सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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शब्दसृजन-13 का विषय है-
"साँस"
आप इस विषय पर अपनी रचना
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे तक ) तक
चर्चामंच के ब्लॉगर संपर्क (Contact Form ) के ज़रिये भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा अंक में प्रकाशित की जायेंगीं।
कविवर अज्ञेय जी की एक रचना का अंश-
-- पग-पग पर तीर्थ है,
मन्दिर भी बहुतेरे हैं;
तू जितनी करे परिकम्मा, जितने लगा फेरे
मन्दिर से, तीर्थ से, यात्रा से,
हर पग से, हर साँस से
कुछ मिलेगा, अवश्य मिलेगा,
पर उतना ही जितने का तू है अपने भीतर से दानी!
साभार: कविता कोश
-- पग-पग पर तीर्थ है,
मन्दिर भी बहुतेरे हैं;
तू जितनी करे परिकम्मा, जितने लगा फेरे
मन्दिर से, तीर्थ से, यात्रा से,
हर पग से, हर साँस से
कुछ मिलेगा, अवश्य मिलेगा,
पर उतना ही जितने का तू है अपने भीतर से दानी!
साभार: कविता कोश
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करोना का
अब क्या रोना,
मुक़ाबला करो
होगा जो होना।
- रवीन्द्र सिंह यादव
करोना का
अब क्या रोना,
मुक़ाबला करो
होगा जो होना।
- रवीन्द्र सिंह यादव
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgA0pcaf9fpGhnbCQqfi0JmiJVqYd3R1N-apIIaAsPWD2sOIAIySY_M3bHru9sX9kDDyEGHzQYx94LMcpnH9iS5Ne-4z27ipmvYTUnx0brxv3qB0qoPHwpE4toK_T7-WPmqaoB3_lpQw90/s320/149_27291578569874.jpg)
अब चलाचली का डेरा है
खाट से बड़ा ही लगाव हुआ है
बिस्तर ने मुझे अपनाया है
मैं स्वतंत्र प्राणी थी
अब उधार के पल जी रही हूँ
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEBey4kk0FKzQz-VYLiK4D4V1MM2i9QbZSZ40kfXsLfbWcp50sO7MWxodF1a0fqzIXNDtT4RTOs0bz3RnVaDdoIAozUqUelbkYlIYV4xLEQ6mwdg5h-eHj4DqcLnTCB7i_eErrE4O2-5vv/s400/Poetry+for+the+open+minded+2012++acrylic+on+canvas+55+inc+X+46+inc++N450+000.jpg)
क्योंकि ज़िंदगी के इस मोड़ पर
किसी भी हिस्से का हासिल
अब सिर्फ दर्द ही तो है !
फिर चाहे वह
तुम्हारा नसीब हो
या फिर हमारा
क्या फर्क पड़ता है !
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisTqrLH9G9_e_p3-5w7FuX2uNm27iUB1AVYZypiUXLrdZVmKqL9_NwZtht_SRQ4S1IVIsFsujN4PTPRFxGFCr4SrOq_UwDSPS3cUyhTt-wbn64LhBBMKshNua0Doe9sCdFqNihG7wWSuM/s320/snake_punished_snake_charmer_called_snake_1569569200.webp)
कत्ल
करने से
शरीर के साथ
आत्मा
और
विश्वास
के
दंभ के आगे
कुछ नहीं
दंभ के पीछे
कुछ नहीं
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![मेरी फ़ोटो](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCkE4fPduEvaUSbp1p29Z-Af40jBQhE0QQ7VlbDjY4M0yJ0cQSjy2kJVtbJWIq8fwhl16Ja7IXQC5olAYoI1MFnkoFfY6JhBiXg8uim3QCHZqnz1MOekMMYVzY6G3bgw6SdQROHRPR5p3y/s80/OQAAAJJiNR_EkB3roMYsSY0vGzQijSIMzE19gIUW9dIT9ez7RxLTnKokS_p5QSC79QVsipof7_qGBvgt7m3Oso2xOdEAm1T1UOMf81ShGKflU8ruDYCt7kcYJfyt%5B1%5D.jpg)
पिया विदेस
रंगों का ये गुबार
जोगिया मन।
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निष्पक्ष रंग
मिटाए भेद-भाव
रंग दे मन।
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEha_ib3YSSzXa3khFlN9e4IBWnq-Y2-xfC1LSIR0Jt2F7s6xDVVAtHJ-t3Rk0u702JMjz9OcqGkCeGRtgpl5PTTPAuoae32QYMxxoqrB5pMxCH97kENDvqMsSr8GS4CeX4v7eCwetHUEwg/s400/images+%25287%2529.jpg)
त्रिवेंद्रम से कन्याकुमारी की करीब सौ की.मी. की दूरी पार करने में करीब साढ़े तीन-चार घंटे लग ही जाते हैं। इसलिए अपनी यात्रा के दूसरे दिन सुबह नाश्ता वगैरह निपटा आठ बजे ग्रुप के सभी 31(29+2) सदस्यों ने बस में अपनी-अपनी सीट संभाल ली। दस्तूरानुसार हमारे ''सबसे युवा कप्तान 78 वर्षीय नरूला जी'' ने गायत्री मंत्र का पाठ कर यात्रा का शुभारंभ किया। समय अफरात था पर गाने, अंतराक्षरी तथा चुटकुलों में कब बीत गया पता ही नहीं चला ! यह भी एक अविस्मरणीय समय था।
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpDE_w2scgIiNfzp2lT8Jm_InKltqCO1tky76y0vtGUXbUk5s9B_yMUWXzyERN93qRV9UxaRMKubLqZjG4U0PRSm4iJPClju7pzOFzXh9K-H39B1g3aA1YH02nkhAXfSFMqXTuPOC99hJ-/s400/20200314_141907.jpg)
कल-कल, बहता सा ये निर्झर,
रोके से, कब रुकता है!
फिसलन ही फिसलन, इस पथ पर,
नैनों में, बहते मंजर,
फिसलते हांथो से, वो अवसर,
देकर, यादों की सौगातें,
चूमती हैं, आगोश में लेकर,
इन राहों पर,
अक्सर!
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiXsD_sU2a_d8njs2BNktXx6632nCIO6qF7alldqDYDz9CvAOJohzFEcs5pAyh8ebWfhNvhQ2XdRy5CDegawyKxx-Hfu_syX4sKqHPA08Mqzaz4X1gL3XgRFSAYrabqAWo7E5DFWeirQPY/s400/IMG_20200226_155118.jpg)
दिल्ली डायरी में जब प्रगति मैदान शामिल होने जा रहा था, तब अनायास ही डायरी के पन्नों पर लिखने-पढऩे का सबसे बड़ा मेला नजर आने लगा। इस साल के शुरुआती दिनों में यानी 4 से 12 जनवरी के बीच यहां विश्व पुस्तक मेला यानी वल्र्ड बुक फेयर का आयोजन नजर आया।
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कोरोना लक्षण जानिये, सर्दी छींक जुकाम।
श्वसन तंत्र की गड़बड़ी, करती काम तमाम।
करती काम तमाम, बने क्यों अब तक भक्षक।
लौंग पोटली साथ, स्वयं ही बनिये रक्षक।
बात नीति की मान, सदा हाथों को धोना ।
इस पर करें प्रहार, जीव नन्हां कोरोना।
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgxV_wwXdZ9iNKealA49M0i_yjGT-lTXVGqhlKD5dJ37m6erR-yiN0FqBdiXD-UEtQLBlneo4qgQKfprapnPWLl8VDJ3aHwRv77tg574G2k8oW1rETs8k8sAR4k7xipRC1no21x6XwSbWE/s320/IMG_20190726_152443.jpg)
लगभग सभी स्थानों पर छोटे बच्चों के लिए कई प्रकार की पोषाहार एवं स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं। समुदाय के लोगों को प्रजनन एवं स्वास्थ्य कार्यक्रम, समेकित बाल विकास सेवा स्कीम आदि के अंतर्गत गांवों में, उप-केन्द्रों पर, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर बच्चों के लिए उपलब्ध विभिन्न सेवाओं के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। सामुदायिक जाना चाहिए, ताकि बाल स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया जा सके।
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiltCejTRqvqm8JwEyJ6HnrXuJOiFNdzHuV9lMj3Kfg9xmz4ve_QFqRkUqwUTF9Cf2g9VZgicLH0m6uQHTOyawF_cUiniDT8h6t-dqxFryIiAVTLvxNe4VgKxoZ1sSt1p7clrQreRXLNYg/s320/%25E0%25A4%25AB%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%2582%25E0%25A4%2596.jpg)
डॉ फारुख अब्दुल्ला को अपनी सेक्युलर छवि प्रदर्शित करने से विशेष लगाव है।उनकी पत्नी इंग्लैड से थींऔर पुत्र उमर अब्दुल्ला ने भी हिन्दू लडकी पायल से शादी की थी, फारुख अब्दुल्ला की बेटी सारा अब्दुल्ला राजस्थान के कद्दावर नेता रह चुके राजेश पायलट के पुत्र और कांग्रेसी सांसद सचिन पायलट की पत्नी है।जबकि उनकी मां भी स्कॉटलैंड मूल से थीं।
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![मेरी फ़ोटो](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXpcTDyFFMXykoVnjEgqEk0Zf58AwRhxNRwPeuO0u_bdzqhFhr40Uo8Rrx223j2O2B4n0m_eHK7RnO1tiiLo6TzrJAwS9EHT_q9W6u1Vk1qvxyD1b4sbU7J4_ggmvFG58N0Yg28_AhILTI/s320/IMG_20170507_083739.jpg)
सारा शहर पत्थरों से भर गया है
डर तो जहन में घर कर गया है
वो मां खुद को संभालेगी कैसे
जिसका बेटा कल मर गया है
ऐसी कितनी दास्तानें हैं
बोलो कितनी सुनाउं मैं तुमको
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प्रिय पुस्तक प्रेमी परिजनों,
मेरी लिखी कहानी "कॉलेज का गर्ल्स कॉमन रूम" का ऑडियो वर्शन सुमित जी की आवाज में प्रतिलिपि के इस लिंक पर आज ही प्रकाशित हुआ है।
आप इसे सुनें और अपने विचार अवश्य दें:
"कॉलेज का गर्ल्स कॉमन रूम", प्रतिलिपि पर सुनें :
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक , सुशील भाई साहब की रचना भी समसामयिक है।
जवाब देंहटाएंसच तो यह है कि अहंकार, दर्प ,घमंड और अभिमान जैसे अपने बंधुओं से भी खतरनाक यह दम्भ है , क्यों जब मानव अपने को बड़ा दिखलाने केलिए आडंबर करने लगता है , तो उसके जिन गुणों पर अबतक गर्व किया जा सकता था, वे सब नष्ट हो जाते हैं और अंततः व्यक्ति का पतन होता है।
सभी को प्रणाम।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स से सजा आज का अंक |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
आभार रवींद्र जी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआज पढ़ने के लिए पर्याप्त लिंक मिले।
आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को सम्मिलित करने क्वे लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंनहुत ही सुंदर चर्चा अंक ,सादर नमन सर
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
समसामयिक भूमिका संग सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर और सभी चयनित रचनाएँ भी बेहद उम्दा। सभी को खूब बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह!शानदार चर्चा अंक!
जवाब देंहटाएं