सुप्रभात मित्रों।
देखिए बुधवार की चर्चा में मेरी पसन्द के कुछ लिंक..
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शीर्ष पंक्ति अभिलाषा चौहान जी के ब्लॉग
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कवि बनने का फैशन बनाम पैशन | डॉ. वर्षा सिंह पिछले लगभग वर्ष भर के कोरोना काल में सोशल मीडिया पर मानों कवियों की बाढ़-सी आ गई। साहित्य में तनिक भी रुचि रखने वालों के पास समय भी था और अपने मित्रों की रचनाओं की प्रेरणाएं भी थीं। इससे हुआ यह कि कुछ कच्चे, कुछ पक्के कवियों की एक पूरी खेप तैयार हो गई। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो साहित्य की उर्वर भूमि में अनेक पौधे उग आए जिनमें कुछ सुंदर, सुगंधित पौधे हैं तो कुछ खरपतवार। लेकिन उत्साह की तनिक भी कमी नहीं। ऐसे में अनेक काव्य संग्रहों का प्रकाशित हो कर सामने आना स्वाभाविक है। लिहाज़ा, पिछले दो-तीन माह से लगातार काव्य संग्रह प्रकाशित हो रहे हैं और अब इनके विमोचन/लोकार्पण कार्यक्रमों का सिलसिला शुरू हो गया है। इनमें ग़ज़ल संग्रह, गीत संग्रह, दोहा संग्रह तथा कविता संग्रह आदि सभी हैं। --
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संवाद विवाह से पहले शादी के बाद ( वार्तालाप ) डॉ लोक सेतिया बात घर घर की है जानते हम भी हैं समझते आप भी हैं मानते नहीं ज़माने से छिपाते हैं। पत्नी समझ नहीं पाई बड़ी हैरान है पति किस बात को लेकर परेशान है। बोली अपने नेता जी आपको क्यों भला खराब लगते हैं हमको बड़े लाजवाब लगते हैं उनके रंग ढंग सज धज देखते हैं सभी सच कहो वही असली नवाब लगते हैं। पति कहने लगे कितने झूठे हैं क्या क्या वादे किये थे नहीं निभाए हैं। --
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समता यदि साध ले कोई जीवन फूल की तरह नाजुक है तो चट्टान की तरह कठोर भी। पथरीले रस्तों के किनारे कोमल पुष्प खिले होते हैं और कोमल पौधों पर तीक्ष्ण कांटे उग आते हैं। यहाँ विपरीत साथ-साथ रहता है। शिव के परिवार में बैल और सिंह दोनों हैं, सर्प और मोर में सामीप्य है। जो विपरीत में समता बनाए रखना जानता है वह जीवन के मर्म को छू लेता है। --
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जिंदगी का फलसफा ये सख्त सी जिंदगी है दोस्तों, ये कई बार भुरभुरी सी होकर हाथों से फिसलने लगती है, ऐसा भी लगता है कि हम अपने आप से कोसों दूर निकल गए हैं, कहीं दूर एक स्याह रेगिस्तान की ओर...। जिंदगी का फलसफा भी अजीब है ये हमें अपने आप ही थकाती है और अपने आप ही तरोताजा भी कर जाती है.. --
चाँदनी भी है सिसकती भावनाएँ मर चुकी हैं
वेदना मन में हुलसती
चाँद भी मद्धिम पड़ा है
चाँदनी भी है सिसकती।।
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क्यूँ विसराया मुझे क्यूँ विसराया मुझे
मेरे मन के मीत
मेरी क्या रही खता
जो तुम भूले मुझे |
मैंने रात भर जाग कर
राह देखी तुम्हारी
फिर क्यूँ मुझे विसराया
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आलोक वर्षों के बाद न जाने कितने आलोक वर्ष पार हुए,
तब जा के कहीं, मैंने तुम्हें है
पाया, न जाने कितने
जन्म - जन्मांतर
के बाद नियति
ने हमें
फिर से है मिलाया --
मंज़िल आज अवसर आया है
कि प्लेटफ़ॉर्म पर हूँ.
घंटी हो चुकी है,
ट्रेन बस पहुँचने ही वाली है,
पर अब जब रवानगी पास है,
तो दिल बहुत उदास है.
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#RealtionshipCrisis: आंकड़े बोल रहे हैं… बढ़ रही है कुमाताओं की संख्या मशहूर शायर बशीर बद्र का एक शेर है-”काटना, पिसना
और निचुड़ जाना
अंतिम बूँद तक….
ईख से बेहतर
कौन जाने है,
मीठे होने का मतलब?”
मां भी ऐसी ही ईख होती है जो बच्चे के लिए कटती, पिसती, निचुड़ती रहती है अपनी अंतिम बूंद तक…और मीठी सी जिंदगी के सपने के साथ साथ ही कठिनाइयों से लड़ने का साहस भी उसके अंतस में पिरोती जाती है…ताकि जब वह जाग्रत हो उठे तो संसार को सुख, उत्साह और प्रगति से भर दे।
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आज के लिए बस इतना ही...।
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सुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसुंदर लेख व खूबसूरत कविताएं ❤️
जवाब देंहटाएंमेरी कविता को शीर्षक रुप में देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 बेहतरीन रचना संकलन के साथ बेहतरीन प्रस्तुति,सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं मेरी रचना को चर्चा अंक में चयनित करने के लिए आपका पुनः धन्यवाद 🙏🌹
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ...। सभी रचनाएं श्रेष्ठ हैं....। सभी को बधाई...।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ चर्चामंच, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीय - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआज के अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
आपका हृदय से आभार सर
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक से सुज्ज्जित चर्चा...मेरी पोस्ट् को चर्चा में शामिल करने के लिए आभार....
जवाब देंहटाएंपठनीय रचनाओं के सूत्रों की खबर देती सुंदर चर्चा ! बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंसादर नमन 🙏
अनेक बेहतरीन लिंक्स का ख़जाना है आज का यह अंक... साधुवाद 🙏
आपने मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंसादर।
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