सादर प्रणाम
हार्दिक अभिवादन
आज आदरणीया अनु दीदी जी को आना था किंतु उनका स्वास्थ्य कुछ ठीक नही है। इस हेतु हम उपस्थिति हैं आज की प्रस्तुति के संग।
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विश्व एक बड़े संकट से जूझ रहा है। कोरोना वायरस का कहर निरंतर बढ़ रहा है। सभी देशवासीयों से निवेदन है कि स्वच्छता का ध्यान रखें,बार- बार हाथ को धोते रहें और सबसे ज़रूरी ' सामाजिकता से बचें ' भीड़ इकट्ठा ना करें, ज़रूरी ना हो तो घर से बाहर ना निकलें,बच्चों और बुज़ुर्गों का खास ध्यान रखें,अपने खानपान का ध्यान रखें,योग व्यायाम को अपनी दिनचर्या में लायें,अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ायें और सबसे ज़रूरी कि इससे घबरायें नही,जागरूक बने। कोरोना वायरस के चलते जो नीति नियम जारी किए गये हैं उनका पालन करें बस। खराब समय आता है तो अच्छा भी आता है। आज यदि कोरोना का कहर है तो कल खुशियों की लहर भी निश्चित होगी। हमारे देश के शासन,प्रशासन ने कोरोना वायरस के खीलाफ़ अपनी कमर कस ली है। सरकार द्वारा उठाए गये कदमो की हम सराहना करते हैं। हमारे देश ने एसी कई विकट समस्याओं से जंग लड़ी है और विजय भी हुए हैं और इस बार भी हम निश्चित कोरोना पर भारी पड़ेंगे बस हमारे देश को हमारे सहयोग की आवश्यकता है। हम यदि कुछ चीज़ों से कुछ समय के लिए परहेज़ कर ले तो उचित होगा।
.... और जिन लोगों में कोरोना के लक्षण दिख रहे हो उनकी यह प्रथम ज़िम्मेदारी है कि वो स्वयं को दूसरों से दूर कर लें और तुरंत अस्पताल जाए और अपने टेस्ट करवायें ताकी यह दूसरों में ना फैले। यदि टेस्ट के परिणाम पॉजिटिव आयें तो ' अलगाव ' से घबरायें नही। इससे घबराने की कोई आवश्यकता नही है पुनः दोहरा रही हूँ। बस सतर्क रहिए,सावधान रहिए।
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कल कोरोना वायरस से संक्रमित एक युवक के आत्महत्या की खबर आयी। यह बेहद दुखद संकेत है। कोरोना वायरस से ज़्यादा खतरा इसको लेकर लोगों के मन में व्याप्त भय का है। भयभीत होने की आवश्यकता नही है। सतर्क रहिए और नीति -नियम का पालन करिए,स्वच्छता का खयाल रखिए।
आँचल पाण्डेय
अब आइए आगे बढ़ते हैं आज के लिंक्स की ओर -
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देखने में यह आया है कि विद्वानों ने ‘‘क्ष’’ ‘‘त्र’’ ‘‘ज्ञ’’ को तो हिन्दी वर्णमाला में सम्मिलित करके या तो इन्हें प्रिय मान लिया है या इन्हें संयुक्ताक्षर की परिधि से पृथक कर दिया है। यह मैं आज तक समझ नही पाया हूँ। जबकि संयुक्ताक्षरों की तो हिन्दी में भरमार है। फिर ‘‘क्ष’’ ‘‘त्र’’ ‘‘ज्ञ’’ को हिन्दी वर्णमाला में क्यों पढ़ाया जा रहा है?
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......और आदरणीय शास्त्री द्वारा रचित इस सुंदर ग़ज़ल का भी आनंद लीजिए
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......और आदरणीय शास्त्री द्वारा रचित इस सुंदर ग़ज़ल का भी आनंद लीजिए
सियासत के समर में मिट गया, अभिमान दल-बल का
अखाड़े में धुलाई हो गयी, जब पहलवानों की
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लगा झटका-बढ़ा खटका, खनककर आइना चटका
बग़ावत कर रहीं अब पगड़ियाँ, दस्तारखानों की
सर्वोपरि?
यहां जिंदगी के अलावा
किसी को ऐसी मातृभूमि नहीं चाहिए।
पक्ष या विपक्ष दोनों ओर
युद्ध में धकेलने जैसी बाध्यता हटा दी जाएं तो-
मैदानों में जिंदगी खेलती
स्वदेश ही सर्वोपरि होता
अपनी अपनी अंदरूनी आपदा से रक्षा होती।
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महामारी से महायुद्ध
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के आप आ मिलोगे किसी रास्ते पर
बस इस ही सबब हम नहीं थम रहे हैं
के आप आ मिलोगे किसी रास्ते पर
था उल्फ़त का वह और ही दौर ग़ाफ़िल
हुए थे फ़िदा हम भी जब आईने पर
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काग़ज़ के खेत
ग़म बोकर
सींचा आँसुओं से
कहकहों से सींची
ख़ुशियों की क्यारी
पकी जब खेती
शब्द उगे
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काग और हंस
अपनी डफ़ली बजा बजा
सरगम सुनाते बेसुरी
बन देवता वो बोलते
कथन सब होते आसुरी।
मातम मनाते सियारी
हू हू कर झुठ का गाना।
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।
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साथी जन्मों के
यहां जिंदगी के अलावा
किसी को ऐसी मातृभूमि नहीं चाहिए।
पक्ष या विपक्ष दोनों ओर
युद्ध में धकेलने जैसी बाध्यता हटा दी जाएं तो-
मैदानों में जिंदगी खेलती
स्वदेश ही सर्वोपरि होता
अपनी अपनी अंदरूनी आपदा से रक्षा होती।
--
महामारी से महायुद्ध
काल के धारदार
नाखून में अटके
मानवता के मृत,
सड़े हुये,
अवशेष से उत्पन्न
परजीवी विषाणु,
सबसे कमजोर शिकार की
टोह में दम साधकर
प्रतीक्षा करते हैं
भविष्य के अंंधेरों में
छुपकर।
के आप आ मिलोगे किसी रास्ते पर
बस इस ही सबब हम नहीं थम रहे हैं
के आप आ मिलोगे किसी रास्ते पर
था उल्फ़त का वह और ही दौर ग़ाफ़िल
हुए थे फ़िदा हम भी जब आईने पर
--
काग़ज़ के खेत
ग़म बोकर
सींचा आँसुओं से
कहकहों से सींची
ख़ुशियों की क्यारी
पकी जब खेती
शब्द उगे
--
काग और हंस
अपनी डफ़ली बजा बजा
सरगम सुनाते बेसुरी
बन देवता वो बोलते
कथन सब होते आसुरी।
मातम मनाते सियारी
हू हू कर झुठ का गाना।
रंग शुभ्रा आड़ में
रहे काग यश पाना।
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साथी जन्मों के
इस दिल की गहराई में,
बस धड़कन ये कहती।
बदले मौसम तुम बदले,
ये पायल भी कहती।
हौले बहती पुरवाई,
नवगीत गुनगुनाना।
भूले से कभी भूल हो,
तो भूल नहीं जाना।
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रीत प्रीत की अजब निराली
सदा अधूरी चाहें दिल की,
जाने किसकी नजर लगी है
रस्ता धूमिल सा लगता है !
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सुना है ,मिलावट करते हो ?
क्या मिलाते हो ?किसमें ?
पहले ही क्या कम मिलावट है
दुनियाँ में............।
तुम ये कौनसा नया धंधा ,
करनें वाले हो मिलावट का
यहाँ तो जहाँ देखो वहाँ
मिलावट ही मिलावट है
क्या खाना ,क्या पीना
बाजार भरे हैं
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इसी प्रेम ने राधाजी को
कृष्ण विरह में था तड़पाया,
इसी प्रेम ने ही मीरा को,
जोगन बन, वन वन भटकाया।
आभासी ही सदा क्षितिज पर
गगन धरा से मिलता है।
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और चलते चलते आदरणीय ध्रुव सर की यह रचना आदरणीय सर के ही स्वर में सुनिए और जनिए कि आख़िर क्यों ' हिंद की कविता कहीं अब रो रही है '?
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अब आज्ञा दीजिए
सादर प्रणाम
जय हिंद
आँचल पाण्डेय
जय हिंद आँचल जी।
ReplyDeleteकितना अच्छा अंक है आज का।
मेहनत साफ दिखाई देती है रचनाओं के चयन में।
पहले इनको आपने पढ़ा है फिर उस पर आपने टिप्पणी दी है। और बाद में उस पर चर्चा मंच पर लगाने की सूचना की टिप्पणी।
ये कदम सूखते ब्लॉग जगत में पानी जैसा है।
आज के अंक में साहित्य के सभी टेस्ट शामिल है यथा
ग़ज़ल, कविता, गीत,आधुनिक कविता।
ऐसे ही अंक चर्चा मंच के लायक होने चाहिए। जिसमें सिर्फ मेहनत दिखती है उदासीनता नहीं।
" प्रेम बड़ा छलता है ".... आह...लाज़वाब।
इस बढ़िया अंक का हिस्सा मैं बना गर्व है।
आपका तहेदिल से आभार।
बहुत सुंदर चर्चा।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और श्रम के साथ मन लगा कर की गई चर्चा।
ReplyDeleteआपका आभार आँचल पाण्डेय जी।
वाह!!प्रिय आँचल ,बहुत ही खूबसूरत चर्चा अंक । आपकी मेहनत इस अंक में साफ झलक रही है 🙏भूमिका बहुत अच्छी बन पडी है ,सही बात है कोरोना से घबराने की नहीं ,बल्कि धैर्य पूर्वक सभी सावधानियों को बरत कर सुरक्षित रहने में है ।मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदय से धन्यवाद ।
ReplyDeleteसार्थक भूमिका के साथ सुंदर चर्चा, मुझे भी शामिल करने हेतु आभार आँचल जी !
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन चर्चा अंक प्रिय आँचल ,भूमिका बेहद शिक्षापूर्ण ,हम सब जागरूक रहेंगे तो कोरोना से मुक्ति पा ही लगे ,आपको और सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सकारात्मक भाव लिए सशक्त संदेश देती भूमिका और विविधतापूर्ण अंक । बहुत बहुत बधाई आँचल जी ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteMere blog par aapka swagat hai.....
समसामयिक बहुत प्रभावशाली भूमिका के साथ बेहतरीन सूत्रों का सुरुचिपूर्ण संयोजन किया है आपने आँचल।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत आभार आपका।
सस्नेह शुक्रिया।
प्रिय आँचल, वैश्विक आपदा की इस घड़ी में आपके द्वारा किया गया आह्वान और सकारात्मक प्रभावशाली भूमिका निश्चित ही प्रशंसा की पात्र है। चर्चामंच की इस सुंदर प्रस्तुति में मेरी इस रचना को स्थान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद । सस्नेह।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
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