़र पर
Anita Laguri "Anu" जी बता रहीं हैं-
कवि की तकरार..!
एक कवि की तक़रार
हो गई
निखट्टू कलम से
कहा उसे संभल जा तू
तेरे अकेले से
राजा अपनी चाल नही
बदलने वाला...
हो गई
निखट्टू कलम से
कहा उसे संभल जा तू
तेरे अकेले से
राजा अपनी चाल नही
बदलने वाला...
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मेरा ध्यान आज शशि गुप्ता शशि जी की एक पुरानी पोस्ट पर गया
पाठकों के अवलोकनार्थ चर्चा मंच प्रस्तुत कर रहा हूँ-
ये कहां आ गये हम...
यह कैसी पत्रकारिता होती जा रही है, न कोई मिशन ना ही कोई सम्मान अब शेष बचा है। जिले की पत्रकारिता में स्वयं को तोप समझने वाले ऐसे उन कुछ मित्रों पर मुझे खासी तरस आ रही है, जिनके सामने ही अफसरों की जूठी थाली पड़ी हुई थी और हममें से अनेक उनका दिया दोना चाटते रहें ! कहीं आप को यह तो नहीं लग रहा है न कि मैं उपहास कर रहा हूं। हम पत्रकार तो बड़े ही ज्ञानी, ध्यानी और स्वाभिमानी होते हैं ! फिर ऐसी अपमानजनक स्थिति कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं। परंतु भाई साहब क्या करूं, यह कलम है कि मानती ही नहीं। अपनों पर भी चल ही जाती है। हां , फिर कोई डंक न मार बैठै, इसलिये अखबार की जगह अपने ब्लॉग पर लिख रहा हूँ...
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Nitish Tiwary जी ने आज दर्द की शायरी प्रस्तुत की है-
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महाभारतकालीन आख्यान को
अपने शब्द इस प्रकार से दिये हैं-
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कविता-एक कोशिश पर नीलांश बता रहे हैं-
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एक नसीहत अपने ब्लॉग पर दी है-
शाहजहाँ की औलाद लगें
सब ताज देखने वाले
इसी लिए अपने माँ बाप की कब्रें देखने जाते हैं।
उनको डर लगता है अपने माँ बाप की कब्रों से
पर ताजमहल देखने को वो फूले नहीं समाते हैं।
शासन -प्रशासन की तो बस दाद ही देनी चाहिए
जो कब्रों को दिखा कर रोज़ खूब मुद्रा कमाते हैं।
कभी अकेले बैठ सोचिये ताज महल देखने वालो
भले घरवालों को कभी कब्रिस्तान नहीं ले जाते हैं।
उनको डर लगता है अपने माँ बाप की कब्रों से
पर ताजमहल देखने को वो फूले नहीं समाते हैं।
शासन -प्रशासन की तो बस दाद ही देनी चाहिए
जो कब्रों को दिखा कर रोज़ खूब मुद्रा कमाते हैं।
कभी अकेले बैठ सोचिये ताज महल देखने वालो
भले घरवालों को कभी कब्रिस्तान नहीं ले जाते हैं।
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डॉ. हीरालाल प्रजापति जी ने एक ग़ज़ल प्रस्तुत की है-
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कुछ अलग सा ब्लॉग परगगन शर्मा जी
एक ऐसेे मन्दिर के बारे में बता रहे हैं
जहाँ किसी भी प्रकार का चढ़ावा चढ़ाना मना है-
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श्रीमती शारदा अरोरा जी को
हिन्दी ग़ज़लों में बहुत महारथ हासिल है।
उनके ब्लॉग गीत-ग़ज़ल पर देखिए यह उम्दा ग़ज़ल-
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी इतनी आसान भी नहीं थी
दूर के मकान से देखी हुई दास्तान भी नहीं थी
दूर भागे भी तुझी से, गले लगाया भी तुझी को
महबूब की तरह इतनी मेहरबान भी नहीं थी...
दूर के मकान से देखी हुई दास्तान भी नहीं थी
दूर भागे भी तुझी से, गले लगाया भी तुझी को
महबूब की तरह इतनी मेहरबान भी नहीं थी...
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Akanksha पर Asha Lata Saxena जी
खयालों के बारे में बता रही हैं-
ख्यालों को बुन कर शब्दों में एक दुशाला बनाया है मैंने
बड़े जतन से उसे मन के बक्से में सहेजा मैंने...
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ग़ज़ल का भी आनन्द लीजिए-
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आज की चर्चा में बस इतना ही-
इस मंगलवार की चर्चा
सम्मानिता अनीता सैनी जी प्रस्तुत करेंगी।
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आदरणीय शास्त्री जी , आपका बहुत-बहुत आभार, कल 16 नवम्बर अथार्त राष्ट्रीय प्रेस दिवस के दिन, पत्रकारिता से संबंधित मेरे उस लेख जिसे मैंने 30 अप्रैल 2018 को लिखा था,का चयन कर उसे आज चर्चामंच पर स्थान दिया है।
जवाब देंहटाएंपत्रकारिता और पत्रकारों की स्थिति पर निश्चित चर्चा होनी चाहिए , क्यों कि 16 नवंबर स्वतंत्र और उत्तरदायी प्रेस का प्रतीक है। इसी दिन भारतीय प्रेस परिषद ने काम करना शुरु किया था। वहीं, वर्तमान में मीडिया का चाल, चरित्र और आचरण क्या है और क्यों है? उस पर सरकार के नियंत्रण का प्रयास कितना उचित है? मिशन से प्रोफेशन की ओर बढ़ते मीडिया की संकल्पना बाजारवाद की ओर इंगित कर रही है, जो लोकतंत्र के लिये खतरनाक स्थिति है।
...जब 1993 -94 में मैं पत्रकारिता से जुड़ा था,तब हमारे पास जो ताकत होती थी, वह हमारी कलम , हमारा स्वाभिमान और हमारे संपादक..।
अब संकट में ये तीनों ही नहीं साथ देने वाले हैं।
आपसभी को प्रणाम ।
इस मंच के माध्यम से हमसभी एकदूसरे के सहयोगी बने, यह कामना करता हूँ।
सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात आदरणीय 🙏)
जवाब देंहटाएंनविनतम रचनाओं से सजी बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति.तकरीबन सभी रचनाएँ पढ़ी. कमाल का चयन है आपका. व्यस्तता के चलते कल मैं प्रस्तुति नहीं बना पायी. माफ़ी चाहती हूँ आप से
तत्वरित आप ने बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति तैयार की है.
प्रणाम
सादर
मेरी रचना को स्थान देने के लिये सहृदय आभार. सभी रचनाकरो को बधाई एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंसादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए धन्यवाद |
हार्दिक आभार शास्त्रीजी. इस बार हर रचना का परिचय भी आपने दिया है संक्षेप में.इतना समय देने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंदस वर्ष तक चर्चा को जारी रखना बहुत बड़ा योगदान है आपका. सादर अभिनन्दन.
ये सिलसिला बना रहे. जीवन और लेखन के विभिन्न आयाम संजोती चर्चा का सिलसिला बना रहे.चर्चा से जुड़े सभी लेखकों को और पाठकों को बधाई और शुभकामनायें जुड़े रहने के लिए.
सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा बहुत सुंदर मनभावन और सुंदर लिंकों से सुसज्जित।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
सभी रचनाएँ बेहद उम्दा और प्रस्तुति भी लाजावाब
जवाब देंहटाएंसभी को खूब बधाई।
सादर नमन सुप्रभात 🙏
sundar charcha meri post ko sthan dene hetu tahe dil se abhar
जवाब देंहटाएंआपका आभारी हूँ मयंक दा
जवाब देंहटाएं