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बुधवार, मार्च 11, 2020

"होलक का शुभ दान" (चर्चा अंक 3637)

सादर अभिवादन के साथ  
आप सबको होली की बधाई हो।
मित्रों!
होलिका भस्म हो गयी और भक्त प्रहलाद बच गये हैं। 
होली का त्यौहार, रंगों का त्यौहार या रंग पंचमी के उत्सव का समापन हो गया है। किसी कवि ने अपने सन्देश में कहा है-
"बीत गई होली..देकर

अपने निशां..
रंगे चेहरे...रंगी दीवारें..
रंगे फर्श... कर रहे हैं बयां...
रंगी बाल्टियां...
और रंगीन गलियां...
लेकर वादा...
मैं आऊंगी अगले बरस...
तब तलक...
ये उत्साह...ये उमंग...
ये प्यार... और ये दोस्ताना...
ये प्रीत के रंग...
दिलों में अपने कायम रखना..."
*****
शब्द सृजन-12 का विषय है-
"भाईचारा"
आप इस विषय पर अपनी रचना 
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे तक ) तक 
चर्चामंच के ब्लॉगर संपर्क (Contact  Form ) के ज़रिये भेज सकते हैं। 
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा अंक में प्रकाशित की जायेंगीं।
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अब देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक... 
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होली तो होली हुई, छोड़ गयी सन्देश।
भस्म बुराई हो गयी, बदल गया परिवेश।‍१।
--
पावन होली खेलकर, चले गये हैं ढंग।
रंगों के त्यौहार के, अजब-ग़ज़ब थे रंग।२।
-- 
जली होलिका आग में, बचा भक्त प्रहलाद।
जीवन में सबके रहे, प्यार भरा उन्माद।३।
 --
दहीबड़े-पापड़ सजे, खाया था मिष्ठान।
रंग-गुलाल लगा लिया, गाया होली गान।४।
-- 
मिला हुआ था भाँग में, अदरख-तुलसीपत्र।
बौराये से लोग थे, यत्र-तत्र-सर्वत्र।५।
--
देख खेत में धान्य को, हर्षित हुआ किसान।
होली में अर्पित किया, होलक का शुभदान।६। 
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पूनम के चाँद आज तुम उदास क्यों? 

पूनम के चाँद आज तुम उदास क्यों...?
दुखी दुखी से हो धरा के पास क्यों.....?
फाग के रंग भी तुमको न भा रहे,
होली हुड़दंग से क्यों जी चुरा रहे ?
धरा के दुख से हो इतने उदास ज्यों !
दुखी दुखी से हो धरा के पास क्यों... 
नई सोच - सुधा देवरानी
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पहाड़ों पे 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा  
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होली मुबारक.. 

भंग में रंगों की तरंगें मुबारक  
गली में नुक्कड़ों में हुड़दंगें मुबारक... 
Yashwant Mathu 
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सच्चा सम्मान 

...चौकी प्रभारी श्री यादव ने बड़ी  आत्मीयता से उस वृद्ध मैया को भोजन ग्रहण करवाया । इस पर बुढ़िया की आँखें छलक उठीं। वह दरोगा बाबू को अपने संतानों से भी कहीं अधिक दुआ देती है...
व्याकुल पथिक 
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होली गीत 

दोहा  छन्द
होली के त्यौहार में,जीवन का उल्लास ।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास।।

बहन होलिका गोद में, ले बैठी प्रहलाद।
रहे सुरक्षित आग में ,ये  था आशीर्वाद  ।।
अच्छाई की जीत में ,हुई अहम् की हार ।
दहन होलिका में करें ,अपने सभी विकार ।।
अभिमानी के अंत का ,सदा रहा इतिहास
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ... 
काव्य कूची पर anita _sudhir  
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मेरी परछाईं 

मेरी ही जाई! वो मेरी ही परछाईं! 
थी कितनी हरजाई!
बीती, जब जीवन की अमराई,
मंद पड़ी, जब जीवन की जुन्हाई,
पास कहीं ना, वो दिखती थी,
शायद, वो थी अब घबराई... 
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
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महा श्रृंगार छन्द पीर मन की  

संजय कौशिक 'विज्ञात' 

शिल्प विधान :- यह चार पक्तियों का छन्द है, प्रत्येक पक्ति में कुल 16 मात्रायें हो ती हैं। प्रत्येक पक्ति का अन्त गुरु लघु से करना अनिवार्य होता है, दूसरी व चौथी पक्ति में तुकांत समतुकांत रहेगा। विशेष ध्यान रखने योग्य कि इस छंद में तुकान्त मिलान उत्तमता के उद्देश्य से प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ पंक्ति के तुकांत मिलान सर्वोत्तम आदि में त्रिकल द्विकल व अंत द्विकल त्रिकल से करना चाहिए। आइये अब इस छंद के शिल्प को उदाहरण के माध्यम से समझते हैं... 
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शुभकामनाएँ 

आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएं। रंगों का यह त्योहार आपके जीवन को भी रंगीन बनाए, एवं हर ख़ुशी, सुख, समृद्धि,स्वास्थ्य, वैभव एवं ऐश्वर्य प्रदान करें, यही कामना। 
पी.सी.गोदियाल "परचेत"  
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मृत्युंजय साधक के कुछ दोहे 

.लोहे- सरिए जोड़के, खर्चे किए करोड़। 
सबसे ऊँचा कौन हो,लगी बुतों की होड़... 
Sp Sudhesh  
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होली की उदासी 

रंगहीन रंग होली के 
फगवा हुआ उदास 😢😢 
लाल' गए और घर गए 
नही होली में उल्लास 
मेरी सोच !! कलम तक पर अरुणा 
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उद्धव-कृष्ण 

उद्धव कमाधमाकर होली की छुट्टियों में बड़े उत्साहित होकर द्वारिकापुरी पहुँचे तो बड़ा हैरान-परेशान हो गए। न कहीं रंग न राग, न कोई समारोह न कोई फाग। अपने घर बाद में गए पहले कन्हैया के घर पर ही जा पहुँचे। 16108 रानियाँ अपने-अपने भवन में और कन्हैया उदास अपने महल के बरामदे में शून्य की ओर निहार रहे थे। जैसे ही उद्धव को अपनी ओर आते देखा हड़बड़ाकर खड़े हो गए। बोले, "ऐ! ऐ! उद्धव वहीं खड़े हो जाओ, पास मत आना।" 
अब तो उद्धव और परेशान ठिठककर वहीं खड़ा हो गया, "भगवन्! क्या मुझसे कोई अपराध हो गया है? मुझे क्यों दुत्कार रहे हैं?"
भगवान बोले, "उद्धव क्या बतायें? अपराध तो मुझसे हो गया। सृष्टि निर्माण के समय जब मैं ब्रह्मा के रोल में प्राणियों का निर्माण कर रहा था तब मूल उत्पाद के साथ कुछ मल उत्पाद भी तैयार हो गए। ये मल उत्पाद मानव-मात्र के लिए बहुत हानिकारक थे। मैंने उन्हें शाप देकर निष्क्रिय कर दिया था। आजकल उन्हीं में से एक शापमुक्त होकर संसार भ्रमण पर निकल पड़ा है। ये सब उसी का प्रभाव है। कि तुम मेरे अभिन्न होते हुए भी दूर रहने को विवश हो।"... 
विमल कुमार शुक्ल 'विमल' - 
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10 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर भूमिका और प्रस्तुति,
    अपने मीरजापुर में सम्भवतः पहली बार आसमान भी होली खेलते दिखा। पूर्वाह्न 10 बजे के करीब से अपराह्न 1 बजे तक लगा कि आसमान ने भी पिचकारी निकाल ली है। ठंड बढ़ी, लेकिन बच्चों एवं युवाओं पर ठंड का असर नहीं रहा । हाँ, प्रशासन का होमवर्क अच्छा रहा। जिससे किसी तरह का उपद्रव नहीं हुआ और आपसी " भाईचारा " कायम रहा।
    मेरे सृजन " सच्चा सम्मान "को मंच पर स्थान देने के लिए आपका आभार गुरुजी। सभी को प्रणाम।

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. "बीत गई होली..देकर
    अपने निशां..
    रंगे चेहरे...रंगी दीवारें..
    रंगे फर्श... कर रहे हैं बयां...
    लेकर वादा...
    मैं आऊंगी अगले बरस...
    तब तलक...
    ये उत्साह...ये उमंग...
    ये प्यार... और ये दोस्ताना...
    ये प्रीत के रंग...
    दिलों में अपने कायम रखना..."
    होली में अन्तर्निहित भावों को समेटे इस अनूठी प्रस्तुति में मेरी दो रचनाओं को स्थान देने हेतु मंच का आभारी हूँ।
    शुभ प्रभात

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  4. मैं आऊंगी अगले बरस...
    तब तलक...
    ये उत्साह...ये उमंग...
    ये प्यार... और ये दोस्ताना...
    ये प्रीत के रंग...
    दिलों में अपने कायम रखना..."
    बहुत सुन्दर सीख देती कविता से सजी भूमिका और विविधताओं से सम्पन्न सूत्रों से सजी सुन्दर प्रस्तुति ।

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  5. बहुत अच्छी रंगारंग होली प्रस्तुति

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  6. मैं आऊंगी अगले बरस...
    तब तलक...
    ये उत्साह...ये उमंग...
    ये प्यार... और ये दोस्ताना...
    ये प्रीत के रंग...
    दिलों में अपने कायम रखना..."
    बहुत ही सुंदर संदेश ,बेहतरीन चर्चा अंक सर ,सादर नमस्कार आपको

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    उत्तर
    1. होली के रंगों से सजी सुंदर प्रस्तूति।
      मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका सर जी

      हटाएं
  7. सुन्दर भूमिका के साथ शानदार चर्चा मंच सभी रचनाएं बेहद उम्दा एवं उत्कृष्ट।
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद।
    सादर आभार....।

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  8. मैं आऊंगी अगले बरस...
    तब तलक...
    ये उत्साह...ये उमंग...
    ये प्यार... और ये दोस्ताना...
    ये प्रीत के रंग...
    दिलों में अपने कायम रखना..."बेहतरीन भूमिका से सजी आज की प्रस्तुति आदरणीय सर. सभी रचनाकरो को हार्दिक बधाई.

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