सादर अभिवादन।
पुरस्कार मिलते हैं व्यक्ति के कृतित्त्व को सम्मान देने के लिये जो दुनिया,देश,समाज और व्यक्ति के लिये प्रभावकारी हो। पुरस्कार पाने वाले का चयन करने की एक सर्वस्वीकार्य प्रक्रिया विकसित की गयी है और कोशिश रहती है कि यह निर्विवाद रहे। दरअसल पुरस्कार श्रेष्ठता के विचार/कर्म को संरक्षित करने और पनपने की मंशा से पुरस्कार देने की प्रक्रिया आरम्भ हुई। पुरस्कार कभी भी निर्विवाद नहीं हो सकते क्योंकि सुपात्र का चयन अपने आप में कठिन चुनौती है।
रवीन्द्र सिंह यादव
आइये अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
पुरस्कार मिलते हैं व्यक्ति के कृतित्त्व को सम्मान देने के लिये जो दुनिया,देश,समाज और व्यक्ति के लिये प्रभावकारी हो। पुरस्कार पाने वाले का चयन करने की एक सर्वस्वीकार्य प्रक्रिया विकसित की गयी है और कोशिश रहती है कि यह निर्विवाद रहे। दरअसल पुरस्कार श्रेष्ठता के विचार/कर्म को संरक्षित करने और पनपने की मंशा से पुरस्कार देने की प्रक्रिया आरम्भ हुई। पुरस्कार कभी भी निर्विवाद नहीं हो सकते क्योंकि सुपात्र का चयन अपने आप में कठिन चुनौती है।
रवीन्द्र सिंह यादव
आइये अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
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तुम, जैसे, गुनगुनी सी हो कोई धूप,
मोहिनी सी, हो इक रूप,
तुम्हें, रुक-रुक कर, छू लेती हैं पवन,
ठंढ़ी आँहें, भर लेती है चमन,
ठहर जाते हैं, ये ऋतुओं के कदम,
रुक जाते है, यहीं पर हम!
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जब कुछ हो ही नहीं रहा है
तो काहे कुछ लिखना कुछ नहीं लिखो खुश रहो
छोड़ो
रहने दो
कुछ नहीं
लिखो
कुछ नहीं
ही
सब कुछ है
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तो काहे कुछ लिखना कुछ नहीं लिखो खुश रहो
छोड़ो
रहने दो
कुछ नहीं
लिखो
कुछ नहीं
ही
सब कुछ है
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जेएनयू का उद्देश्य रहा है- अध्ययन,
अनुसंधान और अपने समस्त जीवन के प्रभाव द्वारा ज्ञान का प्रसार करना।
जेएनयू का मकसद जवाहरलाल नेहरू ने जिन सिद्धान्तों पर जीवन-पर्यंन्त काम किया,
उनके विकास के लिए प्रयास करना है।
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छोटी-सी गिलहरी
दौड़ती-भागती रहती है
ऊंचे पेड़ की शाखों पर,
पेड़ को गुदगुदी होती है,
दौड़ती-भागती रहती है
ऊंचे पेड़ की शाखों पर,
पेड़ को गुदगुदी होती है,
वृक्षों के जैसा कोई उपकारी नही है
नष्ट करना इनको समझदारी नही है।
पोषित इन के दम पर पूरा पर्यावरण
वन रक्षण क्या सबकी जिम्मेदारी नहीं है
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रुक जाओ मेरे भाई..!
मेरे सपनों की
दम तोड़ती
अट्टालिकाओं के
ज़मी-दोज़ होने की हार है।
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कुछ दुःख, कुछ चुप्पियां
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परदेशी पाहुन
अपनी जड़ों में वापस लौटने का,
स्वप्न परों में बाँधेआते हैं परदेशी
नवजीवन की चाह मेंआस की डोरी थामे
नगर,महानगर
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जीवन की साँझ
साँझ हुई जीवन की जबसे,
भोर बोझिल-सी हो गई।
महकती थी सुमन से बगिया,
बंजर-सी वो हो गई।
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जिस घड़ी आ जाये होश जिंदगी से रूबरू हों
एक पल में ठहर कर फिर झांक लें खुद के नयन में
बह रही जो खिलखिलाती गुनगुनाती धार नदिया
चंद बूंदें ही उड़ेलें उस जहाँ की झलक पालें
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यों न सितारों की माँग कर
यों न सितारों की माँग कर
तल्ख़ियाँ तौल रहा तराज़ू से ज़माना,
नैतिकता क्षणभँगुर कर हसरतें हाँक रहा,
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंहो पतझड़, या छाया हो बसन्त,
जवाब देंहटाएंसंग इक रंग, लगे मौसम!
हो तुम, तो है, वही ऋतु, वही मौसम...
सच कहा , यह नारी ही है, जिसके प्यार भरे आंचल की छाया में पुरुष की रिक्तता, थकान और निरुद्देश्यता समाप्त हो जाती है। वह पत्नी , माता और गृहिणी बन मानव का कुशल वास्तुकार के रुप में निर्माण करती है। तभी उसे देवी का पद दिया गया है..।
स्नेह ,सेवा और त्याग को नारी का ही प्रतिबिंब कहा गया है..।
परंतु समाज यह क्यों भूल जाता है कि नारी के माता , बहन और मित्रता आदि भी पवित्र संबंध होते हैं। यह समाज उसके स्नेहमय इन संबंधों एवं स्वरूप पर संदेह क्यों करता है.. ?
स्त्रीपुरुष के निकट आने के लिये क्या शारीरिक आकर्षण ही एकमात्र माध्यम है ..?
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चर्चा मंच पर विवाह के वर्षगांठ पर भावनाओं से भरी आपकी रचना पढ़ने को मिली..परमपिता आप दोनों पर अपनी कृपा बनाए रखे, ऐसी कामना करता हूँ।
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भटकते सुदामा (जनता) और कृष्ण (प्रजापालक) बने कंस ( निरंकुश, भ्रष्ट और अवसरवादी राजनेता)..
का शास्त्री जी ने सटीक चित्रण किया है।
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सुंदर रचनाओं के संकलन के लिए रवींद्र जी औरआप सभी को प्रणाम।
शशि जी रचनाओं के साथ-साथ आपकी टिप्पणी भी बहुत ही रोचक लगती है हमेशा जब भी मैं चर्चामंच में आती हूं रचनाओं के साथ-साथ आपकी टिप्पणी जरूर पढ़ती हूं हर बार आप कुछ नया लिखते हैं
हटाएंजी धन्यवाद,
हटाएंमैं तो बस अपनी अनुभूतियों को शब्द देने का एक प्रयास करता हूँ..।
प्रणाम।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति सभी चयनित लिंक बहुत ही उम्दा छाप छोड़ रहे हैं पुरुषोत्तम जी की कविता बहुत ही अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंबहगुत सुन्दर और सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव।
बेहतरीन भूमिका के साथ अत्यंत सुन्दर संकलन । मेरे सृजन इस संकलन में साझा करने के लिए आपका। तहेदिल से आभार ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति। आभार रवींद्र जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक्स, बेहतरीन रचनाओं के बीच मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंवाह!!!खूबसूरत संकलन ,रविन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं"पुरस्कार" किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व और कृतित्व की ओर ध्यान आकृष्ट कर उनकी विशिष्टता से परिचित करवाता है।
जवाब देंहटाएंसुपात्र का चयन सिक्के के दो पहलू जैसे है।
सुंदर और सराहनीय रचनाओं से सजे मंच में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार एवं शुक्रिया।
सादर।
सुंदर रचनाओं द्वारा बड़े श्रम से सजाया गया चर्चा मंच, आभार मुझे भी इसमें शामिल करने के लिए.
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएं