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बुधवार, अक्तूबर 20, 2021

"शरदपूर्णिमा पर्व" (चर्चा अंक-4223)

मित्रों!

बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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दोहे "शरदपूर्णिमा पर्व" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) 


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शशि की किरणों में भरी, सबसे अधिक उजास।
शरदपूर्णिमा धरा पर, लाती है उल्लास।१।
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लक्ष्मीमाता धरा पर , आने को तैयार।
शरदपूर्णिमा पर्व पर, लेती हैं अवतार।२।

उच्चारण 

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सावधान! महामारी का सबसे नाज़ुक दौर है अब 

जिज्ञासा 

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भाई !ठीक है आप ही हो अध्यक्ष मानलिया पर इसका सुबूत तो दो। मान लिया आप ही प्रजातंत्र हो ,प्रजातंत्र को बचाने वाला कुनबा हो पर इसका सुबूत तो दो। आज देश को हर चीज़ का सुबूत मांगने की आदत पड़ गई है 

कबीरा खडा़ बाज़ार में 

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पहचान 

अखबार का पन्ना पलटते ही विमला की दृष्टि अचानक उसमें छपी, हुई एक फोटो पर गई,और वो पहचानने की कोशिश में लगने ही वाली थी, कि उसे याद आ गया चित्र में दिखता चेहरा कौन है ? और फिर बड़े जोर से अपने पति को पुकारते हुए वह बोली देखो तुम्हारी कांति की बिटिया की फोटो अखबार में निकली है और वो इनाम ले रही है, मुख्यमंत्री जी के हाथ से । 
गागर में सागर 

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विषकन्या का जहर | तुलसी कॉमिक्स | विजय कुमार वत्स 

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कह मुकरी ...... सहेलियों की पहेलियां ..... कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

मन की वीणा - कुसुम कोठारी।  


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समय की कीमत समय एक नदी के समान है ,आप बहते हुए उस पानी को दोबारा नहीं छू सकते क्योंकि धारा जो बह गई वो वापस नहीं आएगी ।

  जिंदगी हमें सिखाती है समय का सदुपयोग करना ,समय हमें सिखाता है जिंदगी की कीमत करना । 
  जैसे गलत चीजों म़े पैसा लगाने से वो डूब जाता है ,वैसे ही गलत कामों में समय बर्बाद करने से असफलता ही मिलती है ।
  समय की कद्र करो ,वो आपकी कद्र करेगा  समय तो सभी के पास समान है ,फिर क्यों कोई सफल और कोई असफल । समय का सही इस्तेमाल करें । हर काम की पूर्व तैयारी करें । हर काम के लिए समय को विभाजित करें और उसपर अमल करें । आपको ही निश्चित करना होगा कि किस काम को कितना समय देना है ।
  सही वक्त का इंतजार मत करो ,ये खुद से नहीं आता,उसे लाना पडता है ।
  जिसने समय की कीमत जान ली,उसकी जिंदगी सँवर गई ।
शुभा मेहता  

अभिव्यक्ति 

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संस्मरण : पहली यात्रा 

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पिता 

मेरे संग्रह देहरी गाने लगी से...

*पिता*

भाग्य की हँसती लकीरें

जब पिता उनको सजाता

पाँव नन्हें याद में अब

स्कन्ध का ढूँढ़े सहारा

उँगलियाँ फिर काँध चढ़ कर

चाहतीं नभ का किनारा

प्राण फूकें पाँव में वो

सीढ़ियाँ नभ तक बनाता।। 

काव्य कूची

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कुनकुनी धुप 

 कुनकुनी धूप खिली है वादियों में

रश्मियों ने पैर पसारे घर के आँगन में

प्रातः का मंजर सुहाना हो गया

गीत गाए दिल खोल  परिंदों ने

Akanksha -asha.blog spot.com 

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प्रार्थना का मूल रूप. 

प्रार्थना जितनी गहरी होगी 
उतनी  ही  निःशब्द होगी
कहना चाहोगे बहुत कुछ 
कह ना पाओगे कभी कुछ।

विह्वल मन होठों को सी देंगे
अश्रु आंखों के सब कह देंगे
संवाद नही मौन चाहिए .....
 प्रभु मौन की भाषा समझ लेंगे।। 

सागर लहरें 

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' जिन्दगी '-- एक  बात  छोटी सी-----

' जिन्दगी '--

एक  बात  छोटी  सी

प्याली में  उडेलना

फूँक, फूँक,घूँट,घूँट

पी लेना,भर है.

' जिन्दगी '  एक  बात  छोटी  सी 

मन के - मनके 

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बिना तले बनाये ब्रेड के इंस्टंट शक्करपारे 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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7 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    आज की लिंक्स पठनीय |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!खूबसूरत प्रस्तुति ।मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर, सार्थक और सामयिक रचनाओं का संकलन सजाया है आपने आदरणीय शास्त्री जी । इस संकलन में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार । सादर शुभाकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक चर्चा !
    सभी लिंक बेहतरीन।
    सभी रचनाएं पठनीय उपयोगी।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. रोचक लिंकस से सुसज्जित चर्चा... मेरी पोस्ट को इन लिंक्स के बीच स्थान देने के लिए हार्दिक आभार..

    जवाब देंहटाएं

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