स्नेहिल अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
इस विषम परिस्थिति में ,जानकारियाँ जरुरी हैं, बचाव भी जरूरी हैं ,नियमो का पालन भी जरुरी हैं,
मगर साथ ही साथ ये भी अहम हैं कि हम एक दूसरे को मानसिक रूप से भी संक्रमित करने से बचे,
जो हम बिना किसी को छुए हजारो किलोमीटर की दुरी से भी कर रहें।
डर ,घबराहट ,चिंता और बेचैनी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को और कम कर रही हैं।
जो अपनों से ,परिवार से दूर हैं वो तो घबराहट में ही अधमरे हो चुके हैं।
हमारी सोच हमारे शरीर के प्रत्येक अंगो को ही प्रभावित नहीं करती बल्कि
वो हमारे आस पास का वातावरण का निर्माण भी करती हैं। हमारी मानसिक
तरंगो की शक्तियाँ असीमित होती हैं। अब शारीरिक बचाव के उपाय के साथ साथ खुद को ,
परिवार को और समाज को मानसिक सक्रमण से बचाना भी बहुत जरुरी हैं।
ये सच हैं कि -" डरना जरुरी हैं मगर डर को अपने ऊपर हावी होने देना और
दुसरो को भी डर से संक्रमित करना सही नहीं हैं।" चारो तरफ डर और घबराहट का
वातावरण बन चूका हैं। अब इस वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना भी बहुत
जरुरी हैं। समस्याएं आती हैं तो समाधान भी मिलता हैं। एकांतवास सिर्फ समस्या नहीं हैं...
बहुत सी समस्याओं का समाधान भी हैं....
कहते हैं - " संकल्प से (सोच से ) सृष्टि बनती हैं " तो आज एक बार फिर से हमें अपनी सोच को
सही दिशा देकर अपनी सृष्टि को बचाना हैं। सोच को सही दिशा देने के लिए आध्यात्म से बढ़कर
कुछ नहीं.. ..भारत तो वैसे भी एक आध्यात्मिक देश हैं ,हमारा तो सिर्फ एक ही मंत्र -
" सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः "
और आज इसी प्रार्थना से हम प्रत्येक आत्मा को निडर ,भयमुक्त और निरोगी बना सकते हैं ..
सामूहिक प्रार्थना में कितनी शक्ति होती हैं, यकीनन....
ये बताने की आवश्यकता नहीं हैं.... आज हमें इसी प्रार्थना की जरूरत हैं..
तो इसी प्रार्थना के साथ चलते हैं आज की रचनाओं की ओर....
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गीत "सन्नाटा है आज वतन में"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
युग केवल अभिलाषा का है,
बिगड़ गया सुर भाषा का है,
जीवन नाम निराशा का है,
कोयल रोती है कानन में।
सन्नाटा है आज वतन में।।
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बारंबार जलाती बैरन,
भेद कँगन से कह-कह जाती।
भूली-बिसरी सुध जीवन की,
समय सिंधु में गोते खाती।
हरसिंगार सी पावन प्रीत,
अभिसारिका बन के लुभाती ।।
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इंसानियत की बात है आगे को आइये,
जन हित के लिए हाथ मदद को बढ़ाइए !
जो दूर हैं घर गाँव से अपनों से दूर हैं,
मुश्किल घड़ी में उनका मनोबल बढ़ाइए !
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आशा हमें, है विश्वास तुम पर,
कि तुझको है खबर, तू ही रखता नजर,
समग्र, सृष्टि पर,
हे मेरे ईश्वर!
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यहाँ भी उम्मीद की किरण ये है कि ये तबका फुटपाथों पर रहकर,
गंदगियों में पलकर बड़ा हुआ है, इनका इम्यून सिस्टम
गंदगियों में पलकर बड़ा हुआ है, इनका इम्यून सिस्टम
हर आघात सहकर मजबूत हुआ है.....
ईश्वर करे इस जनसैलाब में एक भी व्यक्ति को ये संक्रमण न हो।
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21दिनों के इस लॉकडाउन में हममें से अनेक लोग सामर्थ्य के
अनुरूप अपने संचित धनराशि में से एक हिस्सा निर्बल ,
अनुरूप अपने संचित धनराशि में से एक हिस्सा निर्बल ,
असहाय और निर्धन लोगों की क्षुधा को शांत
करने के लिए स्वेच्छा से दान कर रहे हैं।
करने के लिए स्वेच्छा से दान कर रहे हैं।
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आज हमें अवसर मिला है कुछ दिन अपने साथ रहने का,
अपने भीतर जाने का. जीवन की इस उहापोह भरी स्थिति में
जब बाहर कोई आधार नहीं मिलता हो तब भीतर के केंद्र को पाकर
उसे आधार बनाकर हम जीवन के मर्म को समझ सकते हैं.
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माना उदास शाम हैं मगर घबराओ नही,
फिर सूरज निकलेगा,अंधेरो को गले लगाओ नही,
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जीवन चलने के नाम
यदि उसमे यंग कपल की जगह किसी बूढ़े कपल को दिखाया जाता।
मैं तो ऐसा प्यार कभी ना करूँ | सुनो मुझे कुछ हुआ तो
तुम हमारी शादी का एलबम समुन्दर में फेक देना
और आगे की सोचना , मूव ऑन
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संस्मरण
"देवदूत कांस्टेबिल दीपक कुमार"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आप सभी स्वस्थ रहें ,प्रसन्न रहें इसी कामना के साथ...
आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दे...
परोपकार की भावना वाले पुलिसकर्मियों , चिकित्साकर्मियों और समाजसेवा में जुटे असंख्य व्यक्तियों को कोटि- कोटि नमन
ईश्वर उनकी और उनके परिवार की रक्षा करे।
हालात से लाचार होकर जो निकल पड़े हैं, बेखौफ अपने आशियाने की ओर ,
ईश्वर उन्हें भी सुरक्षित और सकुशल
अपनी मंजिल पर पहुंचने में सहायता करें।
कामिनी सिन्हा