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बुधवार, फ़रवरी 26, 2020

"डर लगता है" (चर्चा अंक-3623)

मित्रों! 
मौसम बदल गया है अब। बसन्त के का अन्तिम पर्व होली है।  होलिकोत्सव में आप चीन के रंगों और अबीर का प्रयोग न करें। क्योंकि अबीर चीन के उसी भूभाग से आता है जहाँ कि कौरोना वायरस भयंकर महामारी का रूप ले चुका है। भारत में अधिकतर अबीर चीन से ही आता है। अतः एकबार पुनःकरबद्ध निवेदन है कि इस बार होली में अबीर का बिल्कुल भी प्रयोग न करें। 
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सरकार द्वारा आवश्यक कदम न उठाने के कारण दिल्ली में शाहीनबाग के धरने को ढाई महीने से अधिक हो गया है। जिसके कारण प्रदर्शनकारियों के हौसले इस कदर बुलन्द हो गये हैं कि असामाजिक तत्वों ने दिल्ली के ही नहीं देश के भी कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन होने लगे हैं। सरकार का यह दायित्व है कि वह सख्ती के साथ इन गतिविधियों को काबू में करे। इसके साथ-साथ प्रबुद्ध नागरिकों का भी यह कर्तव्य है कि अपने क्षेत्र में ऐसी हरकतों की जानकारी मिलते ही शासन-प्रशासन को तुरन्त सूचित करेंं। 
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बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।  
देखिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक। 
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')  
--वर्तमान हूँ मैं शून्य नभ से झाँकते तारों की पीड़ा,मूक स्मृतियों में सिसकता खंडहर हूँ मैं, हिंद-हृदय सजाता अश्रुमाला आज, आलोक जगत में धधकते प्राण,चुप्पी साधे बिखरता वर्तमान हूँ मैं... Anita saini, गूँगी गुड़िया  --
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आओ कुछ लिखे- अपनों को अगर आप करीब चालीस के/ की हैं तो आपने जरूर ही किसी ना किसी को पत्र जरूर ही लिखे होंगें। आज भी कभी जब आपके हाथ कभी पुरानी डायरियां उलटते पलटते या पुराने जरूरी कागजों या फाइलों के बीच जब कोई पत्र निकल आता होगा तब आप उस फाइल को एक तरफ कर उसको दुबारा पढने का लोभ छोड ही नही पाते होंगें। और फिर मन में ना जाने कितनी कहानियां चलचित्र की तरह चल जाती होंगी। आप भूल जाते होंगें कि आप कुछ देर पहले किसी जरूरी कागज को ढूंढ रहे थे... 
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ऐसे गले लगाऊँगा, 
दुल्हन तुझे बनाऊँगा, 
आना है मुझे तेरी गली, 
डोली में बिठा कर ले जाऊँगा। 
Nitish Tiwary,  
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लड़की एक  बार फिर से उसी  झील के किनारे बैठी है।  पानी में पैर  डुबोने  और छप  छप करें , का ख्याल आया लेकिन गंदले और काई जमे किनारे ने उसे दूर से ही छिटका दिया। पानी अब बहुत दूर तक खिसक गया था , झील के किनारे वाला हिस्सा सूख गया लगता है।  अब इसे  झील तो नहीं तालाब जैसा कुछ मान लें ऐसा ख्याल आया उसके मन में। उसका मन जो अब समय की धुरी पर चारों दिशाओं और चौदह भुवन को देख आया है ; उस मन में अब कोई कविता या संगीत नहीं उपज रहा।  बस केवल कुछ परिचित कुछ जाना पहचाना  चिन्ह दिख जाए तो यहां आने का सुकून  पूरा हो जाए।
'खरगोश अभी तक नहीं दिखा' , एक सवाल आकर टंग  गया हवा में...  
Bhavana Lalwani, Life with Pen and Papers 
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मन मौन हुआ जाता है
मुखर हुआ था सदियों पहले
शब्दों की चादर ओढ़े,
घर से निकला... घूम रहा था
अब लौटना चाहता है
शब्द काफी नहीं उसके लिए... 
 
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लता लता को खाना चाहे
कहीं कली को निगले
शिक्षा के उत्तम स्वर फूटे
जो रागों को निगले... 
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--आदिवासी महिला होने का मतलब मुँह अँधेरे  वह चल पड़ती है  अपनी चाँगरी में डाले  जूठे बर्तनों के जोड़े  और सर पर रखती है  एक माटी की हाँडी... Anita Laguri "Anu",  
अनु की दुनिया : भावों का सफ़र  
--प्रेम से लबालब कविता का भाव हो तुमरस हो तुम ओर 'मै' शब्दों के बीच का खालीपन  इस खालीपन भर सकती है  न तो धूप न हवा न पानी न  वेद की ऋचाएँ न कोई शुक्ति वाक्य  इस रिक्त स्थान को भर सकती हैं  तो, बस तुम्हारी खिलखिलाती हँसी  और मेरे प्रति तुम्हारे 'प्रेम' की स्वीकृति  एक बोर आदमी का रोजनामचा 
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आग, पहिया, चूल्हा, चक्की प्रकृति और उसकी शक्तियाँ शाश्वत हैं । मनुष्य ने सर्वप्रथम प्राकृतिक शक्तियों को ही विभिन्न देवताओं के रूप में प्रतिष्ठित किया । मनुष्य के अस्तित्व के लिए जो शक्तियाँ सहायक हैं, उन को देवता माना गया । भारत सहित विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताओं- सुमेर, माया, इंका, हित्ती, आजतेक, ग्रीक, मिस्री आदि में प्राकृतिक शक्तियों की पूजा की जाती थी । चीन और ग्रीस के प्राचीन धर्मग्रंथों में भी आकाश को पिता और पृथ्वी को माता माना गया है ... 
महेन्‍द्र वर्मा, शाश्वत शिल्प - 
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anita _sudhir, काव्य कूची 
--गीत  "आई होली रे"  (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') उच्चारण  
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शब्द-सृजन-10 का विषय है-  
'नागफनी' 
आप इस विषय पर अपनी रचना आगामी शुक्रवार (सायं 5 बजे तक ) तक चर्चामंच के ब्लॉगर संपर्क (Contact  Form ) के ज़रिये भेज सकते हैं.चयनित रचनाएँ आगामी शनिवारीय चर्चा अंक में प्रकाशित की जायेंगीं।
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आज के लिए बस इतना ही...
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9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए विशेष आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. जब ऐसी बात है, तो सरकार को आगे आकर यह बयान जारी करना चाहिए कि इस बार लोग अबीर का प्रयोग न करें। जिला प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिया जाना चाहिए , अन्यथा अब तो अपने देश में अबीर लगाना एक कुप्रथा-सा है। दो-चार मुट्ठी अबीर जबरन ही सिर से लेकर गालों पर मल दिया जाता है।
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    रही बात जहानाबाद कांड की तो ऐसी घृणित राजनीति तब तक होती रहेगी जब तक कतिपय प्रबुद्ध लोग जहर उगलते रहेंगे...।
    अन्यथा तो आपसी सद्भाव के लिए आज भी हमारे देश में बहुत कुछ है.. मसलन, प्रशासनिक पहल पर अपने मीरजापुर में मुस्लिम इंतेजामिया कमेटी तब लोगों की आँखों का तारा बन गयी ,जब महाशिवरात्रि के जुमे के दिन उसने दरियादिली दिखाते हुये घनघोर मुस्लिम इलाके से गुजर रहे देवाधिदेव महादेव के जुलूस का खैरमकदम गजरा और सद्भाव के पुष्पों से किया जो एक अनूठी पहल रही।

    गुरुजी, आपने समसामयिक भूमिका के माध्यम पाठकों को बेहद महत्वपूर्ण जानकारी एवं सुझाव दिया है। साथ ही रचनाएँ भी खूबसूरत है नीतीश जी का सृजन बेमिसाल है।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर लिंक्स, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्कृष्ट रचना ,बेहतरीन संकलन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन चर्चा अंक सर ,आपने बहुत ही महत्वपूर्ण विषय की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करवाया हैं ,डरना जरुरी हैं।
    वैसे भी " सतर्कता गई दुर्घटना हुई " हमें इन दोनों संवेदनशील बातों के लिए हर पल सतर्क रहना ही होगा।
    हमें जागृत करने के लिए आभार आपका ,सादर नमस्कार सर

    जवाब देंहटाएं
  6. अच्छी रचनाओं का सुन्दर संकलन .
    आभार .

    जवाब देंहटाएं
  7. सादर आभार आदरणीय सर मेरी रचना को मंच पर स्थान देने हेतु.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन और लाजवाब प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं

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