शीर्षक पंक्ति: आदरणीय रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
चुनावी सभाओं का
अजीब मंज़र देखिए,
ज़ुबा पर मीठे-तीखे बोल
दिलों में ज़हरीला ख़ंजर देखिए।
#रवीन्द्र सिंह यादव
आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-
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दोहे "कविताओँ का मर्म"
आम आदमी पिस रहा, मजे लूटता खास।
मँहगाई की मार से, मेला हुआ उदास।४।
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प्रियतम भूला आपको, आप कर रहे याद।
पत्थर से करना नहीं, कोई भी फरियाद।५।
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छलिया छल की कोठरी
मायावी है नाम।
कान्हा कान्हा जग कहे
मीरा के हैं श्याम।।
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एक समभाव वाला जीव वह
भारी मेहनत करने के बाद भी
रूखा, सूखा खाकर खुश रहता है
दुनिया भर का अत्याचार सहता है
जुग-जुग से लोगों की सेवा करता है
भला करके भी बुरा बनता है
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डूबे हुए पहिए - -
पीठ
में उभर आया है समय का कुबड़, टाट
के दरवाज़े पर हैं उभरे हुए जीवन
संवाद, सभी जलरंग चित्र
धीरे धीरे मिट जाते
हैं, मौन हैं सभी
राजप्रांगण,
बारिश
में
डूब जाता है कच्चा आंगन, उलटे छाते
से खेलता है अनवरत श्रावण - -
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कितनी बातें
कितना लाभ होता
जान कर भी
नहीं है कुछ लाभ
मन अशांत
होता ही रह जाता
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या फिर परात में उछल -कूद करते
गुँथ जाएगें आटे के साथ
सिक जाएंगे रोटियों के साथ
नहीं...................
इतना जुल्म मत करना
अभी ले लो हाथ कलम
कर डालो सृजन ।
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मंजिल की ओर
रख भरोसा खुद पर,
आज पी ले सभी गमों को!
मिटा दें सभी कुप्रथाओं को,
और ला अपने होठों पर इक सच्ची मुस्कान!
बना ले अपनी इक अलग पहचान,
और दूसरों के लिए मिसाल!
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ये सब #मोबाइल (#Mobile) का #Craze है ।
मोबाइल ने बदला कैसा Climate है ,
सबकी दुनिया हो रही Private है ,
रिश्ते नातों से हो रहे Disconnect है ,
वर्चुअल वर्ल्ड से हो रहे Relate है ,
रियल वर्ल्ड बन रहा Fake है,
ये सब मोबाइल का Craze है ।
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मुझे आज भी याद है उनकी जेब टॉफियों से भरी रहती थी जो भी कोई बच्चा उनके करीब आता तो उन्हें "नमस्ते अंकल" जरूर कहता था और वो बड़े प्यार से उसकी हथेली पर दो टॉफियाँ रख देते थे और बच्चें "थैंक्यू अंकल" कहते हुए खुश हो जाते थे। आज खबर आई कि रामचंद्र अंकल नहीं रहे.... , जिनके व्यवहार ने बालपन में ही मुझे ये सीखा दिया था कि -"प्रतिष्टा कमानी पड़ती है"
उनकी याद आई तो ये संस्मरण आप से साझा कर लिया।
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समय समय पर आरक्षण की समीक्षा हो
आम्बेडकर ने सामाजिक,
शैक्षिक रूप से पिछड़े दलित लोगों के निमित्त आरक्षण की मांग उठाई।
गाँधी जी ने अपनी किताब " मेरे सपनों का भारत " में लिखा कि "
प्रशासन योग्य व्यक्तियों के हाथों में होना चाहिए। प्रशासन न सांप्रदायिक हाथों में हो और न ही
अयोग्य हाथों में।"
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंमेरे दोहे को शीर्षक पक्ति बनाने के लिए
बहुत-बहुत आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा |
मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद सर |
वाह!अनुज ,खूबसूरत चर्चा । मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय
जवाब देंहटाएंहमारे लेख को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आप का बहुत बहुत आभार ।
सुंदर लिंक्स से सजी आज की चर्चा प्रस्तुति,सादर शुभकामनाएँ एवं नमन।
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनाओं का चयन, जल दिवस पर शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंमुझे स्थान देने हेतु सहृदय आभार।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर
बेहतरीन प्रस्तुति सर,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद सर एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंसभी प्रविष्ठियां बहुत सुन्दर और बेहतरीन । सभी को बहुत बधाइयां ।
जवाब देंहटाएंमेरे रचना को इस चर्चा अंक में शामिल करने हेतु
बहुत-बहुत आभार आदरणीय सर जी जी।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति । सभी सूत्र बेहतरीन हैं। चयनित रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसार्थक लिंक मिले ... अच्छी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसभी टिप्पणीदाताओं का हृदय से आभार।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति। बधाई और आभार!!!
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