सादर अभिवादन !
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सभी विज्ञजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन !
आज की चर्चा प्रस्तुति का शीर्षक आदरणीय दिलबाग सिंह जी "विर्क" ग़ज़ल से लिया गया है ।
--
आइए अब बढ़ते हैं अद्यतन सूत्रों की ओर -
--
पाँच मार्च "पौत्र रत्न के रूप में, मुझे मिला उपहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मना रहे थे लोग जब, होली का त्यौहार।
पौत्र रत्न के रूप में, मुझे मिला उपहार।।
जन्मदिवस पर पौत्र को, देता हूँ आशीष।
पढ़-लिखकर बन जाइए, वाणी के वागीष।।
***
भूलकर औक़ात, क्या से क्या हो जाते हैं लोग
थोड़ी-सी ताक़त पाकर ख़ुदा हो जाते हैं लोग।
तमन्ना रखते हैं, कि उम्र भर निभती रहे दोस्ती
छोटी-सी बात को लेकर खफ़ा हो जाते हैं लोग।
***
मन टूटा, तन टूटा,टूटा न अटूट विश्वास
मोह-माया का टूटा पिंजर मुक्त हुई हर श्वाँस
देह धरती पर जले दीप-सी आत्मा में उच्छवास
मनस्वी को मिला बुद्धत्व पहना उन्हीं-सा लिबास।
***
मोए पढ़न खों जाने हैं- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
अम्मा ! छुटकी को समझा देओ
ऊको सोई स्लेट दिला देओ
ऊको मोरे संग भिजवा देओ
दोई जने खों ड्रेस सिला देओ
मोए पढ़न खों जाने हैं ......
***
"खिलते हैं फूल बनके चुभते हैं हार बनके"
"आभासी दुनिया के रिश्ते" जो आजकल समाज में यथार्थ रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण जगह बना चुका है। सोशल मीडिया के नाम से प्रचलित अनेकों ठिकाने हैं जहाँ ये रिश्ते बड़ी आसानी से जुड़ रहें हैं और हवाई पींगे भर रहें हैं "फल-फूल भी रहें हैं" ये कहना अटपटा लग रहा है।
***
दरक गया है
इस कदर दिल
कि ऐ ज़िन्दगी
बता कैसे मैं
तेरा ऐतबार करूँ ?
***
अंतर्मन को छूना, प्रहार से भारी है
तुम ऐसा क्या करती हो!!!
जो कि मेरे प्रहार से संभव नहीं!!!
चाबी ने कहा...
तुम बाह्य प्रहार करते हो पर मैं...
अंतर्मन को छूती हूँ।
***
चलता रहेगा समय का पहिया,
होगी रात तो दिन भी होगा।
माना कि मावस है कई दिनों की,
फिर अपने शवाब पे पूरा चाँद भी होगा।
***
प्रेम
कभी किया था
तुमने मुझसे?
या मैंने ही तुमसे ?
या फिर
फिर था प्रेम
तुम्हें मेरे होने के ख्याल से
***
नाम तुम्हारा | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह |
सुनते हैं सदी पहले कुछ और नज़ारा था
इस रेत के दरिया में पानी था, शिकारा था
रिश्तों से, रिवाज़ों से, बेख़ौफ़ हथेली पर
जो नाम लिखा मैंने, वो नाम तुम्हारा था
***
बकवास बिना कर लगे है करिये कोई नहीं है जो कहे सब पैमाने में है
बड़ी भीड़ है
कोई बात नहीं है
तेरा जैसा है ना एक आईना है
देख ले खुश हो ले तेरे साये में है
***
एक ग़ज़ल- रंगोली की उँगलियों को ये पिचकारी सिखाती है
तजुर्बे से लड़कपन को समझदारी सिखाती है
ये माँ ! रोते हुए बच्चे को किलकारी सिखाती है
ये हिन्दू है तो गीता और रामायण,पढ़ाती है
मुसलमां हो तो रोज़ा और इफ्तारी सिखाती है
***
मेरी यह दृढ़ मान्यता और दृढ़ विश्वास है कि हमारी आस्था जीवन-मूल्यों, नैतिक सिद्धांतों तथा सद्गुणों में होनी चाहिए न कि व्यक्तियों में । व्यक्ति-पूजा अनेक जोखिमों से युक्त होती है । इसके अतिरिक्त यह न तो व्यष्टि के हित में होती है और न ही समष्टि के हित में ।
***
बात उन दिनों की है जब में लाखेरी (राजस्थान)मेंं डी ए वी स्कूल मेंं कार्यरत थी । कक्षा छ: की कक्षा अध्यापिका थी । हमारे स्कूल का नियम था कि रोज प्रार्थना सभा के बाद अपनी-अपनी कक्षा के विद्यार्थियों के नाखून और दाँतों का निरीक्षण किया जाए ।
***
आपका दिन मंगलमय हो..
फिर मिलेंगे 🙏
"मीना भारद्वाज"
--
आभार मीना जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंख़ुदा हो जाते हैं लोग...वाह!गज़ब का शीर्षक।
दिनभर एक-एककर सभी रचनाए पढूँगी।
सादर
बहुत सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका समस्त संकलन उत्तम है मीना जी । अभिनंदन । साथ ही मेरे आलेख को स्थान देने हेतु हृदय से आपका आभार ।
जवाब देंहटाएंसार्थक लिंकों के साथ पठनीय चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
खूबसूरत संकलन सखी मीना जी ।मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदय से आभार ।
जवाब देंहटाएंअद्भुत प्रयोग
जवाब देंहटाएंमैं भी भेजना चाहता. हूँ।
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक पढनीय सूत्रों से सजी प्रस्तुति,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार मीना जी
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा, पठनीय लिंक। बहुत अच्छा कार्य कर रहे हो आप सभी। 🙏
जवाब देंहटाएं'बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसदा की तरह सुंदर व उम्दा अंक
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना भारद्वाज जी,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति... हमेशा की तरह
सभी लिंक्स, सारी रचनाएं पठनीय और दिलचस्प
साधुवाद 🙏
आपने मेरी पोस्ट को भी शामिल कर मुझे जो मान
दिया है उसके लिए मैं हृदय से आपके प्रति आभारी
हूं।
हार्दिक धन्यवाद 🙏
शुभकामनाओं सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
मीना भारद्वाज जी,
जवाब देंहटाएंयह अत्यंत सुखद है कि मेरे बुंदेली बालगीत को आपने चर्चा मंच में स्थान दिया है। आपका हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
- डॉ शरद सिंह
बहुत रोचक, पठनीय लिंक्स को श्रमपूर्वक संजोने के लिए आपको साधुवाद मीना जी 🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर,सारगर्भित एवं स्मरणीय अंक..बहुत बहुत आभार मीना जी..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं