स्नेहिल अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आप का हार्दिक स्वागत है।
विश्व रंगमंच का संदेश सृजनात्मक और शांतिमय समाज को पुष्ट करना है।
रंगमंच का फनकार सामाजिक राजनीतिक परिवेश को अपनी सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकित करता है और भविष्य की चिंताओं व भूत की ग़लतियों के प्रति अपना नज़रिया प्रस्तुत करता है जिसमें स्वतंत्रता, न्याय, बंधुत्त्व, समरसता के नैतिक मूल्य समाहित होते हैं जो इंसान की संवेदना को सोने नहीं देते।
किसी कलाकार के दिल में तड़प होती है बदलाव की, रचनाधर्मिता की जिसके लिये वह अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर देता है। रंगमंच विभिन्न विधाओं को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है। संवाद शैली में हुए निरंतर परिवर्तन रंगमंच को रोचक और समय की चुनौतियों के अनुकूल बनाते गये।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रंगमंच की उपलब्धियाँ अविस्मरणीय है। थियेटर कलाकारों को आज दुनिया सर-आँखों पर बिठाती है, उन्हें सलाम करती है।
-अनीता सैनी
आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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दोहे
शनिवासरीय प्रस्तुति में आप का हार्दिक स्वागत है।
विश्व रंगमंच का संदेश सृजनात्मक और शांतिमय समाज को पुष्ट करना है।
रंगमंच का फनकार सामाजिक राजनीतिक परिवेश को अपनी सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकित करता है और भविष्य की चिंताओं व भूत की ग़लतियों के प्रति अपना नज़रिया प्रस्तुत करता है जिसमें स्वतंत्रता, न्याय, बंधुत्त्व, समरसता के नैतिक मूल्य समाहित होते हैं जो इंसान की संवेदना को सोने नहीं देते।
किसी कलाकार के दिल में तड़प होती है बदलाव की, रचनाधर्मिता की जिसके लिये वह अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर देता है। रंगमंच विभिन्न विधाओं को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है। संवाद शैली में हुए निरंतर परिवर्तन रंगमंच को रोचक और समय की चुनौतियों के अनुकूल बनाते गये।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रंगमंच की उपलब्धियाँ अविस्मरणीय है। थियेटर कलाकारों को आज दुनिया सर-आँखों पर बिठाती है, उन्हें सलाम करती है।
-अनीता सैनी
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दोहे
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कल मेरी बेटी ने मुझे बताया कि
चीन में कोविद-19 के संक्रमण से मरने
वालों की संख्या बहुत अधिक होने की संभावना
व्यक्त की जा रही है
जिसका आधार यह है कि वहाँ दिसम्बर से अभी तक 70 लाख से
अधिक
सेलफोन और 8 लाख से अधिक बेसिक फोन कनेक्शन बन्द हुए हैं।
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सन् 1895 में कायस्थ कांफ्रेश का अधिवेशन काशी में होना तय हुआ.
बाबू श्यामसंदर
दास को जब यह बात पता चली तो उन्होंने नागरी प्रचारिणी सभा की ओर
से एक प्रतिनिध
मंडल कायस्थ अधिवेशन के सभापति बाबू श्रीराम के पास भेजा और
उनसे हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में सहायता करने
की प्रार्थना की.
बाबू श्यामसंदर दास को कायस्थ कांफ्रेस से इस बात की उम्मीद थी
कि यदि कायस्थ कर्मचारी दफ्तरों में उर्दू की जगह हिन्दी भाषा में अपना कार्य करने
लगे
तो नागरी भाषा का प्रचार सुगमता से किया जा सकता है
पतझड़ को दया न आयी
बसंत बहार का यौवन थे
अनुपम अद्भुत श्रृंगार थे
ये पीतवर्ण सूखे फूल-पत्ते,
पर्णविहीन टहनियों पर
लटके रह गये हैं अब
मधुमय मधुमक्खी के छत्ते।
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वह जो खटिया तुमने
साथ रहना है तेरे
ये दुनिया को गवारा नहीं...,
Corona si है मोहब्बत मेरी
मुझे किसी और की जरूरत नहीं
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मैं तुमसे मिली थी-
सूरज की लाली की गर्माहट में,
पुष्प-पंखुड़ी की मुस्कराहट में,
कैनवास के रंगों की लकीरों में,
शरारत से भरे नयनों के तीरों में,
झरने से उड़ती हुई शीतलता में,
मन की कमजोर सी अधीरता में,
दिन में सूरज और रात में चाँद सा है
कैसे इनकार करोगे कि
रात दिनकर का स्वागत न करे
कैसे रोकोगे मुझे कि
तुम्हारी चुपकी की पवित्र नाद से
मन भर की दूरी पर रहूँ?
चाहो तो मेरे प्रस्ताव पर ग़ौर करना
जितनी दूरी पर मैं हूँ तुमसे
इतने दायरे में मुझे हरदम मिलना.
ध्वंश हो गयी ध्वनि बेला
कुदरत के नए तांडव गांडीव से आज
अभिलेख ऐसा लिखा मानव ने
कायनात अपनी ही रूह से महरूम होती जाय
प्रलय काल बन गयी सम्पूर्ण सृष्टि
विलुप्त हो रहे सारे नैसगर्गिक भाव
वरदान थी जो प्रकृति अब तलक
दफ़न कर नए उत्थान की बात
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छोटा था तो अभिभावकों संग एक बार काशी में नागरी नाटक मंडली में रंगमंच से जुड़े कलाकारों के नाट्य मंचन को देखने का अवसर मिला था।
जवाब देंहटाएंरंगमंच पर वे अपने अभिनय के माध्यम से क्या संदेश दे रहे थे ।इसे समझने के लिए मेरा बाल मन उत्सुक था।
जब बड़ा हुआ तो पता चला यह दुनिया ही एक रंगमंच है और हम सब उसके कलाकार हैं। अंतर सिर्फ़ इतना है कि उस रंगमंच के कलाकारों को क्या नाट्य प्रस्तुत करना है, यह पहले से ज्ञात होता है और इस मंच के कलाकारों को समय और परिस्थितियों के अनुरूप स्वयं को बदलते रहना पड़ता है। उन्हें पहले से कुछ भी पता नहीं होता है और वह जिस नाट्य को प्रस्तुत करने की तैयारी वर्षों से करते आ रहे हैं , उससे इतर पलक झपकते ही रंगमंच का सारा दृश्य परिवर्तित हो जाता है और तब उसके नाट्य कला के कौशल की असली परीक्षा होती है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में जो अपने फ़न से जग को लुभा पाता है, रंगमंच से कोई संदेश छोड़ पाता है, वही सच्चा कलाकार कहलाता है।
समसामयिक भूमिका एवं प्रस्तुति अनीता बहन।
सभी रचनाकारों को प्रणाम।
चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंपूरे मन से संकलित की गयी सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
सुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसुंदर और ज्ञानवर्धक भूमिका के साथ लाज़बाब लिंकों का संकलन ,बेहतरीन प्रस्तुति अनीता जी ,सादर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक भूमिका के साथ बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
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