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बुधवार, अक्तूबर 27, 2021

"कलम ! न तू, उनकी जय बोल" (चर्चा अंक4229)

स्नेहिल सुप्रभात मित्रों। 

बुधवार का चर्चा में आपका स्वागत है।

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कलम ! न तू, उनकी जय बोल 

महाकवि दिनकर से
क्षमा-याचना के साथ -

राज्यसभा के रत्न, उड़ चले,
बिना चुकाए ऋण-अनमोल,
कलम ! न तू,
उनकी जय बोल !
देशभक्ति का जो प्रमाण दें,
स्विस बैंकों में खाते खोल,
कलम ! न तू,

उनकी जय बोल !  तिरछी नज़र 

--

गूँगी गुड़िया : माँ को भी माँ चाहिए 

प्रेम के प्रतिदान से

जिम्मेदारियों के नवीन एहसास से

आसमान के कलेज़े को

चीरते हुए निकली ये अदृश्य

मिनारें गिरातें हैं

 माँ  को बेटी बना

 कलेज़े से लगाते हैं

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सरल सहज सजीले शब्द 

सुलभ सहज सजीले शब्द

जब करते अनहद नाद

मन चंचल करते जाते

अनोखा सुकून दे जाते

कर जाते उसे निहाल | 

विभावरी विभावरी चौदहवा काव्य संग्रह ) 

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आज ईता दोष पर कुछ बातें। दीपावली को बस एक सप्ताह ही शेष रह गया है,  जल्द से जल्द अपनी ग़ज़ल भेजें। 

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जुलूस का मशाल वाही 

उंगली काट कर
मीर ए कारवां की तरह
तुम शहीदों में
अपना
नाम
लिखवाने के लिए मचलते हो, वो
सभी हो चुके हैं किंवदंती 

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आभार साहित्य सरोवर 

उलूक टाइम्स

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हम नहीं चंगे..बुरा ना कोय- सुरेन्द्र मोहन पाठक 

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कुत्तों के भौंकने से हाथी अपना रास्ता नहीं बदलता है 

गधा दूसरों की चिन्ता से अपनी जान गंवाता है

धन-सम्पदा चिन्ता और भय अपने साथ लाती है 

धीरे-धीरे कई चीजें पकती तो कई सड़ जाती है

विपत्ति के साथ आदमी में सामर्थ्य भी आता है

सावधानी के कारण आत्मविश्वास आ जाता है

लगातार प्रहार से मजबूत पेड़ भी गिर जाता है

रेत पर नहीं पत्थर पर लिखा चिरस्थायी होता है 

KAVITA RAWAT 

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मन की बातें - सायली छंद 

पुकारूँ

नित्य तुम्हें

कहाँ छिपे हो

मेरे प्यारे

गिरिधारी ! 

Sudhinama 

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चलते फिरते बम | तुलसी कॉमिक्स | कंचन 

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Watch- चक दे इंडिया: रात गई बात गई; हर दिन नया दिन  अब जो भी है टीम इंडिया को संडे के सडन डैथ वाले मैच को भुला कर वर्ल्ड कप के आगे के मैचों पर फोकस करना चाहिए. पाकिस्तान से बाज़ी पलटने का मौका सेमीफाइनल या फाइनल में भी मिल सकता है.

देशनामा 

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डेंगू के मरीजों के लिए खास यह आयुर्वेदिक विशेष अर्क,  प्लेटलेट पहुंचा देता 18 हजार से दो लाख; जानें- पूरी डिटेल  

कबीरा खडा़ बाज़ार में 

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गीत "रौशनी के वास्ते, जल रहा च़िराग है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) 

सवाल पर सवाल हैंकुछ नहीं जवाब है।
राख में दबी हुईहमारे दिल की आग है।।

गीत भी डरे हुएताल-लय उदास हैं.
पात भी झरे हुएशेष चन्द श्वास हैं,
दो नयन में पल रहानग़मग़ी सा ख्वाब है।
राख में दबी हुईहमारे दिल की आग है।।

उच्चारण 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति मेरी ब्लॉगपोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह ! बहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी रचना को आज की चर्चा में सम्मिलित किया आपका हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही उम्दा प्रस्तुति
    सभी अंक बहुत ही शानदार हैं

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति।
    मुझे स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया सर।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    सभी रचनाएं पठनीय सुंदर।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्दा लिंक्स आजके अंक की | मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं

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