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मंगलवार, मार्च 03, 2020

" करना मत कुहराम " (चर्चाअंक -3629)

स्नेहिल अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में हार्दिक स्वागत हैं आपका  

आज से ठीक आठ दिन बाद होली हैं।" होली " ख़ुशी और उल्लास से भरा हिन्दुओं का सबसे खास त्यौहार। पर क्या इस बार की होली हम उसी हर्षो -उल्लास के साथ मना पाएंगें??

 कैसे मनाएंगे हम होली... इन दंगे फसादों और गोलियों के शोर के बीच ... 

जब धरा पर रंग की जगह लहू बिखरे पड़ें हैं ...लोगों के दिलों में उमंग की जगह

 भय ने घर बना लिया हैं ...उनके चेहरे पर ख़ुशी के जगह दुःख और  दर्द झलक रहे हैं ....

घरों में होली उत्सव की तैयारी की जगह मातम पसरा हैं... 

मगर  .....इन सब के वावजूद हम होली मनाएंगे .....

जरूर मनाएंगे ....पुरे हर्षो -उल्लास के साथ मनाएंगे। 

एकता, भाईचारा ,अमन और शन्ति के दुश्मन..... इन उग्रवादियों के  मनसूबों को हम कामयाब नहीं होने देंगे .....अब हमारे बीच कोई जहर नहीं घोल सकता.....

इस बार की होली हम पिछली बार से ज्यादा उल्लास के साथ मनाएंगे 

,हिन्दू -मुस्लिम- सिख -ईसाई 

सब मिलकर एक साथ मनाएंगे और दिखा देंगे कि..... 

ये 1947 का दौर नहीं हैं ये इकीसवीं सदी का भारत हैं। 

होली के बहाने उन उजड़े घरों को फिर से बसाने की कोशिश करेंगे ...उन उदास चेहरों पर ख़ुशी और ढाढ़स के रंग भरने की कोशिश करेंगे और होलिका दहन के बहाने इन अमन के 

दुश्मनों के मनसूबे को जलाकर राख कर देंगे....

तभी हम सच्चे भारतीय कहलाएंगे। 

हाँ ,इसके लिए सतर्कता बहुत जरुरी हैं.....होली मनाएंगे पर आँख -कान खुले रखकर .....

कही  भी किसी भी अफवाह को हवा नहीं देगें .....

आस पास की संदिघ्ध गतिविधियों पर नजर रखना हमारा पहला कर्तव्य होगा।  

हँसते-खिलते चमन में, करना मत कुहराम।

लज्जित हो इंसानियत, करो न ऐसे काम। 

आदरणीय शास्त्री सर के इस दोहे को मनन करते हुए चलते हैं आज की रचनाओं की ओर .... 

दोहे "करना मत कुहराम"

 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

*********

फाग पर ताँका

आओ री सखी
     आतुर मधुमास
  आयो फागुन
       बृज में होरी आज
       अबीर भरी फाग।
*******

कैसी फगुनाहट

खून-खून, है ये फागुन,
धुआँ-धुआँ, उम्मीदें,
बिखरे, अरमानों के चिथरे,
चोट लगे हैं गहरे,
हर शै, इक बू है साजिश की,
हर बस्ती, है मरघट!
******

गीत होली संजय कौशिक 'विज्ञात'

मत रँगना रंग गुलाल मुझे 
छोडो मुझको सावरिया
******

झुठ्ठा... !

 जनाब ! ग्रामीण क्षेत्र में लगे हैंडपंपों की पाइप तक निकलवा बोरिंग की 
जाँच करवाने लगते..उनकी हनक की धमक 
अगले दिन अख़बारों की सुर्ख़ियाँ  होतीं..।
*******

भावनाओं में उलझकर मूर्ख बनते हम लोग 

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मालूम सब था पहले से पर लगता था कि ऐसा नही है - कलाकार है , 
संवेनशील है और रिश्तों का अर्थ जानते है भले ही वायवीय है तो क्या 
*********
My photo
मैं नहीं होना चाहता हूँ बेचैन 
नही उग्र 
बस रफ्ता रफ्ता यों ही चलती रहे 
जिन्दगी।  
*******

तारे

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सितारे  भरी
झिलमिल चूनर
ओढ़े अम्बर!
चाँद सा प्रियवर,
लालिमा मुख पर ।
******

शिव को प्रिय है चम्पा...

किवंदती है कि एक बार नारद को पता चला कि एक ब्राह्मण ने अपनी बुरी इच्छाओं की पूर्ति के
 लिए चम्पा के फूल तोड़े हैं। उन्होंने जब चम्पा के वृक्ष से पूछा कि क्या किसी ने 
उसके पुष्पों को तोड़ा है, तो चम्पा के वृक्ष ने इनकार कर दिया
********
और अब चलते -चलते प्रिय सखी रेणु की पुरानी रचनाओं में से 
एक प्यारा सा होली गीत 
ना खबर हुई  क्या ले गया -
 क्या खाली झोली में भर गया? 
वो चुटकी भर..अबीर तुम्हारा
 उस फागुन की होली में 
******
चलें , होली मनाने की तैयारी करते हैं..... 
 इस बार हम होली में लाल- गुलाबी- नीली -पीली रंगों से नहीं बल्कि प्यार -मुहब्बत ,एकता -भाईचारा ,शांति और सदभावना के रंगो से सराबोर करेंगे वातावरण को...
(चाइना से आये गुलाल और रंग का प्रयोग तो बिलकुल नहीं करेंगे )
( क्यों ...ये तो आप अच्छी तरह जानते हैं )

आज का सफर बस यही तक ,अब आज्ञा दे 
आपका दिन मंगलमय हो !!
कामिनी सिन्हा 
--

17 टिप्‍पणियां:

  1. सप्ताह भर बाद होली का पर्व,
    पर कैसा पर्व जब इंसान एक दूसरे के रक्त से होली खेल रहा हो
    और प्रबुद्ध लोग विभिन्न चैनलों के मनोरंजन कक्ष में बैठकर डिबेट के नाम पर मछली बाजार सजाए हो।
    पता नहीं ऐसे लोगों में से कितनों ने दंगा स्वयं झेला होगा।
    यहाँ तो अपने बचपन के वे दिन याद आ जाते हैं जब वाराणसी में दंगा होने पर हमारे अभिभावक हम लोगों को पलंग के नीचे छुपा कर स्वयं दरवाजे पर रात भर खड़े रहते थे ।
    और दिन में मैं किसी तरह से गली-गली घूम कर खाने का सामान जुटाया करता था, जब भी अवसर मिलता था,
    पुलिस वाले अंकल जी कह खाली झोली दिखला दिया करता था..।

    मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ कामिनी जी ।

    भूमिका और प्रस्तुति समसामयिक है। परंतु जिन इलाकों में दंगे हुए हैं , जिनमें हमारे अपने खो गए हैं ,सबकुछ लूट गया हो , पुनःउस से गुजर ना आसान नहीं होता है।

    आज भी जब बनारस जाता हूँ, मदनपुरा से कर जाने का साहस नहीं जुटा पाता हूँ, रेवड़ी तालाब से होकर जाता हूँ।
    अफवाहें फैली नहीं कि जरा सा में हम हिंदू और मुसलमान बन जाते हैं।
    अज्ञात भय से हम सिहर उठते हैं।

    यहाँ मिर्जापुर में भी सुबह पाँच बजे के समय ऐसे माहौल में जब इमामबाड़ा -रामबाग आदि क्षेत्रों से गुजरता हूँ तो एक आशंका मन में बनी तो रहती ही है, चाहे कितने भी पहचान वाले लोग हो, पर दंगाइयों का कोई चेहरा नहीं होता है।
    खैर, जहाँ चहुंओर में नफरत फैलाने की सियासत हो रही है। देश की राजधानी हिंसा से जल रहा है। वहीं हिन्दुओं के पवित्र शक्तिपीठ विंध्याचल से सटे कंतित शरीफ ख्वाजा इस्माइल चिश्ती की दरगाह पर हर साल आयोजित होने वाले उर्स की शुरूआत आज भी एक हिन्दू परिवार द्वारा मजार पर चादर चढ़ाने के साथ ही होती है, जो अपने मीरजापुर में यह गंगा जमुनी तहजीब का गवाह है।


    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद शशि जी ,मैं तो बस यही जानती हूँ कि हमारा सबसे बड़ा दुश्मन भय ही हैं। आपने ये बहुत ही अच्छी बात साझा की हैं कि -
      " जहाँ चहुंओर में नफरत फैलाने की सियासत हो रही है। देश की राजधानी हिंसा से जल रहा है। वहीं हिन्दुओं के पवित्र शक्तिपीठ विंध्याचल से सटे कंतित शरीफ ख्वाजा इस्माइल चिश्ती की दरगाह पर हर साल आयोजित होने वाले उर्स की शुरूआत आज भी एक हिन्दू परिवार द्वारा मजार पर चादर चढ़ाने के साथ ही होती है, जो अपने मीरजापुर में यह गंगा जमुनी तहजीब का गवाह है।"
      ये इस बात का प्रतीक हैं कि आज भी इंसानियत और मुहब्बत ही सबसे ऊँचे मक़ाम पर हैं।
      इतनी बेहतरीन प्रतिक्रिया देने के लिए दिल से आभार

      हटाएं
  2. बहुत सधी हुई और संतुलित चर्चा।
    आदरणीया कामिनी सिन्हा जी धन्यवाद आपको।
    मंगल प्रभात सभी पाठकों को।

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    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद सर ,बस आपका आशीर्वाद यूँ ही बना रहें ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  3. बहुत सुंदर संकलन ,
    रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. भूमिका आपके उत्कृष्ठ लेखन का परिचय है कामिनी जी बहुत बहुत सुंदर। सभी रचनाकारों की रचनाएं बहुत आकर्षक सार्थक सुंदर लिंक चयन।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  5. सहृदय धन्यवाद कुसुम जी ,इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  6. आज की आपकी भूमिका ने तो मुझे बस बांध ही लिया कहां कि ऐसे विचार हर एक भारतीय के अंदर उत्पन्न हो जो आज भाईचारे नैतिकता को भूलकर आतंक मचाने को तैयार हो रहे हैं....l
    पूरी भूमिका नहीं प्रस्तुत विचार प्रेम भाईचारे को बढ़ावा दे रही है सही कहा जो लोग हमें तोड़ना चाहते हैं या तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं फिर भी हम चंद बचे कुचे लोग मिलकर होली मनाएंगे टूटे घरों को दोबारा जोड़ने की कोशिश करेंगे मन मोह लिया आपकी इस प्यारी सी भूमिका ने वाकई में यह हमारा नैतिक कर्तव्य होना यह चाहिए आज ऐसी परिस्थितियों में जो लोग अपने घरों को खो चुके हैं अपने परिवार को खो चुके हैं उनके साथ खड़े होने की कोशिश करनी चाहिए..
    आपके विचार हमेशा दिल से निकलते हैं इसलिए आप की भूमिका हमेशा ही बहुत अच्छी लगती है और रही रचनाओं की बात वह तो सभी आपने एक से एक चुने हैं अभी बस पढ़ना ही शुरू किया है बहुत अच्छा लग रहा है

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    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद प्रिय अनु ,मेरी भूमिका पर आपके विचार जानकर हार्दिक प्रसन्ता हुई ,हमेशा से ही विकट परिस्थितियों में देश की नजर आप जैसे युवापीढ़ी पर ही रही हैं ,आप आज के नवयुवक युवतियां ही परिस्थिति को अच्छे से सम्भाल सकते हैं। मैं तो अभी मुंबई में हूँ मगर मेरा पूरा परिवार,रिश्तेदार दिल्ली में हैं और हमारे घर के बच्चे और उनके दोस्त इस नेक काम में जुटे हुए हैं। आपकी इस सुंदर और सार्थक समीक्षा के लिए दिल से आभार ,स्नेह

      हटाएं
  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया कामिनी दीदी द्वारा. समसामयिक ज्वलंत विषय पर विचारणीय भूमिका. बेहतरीन रचनाएँ चुनी हैं आपने. सभी को बधाई.
    सादर

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    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. सहृदय धन्यवाद अनीता जी ,इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार सखी ,सादर स्नेह

      हटाएं
  8. प्रिय कामिनी , आज की चर्चा की -- भावों से भरी भूमिका मन को उद्वेलित कर रही है | सार्थक प्रश्न उठाये हैं तुमने | सचमुच कितना मुश्किल है दंगे- फसाद से पीड़ित लोगों की पीड़ा को अनदेखा करना | इंसान द्वीप नहीं , सामाजिक प्राणी है | एक दूसरे के साथ मिलजुल कर रहने में ही उस के जीवन की सार्थकता और शोभा है | पर कुछ कुटिल और अराजक तत्वों को निर्दोष लोगों का लहू बहाने और उनकी खुशियाँ बर्बाद करने में ही आनंद मिलता है | दिल्ली के दंगे इसका ताज़ा उदाहरण हैं | लोग तो शांति और सौहार्द से रह रहे थे , ये आपस में जहर घोलने वाले , धर्म के नाम पर हिंसा फ़ैलाने वाले लोग आखिर आये कहाँ से और हमने उन्हें पहचानने में देर कैसे कर दी ? यही एक प्रश्न है जो अनुत्तरित है | पर उस विकट स्थिति में आपसी वैमनस्य की भावना से दूर होकर ही हम उन लोगों के जख्में पर मरहम रख सकते हैं , निराशा के अँधेरे जिनका नसीब बन चुके हैं | आज की चर्चा में शामिल सभी रचनाओं को पढ़कर अच्छा लगा | सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनाएं | मेरी पुरनी रचना को भी ले आई तुम | आभार पर्याप्त नहीं | मेरी शुभकामनाएं सखी | तुम यूँ ही आगे बढती रहो . मेरी यही कामना है | सस्नेह ---

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  9. सहृदय धन्यवाद रेणु , समसामयिक विषय पर तुम्हारी इस बेहतरीन समीक्षा और इस स्नेह से भरे प्रोत्साहन के लिए दिल से आभार सखी ,सादर स्नेह

    जवाब देंहटाएं

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