रविवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है.
शब्द-सृजन- १२ का विषय था-
'भाईचारा'
इस विषय पर सृजित रचनाएँ लेकर मैं हाज़िर हूँ।
भाईचारा मानव समाज का अभिन्न अंग है जिसका कोई भौतिक आकर नहीं होता बल्कि यह तो एक अमूर्त एहसास है जो हमारे-आपके बीच सामंजस्य, सौहार्द्र, सदभाव और प्रेम के रूप में अस्तित्त्व में रहता है। किसी भी परिवार, समाज या देश के लिये भाईचारा जैसा सामाजिक मूल्य बहुत ज़रूरी है तभी उसका सतत विकास निर्बाध गति से संभव है। मानव मन थक-हारकर भाईचारे की शरण में ही सुकून पाता है।
-अनीता सैनी
आइए पढ़ते हैं 'भाईचारा' पर सृजित रचनाएँ-
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गीत
शब्द-सृजन- १२ का विषय था-
'भाईचारा'
इस विषय पर सृजित रचनाएँ लेकर मैं हाज़िर हूँ।
भाईचारा मानव समाज का अभिन्न अंग है जिसका कोई भौतिक आकर नहीं होता बल्कि यह तो एक अमूर्त एहसास है जो हमारे-आपके बीच सामंजस्य, सौहार्द्र, सदभाव और प्रेम के रूप में अस्तित्त्व में रहता है। किसी भी परिवार, समाज या देश के लिये भाईचारा जैसा सामाजिक मूल्य बहुत ज़रूरी है तभी उसका सतत विकास निर्बाध गति से संभव है। मानव मन थक-हारकर भाईचारे की शरण में ही सुकून पाता है।
-अनीता सैनी
आइए पढ़ते हैं 'भाईचारा' पर सृजित रचनाएँ-
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गीत
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मन में कोरा स्वार्थ समाया, मुख पर मीठी बातें,
ममता-समता झूठी-झूठी, झूठी सब सौगातें,
अपने ही हो गये बिराने, देगा कौन सहारा?
छल-फरेब की कारा में, जकड़ा है भाईचारा।।
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भाई चारा नींव ही ,भारत की पहचान।
सर्व धर्म समभाव से,बढ़े तिरंगा मान ।
बढ़े तिरंगा मान,पटे नफरत की खाई ।
उन्नत होगा देश ,रहें मिल जुल कर भाई ।
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जब से जन्में साथ रहे
एक ही कक्ष में
खाया बाँट कर
कभी न अकेले बचपन में
खेले सड़क पर एक साथ
की शरारतें धर बाहर
गहरे सम्बन्ध रहे सदा
दौनों के परिवारों में
कहाँ तो एक दूसरे को
भाई कहते नहीं थकते थे
भाई कहते नहीं थकते थे
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शहर का वातावरण बिल्कुल सामान्य था।
सभी अपने दिनचर्या के अनुरूप कार्यों में लगे हुये थे।
यहाँ के शांतिप्रिय लोगों के आपसी
भाईचारे की सराहना पूरे प्रदेश में थी।
बाहरी लोग इस साँझा विरासत को देख
आश्चर्यचकित हो कहते थे - "वाह भाई!
बहुत खूब ,आपके शहर की इस गंगा-
जमुनी संस्कृति को सलाम ।"
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" भाईचारा "
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पीने को इक– दूजे का खून पीछे पड़ता है आदमी ।मै पूछता हूँ उससे कि क्या होने को इंसा मजहब ही है लाजमी ।
वो सोचता है कि तू है छोटा , मै हूँ बडा आदमी ।
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" भाईचारा "
" भाईख्या तो पारिवारिक संबंधों के दायरे में ही की जाती हैं
लेकिन हमारे देश में इसकी झलक रक्त संबंधों से परे जाति
और धर्म से भी ऊपर देखने को मिलती थी ।
चारा " अर्थात जहां... भाइयों के जैसे आचार -विचार और व्यवहार हो।
या ये भी कह सकते हैं कि -" अपने सुख दुःख को साझा करने वालों का समूह "
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याद से
रेल की खिड़की से झाँकते
मुसाफिरों की ओर देखकर
अपना हाथ हिलाता है वह
बावज़ूद
पूरी रेल में
उसका अपना कोई नहीं होता ।
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खाली हाथ
२ जाति – मजहब के नाम पर लड़ता है आदमी ।खाली हाथ
पीने को इक– दूजे का खून पीछे पड़ता है आदमी ।मै पूछता हूँ उससे कि क्या होने को इंसा मजहब ही है लाजमी ।
वो सोचता है कि तू है छोटा , मै हूँ बडा आदमी ।
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"अरी पगली! यही तो भाईचारा है।
कितना दिखाएगी रईसी।
आ अब ज़रा ज़मीन पर बैठ,
देख खाने से ज़्यादा खिलाने में मिलता है सुकून।
तेरी वजह से चार पेट पेटभर खाना खाते हैं।
सोच कितना पुण्य कमाया है तूने।"
यह संवाद हुए दो दिन बीत गए हैं. जिस मित्र से संवाद हुआ
वह सहज है. उसके पिता भी, पत्नी भी...मामा भी और भी सब लोग शायद.
बस मैं ही सहज नहीं हूँ. लगता है अम्मा के कलेजे में अपमान का जो दंश चुभा होगा,
वो सालता तो होगा. अम्मा पहले भी एक बार घर छोड़कर बेटे के साथ चली गयी थीं.
तब छोटा बेटा था अविवाहित. ले गया माँ को साथ.
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नक़्शों में समायी भावना
नक़्शों में निहित संभावना
तिरोहित होती है भाईचारे की भावना
क़ुदरत ने दिया था
तिरोहित होती है भाईचारे की भावना
क़ुदरत ने दिया था
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भाईचारा...अशिवनी कपूर
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आज सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी अंक में
शब्द आधारित विषय पर बहुत सुंदर संकलन और भूमिका भी विचारणीय।
जवाब देंहटाएंमानवीय गुणों में से यदि 'भाईचारा' का बाहर कर दिया जाए , तो मनुष्य पशुओं कि श्रेणी में भी नहीं रहेगा, क्यों कि अनेक पशु भी समूह में आपसी सद्भाव के साथ रहते हैं।
सभ्यता के विकास के साथ ही सौहार्दपूर्ण वातावरण सृजन करने का प्रयत्न होते रहा है, परंतु मानव का स्वार्थ जैसे-जैसे बढ़ता गया, आपस में टकराव भी होते रहे । अनेक विनाशकारी युद्ध निजी महत्वाकांक्षा एवं धर्म के नाम पर लड़े गए और आज भी यह टकराव जारी है। धर्म गुरुओं से लेकर राजनेता तक इस भाईचारा के लिए ग्रहण रहे हैं और अब तो घर-समाज में भी हर रिश्ते स्वार्थ के तराजू पर तौले जा रहे हैं फिर कैसे कायम रहेगा हमारा भाईचारा...?
हाँ, पैग़ाम का यह गीत सुबह- सुबह स्मरण हो आया है--
हरेक महल से कहो के
झोपड़ियों में दिए जलाये
छोटो और बड़ो में अब
कोई फर्क नहीं रह जाये
इस धरती पर हो प्यार का
घर घर उजियारा
यही पैगाम हमारा
इंसान का हो इंसान से भाईचारा..
सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं। मेरे सृजन को इनके मध्य स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार,अनीता बहन।
सुन्दर रचनाओं का संगम |मुझे भी स्थान देने ले लिए धन्यवाद अनीता जी |
जवाब देंहटाएंभाईचारा शब्द पर आधारित सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंक मिले, पढ़ने के लिए।
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आपका आभार अनीता सैनी जी।
मेरी कविता ‘भाईचारा ‘ पर चर्चा करने के लिए धन्यवाद। यह कविता मैंने सन 1989 में लिखी थी। लेकिन यह आज भी सार्थक है । धर्म के नाम पर न केवल पूरे देश बल्कि पूरी दुनिया में बँटवारा हो रहा है ! काश! हम जातिगत भेदभाव से उबर कर अपने आसपास के वातावरण को भय मुक्त बना सकें ! धर्म मेरी निजी पहचान हो। मैं अपना धर्म और अपना करम निभाऊँ भाई चारे के लिए। मेरा धर्म दूसरे की मान्यताओं में रूकावट न बने कभी। एक -दूसरे के विचारों और मान्यताओं की इज़्ज़त करें हम सब !
जवाब देंहटाएंमेरी कविताएँ , किससे , कहानियाँ आप audiohindi.com पर और YouTube, और soundcloud.com और मेरे Facebook page Novels& poems by ashwani Kapoor पर पढ़ सकते हैं
शब्द -सृजन का एक महत्वपूर्ण अंक ," भाईचारा " आज के परिवेश में इस शब्द का मर्म समझने की बेहद जरुरत हैं। बेहतरीन भूमिका के साथ आज का ये विशेष अंक लाज़बाब हैं। सभी रचनाकारों को और अनीता जी आपको भी ढेरों शुभकामनाएं एवं बधाई
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार आपका
शब्द सृजन की बहुत सुन्दर प्रस्तुति । सभी रचनाएँ सुन्दर एवं सारगर्भित । रचनकारों को हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंबेहद दिलचस्प links
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