सादर अभिवादन !
शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सभी विज्ञजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन !
आज की चर्चा प्रस्तुति का आरम्भ अज्ञेय जी की रचना नया कवि: "आत्म स्वीकार " कवितांश से-
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किसी का सत्य था,
मैंने संदर्भ से जोड़ दिया।
कोई मधु-कोष काट लाया था,
मैंने निचोड़ लिया।
किसी की उक्ति में गरिमा थी,
मैंने उसे थोड़ा-सा सँवार दिया
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आइए अब बढ़ते हैं अद्यतन सूत्रों की ओर -
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"महादेव शिव बन गये, विष का करके पान"
शिव मन्दिर में ला रहे, भक्त आज उपहार।
दर्शन करने के लिए, लम्बी लगी कतार।१।
बेर-बेल के पत्र ले, भक्त चले शिवधाम।
गूँज रहा है भुवन में, शिव-शंकर का नाम।२।
काँवड़ लेकर आ गये, भाई-बहन अनेक।
पावन गंगा नीर से, करने को अभिषेक।३।
***
क्यूँ ये मन उदास है ?
किसकी इसे तलाश है ?
सीने में हूक सी उठती है।
क्यूँ दर्द से दिल ये बेजार है ?
ना कुछ खोया,ना पाया है।
फिर किस बात का मलाल है ?
***
अलख सी जलने लगी, चारों दिशा में
शंखध्वनि करताल भी बजने लगे ।
डम डमा डम डमरुओं के मधुर धुन पे
झूम झूम नृत्य सब करने लगे ।।
***
नारी ममता का सागर है।
अनमोल गुणों की गागर है॥
निर्मल जल धारा सी बहती।
अपना दुख न किसी से कहती॥
***
शिवजी की बरात निकली
बहुत धूमधाम से
शिव पार्वती मिलन हुआ
विधि विधान से |
पार्वती ने पाया था
मनोनुकूल वर
कठिन तपस्या से
***
सलिल कण के जैसी हूं मैं
कभी कहीं भी मिल जाती हूं
रीत कोई हो या कोई रस्में
आसानी से ढल जाती हूं.
व्योम के जैसे हूं विशाल भी
और लघु रूप आकार हूं मैं
***
और इसी तरह के
कुछ लिखे लिखाये से
प्रश्न उठना शुरु होते हैं
कोई कुछ भी लिख देता है
और खड़ा हो लेता है
प्रतियोगिता में
विद्वानों के साथ
***
संसार में मानवों के इतर भी एक विशाल दुनिया है। उसमें आए दिन बदलाव भी होते रहते हैं। पर जिस पर हमारा ध्यान कम ही जाता है और कुछ का तो पता ही नहीं चल पाता कि कब क्या हो गया ! जैसे दो-तीन साल पहले तक हमारे इलाके में काफी गौरैया दिखा करती थीं पर आज बड़ी मुश्किल से नजर आती हैं !
***
न जाने कितनी बार झुलसी
हुई रातें गुज़री, बंजर
ज़मीं से हो कर
बूंदों की
बरसातें गुज़री, इक तिश्नगी
जो रूह को बियाबां करता रहा,
***
सूर्य नहीं कहता वह सूर्य है
उसकी किरणें ही बताती हैं
चाँद अपना नाम नहीं लिखता आसमान पर
चाँदनी बयान करती है उसका हाल
परमात्मा फिर क्यों कहे वह भगवान है
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बहुत खलती है मुझे चुप्पी,
बड़ी डरावनी होती है यह,
रिश्तों के टूटने का ख़तरा
बहुत ज़्यादा होता है चुप्पी में.
***
खजुराहो में हैं शिव के सभी रूप
त्रिदेव में तीसरे देवता महेश अर्थात शिव हैं। जिनकी विविधता पूर्ण अनेक प्रतिमाएं खजुराहो के मंदिरों
में मिलती है। ये एक ऐसे देव है जिनकी आराधना वैदिक काल से पूर्व सैन्धव युग में की जाती थी। वैदिक काल में शिव का रूद्र रूप अधिक प्रसिद्ध रहा।
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आपका दिन मंगलमय हो..
फिर मिलेंगे 🙏
"मीना भारद्वाज"
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श्रम के साथ की गयी सुन्दर चर्चा प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
सुन्दर चर्चा.आपका आभार
जवाब देंहटाएंआभार मीना जी।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ चर्चामंच, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं से सजी बहुत ही सुंदर चर्चाअंक, मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय धन्यवाद मीना जी,
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें एवं सादर नमन
बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकविवर अज्ञेय जी का कवितांश मोह गया।
किसी का सत्य था,
मैंने संदर्भ से जोड़ दिया।..वाह!निशब्द।
दिल से आभार आदरणीय मीना दी रचनाएँ पढ़वाने हेतु।
सादर नमस्कार।
बहुत सुंदर उद्गारों के साथ सुंदर शीर्षक।
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक।
सभी रचनाकारों को बधाई।
बहुत सुन्दर रचनाओं का लिंक समूह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का लिंक्स, सुंदर प्रस्तुति तथा श्रमसाध्य कार्य हेतु आपको सादर शुभकामनाएं ..मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं मीना जी..आपको मेरा नमन एवम वंदन..
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना जी , सुंदर अंक जिसकी प्रशंसा जितनी करूं उतनी कम है | सभी लिंक्स का अवलोकन किया | हालांकि प्रतिक्रिया नहीं दे पाई पर बहुत अच्छा लगा सभी को पढ़कर | आज पहले के भी कई लिंक्स देखे | मंगलवार का विशेष अंक देखा | अंक अच्छा था पर विशेष प्रस्तुति के तौर पर मुझे चर्चा मंच के समस्त चर्चाकारों में चर्चा मंच की बहुत ही शालीन , शिष्ट और गरिमामयी चर्चाकारा राधा तिवारी जी की अनुपस्थिति से घोर आश्चर्य भी हुआ और दुःख भी | राधा जी ने चर्चा मंच को खूब समय देकर अपनी सेवायें दी और मंच ने उन्हें इतनी जल्दी भुला दिया ये बड़ी हैरत की बात है | ज्यादा आश्चर्य शास्त्री सर पर हुआ | वे भी मौन रहे जो बिलकुल उचित नहीं था | इतनी समर्पित सहयोगी को इस ख़ास मौके पर याद ना करना बहुत खल गया | आशा है उन्हें यहाँ पढ़कर जरुर याद आयेगा कि उनकी चर्चा यात्रा में राधा जी का कितना योगदान रहा | यदि ज्यादा कह गयी तो क्षमा चाहती हूँ | सस्नेह शुभकामनाएं और आभार |
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु जी ,
हटाएंसादर नमस्कार🙏चर्चा मंच का नया सहयोगी होने के नाते मेरी अनभिज्ञता रही यहाँ पर । मंच का सहयोगी सदस्य होने के नाते आदरणीया राधा तिवारी जी के लिए सभी सुधीगण और आदरणीया राधा जी से करबद्ध क्षामाप्रार्थी हूँ । बहुत बहुत आभार त्रुटि इंगित करवाने हेतु । आपका स्नेह और सलाह अनमोल हैं । पुनः सादर आभार 🙏🙏
सिर्फ राधा जी ही नहीं कुछ और भी छूटे हैं, लेकिन इसे मुद्दा बनाया जाना उचित नहीं क्योंकि चर्चा मंच का लंबा इतिहास है और एक चर्चा में सबको समेटना आसान नहीं था। कमियां निकालना आसान होता, जबकि हमें चाहिए कि इतने श्रमसाध्य काम की तारीफ की जाए। चर्चा मंच पर 1000वीं, 2000वीं, 3000वीं पोस्ट भी आई थी लेकिन किसी ने विशेष बनाने की नहीं सो ही। इस पहल का स्वागत हो न कि कमियां निकालकर किसी चर्चाकार को हतोत्साहित किया जाए। अगर ऐसा किया गया तो कोई भी ऐसा विषेश अंक नहीं लगाएगा, जिसमें सामान्य से ज्यादा मेहनत लगती हो
हटाएंकिस राधा तिवारी की बात कर रही हो रेनू आप। मुझे पता है कि उन्होंने कितनी चर्चाएँ लगाई है। सच कहा जाये तो उन्होंने एक भी चर्चा नहीं लगाई है। उनके नाम और सहमति से 100 प्रतिशत चर्चाएँ मैंने ही की हैं। मेरा अधिक मुँह मत खुलवाइए कि उनके लेखन और पुस्तक प्रकाशन में मैंने कितना सहयोग रहा है। और हाँ रेनू को यह अधिकार किसने दिया कि वह इस प्रकार की फूहड़ और निचले स्तर की टिप्पणी करे।
हटाएंगर्व की बात तो यह है कि बिटिया अनीता सैनी ने श्रम करके चर्चा लगाई है। जिन चर्चाकारों के नाम छूट गये है उनके नामों का उल्लेख भी समय-समय पर किया जायेगा। बहन यशोदा जी के नाम का उल्लेख भी तो 4000वीं पोस्ट में था। पोस्ट का आकार अधिक न बढ़ जाये इसलिए 2015 तक के चर्चाकारों की रचनाओं का ही लिंक अनीता सैनी ने दिया था। हम किसी को भूले नहीं हैं सबकी वफाएँ और बेवफाई भी हमें पूरी तरह से याद हैं। समझदार को इशारा ही काफी है।
आप क्यों क्षमा माँग रही हो आदरणीय मीना भारद्वाज जी।
हटाएंजिसका चर्चा मंच से कोई लेना-देना ही ही नहीं है उसकी बात का क्या मलाल करना।
सच पूछा जाये तो ऐसे लोग चर्चा मंच पर द्वेष फैलाने ही आते हैं।
"किया धरा कुछ भी नहीं, ऐसे मूर्ख जनाब।
योगदान जिसका नहीं, माँगे वही हिसाब।।"
सादर आभार आदरणीय सर. आपके सहयोग और आशीर्वाद से आपके द्वारा स्थापित मंचरूपी वटवृक्ष दिनोदिन फलता-फूलता रहे और नये आयाम स्थापित करे यही कामना है ।
हटाएंफूहड़ और निचले स्तर की टिप्पणी... क्या वाकई??
हटाएंनिचले स्तर की टीप्पणी रेणु जी की थी या खुद के गिरेबाँ में झांकने की जरूत है मयंक जी।
ऐसा-वैसा बोलने के अधिकार की बात करी आपने...
पहली बात- ये एक चर्चा मंच है तो चर्चा तो होगी ही।
दूसरी बात- क्या ये एक सार्वजनिक विचार धारा का मंच नहीं है?
एक तथ्य पर गौर कीजिएगा- किसी को उसकी पोस्ट पर सूचना देने मात्र से उस पोस्ट को चर्चा मंच पर लगाने की परमिशन नहीं मिल जाती।
आप लोग भी तो सूचना ही देते हो, परमिशन का इंतजार थोड़ी करते हो। या करते हो??
आपकी लिखी ही पंक्तियां कॉट कर रहा हूँ जो आपने महिला दिवस पर छापी थी-
सीमाओँ में है बँधी, नारी की आवाज।
नारी की कमनीयता, कमजोरी है आज।।
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सदियों से महिलाओं का, होता मर्दन मान।
अहंकार का पुरुष में, अब भी भाव प्रधान।।
ये आपकी अपनी निजी पंक्तियां, आपकी इस टिप्पणी के मुताबिक आपके अपने व्यक्तिगत चरित्र पर भी सटीक उतरती है।
जहां सुधार की आवश्यकता हो वहां सुधार कर लेना चाहिए।
और हां इशारा ही काफी है...
आदरणीय सर . यदि मुझे पता होता कि साहित्यिक मंच पर एक स्नेही महिला सहयोगी को याद करना और सहज प्रतिक्रिया देना इतना बुरा है तो शायद मैं कभी ना लिखती |जिस तरह से संवाद की परिणिति एक भद्र महिला चर्चाकार के सम्मान को अशोभनीय तरीके ठेस लगने के रूप में हुई उसके लिए शायद मैं अपने आप को कभी माफ़ न कर पाऊँ | वरिष्ठजनों के सानिध्य में नए रचनाकार बहुत कुछ सीखते और मार्गदर्शन पाते हैं तो एक वरिष्ठ साहित्यकार का एक नयी रचनाकार की किताबों के सहयोग देना कोई बड़ी बात नहीं अपितु ये उनके खुद सम्मान में बढ़ोतरी करता है | |आपको मेरी बात द्वेष फैलाने वाली लगी बहुत आश्चर्य की बात है , मेरे शब्द कठोर थे शालीनता की आशा विद्वत जनों से की जाती है वह पूरी ना हुई । अभिव्यक्ति का अधिकार सबको है यदि मंच पर आलोचना के लिए नहीं अपितु वाही- वाही के लिए ही स्थान है तो इसे साहित्यिक मंच कहना सही नहीं होगा | मंच भी रचनाकारों की रचनाओं से सफल है | यदि उनका इस मंच पर सही कहना वर्जित है और उनकी अभिव्यक्ति को सम्मान नही, तो मैं विनम्रता से क्षमा याचना सहित कहना चाहूंगी कि इस मंच पर मेरा अंतिम संवाद है। मंच ने बहुत बार मेरी रचनाओं को स्थान दिया उसके लिए आभारी रहूंगी | मैं इस चर्चा को पुनः क्षमा याचना के साथ विराम देना चाहूँगी। आप बड़े और विद्वता में कहीं ऊँचे हैं सो आपको अधिकार है। मैं भी बड़ों के साथ वर्षों से हूँ और बड़ों को अनुचित कहना मेरा संस्कार नहीं। आपको जो लिखा था शायद अधिकार के अतिरेक में लिखा गया। मेरे लिए आप सम्मानित रहेंगे। भले मंच पर मेरी रचना आये ना आये।
हटाएंसादर प्रणाम 🙏🙏| आदरणीय राधा जी से विनम्र क्षमा प्रार्थी हूँ
दिलबाग जी , मैंने प्रस्तुति को हतोत्साहित नहीं किया अपितु एक त्रुटी की ओर ध्यान दिलाया है | है | मैं उस दिन प्रस्तुति पर व्यस्तता वश आ ना पाई| एक रचनाकार के रूप में किसी की आलोचना का सम्मान करना आपको आना चाहिए |नाकि किसी की बात को गलत मोड़ देकर प्रस्तुत करना | राधा जी से मेरा ना कोई सम्पर्क है दोस्ती | मैंने सिर्फ मंच पर नैतिक मूल्यों के पक्ष में ये बात कही थी | वे एक भद्र महिला और प्रतिष्ठित ब्लोगर और रचनाकार है। मुझे अपने लिए नहीं उनके लिए बहुत खेद रहेगा।
हटाएंप्रिय मीना भारद्वाज जी , ब्लॉग जगत पर अपनी इस अभिव्यक्ति रूपी गलती का मुझे हमेशा अफ़सोस रहेगा और आपसे क्षमा प्रार्थी रहूंगी | आपकी शालीनता और विनम्रता की सदैव आभारी रहूंगी |
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हटाएंप्रिय रेणु,शास्त्री सर हमारे बुजुर्ग और अभिवावक समान है तुम्हारी बातों से आहत हो यदि वो कुछ कह दिए है तो तुम भी उसे दिल से ना लगाओं। हम सभी इस बात को अब यही विराम दे तो बेहतर है। हम सभी यहाँ एक परिवार जैसे है यहाँ थोड़ा बहुत मतभेद होता ही रहेगा बस मनभेद ना हो सखी। अनीता जी ने भी बहुत ही परिश्रम से वो प्रस्तुति बनाई थी,सालों पहले से हर एक को ढूंढ़ कर लाना आसान नहीं होता सखी,ये प्रस्तुति बनाने वाले समझ सकते हैं। इस घटना को ये समझकर भुला दे कि-अपने ही तो है थोड़ी बहुत अनबन हो गई तो क्या हुआ ?इस मंच की प्रतिष्ठा और हम सब का साथ स्नेह यूँ ही बना रहे यही कामना है।
मैंने भुला दिया सखी। मैं तो इस घमासान से घबरा गई थी। हार्दिक आभार 🌹🌹🙏🙏☺
हटाएंबेहतरीन रचनाओं से सजी बहुत ही सुंदर चर्चा अंक
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
जवाब देंहटाएंचर्चामंच के गरिमामय मंच पर एक विदुषी लेखिका का इतने कटु शब्दों में अपमान अच्छा नहीं लगा,वे भी आपकी बिटिया जैसी ही हैं ना हम सब की तरह । रेनुबाला की टिप्पणी में कहीं कोई अपशब्द नहीं था। चर्चामंच के सभी चर्चाकारों और विशेष तौर पर आदरणीय शास्त्रीजी के लिए मेरे मन में अपार आदर है, वह आगे भी रहेगा चाहे मंच पर मेरी रचनाएँ आएँ या ना आएँ।
जवाब देंहटाएंचर्चामंच की एक पाठक होने के नाते मैंने यहाँ अपना मंतव्य देना जरूरी समझा है।
चर्चा मंच ने इतने वर्षों से ब्लॉग जगत को अपनी सेवाएँ दी हैं ये हर्ष की बात है । 4000 वीं पोस्ट विशेष रूप से पुराने और नए चर्चाकारों को समर्पित की गई यह भी आपका प्रयास तारीफ के काबिल है । पोस्ट की लंबाई के कारण कुछ चर्चाकार छूट गए ये बात समझने में थोड़ी कठिनाई हो रही है ।यदि ऐसा ही था और वाकई यदि सभी चर्चा कारों को इस मौके पर याद किया गया तो किसी को भी छोड़ देना उचित नहीं है ।
जवाब देंहटाएंयदि इस विषय पर किसी ब्लॉगर ने अपनी बात रखी तो बजाय उसकी बात का जवाब दे कर संतुष्ट करने के उसे ही दोषी बना दिया गया । किसी की भी जिज्ञासा का समाधान करना संचालक का दायित्त्व होता है । यूँ एक दूसरे पर छींटाकशी तो उचित नहीं लगती ।खैर .... मेरा मकसद किसी भी बात का पक्ष लेना नहीं है ।बस जो उचित लगा लिख दिया ।
सभी चर्चाकारों से क्षमा याचना सहित
एक ब्लॉगर
संगीता स्वरूप
जिन सहयोगियों ने निष्पक्ष रुप में अपना मत दर्ज कराया है सभी को सादर आभार।
जवाब देंहटाएंमीना भारद्वाज जी,
जवाब देंहटाएंमेरे लेख को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार एवं धन्यवाद 🌹🙏🌹
सभी चर्चाएं बहुत ही सुंदर और रोचक हैं। आपके संयोजन श्रम को नमन 🙏🙏🙏
- डॉ शरद सिंह