सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भूमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से )
स्वर्ग धरती को बनाना चाहता हूँ
और इक सूरज उगाना चाहता हूँ
इक नई गंगा बहाना चाहता हूँ
प्यास धरती की बुझाना चाहता हूँ
सभ्यता का आवरण मैला हुआ
अब सुहाना 'रूप' लाना चाहता हूँ
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आपने बिलकुल सही कहा आदरणीय सर
"सभ्यता का आवरण बहुत मैला हो चुका है"
इसका रूप सुहाना लाना ही होगा
इसी संकल्प के साथ चलते हैं,आज की रचनाओं की ओर.....
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ग़ज़ल "नई गंगा बहाना चाहता हूँ"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
जो गुलामी के बचे बाकी निशां
दाग सारे मेटना अब चाहता हूँ
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देश पर कुर्बान करके जिन्दगी
हैसियत अपनी लुटाना चाहता हूँ
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राग-विराग - 7.
जब से रत्ना ने तुलसी का सन्देश पाया है,
मनस्थिति बदल गई है.कागज़ पर सुन्दर हस्तलिपि में अंकित वे गहरे नीले अक्षर जितनी बार देखती है. हर बार नये से लगते हैं .'रतन समुझि जिन विलग मोहि ..' -,नन्हा-सा सन्देश रत्ना के मानस में उछाह भर देता है, मन ही मन दोहराती है. फिर-फिर पढ़ती है.
-------------- ठुड्डी को हथेली में टिकाए उदास बैठी बिन्नी से माँ ने बड़े प्यार से पूछा, "क्या हुआ बेटा ये उदासी क्यों"?
"मम्मा!आज मेरे इंग्लिश के मार्क्स पता चलेंगें "...
"तो?....आपने तो अच्छी तैयारी की थी न एक्जाम की....फिर डर क्यों?
मम्मा! मुझे लगता है मैं फेल हो जाउंगी।
अरे....!...नहीं बेटा....शुभ-शुभ बोलो, और अच्छा सोचो! वो कहते हैं न , बी पॉजिटिव!...
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'' मैं ''
जब से यह फोटो क्लिक हुआ है, जाने क्यों लगता है इसके पीछे कोई कहानी छिपी है, जिसे महसूस तो कर पा रही हूं..मगर शब्द नहीं दे पा रही। क्या मैं किसी बीती कहानी का हिस्सा हूं या कोई कहानी आगे लिखी जाएगी जिसका मुख्य पात्र बेंच और उस पर बैठी अकेली '' मैं '' हाेऊंगी।----------------712. अब नहीं हारेगी औरत
ख़ुद को साबुत रखने में हारती है औरत
जीवन भर हँस-हँसकर हारती है औरत
जाने क्यों मरकर भी हारती है औरत
जीवन के हर युद्ध में हारती है औरत।
अब हर हार को जीत में बदलेगी औरत
किसी भी युद्ध में अब नहीं हारेगी औरत।
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मेरे बहाव में निश्चिंत नाव खेना ।
स्वाभिमान की रक्षा करना
सहज ही है आता
श्रम की राह पर चलना भी सुहाता
अमृत स्रोत सी जीवन को पुष्ट करती है
आनंद और तृप्ति के फूल खिलाती
सुकून से झोली भरती है !
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आधा विश्व हो तुम !!
अपने आपको प्रबुद्ध, आधुनिक व खुद को सारी महिलाओं का प्रतिनिधि मान बैठी तथाकथित समाज सेविकाएं जो खुद किसी महिला का सरे-आम हक मारे बैठी होती हैं, मीडिया के वातानुकूलित कक्षों में कवरेज-नाम-दाम पाने के लिए, कुछ ज्यादा ही मुखर हो जाती हैं। उन्हें सिर्फ अपने से मतलब होता है ! सोचने की बात है, क्या सिर्फ कुछ, अपने को आधुनिक, प्रगतिशील या बुद्धिजीवी होने का दिखावा करने वाली आत्मश्लाघि महिलाओं द्वारा चली आ रही परंपराओं के विरुद्ध जाने, समाज की मान्यताएं तोड़ने, पुरुषों की कुरीतियों को अपनाने भर से महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिल जाएगा ! --------------------------
हरियाली के खूबसूरत संसार में भी हैं रोजगार के अवसर
भला कौन ऐसा होगा जिसे फूल-पौधों से प्यार न हो? लोगों का बस चले तो पूरा बगीचा ही उठाकर घर ले आएँ! अपने-अपने घरों में गमले सजाकर हम अपनी इसी इच्छा को संतुष्ट करने का प्रयास भी करते हैं। वास्तुशास्त्र में भी अलग-अलग पौधों के विभिन्न लाभ बताए जाते हैं। आमतौर पर छत, पोर्टिको जैसी जगहों पर गमले लगाने का चलन है लेकिन फैशन के इस दौर में बेडरूम, ऑफिस भी इससे अछूते नहीं हैं। किसी खास अवसर पर बुके की जगह एक सुंदर पौधे वाला गमला भेंट करने का प्रयोग भी खूब पसंद किया जाने लगा है।
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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दें।
आप सभी स्वस्थ रहें,सुरक्षित रहें।
कामिनी सिन्हा
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मित्रों आप सबके सहयोग से चर्चा मंच ने 4000 से अधिक का आँकड़ा छू लिया है।
जवाब देंहटाएंहमारे चर्चाकारों की मेहनत और निरन्तरता के ही कारण आज चर्चा मंच ब्लॉगों की चर्चा में
नम्बर 1पर है। बहुत बहुत बधाई आप सबको।
सुन्दर और श्रम साध्य चर्ता प्रस्तुत करने के लिए आदरणीया कामिनी सिन्हा जी आपका आभार।
सुप्रभातम!🙏 मंच संचालकों को भी ढेर सारी बधाइयाँ! आशा करता हूँ भविष्य में चर्चा मंच और नई बुलंदियों तक पहुँचेगा।
हटाएंशानदार रचनाएँ , सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई हो,चर्चा मंच यू ही बुलंदियों को छूता रहा,बहुत बहुत बधाई हो सभी सहयोगी साथियों को ,मेहनत रंग लाई , सुंदर प्रयास, सादर नमन
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा ।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार, विभिन्न ब्लॉग्स को एक मंच पर एकत्रित करने का आपका प्रयास सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंअद्यो पांत संकलन बहुत सरस मन को हर क्षण लुभाने वाला है |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के माध्यम से मैं बताना चाह रही हूँ कि मैं कमेंट न कर पाने की समस्या से जूझ रही हूँ । ब्लॉग से ब्लॉग तक ,या अपनी रीडिंग लिस्ट से ब्लॉग तक जा कर कमेंट पब्लिश नहीं कर पा रही ।फेसबुक पर यदि ब्लॉग का लिंक होता है तो वहां से जा कर कमेंट कर रही हूँ ।इसी लिए शास्त्री जी की अनुमति लिए बिना ही इस चर्चा का लिंक अपनी वाल पर फेसबुक में शेयर किया ।और वहां से ही लिंक्स पर गयी ।ये टिप्पणी भी इसलिए ही कर पा रही हूं कि फेसबुक से लिंक खोला है ।ठीक करने का प्रयास जारी है ।किसी के ब्लॉग पर टिप्पणी न हों तो समझियेगा की समस्या अभी हल नहीं हुई है ।शास्त्री जी से क्षमा प्रार्थना ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया संगीता स्वरूप जी।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति कामिनी जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति कामिनी दी।
जवाब देंहटाएंसादर
शानदार चर्चा प्रस्तुति सभी रचनाएं बेहद उम्दा एवं पठनीय ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से आभार कामिनी जी।
बहुकत सुन्दर और उपयोगी चर्चा।
जवाब देंहटाएंजयभोले नाथ।
महाशिरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें।
आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे लिंक्स ।बधाई आपको
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच को बहुत बधाई ! मेहनत रंग लाई !
जवाब देंहटाएंआज का शीर्षक बहुत कुछ कह जाता है. भागीरथ प्रयास के बिना गंगा धरा पर नहीं उतरती. किसी भी युग में.
चर्चा को संचालित करने वाले सुधि जनों और प्रतिभागी सभी लेखकों को बधाई.
इस विशेष अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए कामिनी जी आपकी बहुत आभारी हूँ. चर्चा चलती रहे. शुभकामनाएं.
सुंदर बोलता आह्वान करता शीर्षक ।
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक चयन।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति कामिनी जी
जवाब देंहटाएंNice post
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