शीर्षक पंक्ति: आदरणीया संगीता स्वरुप (गीत) जी।
सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
जीवन भूली-बिसरी स्मृतियों का ख़ूबसूरत पिटारा है। यादों की पूँजी से समृद्ध व्यक्ति सृजन का अथाह सागर अपने भीतर सँजोए रहता है।
कविवर हरिवंश राय 'बच्चन' जी ने अपनी आत्मकथा 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ' को हिंदी साहित्य की धरोहर बना दिया।
स्मृतियों के उपवन में रंग-बिरंगे कुसुम खिलते और मुरझाते रहते हैं किंतु इनकी महक जीवन में ऐसी रचती-बसती है कि व्यक्ति को आजन्म महकाती रहती है।
-अनीता सैनी 'दीप्ति'
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
--
तुम विघ्नविनाशक के ताता
जो तुमको मन से है ध्याता
उसका सब संकट मिट जाता
भोले-भण्डारी महादेव!
तुम पंचदेव में महादेव!!
--
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
कब कब क्या क्या वादे थे
कुछ पूरे कुछ आधे थे
कैसे उन पर ऐतबार करूँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
कब कब क्या क्या वादे थे
कुछ पूरे कुछ आधे थे
कैसे उन पर ऐतबार करूँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
--
सत्य शाश्वत शिव की सँरचना
आलोकिक सी है गतिविधियाँ
छुपी हुई है हर इक कण में
अबूझ अनुपम अदीठ निधियाँ
ॐ निनाद में शून्य सनातन
है ब्रह्माण्ड समस्त समाहित।।
--
वक़्त के साथ उतर जाते हैं सभी जश्न के
लहर, वो शख़्स था दिल के बहुत ही
क़रीब, कहने को शिकायतें
उससे कम न थी, मुड़
के काश देखता वो
इक नज़र,
लहर, वो शख़्स था दिल के बहुत ही
क़रीब, कहने को शिकायतें
उससे कम न थी, मुड़
के काश देखता वो
इक नज़र,
--
नित निहारें नैन चकोर
ना नज़र में कोई दूजा
हो तरल बह जाऊं आज
सुन मीठे बैन प्रीता !
--
सिंधु तट पर
एक सिंदूरी शाम
गुज़र रही थी
थी बड़ी सुहावनी
लगता था
भानु डूब जाएगा
अकूत जलराशि में
चलते-चलते
--
वो पल जब किसी की भी
चाह नहीं
किसी का भी साथ
चाहिए नहीं
वक्त के गुज़रते लम्हों से
कोई वास्ता नहीं
किसीको किसी की भी
फ़िक्र नहीं
--
यूँ लिखो पढ़ना पड़े।
सीढ़ियाँ चढ़ना पड़े।
ढोल सुन बारात का,
द्वार से कढ़ना पड़े।
--
सहायता नहीं, सहयोग चाहिए।
नहीं कोई, हमें आन चाहिए।
पथ अपना हम, खुद चुन लेंगी,
नहीं कोई, व्यवधान चाहिए।
--
फिर दोनों बांहों में भरकर
हलका हलका सा आलिंगन |
बाबा की मीठी सी गोदी ,
दादी का हंस हंस बतियाना |
पापा का कांधों पर लेकर .
बाहर फूलों से बहलाना |
--
कानून का तीसरा हाथ :
निर्भीक, निर्लोभी, निष्पक्ष पत्रकारिता
'मैं बेगुनाह हूँ' कहानी कहता है अपने 'जनता जागृति दल' की गतिविधियों द्वारा राजनगर नामक (काल्पनिक) महानगर की राजनीति को स्वच्छ करने का बीड़ा उठाए हुए एक उभरते हुए आदर्शवादी राजनेता सत्येन्द्र पाराशर को एक कैबरे नर्तकी नताशा की हत्या के झूठे आरोप में फँसा दिये जाने की जिसे निर्दोष प्रमाणित करता है आदर्शवादी पत्रकार सुनील जो 'ब्लास्ट' नामक एक राष्ट्रीय स्तर के समाचार-पत्र में नौकरी करता है । उसका सौभाग्य है कि इस समाचार-पत्र के मालिक तथा प्रधान संपादक श्री बी.के. मलिक स्वयं आदर्शवादी हैं तथा उसे मात्र अपना कर्मचारी न समझकर पुत्रवत् स्नेह करते हैं ।
--
आज का सफ़र यहीं तक
फिर फिलेंगे
आगामी अंक में
-अनीता सैनी 'दीप्ति'
फिर फिलेंगे
आगामी अंक में
-अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत ही अच्छे लिंक्स बधाई आपको
ReplyDeleteउपयोगी और पठनीय सूत्रों का सुन्दर संकलन।
ReplyDeleteश्रमसाध्य चर्चा के लिए-
आपका आभार अनीता सैनी दीप्ति जी।
अच्छी रचनाओं का सराहनीय संकलन । बधाई भी शुभ कामनाएं भी ।
ReplyDeleteबढ़िया संकलन रहा । शीर्षक चुनने के लिए आभार ।
ReplyDeleteबालू पर लिखा था , शिक्षित होने दो , जिसकी रज ने गोद खिलाया विशेष पसंद आईं ।शुक्रिया
बेहतरीन संकलन हेतु अभिनंदन अनीता जी एवं मेरे आलेख को स्थान देने हेतु आभार ।
ReplyDeleteVery Nice Post....
ReplyDeleteWelcome to my blog....
श्रमसाध्य चर्चा और लाजवाब पठनीय सूत्रों का सुन्दर संकलन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर शीर्षक, शानदार भूमिका, सुंदर लिंक चयन,सभी रचनाएं बहुत आकर्षक और पठनीय ।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय तल से आभार।
सादर सस्नेह।
Best Shayari
ReplyDeleteसभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ चर्चामंच, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया - - नमन सह।
ReplyDelete