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गुरुवार, मार्च 19, 2020

चर्चा - 3645

आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है
Sahityasudha
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धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क

9 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन चलने का नाम
    चलते रहो सुबह-ओ-शाम..

    सुबह- सुबह मन में उठ रहे अनेकों शोर को दबाने के लिए इस गीत की दो-चार पँक्तियों को गुनगुनाते हुये ठीक पौने पाँच बजे सड़क पर निकल पड़ा ।
    कोराना के भय से जहाँ प्रातः भ्रमण करने वाले लोग नकाबपोश बने दिख रहे थे, तो वहीं श्रमिक वर्ग सीना ताने उसे ललकार रहा है। कूड़ा बिनने वाली औरते और बच्चियाँ , सड़कों पर घुमने वाले विक्षिप्त और भिक्षुक जन उसे चुनौती दे रहे हैं - " अरे भाई कोरोना ,जरा इधर भी तो आ ,तब समझूँ की तू कितना बलवान किरौना है रे...। जब योगी सरकार के बीते तीन वर्षों में आये तथाकथित परिवर्तन से हम नहीं प्रभावित हुये ,तो फिर हे कोरोना ! तेरे भी आने- जाने से हमपर क्या फ़र्क पड़ेगा ?"

    बहरहाल, इस सुंदर अंक, विविधताओं से भरी रचनाओं के मध्य मेरे सृजन
    साँसों से रिश्ता ...
    को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार
    सभी को प्रणाम।

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    उत्तर
    1. बहुत ही मर्मस्पर्शी प्रतिक्रिया दी है आपने....

      हटाएं
  2. बिना किसी भूमिका के सीधे ब्ल़ॉगों के लिंक की प्रस्तुति।
    आपका यहीं अन्दाज तो बहुत लुभाता है चर्चा में।
    आभार आदरणीय दिलबाग विर्क जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सचमुच... To the point वाला अंदाज है ये... आदरणीय आपने सही कहा

      हटाएं
  3. मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद विर्क जी |

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति दिलबाग सिंह जी ! चर्चा में मेरे सृजन को मान देने के लिए आपका हृदयतल से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  5. जी! नमन आपको और साथ ही आभार आपका मेरी रचना/विचारधारा को चर्चा-मंच पर स्थान देने के लिए ...

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  6. अच्छी चर्चा,बढ़िया लिंक्स...

    जवाब देंहटाएं
  7. अच्छी चर्चा...
    मेरी ग़ज़ल को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं

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