मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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होली अब हो ली हुई,
नव सम्वतसर आने वाला है।
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चर्चा मंच में चर्चाकारों द्वारा कोशिश यह की जाती है कि अधिक से अधिक अद्यतन पोस्टों के लिंकों को सम्मिलित किया जाये। किन्तु फिर भी कुछ पोस्ट छूट ही जातीं है। इसमें चर्चाकारों की विवशता यह भी होती है कि स्थान स्थान सीमित होता है और चर्चा के अधिक लम्बा होने के कारण पाठक सभी लिंकों तक पहुँच नहीं पाते हैं।
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कई ब्लॉगर बहुधा यह शिकायत भी करते हैं कि मेरा केवल चित्र लिया गया, कई यह भी शिकायत करते हैं कि मेरी पोस्ट पूरी नहीं ली गयी। उनकी इस शिकायत पर मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि चर्चा में लिंकों का महत्व अधिक होता है। यदि आपकी पूरी पोस्ट यहीं चस्पा कर दी जायेगी तो पाठक आपके ब्लॉग पर क्यों जायेगा?
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झरें होंगे चाँदनी मे ,
हरसिंगार...
निकलेंगे अगर घर से,
तो देख लेंगे ।
नीम की टहनी पर,
झूलता सा चाँद..
मिला फिर से अवसर,
तो देखने की सोच लेंगे।
Meena Bhardwaj, मंथन
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जोगीरा सारा रारारा...!!!
चरचा में है कांड वसूली, अघाड़ी परेशान।।
परमबीर के लेटर बम से, सियासी घमासान।
जोगीरा सारा रारारा...!!!
रवींदर सा दिक्खे नरेंदर, बदला जब से वेश।
सत्याग्रह भी ट्रेंड हुआ है, भौचक बंगलादेश।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!
Himkar Shyam, शीराज़ा [Shiraza]
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प्लास्टिक से निर्मित डेकोरेटिव पौधे चाहे कितने ही सुंदर क्यों ना हों, उनको देखकर न तो मन शांत होता है और न ही प्रफुल्लित, जबकि वास्तविक पौधों की देखभाल में अनेक झंझट रहते हुए भी सुकून उन्हीं से मिलता है। यही बात देवभाषा संस्कृत के बारे में है, जहां हमारे हीनभाव ने अंग्रेजी जैसी डेकोरेटिव भाषा को तो घरों में सजा लिया और वास्तविक आनंद देने वाली ‘संस्कृत’ को गंवारू भाषा ठहरा दिया।
Alaknanda Singh, अब छोड़ो भी
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वह और मैं
क्यूँ रह पाए साथ
समझे नहीं
एक छत के नीचे
हमारे बीच
नहीं खून का रिश्ता
जाना जरूर
फिर भी लगाव है
दौनों के बीच
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उपन्यास मुझे पसंद आया। इसका कलेवर छोटा जरूर है लेकिन फिर भी यह मनोरंजन करने में कामयाब होता है। हाँ, अगर आप सुनील के उपन्यास जटिल मर्डर मिस्ट्री के लिए पढ़ते हैं तो यह उपन्यास आपको निराश कर सकता है लेकिन अगर आप थ्रिलर पढ़ने का शौक भी रखते हैं तो आपको यह पसंद जरूर आएगा।
विकास नैनवाल 'अंजान', एक बुक जर्नल
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BAL SAJAG, बाल सजग -
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Satish Rohatgi, स्वरांजलि
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Anita, डायरी के पन्नों से
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~Sudha Singh vyaghr~,
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तेरे आँगन की धूप सुनहरी चमकीली
मेरे घर की मसाले वाली चाय अदरक की
बस दो छोटे से बहाने थे
गुलाबी ठण्ड बिताने के
Madhulika Patel, मेरी स्याही के रंग
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Sawai Singh Rajpurohit, AAJ KA AGRA
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virendra sharma, कबीरा खडा़ बाज़ार में
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गगन शर्मा, कुछ अलग सा
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आज के लिए बस इतना ही...।
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बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति आदरणीय शास्त्री जी और मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात ....
जवाब देंहटाएंमंच पर मेरी लिंक को भी शामिल करने हेतु आभार।।।।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
बेहतरीन और लाजवाब प्रस्तुति । आज के संकलन में मेरी रचना को मान देने के लिए हृदयतल से सादर आभार सर।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा। पठनीय लिंक्स। मेरी रचना को स्थान देने लिए हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी, मेरी रचना को चर्चामंच पर लाने के लिए आपका बुहत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर श्रमसाध्य प्रस्तुति आदरणीय सर, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सार्थक अंक हैं आदरणीय आपका वर्षों का अनुभव है ब्लाग जगत के बारे में । बहुत मेहनत और धैर्य का कार्य है ।
जवाब देंहटाएंरचनाकारों को सहयोग और खुशी जाहिर करनी चाहिए ना कि कमियां गिनाना।
सुंदर गुलों से सजा मोहक गुलदस्ता।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर।
सुंदर सुखद चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को यथोचित स्थान देने हेतु मंच का हृदय से आभार 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक सुसज्जित सारे ,चर्चा फिर दमदार रही है। '
जवाब देंहटाएं'संस्कृत और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: समय है अपनी जड़ों की ओर वापसी का' आलेख आकर्षण का विशेष केंद्र रहा। बहुत किया लोकप्रिय विज्ञान लेखन अब लगता सब जूठन थी ,अब इच्छा बलवती हुई -अगला जन्म वहां हो जहां गीता -उपनिषद मूल भाषा संस्कृत में पढूं ,अंग्रज़ी हिंदी टीकाओं से पेट नहीं भरता।
कम्प्यूटर फ्रेंडली भाषा देववाणी संस्कृत ही है।
सुंदर लिंक सुसज्जित सारे ,चर्चा फिर दमदार रही है। '
जवाब देंहटाएं'संस्कृत और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: समय है अपनी जड़ों की ओर वापसी का' आलेख आकर्षण का विशेष केंद्र रहा। बहुत किया लोकप्रिय विज्ञान लेखन अब लगता सब जूठन थी ,अब इच्छा बलवती हुई -अगला जन्म वहां हो जहां गीता -उपनिषद मूल भाषा संस्कृत में पढूं ,अंग्रज़ी हिंदी टीकाओं से पेट नहीं भरता।
कम्प्यूटर फ्रेंडली भाषा देववाणी संस्कृत ही है।
पर्यावरण सचेत स्वास्थ्य वर्धक दोहे शास्त्री जी के बेधड़क सब कह जाते हैं राजनीति समाज नीति अब कुछ बेहतरीन दोहावली की उच्चारण के तहत -
पल-पल में है बदलता, काया का ये रूप,
ढल जायेगी एक दिन, रंग-रूप की धूप।२१।
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ग्रह और नक्षत्र की, चाल रही है वक्र।
आने-जाने का सदा, चलता रहता चक्र।२२।
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अगले पल क्या घटेगा, कुछ भी नहीं गुमान।
अमर समझ कर जी रहा, हर जीवित इंसान।२३।
अध्यात्म भी मिलता है यहां नीति भी -
चार वेद छः शास्त्र में बात लिखी हैं दोय ,दुःख दीन्हें दुःख होय है सुख दीन्हें सुख होय.बधाई सशक्त अंक के लिए।
आदरणीय सर नमस्कार, बहुत सुंदर संकलन, मेरी रचना को स्थान देने पर तहेदिल से शुक्रिया आपका ।
जवाब देंहटाएंसभी टिप्पणीदाताओं का हृदय से आभार।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ चर्चामंच, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीय - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति आदरणीय 💐💐💐💐
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