मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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आज की चर्चा में सबसे पहले देखिए!
मेरी एक बाल कविता-
बाल कविता
"मेरी प्यारी पोती"
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आदरणीय शशि गुपात जी ने
अपने ब्लॉग व्याकुल पथिक पर
अपने सभी आदरणीयोॆ का आभार व्यक्त किया है-
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साधना वैद जी के ब्लॉग सुधिनामा पर
इस बाल गीत का
आनन्द लीजिए-
सूरज दादा - बाल गीत
आदरणीय शशि गुपात जी ने
अपने ब्लॉग व्याकुल पथिक पर
अपने सभी आदरणीयोॆ का आभार व्यक्त किया है-
अंधकार से प्रकाश की ओर ..
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साधना वैद जी के ब्लॉग सुधिनामा पर
इस बाल गीत का
आनन्द लीजिए-
सूरज दादा - बाल गीत
छिप बादल की ओट गगन में चमक रहे हैं
सूरज दादा आज खुशी से चहक रहे हैं
भोला सा यह रूप भानु का प्यारा लागे
धुप छाँह का जाल जगत में न्यारा लागे...
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आज स्वप्न मेरे ...पर दिगंबर नासवा जी ने
एक अलग मिज़ाज़ की गजल को पेश किया है-
जीवन आपा-धापी “एजिटे-शन” है ...
ठंडी मीठी छाँव कभी तीखा “सन” है
जीवन आपा-धापी “एजिटे-शन” है
इश्क़ हुआ तो बस झींगालाला होगा
“माइंड” में कुछ ऐसा ही “इम्प्रे-शन” है...
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अपनी आशंका व्यक्त करते हुए निम्न पोस्ट लगाई है-
आगे देश कौन चलायेगा यही चिंता सताती है?
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बिखरे हुए अक्षरों का संगठन पर
राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' ने
हनारा गाँव सिरसेड़ Hamara Gaon Sirsed
की विशेषताओं को बताते हुए लिखा है-
आपना घर गाँव भला किसे अच्छा नही लगता मगर हमारे गाँव की बात की कुछ अलग है, कई सारी जाती के लोग हमारे गाँव मे रहते हैं, आज गाँव मे छोटे-बड़े का भेद भाव नही है। जैंसा देखने की दृष्टि से लग रहा है वैसा ही यह सम्पन्न भी है। गाँव में कठैत, भंडारी, कुँवर, नेगी, रावत, बनमाळ इस तरह की जन जातियाँ निवास करती हैं। शिक्षा की दृष्टि से यह पूर्णतया साक्षर है...
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आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक जी की
उम्दा गज़ल का आन्नद लीजिए-
एक ग़ज़ल : दुश्मनी कब तक निभाओगे---
दुश्मनी कब तक निभाओगे कहाँ तक ?
आग में खुद को जलाओगे कहाँ तक ?
है किसे फ़ुरसत तुम्हारा ग़म सुने जो
रंज-ओ-ग़म अपना सुनाओगे कहाँ तक...
आग में खुद को जलाओगे कहाँ तक ?
है किसे फ़ुरसत तुम्हारा ग़म सुने जो
रंज-ओ-ग़म अपना सुनाओगे कहाँ तक...
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मंगलवार, 22 जनवरी 2019 को आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी ने अपने ब्लॉग हिन्दी आभा भारत पर नारियल और बेर की तुलना करते हुए लिखा है-
नारियल बाहर भूरा
अंदर गोरा पनीला,
बाहर दिखता रुखा
अंदर नरम लचीला।
बाहर सख़्त खुरदरा
भीतर उससे विपरीत,
दिखते देशी, हैं अँग्रेज़
है कैसी जग की रीत...
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अंदर गोरा पनीला,
बाहर दिखता रुखा
अंदर नरम लचीला।
बाहर सख़्त खुरदरा
भीतर उससे विपरीत,
दिखते देशी, हैं अँग्रेज़
है कैसी जग की रीत...
नंदू...!!
Anita Laguri "Anu ने
एक मार्मिक रचना अपने ब्लॉग पर पोस्ट की है।
देखिए, इसका कुछ अंश-
नंदू दरवाजे की ओट से,
निस्तब्ध मां को देख रहा था...
मां जो कभी होले से मुस्कुरा देती
तो कभी दौड़ सीढ़ियों से उतर
अंगना का चक्कर लगा आती..!
तू कभी चूल्हे पर चढ़ी दाल छोंक आती..
माँ,, आज खुश थी बहुत
अब्बा जो आने वाले थे आज
चार सालों के बाद..
निस्तब्ध मां को देख रहा था...
मां जो कभी होले से मुस्कुरा देती
तो कभी दौड़ सीढ़ियों से उतर
अंगना का चक्कर लगा आती..!
तू कभी चूल्हे पर चढ़ी दाल छोंक आती..
माँ,, आज खुश थी बहुत
अब्बा जो आने वाले थे आज
चार सालों के बाद..
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मन की कलाई पर ... ( दो रचनाएँ ).
Subodh Sinha ने
पोस्ट की हैं-
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पुरषोत्तम कुमार सिन्हा को चित्र पर
लिखने में महारत हासिल है
पराई साँस
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
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आदरणीया सुधा शर्मा ने
आज मनहरणछन्दग में रचना की है-
देश है पुकारता...
मनहरण छंद
Sudha Singh
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युवा कवि नितीश तिवारी मुहब्बतों की शायरी करते हैं
आज देखिए उनकी यह प्रस्तुति-
उसे पा लूँगा एक दिन।
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सरदी-गरमी और बरसात में
पतझड़ का भी महत्व है,
देखिए सहज साहित्य पर निम्न रचना-
935-
पतझड़ को सांत्वना
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आपकी बालकविता देख हमें भी बचपन की वह याद आ गई, जब छोटी बहन हमारे माता जी का कोई वस्त्र ले इसी तरह से सिर पर उसे डाल लेती थी। बच्चों वह नटखटपन मुझे विद्वानों के अनुशासित और मर्यादित आचरण से सदैव श्रेष्ठ लगता है।
जवाब देंहटाएंरचनाओं के साथ रचनाकारों और उनके ब्लॉक का नाम आपने जिस तरह से प्रस्तुति में पूर्व की तरह शामिल किया है , यह एक सराहनीय पहल है। इससे पाठकों को सुविधा होती है, वहीं रचनाकारों का मान भी बढ़ता है। चर्चामंच पर मेरे भी एक लेख को आपने स्थान दिया है । इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ,आभार एवं सभी को प्रणाम।
बाल सुलभ हरकतें मन को मोह लेती है,पहली ही रचना मन को स्वत ही बचपन के गलियारों में ले गई.
जवाब देंहटाएंकाश कि फिर से बच्चे बन जाते और मां के साड़ी के आंचल से अपने सर को ढककर हर परेशानियों से दूर हो जाते.... व्याकुल पथिक जी के ब्लॉग में जाकर आध्यात्मिकता का दर्शन हो जाता है #दिगंबर नासवा सर जी की आधुनिकता का पुट ओढे रचना बहुत प्रभावित कर गई... #हमारा गांव सिरसेड इसे पढ़ने के बाद मुझे भी भान हो रहा है कि मैं अपने क्षेत्र के बारे में कुछ लिखूं.. सभी चयनित रचनाओं को अभी मैंने पढ़ा नहीं है पर जितना भी पढ़ा सभी शानदार है.... विविधताओं का सुंदर समागम है आज के संकलन में बधाई आपको
मेरी भी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी
हटाएंसुन्दर चर्चा ... बहुत से नए लिंक ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी ग़ज़ल को आज जगह देने के लिए ....
बहुत सुन्दर सार्थक सभी सूत्र ! मेरी रचना को आज के चर्चामंच में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय शास्त्री जी द्वारा।
जवाब देंहटाएंविविध विषयों पर चर्चा करती आज की प्रस्तुति में सरस और सामयिक लिंक्स प्रदर्शित किये गये हैं।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
मेरी रचना को स्थान देने के लिये सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी।
बेहतरीन प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई.
सादर
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
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