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शुक्रवार, नवंबर 15, 2019

"नौनिहाल कहाँ खो रहे हैं " (चर्चा अंक- 3520)

सादर अभिवादन। 
कल देश ने अपना एक महान वैज्ञानिक खो दिया। देश का नाम बुलंदियों पर ले जाने वाले विश्वविख्यात गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। सन 1974 में अचानक उनमें जीवन में गर्दिशों का दौर आया जिसने मृत्युपर्यन्त उनका साथ न छोड़ा। सोचिए वे पल कितने भारी होंगे उनके परिजनों और शुभचिंतकों पर जब पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल प्रशासन उनके शव को ससम्मान एम्बुलेंस से उनके घर तक पहुँचाने में बुरी तरह नाकारा साबित हुआ बल्कि परिजनों को रूखे सरकारी व्यवहार का भाजन होना पड़ा। ऐसी सरकारी बदसलूकी देश के गौरव के साथ अक्षम्य है। संवेदनाविहीन होते समाज पर आँसू बहाये जायें तो आख़िर कब तक?
चर्चामंच परिवार की ओर से देश की अनूठी प्रतिभा डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह जी को श्रद्धा सुमन अर्पित हैं।
-अनीता लागुरी 'अनु' 

आइये अब मेरी पसंदीदा रचनाओं पर नज़र डालिए- 


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है नशा चढ़ा हुआखुमार ही खुमार है। 
तन-बदन में आज तोचढ़ा हुआ बुखार है।। 
मुश्किलों में हैं सभीफिर भी धुन में मस्त है
ताप के प्रकोप सेआज सभी ग्रस्त हैं
आन-बानशान-दानस्वार्थ में शुमार है। 
तन-बदन में आज तोचढ़ा हुआ बुखार है।। 
नेनेहा की मज़ेदार ज़िन्दगी देखकर उसकी दोनों बेटियों नीतू और प्रीतू को 
खूब जलन हुआ करती थी. 
न स्कूल जाने का झंझट, न होम-वर्क का सरदर्द, न 
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बारीकियों से, उसने तोड़ा था ये मन, 
डाली पे, ज्यूं झरते हैं सुमन, 
ठूंठ होते हैं, ज्यूं पतझड़ में ये वन, 
ज्यूं झर जाते हैं, ये पात-पात, 
हौले-हौले, बिखरे हैं ये जज्बात, 
एक क्षण की, वो बात, 
हर-क्षण, उसे भी तड़पाता होगा! 

 उसके वह कठोर शब्द - 
 " कौन हूँ मैं ..प्रेमिका समझ रखा है.. ? 
व्हाट्सअप ब्लॉक कर दिया गया है.. 
फिर कभी मैसेज या फोन नहीं करना.. 
 शांति भंग कर रख दिया है । 
" यह सुनकर स्तब्ध रह गया था मयंक.. 
कई बार जो जहर हम दोनों ने साथ-साथ पिया,
चंद रोज की अनबन में तुमने जमाने को उगल दिया.. 
बेकशी ने जैसे तैसे बेक़रारी को जब समझा लिया, 
नया बहाना बनाकर उसने फिर इरादा बदल दिया, 
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अपनी क्षमता जान

वह रह जाता अधूरा   एक विकलांग प्राणी सा 
 मानव जीवन कार्य से ही पूर्ण होता 
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नौनिहाल
नौनिहाल कहाँ खो रहे हैं 
कहाँ गया वो भोला बचपन 
कभी किलकारियां गूंजा करती थी 
और अब चुपचाप सा बचपन 
पहले मासूम हुवा करता था 
आज प्रतिस्पर्धा में डूबा बचपन
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१ नज्म के बहाने 

 नज्म के बहाने याद की सिमटी हुई
 यह गठरियाँ खोल कर हम दिने हो गए
 रूह भटकी कफ़िलों में इस तरह
नज्म गाने के बहाने हो गए।
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मौन 
My Photo
मौन...… 
एक ऐसी भाषा जिसकी कोई लिपि नहीं और कोई शब्द नहीं,
फिर भी सर्वश्रेष्ठ भाषा।जिसने इस भाषा को समझ लिया,
मान लिजिये कि जीवन की गहराई को समझ लिया।
जिस तरह से समुद्र की गहराई में छुपे बेशकिमती हीरें मोती पाने के लिये
 उस गहराई तक उतरना पड़ता हैं बिल्कुल इसी तरह जब हम मौन रहते है 
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.. चाय के बहाने :
एहसासों को सहलाती हुई
शक्कर की तरह मीठी
एक कप चाय
जब कोई पूछता है
बड़े प्यार से
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अच्छाई का इनाम
My Photo
लाल रंग का ऊनी स्वेटर पहन 
आज शारदा खूब खुशी से इधर उधर झूम रही है। 
बहुत समय बाद उसे आज नया स्वेटर जो मिला है।
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दिल्ली-देहरादून-लाखामंडल 

यहां जाने की इच्छा एक लंबे अरसे के 

बाद इस बार नवम्बर में जा कर पूरी हुई। 

जब किसी तरह आठ से बारह नवम्बर का 

समय दायित्वों-परिस्थितियों से समझौता कर निकाला गया।

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विनम्र श्रद्धांजलि और श्रद्धा सुमन अर्पित हैं।

आपकी पहचान के लिये आपका नाम ही काफ़ी है

 डाक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह।

बिहार के पुत्र दुनिया के जाने माने महान गणितज्ञ,

होनहार,प्रतिभा के धनी ----

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    अनीता लागुरी 'अनु'

23 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे देश का पूरा व्यवस्था तंत्र , जिसमें जनप्रतिनिधि, नौकरशाह और जनता तीनों ही सम्मिलित हैं, घड़ियाली आँसू बहते रहे हैं और रहेंगे। मीडिया इसका पोषक है। यह संवेदनहीन ऐसा भोंपू है, जो दिन भर डिबेट जैसे अर्थहीन बहस में जनता को उलझाये रखता है और जनता से जुड़ी समस्याओं को टीवी स्क्रीन पर काफी समय देता है ।चटकारेदार समाचारों से अखबार भरा रहता है।
    राजनेताओं, अभिनेताओं और इधर- उधर की खबरें दिखाना कुछ कम कर के जनसमस्याओं को स्थान दे , तो निश्चित ही व्यवस्था बदलेगी ।
    हाँ, सोशल मीडिया काफी प्रभावशाली है, इसका दुरुपयोग नहीं हो तो यह आईने की तरह हमारी व्यवस्थाओं को दर्शाता एवं झकझोरता रहेगा।

    पटना के प्रतिष्ठित अस्पताल में देश के महान गणितज्ञ डा०वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन के पश्चात
    उनके परिजनों द्वारा उनके शव को लेकर अस्पताल परिसर में एंबुलेंस की प्रतीक्षा का प्रकरण दुखद है।
    हम पत्रकार अक्सर ही ऐसी घटनाओं को देखते रहते हैं कि अस्पताल ही नहीं प्रशासनिक विभागों में छोटे-छोटे राजनेताओं और दलालों का काम हो जाता है, वहीं समाज के लिए समर्पित लोग उपेक्षित रहते हैं।
    अनु जी आपने चर्चामंच के पटल पर अपनी भूमिका के माध्यम से एक बड़ा सवाल उठाया है, जिसका सही जवाब यही है कि हम स्वयं भी जागरूक और संवेदनशील हो। शासन-सत्ता में बैठे असंवेदनशील लोग कौन हैं ? हमने ही तो उनका पोषण किया है ?
    मेरी रचना ( काल्पनिक नहीं) को इस प्रतिष्ठित मंच पर स्थान देने के लिये बहुत- बहुत आभार आपका।
    सभी को प्रणाम।

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    उत्तर
    1. इस निष्पक्ष मंच पर मेरी अनुभूतियों एवं विचारों को सदैव स्थान मिल रहा हूँ।
      अतः इससे मेरी लेखनी और मेरा चिंतन सार्थक होता है। कुछ नया लिखते रहने का उत्साह बढ़ता है। यह मंच ब्लॉग जगत की गंदी राजनीति और कड़वे संवाद से दूर रहे और इसी तरह से निर्मल रहे , मैं ऐसा कामना करता हूँ।
      शास्त्री जी की पूरी टीम का मैं आभारी हूँ।

      हटाएं
    2. जी शशि जी धन्यवाद,
      इतनी विस्तार से आपने अपनी बात रखी आपकी बातों का मैं भी समर्थन करती हूं सत्ता से जुड़े लोग सुख भोग रहे हैं और हम आम इंसान जिनकी सत्ता में भूमिका केवल अंगूठे में नीली स्याही लगाने तक ही सीमित है ऐसे लोग बस यूं ही भटक भटक कर दम तोड़ देते है.. वशिष्ठ जी के साथ अगर इस तरह का दुर्व्यवहार वह भी उनकी मृत्यु के उपरांत किया जा सकता है जबकि पूरी दुनिया उनके ज्ञान का लोहा मानती है ऐसे इंसान को उनकी मृत्यु के पश्चात सम्मान अगर एंबुलेंस भी मुहैया नहीं करा सकते हैं तो हमें खुद पर शर्म आनी चाहिए....
      दरअसलवर्तमान में भारतीय राजनीति का सबसे गंदा पहलू हम लोग देख रहे सत्ताधारी सुख भोगे और आम जनता वनवास भोगे... आपने चर्चा को विस्तार का रूप दिया इसका बहुत-बहुत धन्यवाद

      हटाएं
    3. जनता से जुड़ी समस्याओं को टीवी स्क्रीन पर काफी समय देता है
      इसके स्थान पर समय नहीं दे रहा है, लिखना था

      हटाएं
  2. अनीता लागुरी 'अनु' जी 

    बहुत ही मिश्रित स्वाद लिए  संयोजन 

    चाय की सप्रेम दीवानी होने के कारण, संजय जी की चाय का जिक्र किये बिना नहीं रह सकती, बहुत ही जायकेदार और मनलुभावनि कविता हुई है 
    अनीता जी ने डाक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह को जो श्रद्धा सुमन श्रद्धांजलि दी , इतनी विस्तृत जानकारी हम सब शेयर करने के लिए आभार 
    बहुत अच्छे लिंक्स जोड़े हैं आपने। ..अभी तीन लिंक्स ही पुरे टूर पर पढ़ पायी हूँ...baaki dheere dheere pdhti hun  
    आभार और शुभकामनयें 

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    उत्तर
    1. .. जी जोया जी
      ठंड की सुगबुगाहट ने चाय की तलब बढ़ा दी.. और इतनी सुंदर प्रतिक्रिया देखकर मन को परम आनंद की अनुभूति हुई व्यस्तम शेड्यूल होने के बाद भी आप जब..ब्लॉग पर आती है अपने विचार साझा करती है तो..ये सारी चीज़ें कही आत्म सन्तुष्टि का बोध करा जाती है..कवितायें मात्र जरिये नही है .ये वो मार्ग है जहां विपरीत सोच समझ वाले इंसानो की सोच एकसार हो जाती है..पर ये भी सत्य है कि पूरी तरह से प्रस्तुति बनाने में क्षमता हाशिल नही हुई है,
      रबिन्द्र जी और अनिता सैनी जी की सहयोग के बिना संभव नही है
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद हमेशा साथ बनाये रखें..🙏

      हटाएं
  3. बहुत सुन्दर और सार्थक पठनीय लिंक।
    आपका आभार अनीता लागुरी जी।

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  4. पठनीय लिंक्ससे सजा है आज का चर्चा मंच |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
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    1. ..जी आदरणीय...
      बहुत बहुत आभार इतनी सुंदर प्रतिक्रिया हेतु..।

      हटाएं
  5. बहुत सुंदर विचारोत्तेजक प्रस्तुति. भारत के विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन और उनके अंतिम समय घटनाक्रम किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को विचलित करने वाला है. देश बदल रहा है, समाज बदल रहा है और इस बदलाव में संवेदना पैर की ठोकर हो गयी है. कारण स्पष्ट है कि हमने राजनीति को सर्वोच्च शिखर पर बिठा दिया है. दिन-रात राजनीति की आलोचना करने में मशगूल हैं किंतु राजनीति का अपहरण करने वाले गुंडे हत्यारे असामाजिक तत्व ही आज हमारे आदर्श हो गये हैं. सबसे बड़ी विडंबना समाज की यह है कि वैज्ञानिक से लेकर साहित्यकार तक अहंकारी दंभी मक्कार नेताओं की तारीफ़ करने को न जाने क्यों विवश हैं.
    हमेशा याद आते रहेंगे डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह. हमारी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित है. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें.

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    उत्तर
    1. बहुत ही विचारणीय प्रतिक्रिया आपने रखी ...आपकी कथन से पूरी तरह सहमत हूं, समाज बदल रहा है.. देश बदल रहा है.. लोगों की संवेदनाएं बदल रही है. इन सब के पीछे जो कारण है उसे जानने के लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत भी नहीं है। अपने आसपास ही ये सब रोज हो रही है कई घटनाओं में संलिप्त लोगों की पृष्ठभूमि में जाने से समझ में आ जाएगा कि उनके सारे क्रियाकलाप संपन्न हो जाते हैं आखिर क्यों..,? और हमारे जैसे लोग उन्हीं पंक्तियों में खड़े घुट घुट कर दम तोड़ देते हैं..|. #स्वर्गीय वशिष्ठ जी जिनके दिमाग का लोहा पूरी दुनिया मानती आ रही है.. उनकी मृत्यु उपरांत .. उनके परिजनों के साथ जो भी किया गया वह सारी दुनिया अब तक परिचित हो चुकी है, सोचकर शर्म आती है कि इतने नामी-गिरामी अस्पतालों की स्थितियां कितनी घटिया तंत्र से गुजर रही है.. आश्चर्य होता है कि एक एंबुलेंस आप मुहैया नहीं करा सकते हो.. पर्याप्त ऑक्सीजन आप बच्चों को दे नहीं सकते हो पुलवामा के जवानों को एअरलिफ्ट नहीं करा सकते हो ..लेकिन हां करोड़ों अरबों रुपयों की मूर्तियां बनेंगे मंदिरे बनेंगे लेकिन एक नीली स्याही लगाकर एक इंसान घंटों जो लाइन पर खड़े रहकर आप को वोट देने जाता है.. उस इंसान की आम जरूरत को के लिए आप कुछ नहीं करोगे.... कोई मुंह नहीं खोलेगा कोई सामने नहीं आएगा.. किसी को इस घटना पर लज्जा नहीं आएगी क्यों ...? क्योंकि हम सब संवेदनहीन हो चुके हैं पत्थर बन चुके हैं सत्ताधारी लोगों के लोलुप चापलूस हो चुके हैं ...आश्चर्य तो तब होता है जब इस तरह की घटनाएं हमारे साथ भी होती है और हम फिर भी उस चीज से सबक लेने की वजह टालमटोल रुख अपनाकर जो हो रहा है होने दो ऐसा कह कर चलते बनते हैं.. क्षमा कीजिएगा रविंद्र जी आज मन बड़ा खट्टा हो गया है इसलिए इतनी सारी बातें लिख डाली..!!

      हटाएं
  6. सशक्त और विचारोत्तेजक भूमिका के साथ विविधताओं से भरपूर संकलन ।चर्चा मंच की सबसे बड़ी खूबी ...बहुत सारे ब्लॉगस् की रचनाएं एक ही जगह पूरे दिन भर के लिए पढ़ने को मिल जाती हैं । डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह जी को विनम्र श्रद्धांजलि🙏

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  7. . हौसलों में पंख लगाती हुई प्रतिक्रिया बहुत अच्छा लगा आपके विचार जानकर चर्चा मंच के आदरणीय एवं सहयोगी साथियों सभी का प्रयास यही रहता है ..कि ज्यादा से ज्यादा पठन सामग्रियां आप सभों के लिए .. खुद के लिए उपलब्ध कराई जाए क्योंकि हम भी बहुत सारे ब्लॉग्स तक पहुंच नहीं पाते हैं ..लेकिन प्रस्तुति के दौरान जब हम उन्हें अपने चर्चा मंच के प्लेटफार्म पर लाते हैं तो हम खुद भी उन सब चीजों को पढ़कर आत्मसात करते हैं कि हां यह चीजें छूट रही थी हमसे...।
    धन्यवाद ऐसे ही साथ बनाए रखिएगा

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  8. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आज की प्रिय अनु. 
    सार्थक भूमिका के साथ बहुत ही सुन्दर रचनाएँ चुनी है आपने.
    मेरा स्नेह और सानिध्य हमेशा आपके साथ है ऐसे ही मेहनत और लगन से अपनी जवाबदेही को पूर्ण करती रहो. शुरुआती प्रस्तुतियों में समय बहुत लगता है परन्तु हार नहीं मानना. मुझे विश्वास है आपकी क़ाबिलियत पर. मेरी प्रस्तुति को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार.
    सादर

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    1. ..जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद,आपकी स्नेहिल टिप्पणी ने बड़ा बल प्रदान किया..आज के समय में
      चर्चामंच बहुत बड़ा मंच है,यहाँ चर्चाकार के रूप में स्थान मिलना बहुत बड़ी बात है,आपने विस्वास जताया इसका मान रखूँगी..ओर सीखने में कभी गुरेज नही करूँगी.. धन्यवाद

      हटाएं
  9. बेहद शानदार लिंक..... मेरे लेख को स्थान देने के लिये आपका दिल से आभार

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  10. बहुत सुन्दर और सार्थक पठनीय लिंक... स्थान देने के लिये आपका दिल से आभार

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  11. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

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  12. बिहार की मिट्टी ने अक्सर रत्नों से देश के गौरव को बढ़ाया है।ऐसे ही रत्न थे डॉक्टर वशिष्ठ नारायण जी जिनके अंतिम समय पर जो घटनाक्रम था वो निंदनीय है। शायद हम इसे मनुजता के अंत एक उदाहरण भी कह सकते हैं जिस पर अफ़सोस जताना अब निरर्थक लगता है। अब तो बस मनुष्य में मनुष्य का अंत ना हो इस हेतु प्रयासरत रहने की आवश्यकता है।
    डॉक्टर वशिष्ठ नारायण जी को मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏
    क्षमा करिएगा आदरणीया दीदी जी हम कल कुछ व्यस्तता के कारण आ नही पाए तो आज प्रतिक्रिया दे रहे। आपकी प्रस्तुति बहुत सुंदर है और चयनित रचनाएँ भी लाजावाब।सभी को ढेरों शुभकामनाएँ। गुणीजनों का सानिध्य और आपकी मेहनत और लगन से आपकी कलम का नूर निरंतर बढ़ रहा है। नारायण से हमारी प्रर्थना है कि आप यूँ ही निखरती रहें और चर्चा मंच भी नित नई सफलता हासिल कर बढ़ता रहे।
    हमारे छोटे से प्रयास को मंच पर स्थान देकर हमारा उत्साह बढ़ाने हेतु बेहद शुक्रिया दीदी जी।
    यहाँ उपस्थित सभी आदरणीय जनों को सादर नमन शुभ संध्या 🙏

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"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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