सादर प्रणाम
हार्दिक अभिवादन
*****
राजनीति चरम पर थी,सब एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगा रहे थे,धर्म - मजहब की जंग छिड़ी थी, जगह जगह पर धरने हो रहे थे, धर्म का व्यापार चल रहा था,भीड़ एक दूसरे पर टूट पड़ी थी, मानवता मर रही थी कि तभी एक और संकट आ गया।
*****
..... अरे यह क्या!!!
मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा,गिरिजाघर बंद!!!
कहाँ गये ईश्वर?
राजनीति का शोर भी बंद!!! अरे! सारे नेताओं के सुर एक हो गये!!
धरने भी बंद!! कहीं कोई भीड़ नही!! मानवता भी जीवित हो गई!! छीन कर खाने वाले लोग बाँट कर खाते दिख रहे!!!
क्या यह भारत ही है??
.... हाँ यह भारत है। वह भारत जो एक परिवार की तरह रहता है,जीता है। भाई -बहनों की तरह यह आपस में कितना भी झगड़े किंतु जब परिवार पर कोई संकट आता है तो इसकी एकता,इसकी सभ्यता,इसकी संस्कृती,इसका आपसी प्रेम देखते ही बनता है।
*****
आज सारा विश्व कोरोना से युद्ध लड़ रहा है। भारत भी इस युद्ध के लिए तैयार है। 21 दिनों के लॉकडाउन का आदेश हुआ है। हर घर के बाहर एक लक्ष्मणरेखा खिंच गयी। सभी ने अल्प सुविधाओं में जीना स्वीकार किया। हाँ कुछ लोग ऐसे भी हैं जो समय की गंभीरता को समझ नही रहे। घरों से बार बार बाहर आ रहे हैं और स्वयं को और देश को संकट में डाल रहे हैं। तो कुछ लोग कालाबाज़ारी से भी नही चूक रहे। ऐसे लोगों के चलते सरकार और पुलिस को सख़्ती दिखानी पड़ रही है जिसके चलते अन्य लोगों की परेशानी भी बढ़ रही है।
ऐसे लोगों से और सभी से यही कहूँगी कि जब भी हम आज़ादी की कहानियाँ पढ़ते हैं,उस वक़्त के संघर्ष के बारे में सुनते हैं जानते हैं,सेना के वीर जवानों को देखते हैं तो हमारे अंतर में भी यह इच्छा सदा ही उठती है कि हम भी अपने वतन के लिए कुछ करें। आज जब हमे यह अवसर मिला है तो हमे अपने व्यवहार से दिखाना होगा कि हम अपने वतन के लिए क्या क्या नही कर सकते फिर यह तो बस 21 दिनों का एकांतवास है।
यदि भारत यूँ ही एक मन होकर लड़ेगा तो कोरोना क्या कोई वायरस भारत का कुछ नही बिगाड़ेगा। भारत तो तपोभूमि रही है। व्रत,रोज़ा रखने वाला यह देश 21 दिनों का यह तप भी कर ही लेगा।
*****
आज जिस वक़्त हम यह प्रस्तुति तैयार कर रहे हमारे देश में 639 लोग कोरोना के मरीज़ हैं और 16लोगों की मौत हो चुकी है। यह आंकड़े हम इसलिए नही बता रहे कि आपको डराने की हमारी कोई मंशा है। नही... हम बस सावधान करना चाहते हैं क्योंकि इटली समेत वह सभी बड़े देश जो हमसे ज़्यादा विकसित हैं,जिनकी स्वास्थ्य सेवाएं हमसे उत्तम हैं जब उन देशों में कोरोना ने इतना हाहाकार मचा दिया तो हमारे यहाँ तो अभी 10000 लोगों पर 1 डॉक्टर उपलब्ध हैं। इसीलिए सभी से अनुरोध है कि आप सभी अपने अपने घरों में स्वस्थ और सुरक्षित रहें। हम मानते हैं कि अर्थव्यवस्था गिर रही है,कई समस्याएँ भी आ रही है और जो लोग रोज़ कमाते,खाते हैं उनके लिए तो और बड़ी समस्या किंतु यह युद्ध का समय है तो संघर्ष तो होगा ही किंतु आप सभी अपने इस देश पर,सरकार पर और अपनी माँ भारती पर विश्वास रखिए। यहाँ कोई भूख से नही मरेगा।
यदि हम 21 दिनों के लॉकडाउन को निभा गये तो यकीन मानिए कि 22 दिन हमे कोरोना मुक्त भारत मिलेगा।
- आँचल
*****
आगे बढ़ने से पूर्व आदरणीय गोपेश सर और आदरणीय शशि सर द्वारा फेसबुक पर साझा किया गया यह महत्वपूर्ण संदेश आप सबसे साझा करना चाहती हूँ।
*****
*****
"शाही-पनीर, मलाई-कोफ़्ता मत खाइए , हो सके तो ख़ुद दाल-रोटी खाइए
और अपनी तरफ़ से दो ज़रुरतमंदों को भी वही खिलाइए !
- गोपेश मोहन जैसवाल "
*****
और अपनी तरफ़ से दो ज़रुरतमंदों को भी वही खिलाइए !
- गोपेश मोहन जैसवाल "
*****
" हो सके तो व्रत में खाए जाने वाले मेवा -पकवान न खरीद कर उसके स्थान पर ब्रेड अथवा कोई अन्य खाद्य सामग्री किसी गरीब व्यक्ति को प्रदान करें, इससे इस संकटकाल में दोनों का ही कल्याण होगा। मातारानी की कृपा आपपर बनी रहेगी।
- व्याकुल पथिक "
*****
इन संदेशों को पढ़कर इसे साझा करने का उद्देश्य तो आप सब समझ ही गये होंगे। सभी ब्लॉगर साथी और आदरणीय साहित्यकारों का भी यही संदेश है। चलिए इसे अमल में लाते हैं।और अब आइये आगे बढ़ते हैं आज की रचनाओं की ओर -
*****
गीत
" नियमों को अपानाओगे कब "
सही दिशा दुनिया को देना
अपनी कलम न रुकने देना
भाल न अपना झुकने देना
सच्चे कवि कहलाओगे कब
जग को राह दिखाओगे तब
*****
क्लांत पथिक
खंडित बीणा स्वर टूटा
राग सरस कब गाया
भांड मृदा भरभर काया
ठेस लगे बिखराया ।
मूक हो गया मन सागर
शब्द लुप्त है सारे।
क्लांत हो कर पथिक बैठा
नाव खड़ी मझधारे।।
*****
नव संवत्सर अभिवादन
अब समय आ गया है
सजग सचेत सतर्क होने का ।
स्वयं से प्रश्न पूछने का,
क्या हमें यही चाहिए था
जो विनाश अब मिला है ?
या लक्ष्य भेद हो न सका ?
ध्येय से ध्यान भटक गया ।
*****
इन संदेशों को पढ़कर इसे साझा करने का उद्देश्य तो आप सब समझ ही गये होंगे। सभी ब्लॉगर साथी और आदरणीय साहित्यकारों का भी यही संदेश है। चलिए इसे अमल में लाते हैं।और अब आइये आगे बढ़ते हैं आज की रचनाओं की ओर -
*****
गीत
" नियमों को अपानाओगे कब "
सही दिशा दुनिया को देना
अपनी कलम न रुकने देना
भाल न अपना झुकने देना
सच्चे कवि कहलाओगे कब
जग को राह दिखाओगे तब
*****
क्लांत पथिक
खंडित बीणा स्वर टूटा
राग सरस कब गाया
भांड मृदा भरभर काया
ठेस लगे बिखराया ।
मूक हो गया मन सागर
शब्द लुप्त है सारे।
क्लांत हो कर पथिक बैठा
नाव खड़ी मझधारे।।
*****
नव संवत्सर अभिवादन
अब समय आ गया है
सजग सचेत सतर्क होने का ।
स्वयं से प्रश्न पूछने का,
क्या हमें यही चाहिए था
जो विनाश अब मिला है ?
या लक्ष्य भेद हो न सका ?
ध्येय से ध्यान भटक गया ।
*****
कविता का फूल
जंगम जलधि जड़वत-सा हो,
स्थावर-सा सो जाता हो।
ललना-सी लहरें जातीं खो,
तब चाँद अकुलाता हैं।
*****
ये जीवन है
दुनिया हक्की-बक्की है इन दिनों
जैसे उड़ा दिए हैं रंग किसी ने
खनकती सुबह की सबसे दुर्लभ तस्वीर के
और पोत दिया है उस पर
लम्बी अवसाद भरी रातों का सुन्न सन्नाटा
हवा भी बुझे मन से बह रही है कुछ यूँ
जैसे बोझिल क़दमों से लौटते हैं
लाश को दफ़नाते हुए निराश लोग
*****
डेढ़ सौ साल पहले लिखी गई कविता आज चरितार्थ हो रही है --
और लोग घरों में बंद रहे
और पुस्तकें पढ़ते सुनते रहे
आराम किया कसरत की
कभी खेले कभी कला का लिया सहारा
और जीने के नए तरीके सीखे।
*****
गुत्थी
अँधेरे कि बत्तियां सी बना
धीरे धीरे से आज.. मेरी रूह जलती है..
*****
कविता का फूल
जंगम जलधि जड़वत-सा हो,
स्थावर-सा सो जाता हो।
ललना-सी लहरें जातीं खो,
तब चाँद अकुलाता हैं।
*****
ये जीवन है
दुनिया हक्की-बक्की है इन दिनों
जैसे उड़ा दिए हैं रंग किसी ने
खनकती सुबह की सबसे दुर्लभ तस्वीर के
और पोत दिया है उस पर
लम्बी अवसाद भरी रातों का सुन्न सन्नाटा
हवा भी बुझे मन से बह रही है कुछ यूँ
जैसे बोझिल क़दमों से लौटते हैं
लाश को दफ़नाते हुए निराश लोग
*****
डेढ़ सौ साल पहले लिखी गई कविता आज चरितार्थ हो रही है --
और लोग घरों में बंद रहे
और पुस्तकें पढ़ते सुनते रहे
आराम किया कसरत की
कभी खेले कभी कला का लिया सहारा
और जीने के नए तरीके सीखे।
*****
गुत्थी
अँधेरे कि बत्तियां सी बना
धीरे धीरे से आज.. मेरी रूह जलती है..
*****
*****
पंख
निकले होते
हौले हौले
फैल कर
ढक लेते
सब कुछ
आँचल
की तरह
*****
*****
तो क्यों न ऐसा कुछ किया जाए
कि बिना गिलास भर उनसे संतरे का रस खरीदे हुए,
कि बिना दोने भर चटपटी चाट खाए हुए,
बिना रिक्शे पर बैठे हुए,
दाम चुकता कर दिया जाए
क्यों न इस बार
एक सौदा ऐसा किया जाए।
*****
मन मंदिर में स्थापित,साधना का शिवाला हो.....
एहसास की पूजा जज्बात की माला हो,
मन मंदिर में स्थापित,साधना का शिवाला हो,..
प्रेम लगन में पागल मैं बेसुध गोपी सी,
तुम निष्ठर चंचल नटखट नंदलाला हो,
*****
मन मंदिर में स्थापित,साधना का शिवाला हो.....
एहसास की पूजा जज्बात की माला हो,
मन मंदिर में स्थापित,साधना का शिवाला हो,..
प्रेम लगन में पागल मैं बेसुध गोपी सी,
तुम निष्ठर चंचल नटखट नंदलाला हो,
*****
शब्दसृजन-14 का विषय है-
"मानवता"
आप इस विषय पर अपनी रचना
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे तक ) तक
चर्चामंच के ब्लॉगर संपर्क (Contact Form ) के ज़रिये भेज सकते हैं
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा अंक में प्रकाशित की जायेंगीं।
*****
अब आज्ञा दीजिए
सादर प्रणाम
जय हिंद
आँचल पाण्डेय
*****
*****
ऐसा लगा है कि मनुष्य का पाखंड देख कर ईश्वर ने स्वयं अपने घर ( मंदिर) के द्वार बंद कर लिये हो।
जवाब देंहटाएंमानों वह कह रहा हो - हे मानव! एकांत में रहकर प्रायश्चित करो। कम सुविधाओं में जीना सीखो। पर्यावरण को अपने द्वारा निर्मित नाना प्रकार के वाहनों ,विमानों और कल- कारखाने के माध्यम से प्रदूषण मत करो। हाँ, यह और एक कार्य करना मत भूलना , जो भी है तुम्हारे पास उसमें से कुछ हिस्सा ग़रीबों को भी स्वेच्छा से पहुँचा दो, अन्यथा भूख से व्याकुल हो, यदि वे लॉक डाउन का उलंघन कर अपने घर से बाहर निकल गये , तो तुम्हारा 21 दिनों का यह एकांत व्रत निष्फल होगा और महामारी स्वागत के लिए तुम्हारे द्वार पर बिन बुलाए अतिथि की तरह खड़ी मिलेगी। इससे अच्छा है कि स्वयं किसी पात्र अतिथि ( ज़रूरतमंद ) का खोज करो। तुम्हारे पड़ोस में कई होंगे। जिस मानवता को इस अर्थयुग में तुम भूल बैठे हो, उसे पुनः अपना लो। "
समसामयिक भूमिका एवं विविध रचनाओं से सजा मंच धन्यवाद आँचल जी।
आभार आँचल जी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपठनीय सूत्र। शुक्रिया आंचल जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भूमिका और लाज़बाब लिंकों से सजी प्रस्तुति प्रिय आँचल ,स्नेह
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को ढेरों शुभकामनाएं ,सभी स्वस्थ रहें प्रसन्न रहे यही कामना हैं
बहुत अच्छी रही प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसही दिशा दुनिया को देना
जवाब देंहटाएंअपनी कलम न रुकने देना
भाल न अपना झुकने देना
सच्चे कवि कहलाओगे कब
जग को राह दिखाओगे तब
वाह।
बहुत सुंदर भाव।
बहुत सुंदर संकलन ।आभार
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मंच को नई दिशा दे जाती है आपकी रचनात्मकता व मौलिकता।
जवाब देंहटाएंभारत तो तपोभूमि रही है। व्रत,रोज़ा रखने वाला यह देश 21 दिनों का यह तप भी कर ही लेगा। वाह आंचल जी, सभी रचनाओं ने मनमोह लिया... अद्भुत संकलन इस कोरोना महामारी की वीभत्स हकीकत से हम मिल कर ही निबट सकते हैं
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंवाह! सुंदर संकलन और लाज़वाब भूमिका!!!
जवाब देंहटाएंBahut behatarin hum sabke liye ek prerna hai...Ye sabhi bate... Extremely nice..
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग में आपका योगदान सराहनीय है। आभार। .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संयोजन ।
जवाब देंहटाएंशामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई !
नव संवत्सर शुभ हो सबके लिए ।
मेरी कविता "मैं तुमसे मिली थी" को "विश्व रंगमंच दिवस-रंग-मंच है जिन्दगी"( चर्चाअंक -३६५४) में स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता सैनी जी।🙏 😊
जवाब देंहटाएं