स्नेहिल अभिवादन.
महिला अधिकारों एवं नारी सशक्तिकरण जैसे अहम सामाजिक विषयों को असरदार बनाने के लिए सरकार की ओर से महिला आयोग का गठन किया गया. आज हम देख पा रहे हैं कि महिला आयोग चर्चाओं से बाहर है. इसका कारण है कि आजकल ख़बरों की प्राथमिकताएं बदल गयीं हैं. महिला उत्पीड़न के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं किंतु महिला आयोग अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है जिसकी ख़ास वजह राजनीतिक दखलंदाज़ी हो सकती है. सरकार की पसंद की महिलाओं को ऐसे आयोग में नियुक्त किया जाता है तो वे महिला अधिकारों की रक्षा के बजाय विभिन्न मुद्दों पर सरकार का बचाव करतीं नज़र आतीं हैं. नारी सशक्तिकरण कोई सामान्य विषय नहीं है हमारे देश में स्त्रियों के प्रति दोहरा रबैया गंभीर चिंता का विषय है.
-अनीता सैनी
आइये मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ पढ़िए-
महिला अधिकारों एवं नारी सशक्तिकरण जैसे अहम सामाजिक विषयों को असरदार बनाने के लिए सरकार की ओर से महिला आयोग का गठन किया गया. आज हम देख पा रहे हैं कि महिला आयोग चर्चाओं से बाहर है. इसका कारण है कि आजकल ख़बरों की प्राथमिकताएं बदल गयीं हैं. महिला उत्पीड़न के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं किंतु महिला आयोग अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है जिसकी ख़ास वजह राजनीतिक दखलंदाज़ी हो सकती है. सरकार की पसंद की महिलाओं को ऐसे आयोग में नियुक्त किया जाता है तो वे महिला अधिकारों की रक्षा के बजाय विभिन्न मुद्दों पर सरकार का बचाव करतीं नज़र आतीं हैं. नारी सशक्तिकरण कोई सामान्य विषय नहीं है हमारे देश में स्त्रियों के प्रति दोहरा रबैया गंभीर चिंता का विषय है.
-अनीता सैनी
आइये मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ पढ़िए-
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दुनिया में देखे बहुत, हमने जहाँपनाह।
उल्लू की होती जिन्हें, कदम-कदम पर चाह।।
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उल्लू करते हों जहाँ, सत्ता पर अधिकार।
समझो वहाँ समाज का, होगा बण्टाधार।।
क़ुफ्र-ओ-ईमां के शायर पंडित हरिचंद अख़्तर :
पंकज पराशर
‘प्रार्थना गृह जरूर उठाये गये एक से एक आलीशान!
मगर भीतर चिने हुए रक्त के गारे से
वे खोखले आत्माहीन शिखर-गुम्बद-मीनार
उंगली से छूते ही जिन्हें रिस आता है खून!
आखिर यह किनके हाथों सौंप दिया है ईश्वर
तुमने अपना इतना बड़ा कारोबार?
अपना कारखना बंद करके
किस घोसले में जा छिपे हो भगवान?
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दोनों ही आयोगों के उद्देश्यों में महिलाओं की मदद करना शामिल किया गया है
किन्तु अगर वास्तविक स्थिति का अवलोकन किया जाए तो परिणाम शून्य है
क्योंकि महिलाओं की स्थिति आज क्या है
वह केंद्र हो या यू पी, सभी जानते हैं
और महिलाओं के द्वारा इन सेवाओं का उपयोग भी करने की कोशिश की जाती है
किन्तु स्थानीय स्तर पर जितना मैं जानती हूं
महिलाओं को अब तक एक बार भी इन आयोगों से कोई लाभ नहीं मिला है.
हम तो ठहरे हिन्दी माध्यम से पढ़े-लिखे,
इसलिए हिंदी में ही पढ़ते-लिखते हैं।
अंग्रेजी तो अपनी बस काम चलताऊ है,
थोड़ा-बहुत समझ आ जाता है।
हम तो ठहरे हिन्दी माध्यम से पढ़े-लिखे,
इसलिए हिंदी में ही पढ़ते-लिखते हैं।
अंग्रेजी तो अपनी बस काम चलताऊ है,
थोड़ा-बहुत समझ आ जाता है।
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सत्यनारायण पूजा पर एकत्रित परिवार की
सब स्त्रियाँ पूजा के बाद सबको प्रसाद खिला
अब स्वयं भी तृप्त होकर आराम करते गप्पे लड़ा रही थीं
*****
सूर्य के भीषण ताप से भभकती ,
दहकती चटकती , दरकती , मरुभूमि को सावन की
पहली फुहार की एक नन्हीं सी बूँद धीरे से छू गयी है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
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तू यहीं खड़ी रहेगी या चलकर काम करेगी।
कमली ने जोरदार थप्पड़ मारते हुए मुन्नी से बोली।
आह..माई दुखता है,क्यों मार रही है सुबह-सवेरे से ?
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एक कहावत है
कि दुनियां की सुन्दर चीजें आसानी से नहीं मिलतीं
और न सबको मिलती हैं।
वो लोग भाग्यशाली होते हैंजिन्हें सुन्दर जगहों के दर्शन हो पाते हैं
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एक गजल आपके हवालेख़यालों को बहाया आसुओ मे,
गजल को और तडपाया नही है।
तुझसी मूरत कौन है ?
हुस्न की दुनिया में तुझसा ख़ूबसूरत कौन है ?
तू सभी का ख़्वाब , तू हर नौजवाँ की आर्ज़ू ,
ऐ परी ! लेकिन बता तेरी ज़रुरत कौन है ?
भरे परिवार में अक्सर अकेलापन ही खलता है ।
कभी तारों से बातें कर कभी चंदा को देखें वो,
कभी गुमसुम अंधेरे में खुद ही खुद को समेटें वो ।
भुलाये भूलते कब हैं वो यादें वो मुलाकातें,
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"ENGLISH में बताओ"
DEW......जवाब मैंने दिया,
इसे तो मेरे टीचर ने विडियो में दिखाया था……
सुनकर मेरे सपनों पर ओस पड़ गयी!
घर आते-आते सारी ओस झड़ गयी!!
DEW......जवाब मैंने दिया,
इसे तो मेरे टीचर ने विडियो में दिखाया था……
सुनकर मेरे सपनों पर ओस पड़ गयी!
घर आते-आते सारी ओस झड़ गयी!!
महिला आयोग ही नहीं जिस भी पटल पर जुगाड़तंत्र का बोलबाला होगा,प्रतिभाओं को दबाया जाएगा, वह आयोग, विभाग , सामाजिक, राजनैतिक और साहित्यिक मंच अपनी प्रासंगिकता खोते जाएँगे।
जवाब देंहटाएंमहिला उत्पीड़न से जुड़ा विषय आपने उठाया उठाया है , तो यह कहना चाहूँगा कि घरेलू हिंसा में अक्सर यही देखने को मिला है कि स्त्री ही स्त्री के लिए सबसे घातक है ।
पुलिस विभाग में बहुएँ, उत्पीड़न संबंधित जो शिकायत करती हैं , उनमें सबसे ऊपर सास और ननद का नाम रहता है।
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वहीं मेरे विचार से " उल्लू जी " का नहीं, बल्कि उल्लू बनाने वालों का साम्राज्य स्थापित है।
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अब जरा बताएँ कि जब हमारे बच्चे अंग्रेजी माध्यम स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, तो फिर हम हिन्दी का कितना ढोल बजाएँ, इसे सजावटी , मिलावटी और दिखावटी भाषा मान क्यों नहीं लेते हैं, हम हिंदी भाषी ?
और भी विषय हैं आज ब्लॉग पर , परंतु घंड़ी संकेत दे रही है कि इस बंद कमरे से बाहर खुले आसमान के नीचे सुबह का सफर तय करना है।
प्रणाम।
अनीता जी आपकी प्रस्तुति बहुत प्यारी है, मंच को इसी तरह संवारती रहें , चर्चामंच की भूमिका इनदिनों सामाज के हालात में सटीक प्रकाश डाल रही है और ब्लॉग जगत में इस मंच आकर्षण काफी बढ़ा है।
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
चर्चा में शामिल करने का बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक भूमिका के साथ बहुत सुंदर प्रस्तुति अनीता जी।
जवाब देंहटाएंमहिला आयोग की प्रासंगिकता पर सवाल उठना अब लाज़मी है क्योंकि उसकी नज़र अब भेदभावपूर्ण होकर जो उसे करना चाहिए वह नहीं कर पाने में अक्षमता के गर्त में जा गिरी है। आँकड़े बता रहे हैं महिला उत्पीड़न का ग्राफ़ लगातार बढ़ रहा है। आजकल महिला आयोग के चयनवादी रबैये के चलते अनेक अन्य संगठन महिला अधिकारों की लड़ाई सड़क पर लड़ रहे हैं जिनकी चर्चा पालतू राष्ट्रीय मीडिया की नई व्यावसायिक,भड़काऊ एवं विभाजनकारी सोच के चलते राष्ट्रीय संवाद से बाहर है।
आज की श्रमसाध्य प्रस्तुति में विभिन्न रसों एवं विषयों को स्थान मिला है जो सराहनीय प्रयास है
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
मेरी रचना 'ओस और मुनिया' को इस पटल पर प्रदर्शित करने के लिये बहुत-बहुत आभार अनीता जी।
हटाएंविचारणीय प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान् देने हेतु हार्दिक धन्यवाद अनीता जी.
जवाब देंहटाएंनारी सशक्तीकरण एक फ़ैशन बन गया है. इसको लेकर हल्ला मचाने वाले अक्सर अपने कुनबे की औरतों के फ़ायदे के लिए सरकारी अनुदान प्राप्त करने में और इसके नाम पर चंदा उगाहने में व्यस्त रहते हैं. नारी सशक्तीकरण के लिए स्त्री-शोषण से जुड़ी बुनियादी समस्यायों को हल करने का सार्थक प्रयास बहुत कम लोग करते हैं. इस अभियान में स्त्रियों को ही स्वयं-सिद्धा बनना होगा और लिखने, बोलने से ज़्यादा कर दिखाने में अपना ध्यान लगाना होगा.
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर इतनी सार्थक प्रतिक्रिया के लिये. आपकी सलाह पर नारी ज़ात को अवश्य ही मनन करना चाहिए कि आसमान में उड़ने से बेहतर है ज़मीन पर कुछ ठोस करके दिखाया जाय.
हटाएंआभार आदरणीय सर.
सादर प्रणाम.
सुन्दर प्रस्तुति। आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक भूमिका ... गठन तो कर दिया जाता है लेकिन यह गठित संगठन निस्वार्थ मन से काम नहीं करती हैं इनकी गति में तब तेजी आती है जब विपक्ष का कोई आदमी महिला उत्पीड़न के मामले में सामने आता है वरना अपनी पार्टी के लोग तो बस उनके ऊपर सिद्ध हो जाएंगे रेप के मामले लेकिन यह लोग उनके कवच बन कर खड़े हो जाती हैं
जवाब देंहटाएंआज कुछ नए लिंको,(कवियों) से मेरा परिचय हुआ उन्हें पढ़ कर बहुत आनंद महसूस कर रही हूं
और हमेशा की तरह आप का चयन सुंदर पठन सामग्रियां एकत्रित करके बहुत ही अच्छे लिंक की संकलन तैयार होती है
मेरे बेटे की लिखी कहानी पोस्ट "Pokémon Chakra" चर्चामंच में शामिल करने हेतु आभार आपका!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक सूत्र एवं पठनीय चर्चा आज की ! मेरी रचना 'आहट' को आज के संकलन में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंअरे कक्का, हमरे बहुरिया कलावती को भी कउनो महिला संगठन का चीफ कमांडर बनवाही दो फिर देखो। जितने महिला उत्पीड़न के आरोपी तुम्हरी सरकार में घुसे पड़े हैं सबको मंत्री का पोस्ट तो दिलवाही देंगे अगले वर्ष तक। तब का, भले ही चौदह पन्नों का प्राथमिकी दर्ज़ हो उस महान आत्मा पर। हमरी बहुरिया उसे मिनटों में साफ़ चिट्ठी पकड़वा देगी। का कर लेगी ई जनता। और का करेंगे ई कलमधारी ! सबहि कोने में। काहे की हमार पार्टी भी आजकल अपने कुनबे का साहित्यकार पैदा कर रही है इन क्रांतिकारी कलमधारियों ( अनीता सैनी, अनीता लागुरी और रविन्दर जी जईसन ) लोगन के बीच। बाक़ी सब ठीक बा।
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