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मंगलवार, मार्च 31, 2020

" सर्वे भवन्तु सुखिनः " ( चर्चाअंक - 3657)

स्नेहिल अभिवादन। 
 आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

इस विषम परिस्थिति में ,जानकारियाँ जरुरी हैं, बचाव भी जरूरी हैं ,नियमो का पालन भी जरुरी हैं,

 मगर साथ ही साथ ये भी अहम हैं कि हम एक दूसरे को मानसिक रूप से भी संक्रमित करने से बचे,

 जो हम बिना किसी को छुए हजारो किलोमीटर की दुरी से भी कर रहें।

 डर ,घबराहट ,चिंता और बेचैनी  हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को और कम कर रही हैं। 

जो अपनों से ,परिवार से दूर हैं वो तो घबराहट में ही अधमरे हो चुके हैं। 

हमारी सोच हमारे शरीर के प्रत्येक अंगो को ही  प्रभावित नहीं करती बल्कि 

वो  हमारे आस पास का वातावरण का निर्माण भी करती हैं। हमारी मानसिक 

तरंगो की शक्तियाँ असीमित होती हैं। अब शारीरिक बचाव के उपाय  के साथ साथ खुद को ,

परिवार को और समाज को मानसिक सक्रमण से बचाना भी बहुत जरुरी हैं।

 ये सच हैं कि -" डरना जरुरी हैं मगर डर को अपने ऊपर हावी होने देना और 

दुसरो को भी डर से संक्रमित करना सही नहीं हैं।" चारो तरफ डर और घबराहट का 

वातावरण बन चूका हैं। अब इस वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना भी बहुत

 जरुरी हैं। समस्याएं आती हैं तो समाधान भी मिलता हैं। एकांतवास सिर्फ समस्या नहीं हैं... 

बहुत सी समस्याओं का समाधान भी हैं.... 

कहते हैं - " संकल्प से (सोच से ) सृष्टि बनती हैं " तो आज एक बार फिर से हमें अपनी सोच को
 सही दिशा देकर अपनी सृष्टि को बचाना हैं। सोच को सही दिशा देने के लिए आध्यात्म से बढ़कर 
कुछ नहीं.. ..भारत तो वैसे भी एक आध्यात्मिक देश हैं ,हमारा तो सिर्फ एक ही मंत्र -
 " सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः " 
और आज इसी प्रार्थना से हम प्रत्येक आत्मा को निडर ,भयमुक्त और निरोगी बना सकते हैं ..
सामूहिक प्रार्थना में कितनी शक्ति होती हैं, यकीनन.... 
 ये बताने की आवश्यकता नहीं हैं.... आज हमें इसी प्रार्थना की जरूरत हैं.. 
तो इसी प्रार्थना के साथ चलते हैं आज की रचनाओं की ओर....
******

गीत "सन्नाटा है आज वतन में" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

युग केवल अभिलाषा का है,
बिगड़ गया सुर भाषा का है,
जीवन नाम निराशा का है,
कोयल रोती है कानन में।
सन्नाटा है आज वतन में।।
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बारंबार जलाती बैरन, 
भेद  कँगन से कह-कह जाती। 
भूली-बिसरी सुध जीवन की, 
समय सिंधु में गोते खाती।  
हरसिंगार सी  पावन प्रीत, 
अभिसारिका बन के लुभाती ।।
******
इंसानियत की बात है आगे को आइये,

जन हित के लिए हाथ मदद को बढ़ाइए !

जो दूर हैं घर गाँव से अपनों से दूर हैं,

मुश्किल घड़ी में उनका मनोबल बढ़ाइए !

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आशा हमें, है विश्वास तुम पर,
कि तुझको है खबर, तू ही रखता नजर,
समग्र, सृष्टि पर,
हे मेरे ईश्वर!
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Praying Hands II by Rein | The Black Art Depot
यहाँ भी उम्मीद की किरण ये है कि ये तबका फुटपाथों पर रहकर, 
गंदगियों में पलकर बड़ा हुआ है, इनका इम्यून सिस्टम
 हर आघात सहकर मजबूत हुआ है.....
ईश्वर करे इस जनसैलाब में एक भी व्यक्ति को ये संक्रमण न हो। 
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21दिनों के इस लॉकडाउन में हममें से अनेक लोग सामर्थ्य के
अनुरूप अपने संचित धनराशि में से एक हिस्सा निर्बल ,
असहाय  और निर्धन लोगों की क्षुधा को शांत
 करने के लिए स्वेच्छा से दान कर रहे हैं। 
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Meditation Images, Stock Photos & Vectors | Shutterstock

आज हमें अवसर मिला है कुछ दिन अपने साथ रहने का,

अपने भीतर जाने का. जीवन की इस उहापोह भरी स्थिति में

 जब बाहर कोई आधार नहीं मिलता हो तब भीतर के केंद्र को पाकर 

उसे आधार बनाकर हम जीवन के मर्म को समझ सकते हैं. 

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Across the Rising Sun
माना उदास शाम हैं मगर घबराओ नही,
फिर सूरज निकलेगा,अंधेरो को गले लगाओ नही,
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जीवन चलने के नाम

The Old Couple at the Hospital - P.S. I Love You
यदि उसमे यंग कपल की जगह किसी बूढ़े कपल को दिखाया जाता। 
 मैं तो ऐसा प्यार कभी ना करूँ | सुनो मुझे कुछ हुआ तो 
तुम हमारी शादी का एलबम समुन्दर में फेक देना 
और आगे की सोचना , मूव ऑन
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संस्मरण  

"देवदूत कांस्टेबिल दीपक कुमार"  

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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आप सभी स्वस्थ रहें ,प्रसन्न रहें इसी कामना के साथ...
आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दे... 
परोपकार की भावना वाले पुलिसकर्मियों , चिकित्साकर्मियों और समाज
 सेवा में जुटे असंख्य व्यक्तियों को कोटि- कोटि नमन 
ईश्वर उनकी और उनके परिवार की रक्षा करे। 
 हालात से लाचार होकर जो  निकल पड़े हैं, बेखौफ अपने आशियाने की ओर ,
ईश्वर उन्हें भी सुरक्षित और सकुशल 
अपनी मंजिल पर पहुंचने में सहायता करें। 
कामिनी सिन्हा 

23 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर,समसामयिक एवं सराहनीय भूमिका एवं प्रस्तुति मेरे सृजन " लॉकडाउन- एक अलग संसार " को स्थान देने के लिए आपका अत्यंत आभार कामिनी जी ।

    आपकी भूमिका में एकांतवास की चर्चा है और अपनी बात कहूँ तो यह एकांत ही मेरा एकमात्र सच्चा मित्र है। जिसने कभी भी मेरे संवेदनशील हृदय को ठेस नहीं पहुँचाया है।
    एकांत किसी कलाकार के लिए उस मंदिर के समान हैं जहाँ वह अपनी आकाँक्षाओं की मूर्ति बनाता है। उस पर चिंतन का रंग चढ़ाता है। उसके पास जो कुछ भी छिपा हुआ वैभव है । वह कलम के माध्यम से इसी एकांत में बाहर आता है और जब उसके विचार इस एकांत से बाहर निकल कर विश्व में फैलता है तो वह लाखों लोगों के हृदय को झंकृत कर देता है।

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  2. पुनः अत्यंत अत्यंत आभार।
    पुनः यही कहना चाहता हूँ कि
    श्रमिक वर्ग पर निश्चित ही सम्पन्न वर्ग की उदार दृष्टि होनी चाहिए।
    साथ ही नेक कार्यों के लिए उत्साहवर्धन भी आवश्यक है।

    इस संकटकाल में रचनाओं के माध्यम से संवेदनाओं को प्राकट्य होना चाहिए, न की श्रृंगार का ऐसा मेरा मानना है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सबकी अपनी अपनी सोच और संवेदनाएं होती हैं ,वैसे भी श्रृंगार रस हर दुःख और गम को थोड़ी देर के लिए कम कर वातावरण में सकारात्म्क ऊर्जा का संचार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं ,सादर नमन

      हटाएं
  3. बारंबार जलाती बैरन,
    भेद कँगन से कह-कह जाती।
    भूली-बिसरी सुध जीवन की,
    समय सिंधु में गोते खाती।

    अति सुंदर संकलन।
    मुझे भी स्थान देने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक भूमिका के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. ऊर्जावान भूमिका और बेहतरीन प्रस्तुति ।

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  6. बेहतरीन प्रस्तुतीकरण. मानसिक संक्रमण पर सामयिक भूमिका बहुत अच्छी लगी. आपका चिंतन बहुत गहरा है आदरणीया कामिनी दीदी.
    बेहतरीन रचनाएँ चुनीं हैं आपने.
    सभी को बधाई.
    मेरी रचना इस ख़ूबसूरत चर्चा में शामिल करने के लिये बहुत-बहुत आभार.

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    उत्तर
    1. दिल से शुक्रिया अनीता जी ,आपके सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार

      हटाएं
  7. सुंदर संदेश देती भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं का सुंदर संकलन ! आभार !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिल से शुक्रिया अनीता जी ,सुंदर समीक्षा के लिए आभार ,सादर नमन आपको

      हटाएं
  8. मौसम भी अनुरूप नहीं है,
    चमकदार अब धूप नहीं है,
    तेजस्वी अब “रूप” नहीं है,
    पात झर गये मस्त पवन में।
    सन्नाटा है आज वतन में।।

    बहुत सुंदर
    शास्त्री जी की लेखनी को प्रणाम 🙏

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  9. बहुत ही सुन्दर, सार्थक, सामयिक चर्चा आज की ! मेरी रचना को आज के अंक में सम्मिलित करने के लिए हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका कामिनी जी ! सप्रेम वन्दे !

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  10. बहुत सुंदर चर्चा सखी | सबके कल्याण की कामना करना ही हमारे सनातन धर्म का मूल है |आज वैश्विक संकट की स्थिति में यही भावना सबसे ज्यादा दरकार है | हमारी सदभावनाएँ ब्रहमांड में व्याप्त हो समस्त विश्व के लिए जरुर मंगलकारी रहेंगी | दीपक कुमार जैसे कोरोना - योद्धाओं को नमन जो अपनी और अपने परिवार की परवाह ना करके मानवता के लिए समर्पित हैं | सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं और तुम्हें भी हार्दिक बधाई सुंदर भूमिका से सजे अंक के लिए |

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  11. सुंदर सार्थक विषय सार्थक चर्चा सभी लिंक बहुत सुंदर।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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